Book Title: Aagam 39 MAHA NISHITH Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(३९)
प्रत
[१४]
“महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक-1, ------- मूलं [१४] +गाथा:||२०|| ------
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं IT संघाए पुणो घडगईए संसरेजा, एएनं जडणं एवं पुथइ गोयमा ! जहा गंजेणं एएणेच पयारेणं गुरू अकबरे को परजा से से संपराही उपहसेगा ।१४। से भय ! केवाए
कालेणं पहे गुरू भविहिति?, गोयमा! इओ व अदतेरसहं वाससयागं साइरेगाणं समइकताणं परओ भबिसु, से भव! के अड्डेज, मोचमा ! कालं इवीरससायगारवसंगए
ममीकारबहकारगीए अंतो संपजलतोंदी अहमहतिकयमाणसे अमुणियसमयसम्भावे गनी मचिंसु, एएणं अद्वेणं, से भययं ! किन सोऽनी एवंविहे नाकालं गगी भवींसु.गोयमा ! माएगणं नो सके, कई पुण दुरंतपत्तलक्षणे अवठ्ठचे एगाए जगणीए जमगसमग पसूए निम्मेरे पावसीले दुम्जायजम्मे सुरोइपयंडाभिमहियदरमहामिमारिवठी भपिंग से भय !
कहं ते समुचलक्सेजा ?, गोयमा ! उस्सुत्तउम्मग्गपपत्तणुदिसणअणुमहपचएण ।१५। से भययं ! जे गं गणी किंचियावस्सगं पमाएजा, गोयमा ! जे गं गणी अकारणिये किंची सगमेगमपि पमाए से गं अपद उनसेला, जे तुसुमहाकारगिगेवि सं गगी सणमेगमवीण किंचि णिययावस्सगं पमाए से गं दे पूए बहुवे जावगं सिदे बुद्ध पारगए सी. पहुकम्ममले नीरए उपहसेजा, सेस तु महया पर्वधर्ण सत्याणे व माणिहिड।१६। एवं पच्छिन्नविहि, सोऊण गाणुविद्वती। अदीणमणो. जंजाय जायाम,जे से आराहगे मणिए ॥२०॥
जलजलणसावयपोरनरिवाहिजोगिणीण भए।तह भूयजक्रसरक्वससुदपिसायाण मारीणं ॥२१॥ कलिकलहनिन्धरोहगताराइसमुदमजोया चिंतिय अपसाउने संभरिया बद सदमा विजा ॥२२॥ पूजसएशजणामदेणउजजन्माणाममएहमतदकमाउणआदइएइमपबाजागाहमहराचसहममहमुअणजमवायएउजाण्ञमचउन्हमहमसुख
मालम्पएहाइसम्अम्बा(पत्यंतरे पूनाएरईजनभमान उजमनमनाउममएहइम्ताब्दकाउन्आइएहाम्पमानभागोहाअपहरउपउनुहम्मदसउउजनउमघटएजोजअम्तउएहमदम्वधसूइसकाउञ्जमथएहवासम्अम्तउ)एयाए परविजाए विहीए अनाणगं समहिमंतिऊर्ग इमेए सत्तक्सरे उत्तमंगोभयसंघकृष्टीचरणतलेसु संणिसेजा जहा जाउन उत्तमंगे कउयामसंधगीचाए यामकुण्डीए का नामचलणपले लए वाहिणचलणयले मनुआ दाहिमकुण्डीए दा दाहिणसंधीपाए।१७।' दुसूमिगदुनिमित्ते गहपीउपसम्ममारिरिभए। पासासणिविग्तएवापारिमहाजनविरोहे ॥२शाजंचऽस्थि भयं लोगे, तंस निहले इमाए विजाए।सत्यपहे (स(महे मंगलयरे पापहरेसयलयरसयसो. क्सदाई काउमिमे) पचिडते, जाणं तुणतम्भने सिहो ॥२४॥ तालहिऊम निमार्ग (ग) मुकुलुप्पत्ति दुषं च पुण बोहि । सोक्सपरंपरएक सिजो कम्मरबंधस्यमलपिमुके ॥२५॥ गोयमोति बेमि। से भया! कि प(ए)यामेतमेव पत्तिविहान जेणेवमाइस्से ?, गोयमा! एवं सामने वालसह कालमासान पददिणमहग्निसाणुसमयं पाणोधरम जाप सबालबुदसेहमयहररायणियमाईण, नहा य अपडियायमहोऽसहिमणपजवनाणीउ छडमत्यतित्यपराणं एगतेणं अम्मदठाणारिहायस्सगसंबंधियं घेर सामगं पच्छिल समाइट, नो णं.. एयायुमेतमेव पचिठतं, से भय : किं अपडियायमहोऽवहीमणपजवनाणी उउमस्थवीयरागे सयलावस्सगे समणुठीया. गोयमा! समगुट्ठीया, न केवलं समणुठीया जमगलमगमे. पाणवरयमणुठीया, से भयवं! कह ?, गोयमा! अचिंतबलबीरियबुद्धिनाणाइसयसत्तीसामत्वेग, से भया ! केणं अटण ते समगुठीया, गोयमा! मा ण उस्मत्तम्ममापन में | भवउत्तिकाऊणं । २८ा से भय कित सविसेस पायपिठलं जावन वयासी ?, गोथमा! पासारनिय पंचमाभियं वसहिपारिभोगियं गच्छापारमाकमण संघाचारमइकमणं गुनीभेस पपपरणं सत्तमंडाठीधम्माकमणं अगीयस्थगच्छपयाणजार्य कुसीलसंभोगजं अविहीए पाज्जादाणोक्हायणाजाय अउस्मस सुनस्थोभयपणवणणार्य अगाणयणिकपसरवि. चरणाजार्य देवतिय राहय पक्सि मासिवनामासिव संपच्छरिय एहियं पारलोइयं मूलगुणविराहणं उत्तरगुणविराहणं आभोगावाभोग आउहिपमापरपापिय पयसमधम्मसं. जमतपनियमकसायदंदगृतीयं मयभयगारपईदियज वसणाइकरोटिज्माणरागदोसमोहमिच्छनडकरज्यवसायसमुत्वं ममत्तमुण्टापरिमहारनजं असमिइनपठीमसामित्नधमंतरायसनायुवेगासमाहाणुप्पायर्ग संखाईया जासायणा अनपरासायणयं पाणवहसमुत्य मुसाबायसमुत्यं अदनादाणगहणसमुन्य मेहमसेवणासमुत्थं परिमहकरणसमुत्वं राइमो. पगसमत्य माणसिर्व वाइर्थकाइयं असंजमकरणकारवणअनुमइसमुत्व जाणं गाणदसणधारिलाइयारसमुत्य कि बहणा , जानदयाई तिगालचिरणादी पायशिलताणाई | पणलाई नापायं च पुणो बिसेसेण गोयमा ! असंखयहा पन्नविनि (अनी) एवं संधारेजा जहा गं गोयमा! पायचित्तसुतस्स णं संखेजाओ निगुतीओ संजाओ संगहणीको संलिजाई अणुओगदाराई संखेजे अक्सरे अगते पनवे जान दसिज्जति उपदसिजति आपचिजति पन्नविनंति परुपिजति कालाभिम्गहनाए दशाभिमहत्ताए खेलानिमाहताए । भाषाभिग्गाहताए जाप ण आणुपुरीए अगाणुपवीए जहाजोगं गुगठाणे सुनि पेभि । १९ । से भवन ! एरिसे पच्छित्तमाहुले से भय ! एरिसे पच्चित्तसंपट्टे से भयय! एरिसेपण्ठित्ससंगहणे अस्थि कई जे णे आलोइताणं निदिनार्ण गरहितार्ण जाच णं अहारिहं तपोकर्म पायच्छितमणुचरिनाणं सामनमाराहेजा पत्यणमाराहिजा जाच
आपहियद्याए उक्संपमित्तार्ण सकर्जतमई आराहेजा, गोयमा ! गं पठविहं आलोयणं विंदा, संजहा-नामालोयर्ण ठपणालोपर्ण वालोषणं भावालोयर्ग, एते चाउरोऽपि (२९१) 3 ११६४ महानिशीचोदसूत्र, Saras
अनि दीपरमागरा
गाथा ||२०||
दीप
अनुक्रम
[१३९०]
~53~
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