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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 747]
- भगवद्गीता 2/20 यह आत्मा न जन्म लेता है, न मरता है । एकबार अस्तित्व में आ जाने के बाद उसका अस्तित्व फिर कभी समाप्त नहीं होता । 384. बालभाव बालभावे अप्पाणं नो उवदंसिज्जा ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 747]
- आचारांग 1/5/5 तुम अज्ञान दशा में अपने आपको प्रदर्शित मत करो । 385. सम्यग्दृष्टि
समियंति मन्नमाण समिया वा असमिया वा समिया होइ । - - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 747]
- आचारांग 1/5/5 सम्यग् दृष्टि आत्मा के लिए सत्य हो या असत्य, सभी सत्य रूप में ही परिणत हो जाया करते हैं । 386. तू ही तू !
तुमंसि नाम सच्चेव जं हन्तव्वं ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं अज्जावेयव्वं ति मन्नसि, तुमंसि नाम सच्चेव जं परियावेयव्वं ति मनसि ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 747]
- आचारांग 1/5/5064 .जिसे तू मारना चाहता है, वह तू ही है । जिसे तू शासित करना चाहता है, वह तू ही है और जिसे तू परिताप देना चाहता है, वह भी तू ही है। (स्वरूप दृष्टि से सभी चैतन्य एक समान है । यह अद्वैतभाव ही अहिंसा का मूलाधार है ।)
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 151