Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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399. मनुष्य-वनस्पति तुलना
इमंपि जाइ धम्मयं, एयंपि जाइ धम्मयं । इमंपि वुड्ढि धम्मयं, एयंपि वुड्ढि धम्मयं । इमंपि चित्तमंत यं, एयंपि चित्तमंत यं । इमंपि छिन्नं मिलाति, एयंपि मिलती । इमंपि आहारगं, एयपि आहारगं । इमंपि अणिच्चयं, एयपि अणिच्चयं । इमंपि असासयं, एयं पि असासयं । इमंपि चयावचइयं, एयंपि चयावचइयं । इमंपि विपिरणाम धम्मयं, एयंपि विपरिणाम धम्मयं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 806-807]
- आचारांग 1415 . यह मनुष्य भी जन्म लेता है, यह वनस्पति भी जन्म लेती है । यह मनुष्य भी बढ़ता है, यह वनस्पति भी बढ़ती है। यह मनुष्य भी चेतना युक्त है, यह वनस्पति भी चेतनायुक्त है । यह मनुष्य शरीर छिन्न होने पर म्लान हो जाता है, यह वनस्पति भी छिन्न होने पर म्लान होती है । यह मनुष्य भी आहार करता है, यह वनस्पति भी आहार करती
यह मनुष्य शरीर भी अनित्य है, यह वनस्पति का शरीर भी अनित्य है।
यह मनुष्य शरीर भी अशाश्वत है, यह वनस्पति शरीर भी अशाश्वत है। __ यह मनुष्य शरीर भी आहार से बढ़ता है और आहार के अभाव में दुर्बल होता है।
यह वनस्पति शरीर भी उपचित-अपचित (बढ़ता है, दुर्बल) होता
यह मनुष्य शरीर भी विविध अवस्थाओं को प्राप्त होता है और यह वनस्पति शरीर भी विविध अवस्थाओं को प्राप्त होता है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6 • 155