Book Title: Aagam 39 MAHA NISHITH Moolam ev Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 9
________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [२], ------------- उद्देशक [१,२,३], ---------- मूलं [१] +गाथा:||१२|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं खोटी, किंवा पत्य करेमिहं १ ॥५९ एवं तिबमाचारमा भित्तादी, अणुयसमालो किलिस्सए ॥ ८॥ जया गाथा भगिरथीपंडतेरिया, आज्माणो समाजको ||१२|| मेण चिदिदि, परितपदं आया चिओ ॥२॥ सुहेसी किसिकमत, सेवावाणिजसिप कुताइनिस मणुया, धुष्यते एसि को सह ॥३॥ परवरसिरीए विहाए, एगे इजाति पालिसे। अने अपहुपमागीए, अन्ने वीणाइ लच्छिए ॥४॥ पुन्नेहि वडामाणेहि, जसकित्ती लपटी पबदाई। पुग्नेहिं हायमाणेहि, जसकित्ती लच्छी य सीबई ॥५॥ वाससाहस्सियं केई, मन्नते एगविणं (पुगो)। कालं गति दुरसहि. मणुया पुन्नेहि उपिया.६॥ संखेमेस्थमिमं अभियं, ससि जगजतुर्ण। एक्सं मानुसजाईण, गोयमा! जंतं नियोधय ॥७॥ जमणुसमयमभवंताणे, सबहा उनेवियागवि। निविग्नापि एपखेदि. पेरगं न नहावि भवे ॥८॥ दुनिहं समासजो मणूएस. दुवं सारीरमाणस । पोरं पर्यामहरोह, तिविह एक भने ॥९॥ पोरं जाण मुहत, घोरपयति समयीसाम। घोरपर्यहमहारोई, अनुसमयमविस्सामगं मुणे॥२०॥ घोर मनुस्मजाईणं, घोरपयंड मुणे तिरिच्छीसु। पौरपर्यडमहारोर, नास्पजीवाम गोयमा॥१माणसं तिनिहं जाणे, जहजमझुनम दुहं । नस्थि जहनं तिरिवठाण, दुहमुकोस तु नास्यं ॥२॥जतं जहन्नगं दुक्लं, माणुसं तं दुहा मुणे । सुरुमवायरमेएणं, निविभागे इतरे दुवे ॥३॥ समष्टिमेमणूएसुं, सहुम देवेस वायर । पमणकाले महिदी, आजम्मं आमिजोगाणं गा सारीरं नत्वि देवागं, बुस्खेणं माणसेण या जालिय पजिम हियर्य, सपसंद जनपी फुडे ॥५॥णिविभागे व जे भनिए, दोनि मनुत्तमे दुहे। मगुवा समपखाए, गम्भरतियाण उ॥६॥जसंसेयाउमनुवाग, दुस्सं जाणे चिमनिझम संखभाउमगुस्सा तु. दुक्खं पेयुक्कोसगं | 0 असोक्स वेपणा वाही, पीडा एक्समणिबुई। अणरागमरई केसं, एनमादी एगहिया बह ॥८॥ सारीरेयरभेदति, जं भणियं तं पनक्साई। सारीरं गोयमा दुरसं, सुपरिपुर्व तमधारय॥९॥ बालम्गकोडिलक्समर्थ, भागमितं लिये धुवे। अचिरमणपणपदेससा, कुंथुमणहपिति वर्ण ॥३०॥ तेषाधि करकत्तिसाउँ, हिययसु(दसए वणू। सीती अंगमंगाई गुरु, उचेह सबसरीरं सम्भतर, कंपे थरथरस य॥१॥ कुंथुकरिसियमेत्तस्स, जं सलसलसले त"। तमस मिनसमे, कलबलडन्त माणसे ॥२॥ चिततो हा कि किमय, बाहे गुरुपीडाकरा दीदहमुकनीसासे, बुक्स दुक्खेण नित्थरे ॥३॥ कि? कियचिरं चाहे 1, कियचिरेणेव गिहिही। कह वाद चिमुचीसं . इमाउ दुक्खसकडा॥४॥ गच्छ चेहूँ सुर्व उई. पापं णास पत्यामि । दुगवं ? किंवपक्सोई, किया पत्थं करेमिऽहं ? ॥५॥ एवं तिवमानाचारतिबोगुस्ससंकटे। पविहो वाद संखेना, आवलियाओ किलिस्सियं ॥ ६॥ मुणेऽहमेस कंटू मे, आपणहा णो उपस्समे। ता एवज्झरसाएणं, गोयम ! निसमुजे करे ॥ ७॥ अहले कुथु बाबाए, जइ णो अन्नत्व गर्य भवे । कंड़यमाणोज मित्तादी, अणुयसमागो किलिस्सए॥८॥जवा पायजतं कुथु, कंड्यमागोवाइयरहा । तो ले अइरोदशाणमि, पपि पिच्छपओ मुणे ॥९॥ अह किल्लमेनउभयाणे, रोरमाणेयरस्स उ। कंड्रयमाणस उण देहं. सुबमाण पुणे ॥४॥समज्यो रोबझागडो, उकोस नारगाउथ। दुभगिरथीपंडरिच्छ, आहाणो समजिणे ॥१॥धुपदफारिसजणियाओ, दुक्खाओ उपसमात्थिया। पच्छ हाफीभूते, जमवत्वंतरं नए ॥२॥विषण्णमुहलापरणे, अनदीणा चिमणदुम्मणा। सुणे पुणे व मूढे से, मंददरवीहनिस्ससे ॥३॥ अविस्सामदुपसहेडहिं. जसुहं तेरिच्छनारय। कम्मे निबंधात्ताणं, भमिहीन | भवपरंपरं ॥४॥ एवं खओपसमाओ, तं कुंथुपइयरजं दुहं। कहकहरि बहुफिलेखणं, जइ खणमेकंतु उनसमे ॥५॥ता महकिलेसमुत्तिन्न, सुहियं से अत्ताणयं। मन्नतो पमुइजो हिहो, सस्थचित्तो पिचिहां ॥६॥ चितई किन्लभ | निओमि अहं. निहालियं दुक्वंपि मे। कंपणादीहिं सयमेष, न मुणे एवं जहा मए॥७॥रोदझाणगएणं है. आइन्साणे नहेब या संवगइत्ता उत दुस्सं, अपंताणतमुर्ण कर्ड ।।दाजं पाणुसमयमणपश्यं, जहा राई तहान दिणं। दुहमेषाणुभषमागस, बीसामो नो पसे(भवेज मो॥९॥सर्मपि नरवतिरिएम, सागरोषमसंखया । रसरस पिलिजए हियर्य, जंवा इतनाणवि ॥५०॥ अहा कि जणियाउ, मुक्को सो क्वसंकडा। सीणगुकम्मस रिसा मो. भोज जणुमेनेणेष उ॥१॥ कंचमुचलक्सण दहाई. सर्व पचपखं दुक्खद अनुभषमाणोविजं पाणी,ण यागंती नेण वसई ॥२॥ अमेचि उगुरुयरे, दुमसे सोसि संसारिच सामने मोयना! वा कि, तस्स ने गोदए गए। S॥३॥हण मरहं जम्मजम्मेस, पायावि र केद माणिरे। तमचीहफा देजा, पार्य कम्मं फ्युजय ॥४॥ तस्सरया पहुभवाहणे, जत्थ जत्योचवजा । तत्य तत्व सहम्मतो, मारिजंनो भमे सया ॥५॥जे पुण अंगउवगं वा. अक्सि कम्णं च णालिय। कहिमाद्विपडिभगवा, कीपयंगाइपाणिनं ॥६॥ कय वा कारिय पावि, कर्जतं वाह अणुमयं । तसारया चकनालिपहे. पीलीही सो निले जहा।। आइक वा णो दुवे तिग्णि, पीसं तीसं न पापिया संखेजेवा अपग्गहने, लमते दुक्सपरंपरं ॥८॥ असूया मुसाऽनिरयन, जपमायजमाणदोसजो। कंदप्पनाहवारण, अभिनिवेसेण या पुरो(गो) मणिय मणाविर्य वापि, भत्रमाणं च अणुमय। कोहा लोहा भया हासा, तस्मुदया एवं भने ॥६॥ मूगो पृडमुहो मुस्खो, काइक्लितो भवे भवे। पिहलवानी सुबहोषि, सबस्थामवर्ण लो॥१॥अवितह भणिय ननस, अलिययणपि नालियंज उनीपनियायहिय, निहोस सर्व तयं ॥२॥ एवं-पोरिकाविक स, कम्मारंभ किसादिय। लबस्सानि भवे हाणी, अनजम्मल्या यह ॥३॥ एवं मेहुणदोसेग, वेदिता थावरतण। केसि गमर्णनकालाड, माणुसजोगी समागया ॥४॥ दुक्खं जरति आहारं, अहियं सित्यपि भुजिये। पीई करे - नेसिन, नण्हा पाहि (बाहे) सणे खगे॥५॥ अदाणे मरणं वेसि, बहुजपं कहासणं । थापालं णिपिन्नाणं, निदाए जतिणो वणि ॥६॥ एवं परिग्गहारंभदोसेगं नरगाउप। तेतीससागरकोसं, बेइत्ता दहमागया ॥ ७॥ उहाए पीडि नि, जनभुनुत्तरेऽविय। वरंता हत्तिसंतति, नो गच्छती परसे जहा ॥८॥कोहादीगं तु दोसेणं, पोरमासीविसरणं। पेइत्ता नारय भूओ. रोदमिच्छा मपति ते ॥९॥ वडकुटकवडनियाडीए, डंभाजो सुदरं गुर। वेदना चित्तरितं. माणुसजोणि समागया ॥ ७० ॥ कई पहुचाहिरोगाणे, दुक्सप्लोमाण भायन। दारिहकलहममिभूया, खिसणिजा भवंतिह ॥१॥ तकम्मोदयदोसेग, निचं पजलियोंदिगं। इंसापिसावजालाहि, धगधगधगधगम (4) ॥२॥ जेमंपि गोयमा ! चाहे, बहुसंधुक्रियाण य । तेसि तुबरिषदोसो, करस रुसंतु ने इह एवं क्यनियमभंगेणं, सीलस उसंतणेण पा। असंजमपवनणया, उस्मुत्तमम्मायरमा पायेगेहिं वितहायरोहि, पमायासेपणाहिय। जमणेणं अहना पायाए, अहबा काएग कत्थई, कयकारगाणुमएहि पा, पमायावषेण य॥ ५॥ तिविहेणमणिदियमगरहियमणालोइयमपटिकतमकयपायष्ठित्नमनिमुद्धसयदोसर सयो आमगम्मे पचिय अर्णतसो वियलंते। १११५ महानिचिच्छेदसूत्र अwwr-R अनि दीपरनसागर दीप अनुक्रम [२३७] ~8~Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66