Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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92. दुःखक्षय किससे ?
है ।
93.
नाणेण य करणेण य, दोहि वि दुक्खखयं होइ । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 137] मरणसमाधि 147
ज्ञान और चारित्र- इन दोनों की साधना से ही दुःख का क्षय होता
—
स्वाध्याय, परम तप नवि अस्थि नऽवि य होहि ।
सज्झाय समं तवोकम्मं ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 137 ] एवं [भाग 7 पृ. 1144] बृहत्कल्पभाष्य 1169
स्वाध्याय के समान अन्य कोई तप न अतीत में कभी वर्तमान में कहीं है; और न ही भविष्य में कभी होगा । 94. फिर भी आराधक
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हुआ,
एवं उवट्ठियस्सवि आलोए उ विशुद्धभावस्स । जं किंचि वि विस्सरियं सहसक्कारेण वा चुक्कं ॥ आराहओ तहवि सो गारवपरिकुंचणामय विहूणो । जिणदेसियस्स धीरो सद्दहगो मुत्तिमग्गस्स ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 137] मरणसमाधिप्रकीर्णक
121-122
विशुद्ध भावपूर्वक आलोचना के लिए उपस्थित व्यक्ति आलोचना करते हुए यदि स्मरण शक्ति की कमजोरी के कारण अथवा जल्दबाजी में किसी दोष की आलोचना करना भूल जाय, फिर भी माया, मद एवं गारव से रहित वह धैर्यशाली पुरुष आराधक ही है और वह जिनोपदिष्ट मुक्ति मार्ग का श्रद्धावान् ही माना जाएगा ।
95. ज्ञान-शिक्षण
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न
नाणं सुसिक्खियव्वं, नरेण लद्धूण दुल्लहं बोहिं ।
. अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-6• 79