Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1247]
- दशवैकालिक चूलिका 22 ___बहुत से लोग अनुस्रोत-विषय प्रवाह के वेग से संसारसमुद्र की ओर प्रस्थान कर रहे हैं, किन्तु जो मुक्त होना चाहता है जिसे प्रतिस्रोत अर्थात् विषय भोगों के प्रवाह से विपरीत होकर संयम के प्रवाह में गति का लक्ष्य प्राप्त है; उसे अपनी आत्मा को प्रतिस्रोत की ओर (सांसारिक विषयभोगों के जल प्रवाह से प्रतिकूल) ले जाना चाहिए । 568. अनुस्रोत-प्रतिस्रोत
अणुसोय सुहोलोगो, पडिसोओ आसवो सुविहियाणे । अणुसोओ संसारो, पडिसोओ तस्स उत्तारो ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1247]
- दशवकालिक चूलिका 23 अनुस्रोत (विषयविकारों के अनुकूल प्रवाह) संसार है और प्रतिस्रोत उससे बाहर निकलने का उपाय द्वार है । सामान्य संसारी मनुष्य अनुस्रोत अर्थात् विषयविकारों के अनुकूल प्रवाह में बहनेवाले और उसीमें सुखानुभूति करनेवाले होते हैं जबकि सन्तपुरुषों का लक्ष्य प्रतिस्रोत अर्थात् जन्म-मरण से पार जाने का होता है। 569. सत्सहवास
असंकिलिटेहिं समं वसेज्जा, मुणी चरितस्स जओ न हाणी ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1248]
- दशवैकालिक चूलिका 22 मुनि संक्लेशरहित साधुओं के साथ रहे, जिससे चारित्रादि गुणों की हानि न हो। 570. मुनि-मर्यादा
गिहिणो वेयावडियं न कुज्जा, अभिवायणं वंदणं पूयणं वा ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 198