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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 463]
- दशाश्रुतस्कन्ध - 945 जिसके आश्रय, परिचय तथा सहयोग से जीवन-यात्रा चलती हो, उसकी सम्पत्ति का अपहरण करनेवाला दुष्ट जन महामोह कर्म का बन्ध करता है। 296. परोपकारी की हत्या से महामोह बंध
बहुजणस्स नेयारं, दीवं ताणं च पाणिणं । एयारिसं नरं हंता, महामोहं पकुव्वइ ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 463]
- दशाश्रुतस्कन्ध 937 दु:ख सागर में डूबे हुए दु:खी मनुष्यों का जो द्वीप के समान सहारा होता है, जो बहुजन समाज का नेता हैं; ऐसे परोपकारी व्यक्ति की हत्या करनेवाला महामोह कर्म का बंध करता है । 297. गुण-वृद्धि
नाणेणं दसणेणं च चरित्तेणं तवेण य । खंतीए, मुत्तीए, वड्ढमाणो भवाहि य ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 496]
- उत्तराध्ययन - 22/26 ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, क्षमा और निर्लोभता की ओर सतत बढते रहें। 298. हिंसा, अश्रेयस्कर
जइ मज्झ कारणा एए, हम्मति सुबहू जिया । न मे एयं तु निस्सेयं, परलोगे भविस्सई ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 496]
- उत्तराध्ययन 22/19 यदि मेरे कारण से बहुत से जीवों का घात होता है, तो यह इस लोक और परलोक में मेरे लिए किञ्चित् भी श्रेयस्कर नहीं होगा।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 129