Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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573. प्रतिबुद्ध संयमित
जस्सेरिया जोग जिइंदियस्स, धिमओ सप्पुरिसस्स निच्चं । तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी, सो जीवइ संजम जीविएणं ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1248] दशवैकालिक चूलिका 2/15
जिस धृतिमान् जितेन्द्रिय सत्परुष के मन-वचन-काया के योग नित्य वश में रहते हैं, उसे ही लोक में सदा जाग्रत कहा जाता है । वह सत्पुरुष हमेशा संयमी जीवन जीता है ।
574. आत्म- विचारणा
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जो पुव्वरत्तावररत्तकाले, संपहए अप्पगमप्पगेणं ।
किं मे कडं, किं च मे किंच्चसेसं ?
किं सक्कणिज्जं न समायरामि ? ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1248] दशवैकालिक चूलिका 2/12
शेष रहा
जो साधक रात्रि के प्रथम प्रहर और पिछले प्रहर में अपनी आत्मा का अपनी आत्मा द्वारा सम्यक् अन्तर्निरीक्षण करता है कि मैंने क्या (कौनसा करने योग्य कृत्य) किया है ? मेरे लिए क्या ( कौन-सा ) कृत्य है ? वह कौन-सा कार्य है, जो मेरे द्वारा शक्य है, किन्तु मैं प्रमादवश नहीं कर रहा हूँ ?
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575. महापाप क्या ?
ब्रह्महत्या सुरापानं, स्तेयं गुर्वङ्गनागमः । महान्ति पातकान्याहु, रेभिश्च सहसङ्गमम् ॥ (संसर्गश्चापि तैः सह )
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 1249]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 6 • 200