Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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कछुआ जिसप्रकार अपने अंगों को अन्दर में समेट कर खतरे से बाहर हो जाता है वैसे ही साधक भी अध्यात्म योग के द्वारा अन्तर्मुख होकर अपने को पाप वृत्तियों से सुरक्षित रखें । 597. बोलो, परिमित अप्पं भासेज्ज सुव्वए।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1407]
- सूत्रकृतांग 1/8/25 सुव्रती साधक कम बोले । 598. संयम में यत्नशील
खंते अभिनिव्वुडे दंते, वीतगिद्धी सदा जए।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1407]
- सूत्रकृतांग 1/8/25 आत्महितैषी साधक क्षमाशील, क्रोध-लोभादि कषाय से रहित परम शान्त, जितेन्द्रिय और विषयभोगों में अनासक्त रहकर संयम में सदा प्रयत्नशील बने । 599. तपश्चरण अशुद्ध
तेसिं पि तवो ण सुद्धो, निक्खंता जे महाकुला।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1407]
- सूत्रकृतांग 1/8/24 जो महान् कुल में जन्मे हुए हैं, लेकिन जिनका ध्येय अपनी यश: कीर्ति और पूजा प्रतिष्ठा ही हैं उनकी तपश्चर्या भी शुद्ध नहीं है । 600. खाओ-पीओ, मित अप्पपिंडासि पाणासि ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 1407]
- सूत्रकृतांग 1/8/25 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6• 206