Book Title: Abhidharmadipa with Vibhasaprabha Vrutti
Author(s): P S Jaini
Publisher: Kashi Prasad Jayaswal Research Institute

Previous | Next

Page 568
________________ 546.1 अष्टमोऽध्यायः। 409 No. 145 lost'.]..... [अभिधर्मवीपे विभाषाप्रभायां वृत्ती अष्टमस्याध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः // ] सुखमङ्गं व्यवस्थापितमिति / यत्तहि सूत्र उक्तम् | Akb. VIII. 9 b. This Kosakara discusses this point in detail and says at the end-तस्माद्विचार्यमेतत् / . . Yosomitra says :-'सुखेन्द्रियायोगादिति। नास्त्येव चैतसिकं सुखेन्द्रियं विष्वपि हि ध्यानेषु / किं तहि ? कायिकमेव सुखमङ्गं व्यवस्थापितम् समाहितावस्थान्तरालसमुदाचारात् / वाष्र्टान्तिकानां किलप: पक्षः। तेषां हि न द्विभूमिकमेव सुखेन्द्रियम् / कामप्रथमध्यानभूमिकमिति / किं तर्हि ? चतुर्भूमिकमपि सुखेन्द्रियं भवति / कामावरं यावत् तृतीयध्यानभूमिकमिति / अत एव च विभाषायां भवन्तेन सौत्रान्तिकेनोक्तम्'आभिर्धामकाणां अरघट्टेनेव चक्षुर्विज्ञानादिकमधस्तादूवं आरक्ष्यत इति।""तस्माद्विचार्यमेतत्' इति / योगाचारभूमिदर्शनेन विचार्यमेतदित्यत्र कौतूहलं पातयत्याचार्यः। Saks. pp. 672-676. See LVPAR. VIII. pp. 150-160. V. supra, p. 72, n. 1, p. 139, D.4. 1 Folio No. 145 is lost. In this lost folio, the Adv. . might have discussed this controversial topic, viz., prasrabdhi and sukha and also the nature of prusada and priti. See Akb. VIII. 9--10. A large portion of the first pada of the Eighth Adhyaya is lost in - the lost folio..

Loading...

Page Navigation
1 ... 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660