Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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मा
223. सत्यवादी निरापद
वहबंधाभियोग वेरघोरेहिं पमुच्चंति य अमित्तमज्झाहि णियंति अणहाय सच्चवाई । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 327]
- प्रश्नव्याकरण - 2024 सत्यवादी मनुष्य घोर वध, बन्धन, सबल प्रहार और वैर-विरोधियों के बीच में से भी मुक्त हो जाते हैं तथा शत्रुओं के चंगुल से बचकर बिना किसी क्षति के सकुशल बाहर निकल आते हैं । 224. सत्य-कवच असिपंजरगया समराओ वि णियंति अणहाय सच्चवाई।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 327]
- प्रश्नव्याकरण 2/1/25 सत्यवादी मनुष्य चारों ओर से तलवारधारियों के पिंजरे में पड़े हुए भी अक्षत शरीर संग्राम से बाहर निकल आते हैं । 225. सत्य-अपूर्व महिमा
सत्येनाग्निभवेच्छीतोऽगाधं दत्तेऽम्बु सत्यतः । । नासिश्छिनत्ति सत्येन, सत्याद् रज्जूयते फणी ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 328]
- आगमीय सूक्तावली पृ. 34 सत्य से अग्नि शीतल हो जाती है, अथाह जल थाह दे देता है अर्थात् डूबोता नहीं है, तलवार काटती नहीं है और सर्प रस्सी के समान बन जाता है। 226. निर्णीत सत्य वचन समिक्खियं संजएण कालम्मि य वत्तव्वं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 328-330]
- प्रश्नव्याकरण - 20/24 बुद्धि से सम्यक्तया निर्णीत सत्यवचन श्रमण को यथावसर ही बोलना चाहिए।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 112