Book Title: Abhidharmadipa with Vibhasaprabha Vrutti
Author(s): P S Jaini
Publisher: Kashi Prasad Jayaswal Research Institute

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Page 514
________________ 355 440.] षष्ठोऽध्यायः। सन्ताने विसंयोगप्राप्तिसहायोत्पद्यते। विशेषमार्गो यस्तदूर्ध्वमन्यकुशलमूलप्राप्त्यर्थमुत्कर्षगमनलक्षणः॥' ____पुगर्मा! भगवता "मोक्षपुरप्रतिपादनात् प्रतिपच्छब्देनोक्तः२ "चतस्रः प्रतिपदः / अस्ति प्रतिपत्सुखा धन्धाभिज्ञा। अस्ति सुखा क्षिप्राभिज्ञा / अस्ति दुःखा धन्धाभिज्ञा। अस्ति दु:खा क्षिप्राभिज्ञा / "3 तासां पुनरिन्द्रियतो भूमितश्च व्यवस्थानं तदिदं प्रदर्श्यते[440] तीक्ष्णेन्द्रियस्य मौलेषु ध्यानेषु प्रतिपत्सुखा। क्षिप्राभिज्ञाल्पबुद्धेस्तु" धन्धान्यत्र विपर्ययात् // मौलेष खलु चतुर्षु ध्यानेषु यो मार्गः सा सुखाप्रतिपत् / सा च तीक्ष्णेन्द्रियस्य क्षिप्राभिज्ञा तत्रायत्नवाहित्वात् / ' नैर्याणवत्सुखा तत्रायत्नवाहित्वा[त्] शमथविदर्शण (न) योः / साम्यात् / तत्रैव सा मद्विन्द्रियस्य धन्धाभिज्ञा / अन्यासु तु पञ्चसु भूमिष्वनागम्यध्यानान्तरिकारूप्य त्रयसंगृहीतास्वनङ्गपरिगृहीतत्वात्। शमथविदर्शनान्यूनत्वात् अनागम्यध्यानान्तरिकयोरारूप्यत्रये 1 य एम्यः प्रयोगमार्गादिभ्यस्त्रिभ्योऽन्यः स विशेषमार्गः। षोडशात् मार्गान्वयज्ञानक्षणात्परेण सप्तदशादयस्तज्जातीया येऽनावाः क्षणास्ते विशेषमार्गस्वभावाः। एवमन्यदपि विमुक्तिज्ञानम् / Saky. p. 598. Cf. विशेषमार्गः कतमः ? तदन्यस्य क्लेशप्रकारस्य प्रयोगानन्तर्यविमुक्तिमार्गः विशेषमार्गः। अपि खलु क्लेशप्रहाणप्रयोगं निराकृत्य धर्मचिन्तायां वा प्रयुक्तस्य अपि खलु वैशेषिकान् गुणानभिनिहरतो वा यो मार्गः। Asm. p. 70. Pratipat and marga are often used side by side in the Pali Pitakas:-- सिया खो पन भिक्खवे""कला""बुद्धे वा"" मग्गे वा पटिपदाय वा"| Ang. II. P. 79; किं पनावुसो मग्गामगाणदस्सनविसुद्धत्थं पटिपदानाणदस्सनबिसुद्धत्थं 'M. sutta 24. For various interpretations of these two words and their relation, see Childer's p. 364 b; PTSD. and BHSD. p. 364-5. 3Cf. चतस्सो पटिपवा। दुक्खा पटिपदा दन्धाभिचा, दुक्खा पटिपदा खिप्पाभिचा, सुखा पटिपदा दन्धाभिञा। सुखा पटिपदा खिप्पाभिआ। Digha, XXXIII. 1. 11. अपरा पि चतस्सो पटिपदा / अक्खमा पटिपदा, खमा,""दमा, ''समा पटिपदा / Ibid. See Vibhanga, p. 331; Netti, P. 113; Dhs A, III. 375 and Aam. p. 121. 4 Cf. ध्यानेषु मार्ग; प्रतिपस्सुखाऽदुखान्यभूमिषु / धन्धाभिज्ञा म दुमतेः क्षिप्राभिज्ञेतरस्य तु // Ak. VI. 66. 5 अङ्गपरिग्रहणशमथविपश्यनासमताभ्यामयत्नवाहित्वात् / Akb. VI. 66. 6 शमथन्यूनत्वादनागम्यध्यानान्तरे यत्नवाहिनी। विपश्यनान्यूनत्वाच्चारूप्या यत्नवाहिनः / Saks. p, 599.

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