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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 741]
- आचारांग 1/5M ज्ञानी पुरुष जीवन को कुश की नोक पर टिके हुए अस्थिर और वायु के झोंके से कम्पित होकर गिरे हुए जल-बिंदु की भाँति देखता है । 367. मुनि, सदा सुखी
लोकसंज्ञोज्झितः साधुः परब्रह्मसमाधिमान् । सुखमास्ते गतद्रोह ममतामत्सरज्वरः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 741]
- ज्ञानसार 23/8 जिसका द्रोह, ममता और द्वेष रूपी ज्वर चला गया है तथा जो लोक संज्ञा से रहित परब्रह्म में समाधिस्थ हैं, ऐसे मुनि सदा-सर्वदा सुखी रहते हैं। 368. सकामी-निष्कामी
गुरु से कामा, तओ से मारं ते, जओ से मारं ते तओ से दूरे, नेव से अंतो नेव दूरे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 741]
- आचारांग 1/5441 जिसकी कामनाएँ तीव्र होती हैं, वह मृत्यु से ग्रस्त होता है और जो मृत्यु से ग्रस्त होता है; वह शाश्वत सुख से दूर रहता है, परन्तु जो निष्काम होता है; वह न तो मृत्यु से जकड़ा होता है और न शाश्वत सुख से दूर । 369. सारभूत धर्म लोगस्स सार धम्मो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 741]
- आचारांग नियुक्ति 245 पृ. 132 समग्र विश्व में सारभूत तत्त्व एकमात्र धर्म है ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6• 147