Book Title: Achalgaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 13
________________ प्रस्तावना भगवान् महावीर का शासन आज ढाई हजार वर्ष से भारतवर्ष में अपने मूल आचार और सिद्धान्तों पर अविच्छिन्न रूप से विद्यमान है। इसी बीच अनेक उदय और अस्तकाल आये और श्वेताम्बर एवं दिगम्बर आचारचर्या में कई विभिन्नताएँ आयीं; किन्तु मूल सिद्धान्त के शाश्वत तत्त्वों में कोई भी विभेद न आया। श्वेताम्बर समाज में अनेक गच्छ एवं शाखा-प्रशाखाओं का जन्म हुआ और इतिहास में अनेक परम्पराएँ नाम शेष रह गईं और उनकी श्रुतज्ञान की सेवाएँ—असंख्य रचनाएँ निर्मित हुईं, विच्छेद हुईं, लुप्त हुईं, नामशेष भी न रहीं; किन्तु उनमें से आज भी विपुल परिमाण में उपलब्ध हैं। उनका लेखा-जोखा एवं परम्परा व रचनाओं को जो उपलब्ध हैं, उन्हें शोध-खोजपूर्वक प्रकाश में लाने का भगीरथ प्रयत्न करने के लिए जैन विद्या के मूर्धन्य विद्वान् डॉ० सागरमलजी जैन ने डॉ० शिवप्रसाद जी को सौंपा जिसे वे पूरी लगन से सम्पन्न कर रहे हैं। इसी महत्त्वपूर्ण निर्माण में बहुत कुछ कार्य सम्पन्न हुआ है। प्रस्तुत अचलगच्छ का इतिहास इसी प्रयत्न के फलस्वरूप पार्श्वनाथ विद्यापीठ से प्रकाशित हो रहा है। गच्छ और परम्पराएँ प्रचुर परिमाण में विभिन्न प्रकार से शासन सेवा कर गईं; किन्तु वर्तमान में खरतरगच्छ, तपागच्छ, अचलगच्छ और पायचन्दगच्छ आदि ही विद्यमान रही हैं। प्रस्तुत अचलगच्छ वर्तमान में गुजरात-कच्छ और राजस्थान के कुछ नगरों में अपनी उन्नतिशील अवस्था में है। इत:पूर्व हमें कई स्थानों में आँचलियों का फलसा, जैसलमेर में चरण पादुकाएँ, प्रतिमाएँ तथा देशनोक (बीकानेर) में आँचलियों का वास आदि विद्यमान हैं। अहमदाबाद और आगरा आदि स्थानों के इतिहास में भी इस गच्छ का प्रमुख स्थान रहा दृष्टिगोचर होता है। समय ने करवट बदली है और शिथिलाचार समाप्त हो रहा है। हर्ष का विषय है कि साधुओं की संख्या में अभिवृद्धि हुई है और शासन सेवा, साहित्य सेवा में भी समाज और संघ सक्रिय हुआ है। सम्मेतशिखर जी का त्वरित निर्माण आदि इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। गच्छ परम्पराओं में शाखा भेद होते हैं पर इस सन्दर्भ में नामान्त पद में शाखा भेद के बीज तपागच्छ और अंचलगच्छ (अचलगच्छ) में पाये जाते हैं जबकि खरतरगच्छ में नामान्त नन्दी की पद्धति भिन्न है और शाखा भेद भिन्न है। अचलगच्छ की परम्परा में प्रस्तुत ग्रन्थ में कीर्ति शाखा, सागर शाखा, गोरक्ष शाखा, चन्द्र शाखा और पालीताना शाखा और लाभ शाखा का विवरण/विवेचन है; किन्तु इनके अतिरिक्त और भी कुछ अवशिष्ट होगी। जैसलमेर में श्री समयसुन्दरजी के उपाश्रय में लाकर रखी हुई कई चरण पादुकाएँ हैं जिनमें अंचलगच्छीय महान् आचार्य श्रीधर्ममूर्तिसूरि जी की चरण पादुकाएँ भी हैं, जिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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