Book Title: Abhidharmadipa with Vibhasaprabha Vrutti
Author(s): P S Jaini
Publisher: Kashi Prasad Jayaswal Research Institute

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Page 583
________________ 424 अभिधर्मदीपे [582. कतमैः पुनरेत आ काराः१...... .....]वत् षोडशभिराकाररित्यतस्त्रयोऽप्यनित्यतादिषोडशाकारमतिद्योताः (1) / प्रत्येकं तु [582] दशानि(णि)हिताकाराः शून्यताया द्वयं मतम् / अनिमित्तोऽमृताकारैश्चतुभिः संप्रवर्तते // अप्र (निणि)हितः खलु समाधिरणि (नि)त्यदु:खाकाराभ्यां संप्रयुक्तश्चतुभिः समुदयाकारैश्चतुभिश्च मार्गा[कारैः].... ... ... ... ... .. . ... तानात्माकाराभ्यां संप्रयुक्तः / अनिमित्तः समाधिनिरोधाकारैश्चतुर्भिनिरोधाकारादिभिः संप्रयुक्तः // [583] विमुक्तेद्विप्रकारायाः प्राप्तये निर्मलाः पुनः। विमोक्षसु(मु?)खशब्देन त एवाविष्कृतास्त्रयः // ' . . रागविरागाच्चेतोविमुक्तिरविद्याविरागा [त्] प्रज्ञाविमुक्तिः / तस्य विमुक्तिद्वयस्य' ... ... ... ... [आ]विष्कृतानि / तत्र शून्यतायाः संप्रयुक्तः समाधिः शून्यतासमाधिः / न प्रणिधत्ते भवमित्या(त्य)प्रणिहितः। दशनिमित्ता पगमादनिमित्तं तदालम्बनसमाधिरणि (नि) मित्तः // पुनः [584] त्रयोऽपरसमाध्याख्या शून्यताशून्यताद्रयः // तेषां त्रयाणां समाधीनामुत्सर्गोपायप्रदर्श[ नार्थ शून्यताशून्यतादयः त्रयः] समाधयोऽभिधर्मभिहिताः / 1 See Vm. XXI. 55-60. 2 Cf. प्रवर्ततेऽप्रणिहित: सत्याकाररतःपरः। AK. VIII. 24 cd. 3 Cf. शुद्धामला निर्मलास्तु ते विमोक्षसुखत्रयम् / AK. VIII. 25 ab. Also Cf. तयो मे भिक्खवे विमोक्खा-सुञतो विमोक्खो, अनिमित्तो विमोक्खो, अप्पणिहितो विमोक्खो। Patisambhida, II. p. 35.-अनिच्चतो मनसिकरोन्तो अधिमोक्खबहुलो अनिमित्तविमोक्खं पटिलभति। दुक्खतो मनसिकरोन्तो पस्सद्धिबहुलो अप्पणिहितविमोक्खं पटिलभति / अनत्ततो मनसिकरोन्तो वेदबहुलो सुचतोविमोक्खं पटिलभति / Ibid. p. 58. For details, see DhsA. III. 483-492; Vm. 79-73, Sakv. p. 682%; LVPAK. VIII. p. 187. 4V supra, p. 204, n. 1. 5 पञ्चविषयस्त्रीपुरुषत्रिसंस्कृतलक्षणानि दश / Akb. VIII. 24. 6 Cf. शून्यताशून्यताद्याख्यास्त्रयोऽपरसमाधयः। Ak. VIII. 25 cd. See Saku. p. 683.

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