Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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299. वेशमात्र से श्रमणत्व नहीं ! . गोवालो भंडवालो वा, जहा तद्दव्वऽणिस्सरो । एवं अणीसरो तंपि, सामन्नस्स भविस्ससि ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 498]
- उत्तराध्ययन - 22/46 जिसप्रकार कोई गोपाल गौओं को चराने मात्र से उनका स्वामी नहीं बन सकता अथवा कोई (कोषाध्यक्ष) धन की रक्षा करने मात्र से ही उसका स्वामी नहीं हो सकता ठीक इसीतरह हे शिष्य ! तू भी केवल साधुवेश की रक्षा-मात्र से ही श्रामण्य का स्वामी नहीं बन सकेगा। 300. रात्रिभोजन-त्याग
अत्थंगयम्मि आइच्चे, पुरत्थाय अणुग्गए । आहार मइयं सव्वं, मणसाऽवि ण पत्थए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 510]
- दशवकालिक - 8/28 संयमी आत्मा सूर्यास्त से लेकर पुन: सूर्योदय तक सब प्रकार के आहार की मन से भी इच्छा न करें । 301. रात्रिभोजन किसके समकक्ष ?
रक्ती भवन्ति तोयानि, अन्नानि पिशितानि च ।। रात्रौ भोजनासक्तस्य, ग्रासे तन्मांसभक्षणात् ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 510]
- धर्मसंग्रह 2/73 रात्रि भोजन में आसक्त व्यक्ति के ग्रास में किसी जीव के आ जाने से पानी रक्तवत् एवं अन्न माँसवत् हो जाता है। 302. सूर्यास्त सूतक
मृते स्वजनं मात्रेऽपि सूतकं जायते किल । अस्तंगते दिवानाथे, भोजनं क्रियते कथम् ? ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 510] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-60 130