Book Title: Aagam 39 MAHA NISHITH Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [३९] श्री महानिशीथ (छेद)सूत्रम् नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित- सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः “महानिशीथ” मूलं [मूलं एव] [आद्य संपादकः - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. ] (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह ) पुनः संकलनकर्ता→ मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.) 12/02/2015, गुरुवार, २०७१ महा कृष्ण ८ jain_e_library's Net Publications मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं ~0~ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) -------- अध्ययन [-], -------------- उद्देशक -1, ----------- मूलं -1 ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं WWWएर पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी संशोधित: संपादितश्च महानिशीथ सूत्र मुद्रित पृष्ठरुपं - शत्रुजयतीर्थे शीलोत्कीर्ण: -सुरतनगरे तामपत्रोत्कीर्ण “आगममंजुषा"या: उद्धृत-छेदसूत्रम् वीर संवत २४६८ विक्रम संवत १९९८ सन् १९४२ महानिशीथ -छेदसूत्रस्य “टाइटल पेज' Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाका: २१७+.......+३० + (७+....+८) 'महानिशीथ' छेदसत्रस्य विषयानक्रम दीप-अनुक्रमा: १५२८ । मलाक: पृष्ठांक: मूलांक: पृष्ठांक: पृष्ठांक: मूलांक: ०४६७ ०००१ ००४ ૦૨૨૬ ools ०१५ अध्ययनं प्रथम चतुर्थ पच्छित्त-सत्तं [एकांतनिर्जरा चूलिका-१] अध्ययन तृतीयं षष्ठं ०६५४ ०२३ अध्ययनं वितियं पंचम सुषढ-अनगार कथा [चूलिका-२] ०६८४ ૦૨૭ ०८४५ ०३७ १३५७ ०४६ ०५५ | १४८४-१५२८ | मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [महानिशीथ मूलं] इस प्रकाशन की विकास- गाथा पूज्यपाद आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी ) के संशोधन एवं संपादन से सन १९४२ (विक्रम संवत १९९८) में ४५ आगम+वैकल्पिक दो आगम+ पांच निर्युक्तिओ एवं कल्पसूत्र को मिलाकर “आगममंजुषा" नाम से करीब १३०० पृष्ठ छपे, जिसकी साइज़ 20x30 इंच थी | इस संपादनमें ६+१ छेदसूत्र भी पूज्यश्रीने मुद्रित करवाए | यहीं “आगममंजुषा" पूज्यश्री की प्रेरणा से श्री शत्रुंजयतीर्थ की तलेटीमें आगममंदिरमें आरस के पट्ट पर भी उत्कीर्ण हुई और सुरतनगरमे ताम्रपत्र पर भी अंकित हुई । हमने उसी ६+१ छेदसूत्रो को फोटो स्केन करवाया, फोटो-स्केन कोपी को पहले ' A-4' साइज़ में लेजाकर अलग-अलग ६ + १ किताबो के रुपमे रखा, फिर उसी को इन्टरनेट पर भी अपलोड करवाया और हमारे प्रकाशनो कि DVD मे भी उनको स्थान दे दिया | * हमारा ये प्रयास क्यों? *आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५ आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है किन्तु लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा आदर देखकर हमने इसी ६+१ छेदसूत्रो को प्रत स्वरुपमें यहां सम्मिलित कर दिया, ताँकी भविष्यमे कोई यह न कहे कि इस संपुटमें ३९ आगम हि है, और ६ आगम कम है । एक स्पेशियल फोरमेट बनवा कर हमने बीचमे पूज्यश्री संपादित पृष्ठो को ज्यों के त्यों रख दिए, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर अध्ययन या उद्देशक तथा मूलसूत्र या गाथा जो जहां प्राप्त है उसके क्रमांक लिख दिए, ताँकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन या उद्देशक तथा सूत्र या गाथा चल रहे है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके । हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक समान और क्रमशः आगे बढते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रो के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस [-] दिए है और जहां गाथा है वहाँ || || ऐसी दो लाइन खींची है या फिर गाथा शब्द लिख दिया है | हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते अध्ययन या विषय तक आसानी से पहुँच शकता है | अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जहां उस पृष्ठ पर चल रहे ख़ास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन -भूल सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है | अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसि को मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ...मुनि दीपरत्नसागर....... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... ..आगमसूत्र [ ३९ ], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं ~3~ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [१], -------------- उद्देशक [-], ----------- मूलं [१] +गाथा ||१|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं म प्रमाणविगहामि ए चोरपर्षद महारोपयाचित्रणामावी, पारलोड्यपतणि । एमासोसरिदि लोग। न मो तिवसा, नमो जस्तार्ण सुर्य मे आउतिर्ण भगवया एवमक्खाय-इह खल राजसत्यसंजमकिरियाए वामागे जे से कई साह वा सारणी वा से णं इमेणं परमतत्तसारसम्भयस्थप सापासाहगसुमहत्यातिसयपवरवरमहानिसीहसुयसंघसुयाणुसारेण विविइतिविहेण सव्वभावंतस्तरेहिणं णीसाडे भक्त्तिार्ण आयहिबढ़ाए जनघोरवीरुग्णकहतपसजमाणुहाणेसु सवपमापारेषणविष्पमुक्के अणुसमयमहष्णिसमणालसत्ताए सय अणिविणे अणूण(गण)परमसद्धासनेगवेरगमगगए णिणियाणे अणिगृहियबलपिरियपुरिसकारपरकमे अगिलाणीए बोसहचत्तदेहे सुणिधिए एगग्यचित्ते अभिक्लणं अभिरमिजा ।१।गो से रागबोसमोहविसयकसायनाणालपणाणेगष्पमायाविरससायागारवरोदयमाणविगहामिच्छताविपदुद्वजोगाणाययणसेवणाकुसीलादिसंसम्गीपेसुग्णऽम्भक्साणकलहजातादिमयमच्छरामक्सिममीकारअहंकारा-3 दिसणेगमेयभिण्णतामसभावकलुसिएणं हिबएणं हिंसालियचौरिकमेहणपरिमहारंभासंकप्पादिगोयरबजायसिए घोरपयंडमहारोपणचिमणपावकम्ममललेवसबलिए असंवृद्धासबदारे । २। एकलणलवमुहलणिमिसणिमिन मरम्मतवरमवि ससाले विरतेजा जहा।३। उनसते सामावेण, चिरते प जवा मवे। समत्व विसए आया, रामेतरमोहनजिरे ॥१॥ नया संवेगमावणे, पारलोइयपत्तणिं । एगोणेसती समं. हा मओ कस्य गरिनई ? ॥२॥ को चम्मो को जो नियमो, को तवो मेऽणुचिहिमओ। किसी धारियं होग, को पुण दाणो पयच्छिमओ? ॥३॥ जस्साणुभावोऽण्यत्यहीणममुत्तमे कुले। सम्मो वा मणुयलोए वा, सोक्त रिदिलमेनई ४॥ अहवा किंच विसाएणं, सां जाणामि अनिर्य। बरिच जारिसो वाऽहं जे मे दोसा य जे गुणा ॥ ५॥ घोरंववारपाचाले, गमिरोहमणुतरे। जात्य दुक्लसहस्सा ऽणुभचिस्सं चिरं बह ॥ ६॥ एवं समं पियाणते. धम्माधर्म महाम(हरह। अत्येगे गोयमा ! पाणी,जे मोहाऽऽयहिये न चिहए ॥ ॥जे याचाऽऽपहियं कुजा, कल्पई पारलोइयं । मायामेण तस्साची, सबमवी(म्पी) सेन भाषए ॥ आया ममेव अत्ताणं, निठणं जाणे जहडिय। आया दृप्पणिजे धम्ममविय अन्तसक्खियं ॥९॥ ज जस्साणुमयं हिए सो त ठाबह सुंदरपाएसु । सली निपतगए तारिस रेबि माइ बिसिहे ॥१०॥अत्तत्तीयाऽसमिया सयलपा(यज)णिणो कप्पयंतऽप्पणर्ण, दुई पदकायचेई मणसिय खलु संसंजुयं ते पाते । निहोस तं च सिद्धे वनगयकलसे पासवायं विमुचा, विसंतचंतपार्च कारसियाहिययं दौसजालेहि गहूँ॥१॥ परमत्वं तत्तसिद्ध, सम्भवत्वपसाहा । तम्भमियागुहागणं, ते आया जए सके॥२॥ नेसनम भये धम्म, उत्तमा तसंपया। उत्तमं सीळधारितं. उत्तमा य गती भये ॥ ३ ॥ अस्येगे गोयमा! पाणी, जे एरिसममि कोटि गए । ससहले चरवी चम्मा, आयहियं नायजरई ॥४॥ लसलो जइवि कठ्ठा , घोरं वीरं नवं चरे। दिश बाससहस्संपि, ततोऽपी तं तस्स निष्फलं ॥ ५ ॥ सार्वपि भनई पार्च, जं नालोइयनिदिय। नगरहियं न पच्छितं, कयं जं जहय भाणिर्य ॥ ६ ॥माचार्डभमकत्त, महापच्छन्नपाचया। अयजमणाचार च, सह कम्मदृसंगहो Su॥ अर्सजम जहम्मं च, निसीलाततापिय । सकलुसत्तमसुद्धी य. मुकयनासो तहेवय ॥ ८॥ दुग्गइगमणऽणुतार, दुस्खे सारीरमाणसे । गोष्टिने य संसारे, विगोषणया मइतिया ॥ ९॥ केसि विरुवरूवन, वारिहय() बोहम्गया। हाहाभूयसवेयणया, परिभूयं च जीवियं ॥२०॥ निम्धिन निर्मिस करतं, निहय निकिमयाचिय । निलजन मूदाहियत, पंक विवरीयचिनया ॥१॥रागो बोसो य मोहो य, मिच्छतं पणचिकणं । समग्गणा तहय,. एगेजस्सित्तमेषय ॥२॥ आणाभंगमचोही य, समतता य भवे भवे । एमादी पावसाहस, नामें एगडिया बह ॥ ३॥ जेसं सक्रियहिवयस्स, एगस्सी बटु भक्तरे। सवंगोपंगसंपीओ, पसाईति पुगो पुणो॥४॥से दुविहे। समक्खाए, साडे सुरमेय पायरे। एकेके तिपिहे गए, पोसासरे तहा ॥५॥ पोरं पठबिहा माया, पोरगं माणसंजया। माया लोभोय कोहो य, पोरगुग्गयर मुणे ॥६॥ सहमवायरमेएणं, सपमेयपिम मुणी। अइस समुद्धरे 5 लियं, समतो गोबसे सण सालगिनि अहिपीए, सिदलपत सिही संपली सर्व गेह, कवि पुढे विजोडदा एवं सतर, पावसाहमणुनिया भरमतरकोडीमा पसंतापदं भवे ॥९॥ भवयं ! सनबरे एस. पापसो हपए। उबरिउपि ण यागती, बहवे अहमुदरिया ॥३०॥ गोयम ! निम्मूलमुखरण, निययमेतस्स भासियं । सुदुदरस्सावि सास, सांगोयंगभेदिणी ॥ १ ॥ सम्महसन पदम, सम्मं नाणं चिनियं। तइयं च सम्मचारिन, एमभूयमिमं तिगं.२खेतीभूतेविजे जिले(जीए), जे गूदेऽदंसर्ग गए।जे अस्वीसुंठिए केई, जेऽस्थिमज्जा(म्भ)तरं गए ॥३॥ सर्वगोचंगसंखुत्ते, जे सम्भतरवाहिर। साउंति जेण सासंती, निम्मूले समुबरे॥४॥हवं नाणं कियाहीण, हया अचागतो किया। पासतो पंगुलो बढो, बापमाणो यजधओ॥५॥ संजोगसिद्धी अउ गोयमा ! कलं, मह एमपकेण रहो पयाइ। अंघो य पंगु व वणे समिधा, ते संपउत्ता नगरं पचिट्ठा ॥ ६॥ मार्ग पयासयं सोहमओ तयो संजमो व गुत्तिको । तिहापि समाओगे गोयम! मोक्सो न अपहा ॥ ७॥ता पीसो भविचागं, समसाविवजिए। जे धम्ममणुचेडेना, सावपपिचा ॥८॥ तस्स कर्जमात सफल होगा, जम्माजमंतरेमुरि। विडला सय(म्प)य रिवी य, लमेजा सासयं सह ॥९॥ सामुदरिउकामेणं, सुपसत्ये सोहले दिणे। लिहिकरणमुहुने नक्सत्ते, जोगे उम्गे ससीचले ॥४०॥ कायापंचितवमर्ण, दस दिने पंचमंगल। परिजवियाऽसयं. (यहा), तदुरि अहम करे ॥१॥ अहमभत्तेण पारिता, काऊपायचिट तो। चेदय साहू व बंदिता, करिज खंतमरिसियं ॥२॥जे केइ बुछ सलते, जस्सुपरि दूर चितिय । जस्स प दुर कर्य जेणं, पदिई वा कयं भवे ॥३॥ तम्स सबस्स तिविहण, बायाँ मणसा य कम्मणा। णीसा सामायण, दा मिच्छामिडकई ॥४॥ पुगोवि बीयरागाणं, पडिमाओ बेहयालए। पनेयं संधुणे पंदे, एगम्गो भनिनिभरो॥५॥ दिनु चेहए सम्म, उझुमनेण परिजये। इमं सुयदेवयं विज, लक्रमहा चेवायए ॥६॥ उपसंतो सबभावेणं, एगचिनो सुनिश्छि। आउत्ती अग्नपत्सित्ती, रामसजवजिओ४आ अउमण्जमओ करदमछाननम् अउमणजमजो पत्रमाणउम्ईनम् अउमणजम्बो स्मभाणसांगम् अउमणमओ बहआसपलदहणजम् जउम्णम्सो समाउसहिलवाणाम् अउम्म ओ अक्सईणूअम्बाजानमालवईणअम् अउमणजमजो भगवओ अरहो महह. महावीरसरमाणस धम्मतिस्फरस जामणमो समयपतित्वमा उमणमजोसम्मसिदानं अटमणमओ सब्यसाहूर्ण अउमणमओ भगवतो मानमानस अउमनमो भगवको सुपनमाणस अजमणमओ भगवओम २११५ महानिशीथप्दसूत्र, marwort दीप अनुक्रम मुनि पिरमार अत्र प्रथम अध्ययनं- "शल्यउद्धरणं" आरभ्यते ~4 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [१], ------------ उद्देशक [-], --------- मूलं [४] +गाथा:||४८|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं PRAANIMADIRANPCH गाथा अठहामाणमा अउनम्जोमगरजोमणपजवण्ाणस जउम्णम् ओभगवओकएबलपआपस्स अउम्णम्ओ भगवतीए सुबडएक्जयआए सिजाउ मए माहिया(एसा महा)विना आउम्णम्जो भगवओ अउम्णम्जी अम् अउम्गजमो अमाउसम्अअआठसम्णम्ो आऊअभिवतीसवर्गसम्मईसणं अउत्रमणमओ अददारसूत्राईल्चम्गसहस्साहिहियरमणईअम्ग दण्ण्इआण ईसाइ सयसनगनण सक्दुस्पणिम्महणपरमनिधुईकारस्स पवयमस्स परमपवित्तमस्सेनि ।४। एसा विना सिद्धनिएहि अक्सरेहि लिखिया, एसा य सिद्धतिया लिथी अमुणियसमयसम्मावाणं सुयपरेहिंग पाणवेयवा सहय कुसीलागं च।५। इमाए पपरविजाए.सबहा 3 अत्तागर्ग। अहिमंतेऊन सोविज्ञा, संतो तो जिइंदिओ ॥४८॥ग सुहासह सम्म, सुविण समवधारए। जतत्व सुविण (मे) पासे, तारिसर्गत तहामने जइ सुंदरम पासे, सुमिना नो इमं महा । परमस्थतनसारन्य, साबरणं मुणेतु पं ॥५०॥ देजा आटोपणं सुद्ध, अहमपठाणविरहिओ। रमजतो पम्मसिस्थवरे, सिद्धे योगम्गसंठिए ॥२॥ आलोएताणणीसरी, सामण्णण गुणोवियादिसा पेहए साहू.पिहिपुत्रेण समापए ॥२॥ लामिना पावसारस, निम्मटवारणं पुणो। करेना विहिपुरेप, जंती ससुरासुरै जग ३॥ एवं होऊग निस्साली, सबमावेग पुगरपि। विहिपुर चहए दे, खामे साहम्मिए तहा॥४॥ नर्स जेण समं बुडो, जेहि सदि पविहरिजो। स्वरफुल चोपत्री जेहि. सर्व का जो व चोदो ॥५॥जोऽविय कजमकजे पा, मणिओ सरफरसनिदर। पटिमणिपं जेणवी किंचि. सो जद जीवद जामओ ॥ ६॥ खमियत्रो सब(क)मायण, जीवता जन्य वितं । जब गंण विगएण,मोऽवी साहसक्तियं ॥ एवं-खामगमरिसामगं कार्ड, तियगस्सपि भावओ। सुबो गणपदकाएहिं. एवं पोसिन निच्छओ ॥८॥खमामि अहं सो, सो जीपा लमंतु मे। मिनी मे साभूएस, पेरं माण केणई ॥९॥खमामहपि ससि, सामावेण साहा। भले मोसुपि अचूर्ण, गाया माणसा य कम्मुगा । ६०॥ एवं विजा चेइय, साहसक्स ही बडओ । गुरुस्सानि पिही पूर्व सामणमरिसामर्ण करे॥१॥ समापेतुं गुरु सम्म, नामहिमं ससत्तिओ।कारी दिऊन च.विहिरन पुगोऽविध ॥२॥ परमस्वतत्तसारस्थं, सदरणमिमं मुणे। मुणेता तहमालोए (जह आलोयंती पेय), उपए केवल नाणं ॥३॥ दिनेरिसमावस्येहिनीसाहा आन्दोयणा । जेणालो. पमाणेण चव, उप्प तत्वेष फेवले ॥४केसिंचि साहेमो नामे, महासत्ताण गोयमा! जेहि भावेणालोययंतहि केवलनाग समुप्पाइयं ॥ ५॥ हाहा बुद्धकटे साहू, हाहा बुद्ध विधितिरे। हाहा छ माणिरे साहाहाहा दुल मणुमते ॥ ६॥ संवेगालोयने नहय, भावालोयणकेचाही। पपसेरकेची पेच, मुहगंतगकेवटी तहा ॥ ७० पच्छिलकेवली सम्म, महावेस्गकेवली। आलोयणाकेवली वाय, हाऽहं पापिति केचली गदा उम्मुनुम्ममगनबए. हाहा अभयारकेचली। सावन न करेमिति, अपवंडियसीसकेपटी ॥९॥ तसंजमवयसरवसे, निंदणे गरिहणे तहा। सबतो सीलसंस्कारवे, कोहीपण्ठित्तएऽपिय ॥ ७॥ निप्परिकम्मे अन्दपणे, अणिमिसब्बडी प केवली। एगपासिन पदो पहरे, तह मुणायकेवली ॥१॥नसको काउ सामर्थ, अणसणे ठामि केवली । नक्कारकेवली तय, तिघालोयणकेवाली ॥२॥ निस्सारकेवटी तहब, सहरणकेवली। धमोमित्ति संपुने, सताहंपी किन केवली ॥३॥ समारो हंन पारेमि, परकहपयकेवली । पक्ससुदानिहाणे य, पाउम्मासी व केवली || संवच्छरमहपचिळते, हा बलं जीवियं वहा। अणिये खणविसी, मणुपसे केवली वहा ॥५॥ आलोचनिंदवंदियए, पोपच्चिनबारे । लासा बसम्मपमिहत्ते, समाहियासणकेनती ॥६॥दस्योसरणनिवासे य, अबकवालासिकेवाली। एमसिस्थगपमिटने, बसवासे केवली तहा ॥ ७॥पनिछत्तावरी चेत्र, पतिवयकेवाली। पत्तिपरिलमनीय, अहसाउकोसकेकीदा नसुख दिन पत्तिा , ता पर खिप्परवाही। एग काऊम पच्छितं, पीर्य न भये (जहेब) केनाली ॥९॥चापरामि पण्डित, जेणागच्छा केवली । तं चायरामि जेण तवं, सफलं होड फेवाडी ॥८॥ किं पण्डिनं चरतोलं. चिर्ड्स जो तब केवली। जिणाणमाण जलपेई. पाणपरिचयणकेचती ॥१॥ अहोही सरीर मे, नो बोही चेष केवठी। मुख्यमिणं सरीरेणं, पापपिरहण केनली ।२॥ अगाइपावकम्ममलं, निबोचेमीह केवली।बीयं न समायरित्र पमाया केवली नहा ॥३॥ देहे सभोव(पओ) सरीरं में, निजरा भवजो केवली। सरीरमा सेजम सारे निकाले तु केवाडी ॥४॥ मगसापिसदिए सीले. पाणे ण धरामि केवली। एवं बाकायजोगेणं, सील कसे अहं केवली ॥ ५॥ एवं मया अगादीया, कालान पुगो मुनी। कई बालोयगासिदे. परिछना केई गोयमा ॥६॥ संवा दंता विमुत्ता य, जिईदी सममासिणो। उकायसमारंमाड, पिस्ते विविहेण 3॥७॥ निशसबसवरिया. इन्धिकहासगवलिया। इस्वीसलापविश्या थ, अंगोगणिरितसणा॥८॥ निम्ममता सरीरेषि, अप्पडिपदा महासया (यसा)। भीया इत्विगम्भवसहीण, बहुउक्साउभवाडव्हा॥९॥ता एरिसेणं भावेणं, वायश आलोषणा पश्टिनंपिय काय नहा जहा पेच एहि कय ॥९॥न पुणो नहा आरोएयचं, मायार्डमेग केणई। जहआरोएमाणेण, चेव संसारखुट्टी भवे ॥१॥ अर्णवणाइकााड, अनकम्मेहि दुम्बई।बहुविकप्पकतोळे, आलोएतानी अहो गए।२॥ गोयम! केसिंचि नामाई, साहिमोन नियोधय। जेसालोयणपच्छिते, भावदोसिवकसिए॥३॥समले घोरमई रक्सं, बुरहमास सुसह। अनुहविवि चिहति, पावकम्मे नराहमे ॥४॥ गुरुगासजमे नाम, साह निबंध हा विठ्ठीबायाकुसीले य, मणकुसीले नहेपाय ॥५॥ सुहमालीयगे नहब, परमवएसालोयमे नहा। कि कि पाठोपमा तह य,ण किचालोयगे वहा ॥६॥ अकयालीपणे चेब, जमरंजवणे वहा । नाई काहामि पथिहन. जम्मानोपणमेव च ॥७॥ मायादभपांची प, पुरकटतावरणकहे। पचिन नत्यि मे किचिन कपालोपणुचरे ॥८॥ आसग्णालायणक्खाइ, लहुपच्छिसजायगे। अम्हाणालोइयर्ण चेहे, सहधाटोयगे नहा॥९॥ गुरुपदिानाहमसके य. गिनागालंपणंकहे। आरमडालोयगे साह, सुग्णासुग्णी तहेव य॥१०॥ निच्छिन्नविय पण्डिते, न काहं तुहिजायगे। रंजवणमेत रोगाणं, पायापभिाते रहा ॥१॥ परिवनणपचिटते, चिरयालपवेसगे नहा। अगणुहियपायचिड़ने, अगमगियऽमहायरे तहा ॥२॥ आउदीय महापाचे, कंदप्पा दपेनहा। अजयणासेषणे वह य, सुधासुपपप्छिने नहा ॥३, बिहुपोत्थपपच्छिते, सर्वपत्तिकप्पगे।एपडयं इत्य पच्छितं, पुबालोदयमणुस्सरे॥४॥जाईमयसंकिए चेक, कुलमयसंकिए नहा। जातिकुलोभयमयासके, सुतलाभेस्सिरियसंकिए नहा ॥५॥ नमोमए संकिए पेच, पंडिचमवस किए वहा । सकारमयलुजे य, गारचसंधूसिए तहा ॥ ६॥ अपुनो बानि जमे. एनर्जमेर चिनगे। पाविद्वापि पाक्तरे, सकलसचित्तालोषये ॥ ७॥ परकहावगे चेच, अविषयालोयगेतहा। अविहीबालोयगे साहू, एपमाबी दुरपणो ॥८॥अगंतेऽणाइकाले, गोयमा ! असक्सिया। अहो अहो जाव सत्तमियं, भावदोसकओ गए॥९॥(२७९) भि BAP११६ महानिशीथच्छेद अन्सार मुनि दीपरागर 4ARATANTRIKATARNATAAREERA ॥४८|| दीप अनुक्रम काय मावि (५१) ~5~ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [१], -------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [६] +गाथा:||११०|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं केवल ४११२० राहादा चारकम्मााण कम्मणा ॥५॥ एनत्यपिटीभूताण, समुप में, सद पाचन कम्ममा पाचपरा, हाहाहा दृद्धि थितिमो ॥३METER पताओ ।। कातिथि गोयमा नागपायपिउत्तमचरित्नाणं निदोष दिलि सिरि ८ मा भरपर्यगाहमा ||११०|| गोपमऽगते विहति जे, अगादिए ससलिए । निषभाषदोससाताण, भूजते विरस कल ॥११॥चिवसति जावि, तेण साडेण सालिए। अयंतपि अणागचं काई, तम्हा सा न धारए॥१११॥सणं मुणिनि बेमि। गोयम ! समणीण 81 णो संखा जाओ निकलुसनीसहाविसुद्धसुदनिम्मलवयणमाणसाओ अज्मपपिसोहीए आलोहताण सुपरिफड नीसंकं निखिल निरवययं नियरिषमाइयं सर्वपि भावसार अहारिह नपोकम्मं पायनिमचरित्नाणं निदोष-11 पावकम्ममललेवकलंकाओ उप्पादिश्वरकेचटणाणा महाभागाओ महायसायी महासनसंपमाप्रो सुगहियनामधेयात्रो अर्णनुत्तमसोक्समोसं पत्ताओ।। कासिंथि गोयमा नाम, पुषमागाण माहिमो। जासिमाटोयमाणीणं, उपग्ण समणीण केवलं ॥११॥ हाहाहा पापकम्माहं. पापा पावमती अहं। पाविद्वाणपि पापपरा, हाहाहा दुद्धि चिंतिमो ॥३॥ हाहाहा इस्थिभावं मे, नाविह जमे उवट्टिय महापी पो पोरवीगर्ग, कई नवसंजम धरे ॥४॥ अर्थतपावरासीओ, संमिलियाजी जया मये। ताया इन्वितणं लम्भे, गर्द पाचाण कम्मणा ॥५॥ एगत्यपिडीभूतार्ग, समुदये तणुतं तह । करेमि जहन पुणो, इत्थीऽहं होमि केवली. विट्टीएपि न संडामि, सीलंहं समणि केवली। हाहा मगेण मे लिपि, अहुई विचितियं । जसमालोइत्ता सई सुदि, गिण्हेऽहं समणिकेवली। बठूण मम लावणं, को कतिदिति सिरिं n मा णस्पयंगाहमा जंतु, खयमणसणसमणी य केवली। बातं मोनूण नो | अनो, निमा(च्छि)यं मह वणुचि ॥९॥ उकायसमारंभ, न करेऽहं समणिकेवल्ली। पोग्गलकक्लोच्यज्झत. पाहिजहणंतरे नहा । १२०॥ जणणीएनि म देसमि, मुसंगुनगोवंगा समणी व केवली। बहुमतकोडीओ. घोरं | गम्भपरंपरं ॥ १ ॥ परिपईतीए सुलट में, गाणं चारितसंजुयं । माणुसजम्मा ससमतं, पावकम्मक्सयंकरं ॥२॥ना सर्व भाषमा, आलोएमि खणे सणे । पायश्चित्तमहामि. बीयं सन समारों ॥३॥ जेणागडद पफ्टिनं, चाया मणसा प कम्मुणा। पुदविदयागणिपाउहरियकार्य तहेव य॥४॥ बीयकायसमारंभ, वितिपउपचिदियाण या मुखापि न मासेमि, ससरक्सपि अविनयं ॥५॥न गिण्ह मुमणंतेविण पत्य माणसावि मेहन। परिमाइंन काहामि, मुलनरगुणस्खलणं तदा ॥६॥ मयभयकसायदंडे, मुनीसमितिदिएस या तह अट्ठारससीलंगसहस्साहिष्ट्रियतणू । आसमायज्माणजोगेझ, अमिरम समणिकेवली तेलोकरक्षणासंभवम्मतिस्थकरेण जाटानमहं लिंग धरेमाणा जाविरजति निचीनिठ। मसोममीय दो संदा. पानिमामि नहेर य ॥९॥ मह पक्खियामि वित्तग्गि, अहया छिजे जई सिरं । तोऽनी नियमवयभंग, सीलचारितखंडणं ॥१३॥मणसाची एकजम्मकार ण कुणं समणि-17 केवली। ससाणजाईसुं, सराणा हिंडिया अहं ॥ १॥ किम्बपि समायरियं, जणते भवभयंतरे । तमेच लरकम्ममहं, परजापडिया कृणं ॥२॥ धोरंधयारपायाला जा(जे)णं णो णीहरं पुणो । वेदिय हे माणुसं जम्म, नेपबहुदमापसमावणं ॥३॥ अगि खविली, पडवंड दोससकरातत्यादि इत्थी संजाचा, सयललेलोकनिदिया तहावि पाविय(ड) धम्म, णिनिग्यमणंतराइयं । ताई ने न निराहामि, पापदोसण केलाई । सिंगाररागसविगार, साहि लार्म न चिहिमो। पसंताएकि विहीए. मोतुं धम्मोपएसर्ग ॥६॥ अर्ज पुरिसं न निमार्य, मालवं समणिकेवटी । तं नारिस महापाचं, कार्ड अकडणीवयं ॥आ सामपि उप्पणं, जहदलालोषणसमणिकेवली । एमादिजर्णनसममीओ, गाउँ सुखायणं निसा ॥८॥ केवलं पण सिवात्रो, जमाविकालम गोयमा। खंता देवा विमुनाओ, जिइंदिआउ सबभाणिरीत्रो ॥९॥ उकायसमारंभा, विस्या तिनिहेण उ निदंडासपसंयुना, पुरिसकहासंगजिया ॥१४०॥ पुरिससलापविश्याओ, पुरिसंगोवंगनिरिक्षणा निम्ममत्ताउ सासरीरे, अप्पडियदाउ महायसा ॥१॥ मीया बीगमक्सहीणं, बहुदुक्लाउ भवसंसरगो महा।ता एरिसेणं भाग, दायमा आलोयणा ॥ २॥ पायनिंपि काया, तह जह एपाहि समणीहि कर्य। ण उर्ण नह जालोएया, मायादभेण केगई ॥३॥जह आलोचमाणीण, पाचकम्मदी भवे। अर्णताणाइकालेणं, मायादभडम्मदोसणं ॥४॥ काहालीवर्ग काउं. समणीओ ससानाजो। आमिओगपरंपरेणं, इद्रियं पुढधि गया ॥५॥कासिपि गोयमा! नामे, साहिमो तं नियोधय । जाउ आलोययाणीओ, मापदासेण सुदढ़तर पाचकम्ममलखनलियं ॥ ६॥ नह संजमसीलगाणं, नीसा पसंसिय । न परमभावविसोहीए, विमा समपि नो भो ॥ ७॥तो गोयमा ! फेसिमियीणं, चित्तचिसोही सुनिम्मला । भक्तरेचि नो होही, जेण नीसातथा भवे ॥८॥ अहमदसमदुवालसे हि सुक्खनि केपि समगीत्री। नहानिय सरागभाष, णालीयंनी ण उड्डति ॥९॥बहुपिहविकणकालोलमालाउकलिगाहि। वियरत नेण लाखेजा, दुरगाहमग(मवसागरं ॥१५०॥ ने कहमालोयन उत, जासि चिलपि नो बसे । सारजा नाणमुखरए, स बंदणीसो खणे खगे॥१॥ असिणेहीइपुषेण, धम्ममालसाविया सीडंगगुणहास, उत्तमेसु धरेड जो॥२॥इत्वीचधणा विमुक, मिहकलत्ताविचारमा। सुविसुबसुनिम्म चित, णीसा सो महायसो शादमा परणीभोय. देविदास उनमो। दीग(कय)न्धी सापरिभूय, वितहाणे जो उत्तमे परे ॥णालोएमि अहं समणी, दे कह किचि साहुनी। बड्दोस न कई समणी, विद्व समणीहिं न कहे असापजम्हा समणी, बहुआरंधणा कहा । पयायस्खामगा समणी, पारिहा कलमोटीकहा ॥ ६॥ लोगविस्खकहा वह य, परखपएसालोचनी। सुवपत्तिा वह य, जायादीमयसंकिया ॥७॥ मूसागारमीच्या वेब, मारवतियदृसिपा नहा। एषमादिअगभावदोलवसमा पापसातेहि पूरिया ॥८॥ अर्णना अनण कालसमएण, गोषमा! आते। अतामो समनीओ. बहुदुक्खापसाई गया ॥९॥ गोयमा! अर्णताजो निहति, जाऽनादी सामालिया। भारदोसेकसाडेहि (मुंजमाणीओ कविरस) पोमगुग्गन फन्हें ॥१६॥चिवसनि प्रजावि, हि सोहि सतिया। अलपि अगामयं कालं, नम्हा साई सुहममपि, समनी गो पारेणा खति॥१॥धगधगधगस्स पजालिए,जालामालाउले ददाएपपहेपिमहाभीमे. सरीरं डाए महापयारीनंगाररामीए.एगसि संप पुणे जरे। पतितो सरितो सरिथ, जं मरिजिपि सुकरं ॥३॥संडियस्स सहत्येहि. एकेकमंगापयर्व । जे होमिजा अम्गीए, अणुवियहपि सुकरं ॥४॥ सरफसतिसकरसत्तदंतेहिं कालापिडं। लोणूससजियारवार, पत्ता ससरीरं अच तमुकर। जीवतो सयमपी सक, सई उचारिऊण ग॥५॥ जयस्वारहलिहादिहिजे आलिये नियंत । मयंपि मुकर शिंदेऊण, महत्येण जो पेते सीसं नियं ॥६॥ एवंचि सुकरमलीह. दुकरं नवसंजमा नीसतं जेण न भणियं. खानो - बनियस्सिओ ॥ ७॥ मायामेण पच्छनो, ते पायदिउंण सकए। राया एबरिय पुच्छे, अइसाहार वेहसास 10 सबस्सपि पाएमा उ, नो नियरियं कहे। राया दुचरिय पुणे, साह पुरईपि देमि ते ॥९॥ पुई रजतणं मने, १९१७महानिशीथच्छेदसूत्रं, अ wat मुनि दीपपनसागर दीप अनुक्रम [११५] ~6~ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [१], ............--- उद्देशक [-], ---------- मूलं [७] +गाथा:||१७०|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||१७०|| नो नियरिय कहे। राया जीयं निकिंवामि, मह नियरिय कह।१७०॥ पाणेहिपि स्वयं संतो, नियरिय कहेइ नो । सरस्सहरणं च रज च, पाधी परिचएम णं ॥१॥मयाधि जति पायाले. नियरिय कहति नो। जे पावाहम्मबुद्धीया, काउरिसा एमजमिणो। ते गोरति समरिच, नोसप्पुत्सिा महामती ॥२॥ सप्पुरिसा ने ण बुति. जे दाणपईह दुजणे । सप्पुरिसाणं चरित्ने भणिया, जे निस्साडा नवे रचा ॥३॥ आया अगिच्छमाणोऽवी. पावसाहोहिंगोयमा!। णिमिसदाणतगुणिएडि. पूरिजे नियपिया ॥४वाइंच माणसझापपोतवसंजमेण या निईमेण अमाएप, नक्समं जो समुदरे ॥५॥ आलोएनाग पीसतं, निदिउँ गरहिउ दह नह पाई पायलिन, जह सावागमन करे ॥६॥ अनजम्मपत्तागं, खेतीभूयाणवी दई। णिमिसहरणमुत्तेणं, आजम्मेणेय निच्छिओ। सो मुहहो सो य पुरिसो, सो नपस्तीस पंडिओ। संतो वनो निमुने प. सहलं नस्सेर जीवियं ॥८॥ सरो। व सो सलाहो य. दहयो य सणे सणे । जो सुदालोयणं देतो, नियरिय कहे फुटे ॥९॥ अत्यगे गोयमा ! पाणी, जे साई अबरदियं माया रजा मया मोहा, मुसकारा हिपए परे ॥१८०॥ न तस्स गुरुतरं क्सं होणसनस्स संजणे। से चित्ते अनाणदोसाओ, पोखरं दुक्पिनिह किळ १॥ एगधारो दुचारोवा, लोहसलो अणुहिमो। साग स्थाम जमर्ग, अहया मंसीमवेद सो॥२॥ पाचसहो पुणासखे, निक्खधारी सुदाममो। बहुभवतर सवंग, मिंदे, पुलिसो गिरी जहा ॥३॥ जयेगे गोबमा ! पाणी, जे भवसायसाहस्सिए। सज्मायज्माणजोगेण, घोरतवसंतमेण य॥३॥ सालाई उद्धरे ऊर्ग, विरया ना क्सकेसओ। पमाया विउतिउणेहि, परिजनी पुणोविय ॥४॥ जम्मनरेग बएस, तवसा निदफम्मुणो। सद्धरणस्स सामत्वं, मयंती कहविजं पुणो ॥५॥ तं सामगि लमित्ताणं, जे पमायवसं गए। वे मुसिए सबभावणं, कावाणाणं भये भने ॥ ६॥ अस्पेगे मोयमा ! पाणी,जे पमायवतं गए। घर नेपी वर्ष पोरे, साई गोति सबहा ॥ ७॥ गेर्य तत्थ बियाणति, जहा किमम्हेहिं गोबियं ?। जं पंचलोगपालापा, पंचंडियाणं च न गोचिये ॥८॥ पंचमहालोगपाहि. अप्पा पंचेंदिएहि या एकारसेहि एनहि. विट्ठ सरासरे जगे | ॥९॥ता गोयम भाषदोसण, आया चिनाइ पर। जेगं चउगइसंसारे, हिंटर सोस्लेहि चित्रो ॥१९०॥ एवं नाऊग काय, निष्ठियहियवधीस्थिा। महाउनिमसतर्कतणं, भियत्रा मायारक्ससी ॥१॥हवे अजयभावेण, निम्महिऊण अणेगहा। विषयातीजकुसेण पुणो, माणगई वसीको ।।२॥ महवमुसलेग ता चूरे, बीसयरि(स)यं जाव दूरओ। बठूर्ण कोहको(लो)हाही(मपरे निदे संपते ॥३॥कोहो य मागों य अणिमहीया, मायाय लोभो य पबदमाणा। चत्तारिएए कसिणा कसाया, पोयति साने सुदबारे पहुं॥४॥ उपसमेण हणे कोहं. मार्ण मरणया जिणे। मार्च जयभावेणं. लोभ संतुहिओ जिणे ॥५॥ एवं निजियकमाए जे, सनभयहाणविरहिए। अहमयविषमुके या देला सबालोवणं ॥ ६॥ सुपरिफुट जहावतं, सर्व नियदुफियं कहे। गीसके य असंखुढे निम्मीए गुसंनियं ॥ ७॥ भूगोधुनहगे पाले, जह पालये उज्नुए । अपि उप तहा सर्व, आलीया जहहियं ॥८॥ पायाले पविसित्ता, अंतरजलमंतरे वा। फयमह रातोऽधकारे वा, जगणीएवि समं भवे ॥९॥ तं जहवतं कहेंबई, सामपि णिक्खिलं । नियकियसक्रियमादी, आलोयंतेहि गुरुयणे ॥२०॥ गुरुवि तिथयरभणिय, जे पन्छिन नहिं कहे। नीसातीभवति ने काउं, जह परिहस असंजर्म ॥१॥ असंजमं भवई पान, तं पाचममेगहा मुणे। हिंसा असमं चोरिक, मेहुर्ण नह परिग्गरं ॥२॥ सदाईदियफसाए प, मणचइतगुर्द वहा । एने पाचे अउरतो, नीसो गो यणं भवे ॥३॥ हिंसा पुढवादिउम्भेया, जहवा णपदसघोडसहा उ। अहका अगहाणेया, कायदंतरोहिणं ॥४॥ हिओचनेस पमोनूम, समुत्तमपारमस्थिय । तरयम्मस्स समसाई, मुसाचार्य अगहा ॥ ५॥ उम्गमउपायणेसणया, पायालीसाए मह या पंचहि दोसहिं दूलियं, ज मंडीवगरणपाणमाहारं, नपकोडीहि असुर्व, परिभुजत भो तेणी ॥६॥ दिवं कामरईसह, सिविहंतिविहेण अहब उराल। मणसा अनापसंतो, अभयारी भुणेयत्रो आनपर्षभरगुती चिराहए जो य साह समणी वा। दिहिमहवा सरागं, पहुंजमामो अइयरे में लागणा(प)वमाणहरितं, धम्मोषगरणं नहा। सकलायकरमावणं. जा पाणी कसिया भये सावजनदयोस, जा पडाने मुसा मुणे। ससरक्समनि अदिग्ण, गिण्हे ने चोरिकर्य ॥२१०० मेहुणे करकम्मेणं, सदादीण पियारणे। परिग्गरं जहि मुच्छा, लोहो कला ममन ॥१॥ अणूणोयरियमाठ, मुंजे राईभीषणं । सहस्साणि इयरस, कवरसम धस्सिस्स वा ॥२॥ण रागंग पदोसंपा, गच्छेना उसणं मुणी।कसागरस बचउकस्स. मगसि विज्ञापन करे ॥३॥ बुद्धेमणोपकायादंडे गो पं पउंजए। अफासुपाणपरिभोग, बीयकायसंपदणं ॥४॥ अदाना इमे पाचे, Fणो णीसाड़ी भवे। एएसि महंतपाचार्ण, देहत्वं जाप कत्थई ॥५॥ एचपि चिहए मुहम, मीसाठी वाप णो भये। तम्हा आलोयगं बाई, पायच्छिनं करेऊगा एवं निकाहनिरंभ, नीसतं काउंन ॥६॥ जय जत्योकजेजा, देवेसु माणुसेस वा। सत्य सत्युनमा जाई, उत्तमा सिदिसंपया। लभेजा उत्तम कर्य, सोहा जइणं नो सिजिमला तम्मने ॥२१॥ तिमि । महानिसीहसुवरसंधस्स पदम अज्झयर्ग सादरणं नाम १॥ एपस्स य कलिहियदोसो न दायको सुषहरेहि, किंतु जो पेष एयरस पुत्रायस्सिो आसि तत्वेष कपई सिटोगो कत्थई सिल्लोगर्द कत्थई पथक्सरं कत्थई अपसरपंतिया कत्थई पत्तगडिया कत्थई ये तिन्नि पत्तमाणि एपमा बहुमय परिगलियंति 11 निम्ममुवियसांगण, सामायण गोयमामाणे पपिसेतु सम्मेय, पचवं पासिया ॥१॥ जे सरणी जेवि बासन्नी, भनाभा जे जगे। सुहत्यी तिरियमुढाहे. बहमिहाति दसदिसि ॥२॥ असन्नी दुविहे गए. पियलिंदी एनिदिए। पियले किमिभुमच्छादी, पुढवावी एगिनिए॥३॥ पसुपक्लीमिगा सप्णी, नेरया मणुपा नरा । भवामवापि अस्येस, नीरए उभयवजिए४ा पम्मत्ता जति छायाए, वियलिंदी सिसिराय। होही सॉक्स किलम्हाण, ता दुक्ख सस्थती भये। ५। सुकुमाउंग गयता, खणदाई सिसिर खणं । न इर्म अहिबासर्ड, सकुर्ण एचमादियं ॥६॥ मेहुणसंकप्परागाओ, मोहा अण्णाणदोसओ । पुढवादीसु गएगिंदी, ग पाणती दुक्खं मह ॥७॥ परिवत चामतेविकाले बेइरियतणं । कई जीवाण पार्वती, केई पुणोऽगादियाविष।८॥ सीउण्डवावविवाडिया, मियपसुपक्सीसिरीसिया। सुमिणतेचि न लभंते, ते णिमिसिबभतरं यह ॥९॥ सरफरसतिसकरपनाइएहि. कालिजता खणे सणे। नियसते नारया नरए, वेसि सोपसं कुओ मो? ॥१०॥ सुरलोए जमरया सरिता, सोसि तस्थिमं हुई। उवा(हिए वाहणनाए, एगो अग्लो तमारदे ॥१॥ समतुलपाणिपादेणं, हाहा मे अत्तपरिणा। माया| १११८ महानिशीवच्छेदसूत्र -२ मुनि टोपसागर दीप अनुक्रम [१७७] अत्र प्रथम अध्ययन समाप्त अत्र दवितियं अध्ययनं- "कर्मविपाक-व्याकरणं" आरब्ध: ~7~ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [२], ------------- उद्देशक [१,२,३], ---------- मूलं [१] +गाथा:||१२|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं खोटी, किंवा पत्य करेमिहं १ ॥५९ एवं तिबमाचारमा भित्तादी, अणुयसमालो किलिस्सए ॥ ८॥ जया गाथा भगिरथीपंडतेरिया, आज्माणो समाजको ||१२|| मेण चिदिदि, परितपदं आया चिओ ॥२॥ सुहेसी किसिकमत, सेवावाणिजसिप कुताइनिस मणुया, धुष्यते एसि को सह ॥३॥ परवरसिरीए विहाए, एगे इजाति पालिसे। अने अपहुपमागीए, अन्ने वीणाइ लच्छिए ॥४॥ पुन्नेहि वडामाणेहि, जसकित्ती लपटी पबदाई। पुग्नेहिं हायमाणेहि, जसकित्ती लच्छी य सीबई ॥५॥ वाससाहस्सियं केई, मन्नते एगविणं (पुगो)। कालं गति दुरसहि. मणुया पुन्नेहि उपिया.६॥ संखेमेस्थमिमं अभियं, ससि जगजतुर्ण। एक्सं मानुसजाईण, गोयमा! जंतं नियोधय ॥७॥ जमणुसमयमभवंताणे, सबहा उनेवियागवि। निविग्नापि एपखेदि. पेरगं न नहावि भवे ॥८॥ दुनिहं समासजो मणूएस. दुवं सारीरमाणस । पोरं पर्यामहरोह, तिविह एक भने ॥९॥ पोरं जाण मुहत, घोरपयति समयीसाम। घोरपर्यहमहारोई, अनुसमयमविस्सामगं मुणे॥२०॥ घोर मनुस्मजाईणं, घोरपयंड मुणे तिरिच्छीसु। पौरपर्यडमहारोर, नास्पजीवाम गोयमा॥१माणसं तिनिहं जाणे, जहजमझुनम दुहं । नस्थि जहनं तिरिवठाण, दुहमुकोस तु नास्यं ॥२॥जतं जहन्नगं दुक्लं, माणुसं तं दुहा मुणे । सुरुमवायरमेएणं, निविभागे इतरे दुवे ॥३॥ समष्टिमेमणूएसुं, सहुम देवेस वायर । पमणकाले महिदी, आजम्मं आमिजोगाणं गा सारीरं नत्वि देवागं, बुस्खेणं माणसेण या जालिय पजिम हियर्य, सपसंद जनपी फुडे ॥५॥णिविभागे व जे भनिए, दोनि मनुत्तमे दुहे। मगुवा समपखाए, गम्भरतियाण उ॥६॥जसंसेयाउमनुवाग, दुस्सं जाणे चिमनिझम संखभाउमगुस्सा तु. दुक्खं पेयुक्कोसगं | 0 असोक्स वेपणा वाही, पीडा एक्समणिबुई। अणरागमरई केसं, एनमादी एगहिया बह ॥८॥ सारीरेयरभेदति, जं भणियं तं पनक्साई। सारीरं गोयमा दुरसं, सुपरिपुर्व तमधारय॥९॥ बालम्गकोडिलक्समर्थ, भागमितं लिये धुवे। अचिरमणपणपदेससा, कुंथुमणहपिति वर्ण ॥३०॥ तेषाधि करकत्तिसाउँ, हिययसु(दसए वणू। सीती अंगमंगाई गुरु, उचेह सबसरीरं सम्भतर, कंपे थरथरस य॥१॥ कुंथुकरिसियमेत्तस्स, जं सलसलसले त"। तमस मिनसमे, कलबलडन्त माणसे ॥२॥ चिततो हा कि किमय, बाहे गुरुपीडाकरा दीदहमुकनीसासे, बुक्स दुक्खेण नित्थरे ॥३॥ कि? कियचिरं चाहे 1, कियचिरेणेव गिहिही। कह वाद चिमुचीसं . इमाउ दुक्खसकडा॥४॥ गच्छ चेहूँ सुर्व उई. पापं णास पत्यामि । दुगवं ? किंवपक्सोई, किया पत्थं करेमिऽहं ? ॥५॥ एवं तिवमानाचारतिबोगुस्ससंकटे। पविहो वाद संखेना, आवलियाओ किलिस्सियं ॥ ६॥ मुणेऽहमेस कंटू मे, आपणहा णो उपस्समे। ता एवज्झरसाएणं, गोयम ! निसमुजे करे ॥ ७॥ अहले कुथु बाबाए, जइ णो अन्नत्व गर्य भवे । कंड़यमाणोज मित्तादी, अणुयसमागो किलिस्सए॥८॥जवा पायजतं कुथु, कंड्यमागोवाइयरहा । तो ले अइरोदशाणमि, पपि पिच्छपओ मुणे ॥९॥ अह किल्लमेनउभयाणे, रोरमाणेयरस्स उ। कंड्रयमाणस उण देहं. सुबमाण पुणे ॥४॥समज्यो रोबझागडो, उकोस नारगाउथ। दुभगिरथीपंडरिच्छ, आहाणो समजिणे ॥१॥धुपदफारिसजणियाओ, दुक्खाओ उपसमात्थिया। पच्छ हाफीभूते, जमवत्वंतरं नए ॥२॥विषण्णमुहलापरणे, अनदीणा चिमणदुम्मणा। सुणे पुणे व मूढे से, मंददरवीहनिस्ससे ॥३॥ अविस्सामदुपसहेडहिं. जसुहं तेरिच्छनारय। कम्मे निबंधात्ताणं, भमिहीन | भवपरंपरं ॥४॥ एवं खओपसमाओ, तं कुंथुपइयरजं दुहं। कहकहरि बहुफिलेखणं, जइ खणमेकंतु उनसमे ॥५॥ता महकिलेसमुत्तिन्न, सुहियं से अत्ताणयं। मन्नतो पमुइजो हिहो, सस्थचित्तो पिचिहां ॥६॥ चितई किन्लभ | निओमि अहं. निहालियं दुक्वंपि मे। कंपणादीहिं सयमेष, न मुणे एवं जहा मए॥७॥रोदझाणगएणं है. आइन्साणे नहेब या संवगइत्ता उत दुस्सं, अपंताणतमुर्ण कर्ड ।।दाजं पाणुसमयमणपश्यं, जहा राई तहान दिणं। दुहमेषाणुभषमागस, बीसामो नो पसे(भवेज मो॥९॥सर्मपि नरवतिरिएम, सागरोषमसंखया । रसरस पिलिजए हियर्य, जंवा इतनाणवि ॥५०॥ अहा कि जणियाउ, मुक्को सो क्वसंकडा। सीणगुकम्मस रिसा मो. भोज जणुमेनेणेष उ॥१॥ कंचमुचलक्सण दहाई. सर्व पचपखं दुक्खद अनुभषमाणोविजं पाणी,ण यागंती नेण वसई ॥२॥ अमेचि उगुरुयरे, दुमसे सोसि संसारिच सामने मोयना! वा कि, तस्स ने गोदए गए। S॥३॥हण मरहं जम्मजम्मेस, पायावि र केद माणिरे। तमचीहफा देजा, पार्य कम्मं फ्युजय ॥४॥ तस्सरया पहुभवाहणे, जत्थ जत्योचवजा । तत्य तत्व सहम्मतो, मारिजंनो भमे सया ॥५॥जे पुण अंगउवगं वा. अक्सि कम्णं च णालिय। कहिमाद्विपडिभगवा, कीपयंगाइपाणिनं ॥६॥ कय वा कारिय पावि, कर्जतं वाह अणुमयं । तसारया चकनालिपहे. पीलीही सो निले जहा।। आइक वा णो दुवे तिग्णि, पीसं तीसं न पापिया संखेजेवा अपग्गहने, लमते दुक्सपरंपरं ॥८॥ असूया मुसाऽनिरयन, जपमायजमाणदोसजो। कंदप्पनाहवारण, अभिनिवेसेण या पुरो(गो) मणिय मणाविर्य वापि, भत्रमाणं च अणुमय। कोहा लोहा भया हासा, तस्मुदया एवं भने ॥६॥ मूगो पृडमुहो मुस्खो, काइक्लितो भवे भवे। पिहलवानी सुबहोषि, सबस्थामवर्ण लो॥१॥अवितह भणिय ननस, अलिययणपि नालियंज उनीपनियायहिय, निहोस सर्व तयं ॥२॥ एवं-पोरिकाविक स, कम्मारंभ किसादिय। लबस्सानि भवे हाणी, अनजम्मल्या यह ॥३॥ एवं मेहुणदोसेग, वेदिता थावरतण। केसि गमर्णनकालाड, माणुसजोगी समागया ॥४॥ दुक्खं जरति आहारं, अहियं सित्यपि भुजिये। पीई करे - नेसिन, नण्हा पाहि (बाहे) सणे खगे॥५॥ अदाणे मरणं वेसि, बहुजपं कहासणं । थापालं णिपिन्नाणं, निदाए जतिणो वणि ॥६॥ एवं परिग्गहारंभदोसेगं नरगाउप। तेतीससागरकोसं, बेइत्ता दहमागया ॥ ७॥ उहाए पीडि नि, जनभुनुत्तरेऽविय। वरंता हत्तिसंतति, नो गच्छती परसे जहा ॥८॥कोहादीगं तु दोसेणं, पोरमासीविसरणं। पेइत्ता नारय भूओ. रोदमिच्छा मपति ते ॥९॥ वडकुटकवडनियाडीए, डंभाजो सुदरं गुर। वेदना चित्तरितं. माणुसजोणि समागया ॥ ७० ॥ कई पहुचाहिरोगाणे, दुक्सप्लोमाण भायन। दारिहकलहममिभूया, खिसणिजा भवंतिह ॥१॥ तकम्मोदयदोसेग, निचं पजलियोंदिगं। इंसापिसावजालाहि, धगधगधगधगम (4) ॥२॥ जेमंपि गोयमा ! चाहे, बहुसंधुक्रियाण य । तेसि तुबरिषदोसो, करस रुसंतु ने इह एवं क्यनियमभंगेणं, सीलस उसंतणेण पा। असंजमपवनणया, उस्मुत्तमम्मायरमा पायेगेहिं वितहायरोहि, पमायासेपणाहिय। जमणेणं अहना पायाए, अहबा काएग कत्थई, कयकारगाणुमएहि पा, पमायावषेण य॥ ५॥ तिविहेणमणिदियमगरहियमणालोइयमपटिकतमकयपायष्ठित्नमनिमुद्धसयदोसर सयो आमगम्मे पचिय अर्णतसो वियलंते। १११५ महानिचिच्छेदसूत्र अwwr-R अनि दीपरनसागर दीप अनुक्रम [२३७] ~8~ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [१] + गाथा ||७६|| दीप अनुक्रम [ ३०१] *kalpy+satana "महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं) - उद्देशक (3). मूलं [२] +गायाः ||६|| अध्ययन [ २ ], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.... ... आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं ........... इतिपचपचं मासाणं असंही कररिचरणी १ देवि मामु जम्मे कुहादीवाहिए जीवन किमिएहि खर्जती मच्छियाहि य. अणुदियह संसंडेहि सह हटस्स सटे त ॥ ६ ॥ एवमादीदुक्खामिभूयए, निंदण रहणिजे, उद्देयणजे अपरिभोगे, नियखुसियगर्वधवापि भवतीति दुरयणो ॥ ७ ॥ अस्वसायविसेसनं पट्टचा के नास्सिं अकामनिजराएड. सायलम ८॥ पु दोसे असवसायविसेसं तं पचा केई नारि ॥९॥ दस दिलाउदो निचदूरप्पिए व शिस्त्यनिरुत्सासो, निराहारेण पाए ॥ ॥ संपिडियंगमंगो प. मोहमदिराए चुम्मरिए दिगामजमणे, मये पुढची गोलया किमी ॥ १ ॥ माहितीए एना नहि किमियत ज कवि मयत तो उ तो हुति ॥ २॥ असे पवते अकूपार नारि महसंधुकिया मरि जम्म जति वणस्स ॥ ३ ॥ वणसई गए जीने, उपाए अहोमुहे विचिति अनंत काल जो लभे इंडियनणं ॥ ४॥ भवकायद्वितीए एना समेगवितिरिदियतणं तं पुत्रदोसे रिज ॥ ५॥ भवे महामहादजी अमवसायविसेस तं पच अतकरवरं ॥६॥ कृषिममाहारनाए. दिवाण व अहो अहो पचिस्संति, जाव पुढची सत्तमा ॥ ७॥ तं तारिसं महापोरं दुखमणुभवि परं पुणोषि र तिरिए उनि ए १८॥ एवं नयतिरिन् परियो विधि पासकोडीएम नो सका कहि तं दुक्खं अनुभवा ॥९॥ अह लगा भवेतम्भतरे। सगडाइडा (यइट) भरुण हतीयार्व ॥ ९० ॥ पचणकणणासाभेदविर्ण तहा जमडाराईहिं कुम्बाहिं कुविजनाम य जहा राई नहीं दियहं सदा उ सुदारुणं ॥ १॥ एवमादीप अनि चिरेण । पाणे य एहिति कहकपि अङ्गमानदुहट्टिए ॥ २ ॥ अवसायपिसेसतं. पहुंचा केंद्र बदलते माणुसणं तप्पु सदोणं, माणुसनेपि आगया ॥ ३ ॥ भवंति जम्मदारिदा बाहीखसपामपरिगया एवं अदिकाडाणे, लजनरल सिरिं हाइ ॥ ४ ॥ स इदं मणला अभये हि गए। जवसायविलेलं तं पड़वा के तारि ॥५॥ पुषि विमा मंची दुतिदिए वा तं तारिख महादुक्ख गुरुदं परदारुणं ॥ ६ ॥ चगसंसारकारे अणुभवमाणे सुसहं भवका हिनीएहिं सजोणी गोयमा ! ॥ ॥ चिर्हति संसरेमाणा जम्ममरणचचाहिवेचणारोगसो गदाडिमक्लाणसंमचि (वादि) गम्भव सादिदुखसंयुहिए पुणं निषाणानंदमच्यामजोमा अहारससीन्लंगसहस्सा - हिडियस समुहाचकम्मरासिनिदृहण अहिंसाललगणमस्त बोहिं णो पातिनि २ सायविसेसं तं पहु (मुखा केई नारिस पोपरि होहिं कवि पायए ॥ ८॥ एवं स्वरयंकरं । लद्दूर्ण जे पमाएला. तो पुणो ॥ ९ तासु तासु च जोणी पुनेम क्रमेण उ येणं गई चेच, दुकले ते चैव अशुभते ॥ १००॥ एवं नवकायद्वितीए, सहभावे पोले सो सपए लोए, सम्यन्नरेहि ॥१॥ गंधाए रखता. फासताए संतानताए । परिणामेना सरीरे बोहिं पाकिवा वा २ एवं नियमभंग, जे कलमाणमुक्क्याए अह सीतं लज्जितं वा जमविणं ॥ ३ उमापणं उलारपि था। सोऽचिय अनंतश्लेग, कमेणं चटगई नये (मे) ॥४॥ रूस तुसओ परो मा वा पिसं या परियन मासिया हिया मासा पक्कारिया ॥५॥ एवं मोहि, जह तो अव निम्मला ता [संडासषदारे (पगइतिद्वषएसाणुभावियबंधी) नेही तो नो य निजरे ॥ ६ ॥ एमादीघोरकम्मजाले कसियाण भो! ससिमधि सत्ताणं, कुत्रो दुक्खधिमीयणं ? ॥ ७ ॥ पुषिं दुकयदुचिम्णानं दुष्पडिताणं निययकम्माणं ण अत्रेइयानं मोक्लो घोरतरेण असोसियाणा ३ असमयं वच (बन्ध )ए कम्मं गत्थि अर्थधो उपाणिणो मोनुं सिद्धा बजोगीय सेलेसीसठिए नहा ॥८॥ हसणं, असा तिरे तु तिवरे मं मंदेश संचि ॥ ९ ॥ ससि पाएगी खियं राप्तिं भवे समसंखगुणं वयतयसंजमचारिचलं उणविरामेणं उत्सुतमापन्नचणपवतण आवरणाक्रवण य समजणे ४ अपरिमाणमुरुगा महंती पणनिरंतरा पावसच्छे जहा सबाह (वाहिय) मायरे ॥ ११०॥ सारे निमित्त उपमादी भने जया धिमयं बहु वेदे जइ सम्म सुनिम् ॥१॥ दानमेता, आणं नो खंडए जया सणापरिने उन जो दर्द भत्रे ॥ २ ॥ तथा एस पोरास खड़े उईरिता निजियोस्परसहो ॥ ३ ॥ आसवारे निमित्त सासायनविरहि सझायाजोगे धीस्वीर तवे जो ॥४॥ पाणि काया माणसा कम्मुगा जापान ॥ ५ ॥ सागतो, साबणविरहिओ विमुको सहसहिं समझयंतरेहि ॥६॥ गोमो य निन्नियाणो भवे जया नियनो विस पीए भी गम्भपरंपरा ॥ ॐ आसवदारे निमित्ता तादी यमेव संठिए गुफाणं समाहिय, सेलेसि विजए ॥ ८ ॥ तथा न बंधा किंथि, चिरवदं असेपि निहिय झाणजोगीए समीक गिरणमिग काले भोग्गाहियं ५ एवं जीववीरियसामस्था, पारंपरण गोयमा पविमुकम्मलकया समर्ण जंति पाणिणो ॥ ९ ॥ सासवणावा. रोगजरमरणविरहियं अदिदुखदारि निमानंद सिवा [लयं ॥ १२० ॥ जत्थे गोषमा पाणी जे एवमणुपदेशिय आसवदारनिरोहादी इयरासोक्से परे ॥ १ ॥ ता जाव कसिनकम्माणि घोरतपसंजमेण मोहिदे मुहं नाम नन्वि सिविणेऽवि पाणि ॥ २॥ क्लमेत्रम चिस्साम, ससि जगजंतूर्ण एकसमयं न समाये सम्म अहियासियंतरे ॥ ३॥ चैवमवि देवतरं चेवयरस्सावि व जे गोमाता पेच्छ, कुंयु तस्सेव य न ॥४॥ पायले न तस्सापि तेसिमेसम। परिसंती प कुंषु जेण, चरई कस्सद्द सरीरंगे ॥ ५॥ कुंणं सबसहस्से टोलियं गोपलं भवे एस्स फिलिप ? किंवा भवेज से १ ॥ ६ ॥ तस्य पायलदेसेणं तस्स फरिसिङ तमचत्यंतरं गोयमा मच्छे, पाणी ताणं इम मुणे ॥ ७ ॥ भमतसंचरतो प हिंडिगो मइले तणून कने कुखयं तार्थ नियवासी व चिरं बसे ॥ ८॥ अह विडे गमे तु बीच नो परिवसे खणं अहमपि विरजा ता जुन तु गोयमा ॥ ९॥ रागेण नो च्हणं न गईन यावि पुरे डालो कामकारओ ॥ १३०॥ कुंभू कस्सइ देहिस्स, आरहे खर्ण तं वियलिंदी भूण पाणे वा जलतरंग बाबी विसे ॥ १॥ न पिते तं जहा मेस पुढचेरीऽहमा सही ताकिची मम पापा संजणेमि एयरसऽहं ॥ २ ॥ पुत्रक पावकम्मस्त, विरामे पुंजतो फले तिरिउदाहदिसाणुदिसं, कुयू हिंडे बराय से ॥३॥ चरंते व महायाए, सारीरं दुक्खमाणसं कुंथूनि दूसहं जसे, दाणवणं ॥ ४॥ (२८०) १९२ महानिशीथदसू मुनि दीपरत्नसागर ~9~ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [५] गाथा ||१३५|| दीप अनुक्रम [ ३६५ ] “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं) - - अध्ययन [ २ ], उद्देशक (3). मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... -----MAR मूलं [५] + गाथाः || १३५|| .....आगमसूत्र [ ३९ ], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं हाहाऽऽकंदपरायणा ॥ ६॥ नास्यनिरि विकणं गाणं जमला क निन्यरिहि सुदारुण? ॥ १ ॥ नास्य॥ ३॥ बहुदुक्खकन्यं आपयानक ना सहभारमेनाथ मणजीवनपरेण वा समयालय वा सहसा तस्स विवागयं ॥ ५ ॥ कह सहिह बहुभव मसमयमहणि पोरपडे महारो (लाणासरणोऽविषएगागी ससरीरेण असहाया कडू विरसं पणं ॥ ७॥ अचिणवरणीजते करने कूटसानि कुयायसा सी. एमादी नारए दुहे ॥७८॥ य नव्हा हा ॥ ९ ॥ खरपुरचमरणसन्चगीलो भगंजगमाइए परयन्ताऽवसणिलिसे, दुक्खे नेरि तह १४०॥ कुंपयफरिसजणपि दु नहियासि तरे नानं महदुक् रिच्छद्क्वाड, कुंजनिया अंतरं। मंदरगिरितगुणियम्स, परमाणुस्साचि नो पड़े ॥ २॥ चिरयाने समुहं पाणी करतो आसाए निब (हि)ओ। भये दुक्तमपि सतोमं परिगए। संसारे परिवसे पाणी. अयंडे महचिदु जहा ॥४॥ पत्थापत्यं अयामते, कलाकलं हिपाहियं सचासचमसचं प चरणाचरणि तहा ॥ ५॥ एवइयं वरं सोचा. दुक्लस्संनगचेसिणां । इत्थीपरिग्गहारंभे, परं नवरे ॥ ६ ॥ चियासत्या सयिया परंमुही सुचलंकरिया वा अनकिया था निरिक्खमाणोपमया हि दुबल मस्समालेगाव करिसई ७ चिनमिति न निज्झाए नारि वा सुयकिय भक्खरंच दणं दिट्टि पडिसमाहरे ॥ ८ ॥ इत्यपायपडिन्छ कलनासोचियवियं सहमान कुवाहीए (तमवित्वीयं दूरवरेण भवारी लिए ॥९॥ राजा इत्थी पजोषणा जुनकुमारं पत्थव विनय ॥ १५० ॥ अंतरवासिणी व सपरपासंसंतियं दिक्खियं सादृणीं वापि ये तय नपुंसगं ॥ १ ॥ कहि गोणि खरं चैव अनिल अवि तहा सिपिन्थि पंलिवावि जमरोगमहिलं तहा ॥ २ ॥ चिर पमादी पापिन्थि पगमंती जन्धरवणीए अपइरिके दिणस्स या ॥ ३ ॥ तं बसहियं संनिवेस वा सोचाएहिं सहा दूरपरं सुदूरदूरेण भयारी लिए ॥ ४॥ एएसि सदि संत्याचं अद्वाणं चाचि गोषमा अन्नासु वापि इन्धी पि॥ १५५॥ से भय किमित्ययं यो विज्झाएजा गोवमा णो णं विज्झाएजा से भगवं किं मुणियत्वत्करिव इत्यंनो निज्झाएजा उपाहणं विषयसणि गोयमा उसवहावि नं माजा से भयं किमस्यीय नो आगोमा नो आला से भयवं किमित्यी सदि खणद्धमचि यो संवसेजा? गोयमा नी संपति से भय किमि सदिनोद परिवजेता ?, एगे मवारी एगिल्लीए सदि नो परिवजा ६ से भय के अद्वेणं एवं दुबइ- जहा पं नो इत्वीणं निज्राएला नो मावेजा नोीए सदि परिवसेज नो दाणं परिवजा ? गोयमा सययारेहिं सन्धिीय अवन्धं उकडनाए रागेणं संविजमाणी कामग्गीए संपत्तिा सहावी चेव सिहं हि न प्यारेहिं में वाहियमाणी अणुसमयं सवदिसिविदिसासुं णं सत्रन्य पिसाए परिज्ञा जाच सिए पि नाप यो सम्वन्ध पयारेहि में सम्मापि पुरिसे संका जाप पुरिस संकप्पा नाय साईदिओय ओमनाए चरिदिओ ओमनाए रसगिदिओ ओगनाए घाणिदिओ ओगनाए फासिदिओपगनाए जन्म केई पुरिसे कंवा अरू वा पप्पन्न वा अपपोवा दिने वा दिने वा इमं वाइ वा इपिने या अणिडिपने या पियाउने वा निकामभोगे या उदयबॉडीए वा अदबॉडीएड या महासने या हीणसने या महापुरिसद वा कापुरिसेइ वा समणे वा माहणे या अवरे या निंदिया महणजाइए वा तत्थ हापोहवी पजा संजोग पनि परिका, जाप संजोगसंपन परिपेता से भिमु भवेजा जा से चिने संसुदे भवेजाता से चित्ते संता से देहे सेएम अदासेखा जाय से देहे सेएणं अदासेला नाव से दरदरे इहपरलोगाए जा जाव णं से दरवदरे इहपरलोमाचा पाया मर्व अपसे अनि मेरे उबडाणाओ णीयाणंठाएजा जाणं उबागा जो नीया जाना बजा जाओसमयावलियाओ जाप णं निजति असंलेजाओ समयापलियाओं ताव में जं पदमसमयाओं कम्मदियं तं वीयसमयं पहुंच तयादियाण समयाण से अपने या अणुक्रमसो कम्मल संचिणिज्ञा जानको कम्म दिई विना अजाईखाई जाएकाले परिवर्ततिाका दोनिरनिरागस कलेज जाउकोटिनिकम्मा से नवनिचिचलिसिरीयं निषदित्नितेयं चाँदी भवेना. जाणं यसरी गिने बोंदी भजा नाप से सीना परिसिदिए जायसीएजा परिसिदिए ना सच्चा विवा राजा पाप रामायणमा जाणं रामायण माता नागणेजा महतगुरुदोभन गणेला सुमनदोसे नियमपोरपाचकम्मसमावरणं सगुरुपाचकम्मसमावरण संजयचिरान गणेजा पोरंपारपरलोक्सभयं न गणेान गणेजा सम्मान गणेजा समुरासुरम्सापि मं जगमा अप आन गणेसीजकपरचनगम परंपरं अमिसदसो संसारदुक्लं पास पास पाना पासणिजं सजणसमूहमासनिचिडिया चिकमियनिरिक्लिनमाणी वा दिनकरजालसदिसीपपासितवंतपरासी सूरीएवि तहाचि णं पासेस सुधारे सम्बदिसाभाए जायराधनाए व गणेला सुमहागुरूदोसवयमंसीरपणे संयमनिराहणे परन्टोग भए आणा मंगाइकमे अणसंसार नए पासेला पासणिजे समजणपवददिणवरेवि में मजा सुगंधारे सबै दिसामाए ता मला अर्थनिमसोमाइल विच्छाए रामा दुखिममा जा अनिभाना कुरुकुरेजा सणियं सणि पोटनियंत्रचालकंठपए, जाणं कुरुकुरेति पोंडपुरनियंवर ताव महायमाणी अंगपाडियाह निवा वाजे गोप, जाप मोडायमाणी अंगालियाहि गंजेजा सबंगोपं ताप णं मणसरस चित्राणं जरयनिषेनिसचे रोमन मजा जाव णं मयणसरसचित्र चिसिए बोंदी माना २ ११.२१ महान मुनि दी ~ 10~ Coedevast Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [२], ------------- उद्देशक [३], ---------- मूलं [७] +गाथा:||१५५...|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||१५५|| रक्षा परिणमेजा तणू जहा से मणगं पयलंति धातूमो, जावण मणर्ग पयलंति धातूमो ताप असत्यं वाहिजति पोग्गलनियमोबाइलयाओ, जापणे अमत्र्य माहिना नियंव नाव गं कलेणं घरेजा मनयहि जाच कसे घरेणा गत्तयट्टिताप ग से गोयलकपेज्जा अनीय सरीरावय, जाच णं गोचरकसंजा अत्तीयं सरीराबन्ध तावणं दुवालसेहिं समरहिं दरनिविठे भवे चोंडी, जावपण दुवालसहि दरनिचिट्ठे बॉदिमकेनातापर्ण पडिखलेना से ऊसासनीसासे, जाच गं पडिखलेना उस्सासनीसासे ताव मंद मंद ससेजा मंद मंद नीससेजा,जावणं एयाई इनियाई भावंतरजयत्यतराई बिहारेजा तावर्ग जहा गहग्यत्वे केहपुरिसइवाइस्थिएडवा विसंतुलाए पिसाबाए भारतीए असंबध संलवियं विसंतृत अतं आविजा एवं सिया णं इत्पीय, विसमाचत्तमोहणमम्मणालानेणं पुरिम विद्वपुडपा अविड वावरुवेदवाअवरुवेइ वागयजोषणेइ वा पडुप्पमजोरहवा महामसेहवा होणसनेइ वा सणुरिसह वा जाप णं अनयरे वा का निविवाहमहीपनाइए या अज्मण ससजससेणं आमंतेमाणी उलावेजा, जालनसंखेननेदभिनेणं सरागेणं सोनं विट्ठीए वा पुरिसे उहाजा निभाएगा नापजनं अखेजाई अवस-1 ग्विणीउस्सप्पिणीकोडिटरसाई दोस नस्यतिरिष्ठाय गती उकोसद्विवीय कम्मं जासंकलियं आसि ते निचिन्जानो पदपुर करेना.सेऽवि समयं पुरिसस्ससरीरामपपरिसणाभिमुह मजा पोर्ण फरिखजा समय अपने कम्मनिरपुई करेजा, मोसे परहनिकायंति। अएमावसरश्मि उगायमा संजोगेणं संजुजेगा, सेऽपिणं संजोए पुरिसायने, पुरिसेऽपिजे पंग संजुजे से चन्ने जेणं संजुजेसे अधणे टासे भय के अणं एवं बुबह जहा पुरिसेविण जेन संजुने से चन्ने जे संतुने से अचन्ने?. मोयमा जेणं से नीए इत्थीए पानाए बबट्टकम्महिई चिहा से गं पुरिससंगणं निफाइना नेणं न पदनिकाहएणं कम्मेणं सा बराई ने नारिस अज्यवसाय पदमा एगिदियनाए पुढवादीम गया समाणी अर्गतकालपरियणावि गं पोपावेनाईदियनर्ण, एवं कहकहवि बहुकेसेण अर्णतकालाजी एगिवियनणं खनिय बेईदियन तेइंदिवर्ण परिदियत्नमावि केसेण यदना पंदियनणं आगया समागी एनगिस्थिर्य पंडरिच्छ पेयमाणी हाहाभूक्क हसरणा सिविवि अदिइसोक्ता नियं संतायुवेनिया सहिसपणचवचिनिया आजम्म कुण्डमिर्ज गरहगिज निदणिज सिसनिज बहुकम्मलेहि अगेगपाडूसएहि नबोदरभरणा सानोगपरिभूया चउगईए संसरजा, अन्नं चणं गोयमा ! जावदयं तीए पापहवीए पदपद्धनिकाइयं कम्मदिवयं समजियं नावइयं इन्षिय अमिलसिउकामे परिसे उकिट्ठविद्वय अर्णतं कमहिहं बदपुट्टनिकाइयं समनिणिजा. एतेणं हेणं गोयमा' एवं पुबइ जहा गं पुरिसेऽविजेणं नो संजुजे सेणं चन्ने जेणं संजुजे से अचन्ने।भव :(केस) परिसेस पुण्ठा जाय गं क्यासी', गोचमा उबिहे परिसे नेये, | जहा-हमाहमे अहमे विमग्निामे उनमे उत्तमुनमे सनमे । १तत्य णं जे सधुनमे पुरिसे से जपचंगुभाजोपणसतमरुपलावण्णकतिकलियाएपि इत्थीए नियंवारदो वाससपि चेहिजा णो गं मणलाविनं इस्थिर्य र अभिलसेजा । ११ से उनमुनमे से गं जाकहषि नुदिनिहाएगं मनसा समयमेक अमिलो तहापि पीयसमए मर्ण संनिमिय अत्तार्ण निवेजा गरहेजान पुणो पीएणं नजमे इन्धीयं ममसावि अभिलसेना, जेणे २८ से उनमे पुरिसे सेणं जाकहवि वर्ण मुलं या इत्पिर्य कामिनमाणि पेक्सिजानओ मनसा अमिरमेजा जाच गं जामवा अदजार्म या गो इस्थीए समं विकर्म समायरेजा।१२। जर्ण बनयारी कयामवाणामिगहे, जहाणं नो भयारी नो कयपचफ्लाणामिगहे नो णं नियकटने भयणा, ण उणे निषेसु कामे अभिलासी मविजा, तस्स एयस्तण गोयमा अस्थि चे, किंतु अर्णनसंसास्थिनणं नो निर्वधिना ।१३। जेसे विमझिमे - से नियकरण सदि चिय इर्म समावरेजा, णो णं परकरनेणं, एसे यगं जा पछा उमाभयारी नो मवेजा नोगं अज्झपसायविसेसन तारिखमंगीकाउणं अर्णतसंसारियनले भयमा, जो कई अभिगयजीवाइपयन्ये भासते आगमाणुसारेणं मुखाहणं धम्मोपद्रुभवामाई दाणसीलतवभाषणामाए चाउनिह पम्मसंधे समगुडेजा से जाकहवि नियमवयभंग न करेजा नओणं सायपरंपरएणं सुमाणुसनसुदेवताए जाय अपरिवटियसम्मने निलम्गेण वा अभिगमेण पा जाप अवारससीलिंगसहस्सधारी भवित्ताणं निरुवासवबारे पियस्यमले पावर्य कम्म सवेत्ताणं सिज्जिा । १४ाजे वर्ष से अहम से णं सपरदारासतमाणसे अणुसमर्थ रावसायवायसियाचिनेहि सारंमपरिग्महाउस अभिरए भरेग्जा, तहाणं जे य से अहमाहमे सेण महापावकम्मे सबाओ इत्थीजो पाया मणसा यमुना तिविहतिविहेणं अणुसमयमभिरसेम्जा तहा अर्थतज्ज्ञवसायमसिएहि चिहिसारंपरिगहासने काल गमेजा. एएसि दोहंपिणं गोयमा ! अर्णतसंसारिवत्तणं यं ।१५/ भय से अहमे जेऽपिणं से जहमाहमे पुरिसे तेसिं च दोन्हपि अर्णतसंसारिवनणं समक्खायं नो णं एगे अहमे एगे अहमाहमे एतेसि दोहंपि पुरिसावस्था के पारिसेसे. गोषमा जेणं से अहमपुरिसे से गंजाबि उसपरवारासनमाणसे कूरवायसायझबसिएहि चित्तेहिं सारनपरिषदासनचिने नहावि दिक्सियाहिंसाणीहिं असमरासं(हियसीलसरपसणपोसहोवासनिस्वाहिरसियाहि गारस्थीहि वा सद्धि आचरियपिलियामंतिएपि समागे णी य चियमंसमायरेना. जे यणं से जहमाहमे पुरिसे से गं निवजणगिपनिई जायणं दिक्खियाहि साहुणीहिपिसम चियमंस समायरिजा. तेणं घेय से महापानकम्मे सत्राहमाहमे समक्लाए. से गं गोयमा पारिसेसे. नहा यजे गं से अहमपुरिसे से णे अगतेणं कालेणं बोहिं पावेजा,जे य उण से अहमाहमे महापावकारी दिक्खियाहिपि सारणीहिपि समं वियमस समाचरिना सेणं अतहलोविजर्णनसंसारमाहिरिलपि मोहिनी पावेजा. एस र्ण गोयमा : पितिए परविसेसे।१५।तत्व गंजे से सनमे से मंउडमत्ववीधरागे णेये, जे तु से उत्तमुत्तमे से अभिविपत्नपमितीए जावण उपसमगे वा खपए पानावगं निओयणीए, जेणंचसे उनमे से गं अपमनसंजए गए, एकमेएसि निरूपणा कुजा।अजे उण मिच्छविट्ठी भविऊर्ण उग्गाभवारी मनेजा हिसारंभपरिगहाईणं चिरए से मिच्दरिडी चेन, गो सम्मरिडी, नेसिपणे अवेयजीवाइपयस्थसम्भावागं गोषमा : नोगं उसमने अभिनंदणिने पससणिजे वा भवा, जो गं अगंतरभाचिए दिखोरालिए विसए परवेजा, असंच कयादी तिदिविस्थियादओ संचिक्सिया नोकभनयाओ परिमंसिना, मियाणकटेवा हवेग्जा १८ाजेपण से निमज्झिमे से ण तारिसमापसायमंगीकिवाणं विस्थाविरए बने। १९॥ तहापंजे से अहमे नहा जे णं से अहमाहमे तेसिन एगनेणं जहा इत्थी नहाणं १९३२ महानिशीथाछेदसूर्य...700-२ मुनि दीपालसागर न दीप अनुक्रम [३८७] ~ 11~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [२], ----------- उद्देशक [3], ---------- मूलं [२०] +गाथा:||१५६|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं बरे पुरिसस्त जी सचिन मालभित्थी । २६बदलणदास्तमिले का मासदले जाव से माताभित्यीय भएण वामभागालनिहीं प्रत TITION [२०] गाथा ||१५६|| नेए भाव में कम्मद्विार्य समजेना, गवरं पुरिसरमण संचितवनगे बच्चाहोपरितलपक्सएम लिंगे य जहियवरं रागमुपजे. एवं एते व परिसविभागे । २० कासिचाहत्वीण गोयमा भातं सम्मलादप अंगी. काऊणं जाव सप्तमे पुरिसविमागे तापण वितणिजे, नो सोसिमित्वीणं ।२१। एवं तु गोयमा ! जीए इत्थीए विकालं पुरिससंजोगसंपत्तीण संजाया अहा णं पुरिससंजोगसंपत्तीएनि साहीणाए जाच गं तेरसमे बोरसमे पचरसमेच समए गं पुरिसेणं सविण संजुत्ता गो चियमसमापरिय सेणं जहा पणकहतणदारसमि केड गामेह बा नगरेर वा रोड वा संपलिते चंडानिलसेक्सिए पयलिताण २ मिडसिय २चिरेणं उपसमेज्जा एवं तु में गोयमा से इत्यीकामम्मी संपलिता समाणी णिजिमय र समयचाउके उक्समेज्जा, एवं इगलीसहमे बानीसदमे जाप सत्ततीसाइमे समए, जहा पदीबसिहा वावमा पुपरवि सर्व मानहाविदेणं चुन्नजोगेण वा पयलेग्जा एवं सा इत्थी पुरिसवंसज वा पुरिसालावगकरिसमेण वा पदेन कंवपेच कामगीए पुणरवि उपयलेजा ।२२॥ एत्वं च गोयमा ! जमित्वीय भएणवा सजाए वा कुरकुसेण वा जाच गं धम्मसहाए पानं वेयर्ग अहियासेज्जा नोपं वियमंसे समापरिम्ना सेन धन्ना से गं पुन्ना से यचं बंदा से गं पुज्जा से बहना से गं सालक्समा से सबकताणकारया से णं सध्युत्तममंगलनिही से गं सुपदेवया से णं सरस्सती से अपहुंटी से णं अचुया से वाणी से णं परमपविनुनमा सिदी मुत्ती सासया सिनगइति ।२३। जमिस्थित वेषणं नो अहिवासेना चियर्मसं समायरेजा से गं अपना से गं अपुण्मा सेणं अवंदा से गं अपुजा से गं अदमासे अलक्षणा से गं भग्पालखणा से ण सामंगलमकाहाणमायणा से महसीना से महाबारा से गं परिभवचारित्ता से णं निदणीया से गं खिसणिजा से गं कुश्चणिज्जा सेणं पाबा से गं पाक्पामा सेर्ण महापाचपाचा से णं अपविनत्ति, एवं तु गीयमा बहुलत्ताए भीरत्ताए कायरत्साए लोलत्ताए उम्मायजोबा कंदपत्रोमा दपजोबा अणप्पसओवा आउहियाए वा जमित्थिर्य संजमाओ परिभस्सियं दुरदाणे वा गामे वा नगरे वा रायहागीए वा बेसम्गहनं अच्छडिय पुरिसेण सदि चियमसमायोज्जा मुजो २ पुरिस कामेज्ज वा रमेज्जा अहाणं तमेव दोषविय कम्जमिह पक्रिसप्पेत्ताणं तमाईचेजात पेराईचमाणी पस्सिया गं उम्पायजी वा पोवा कंदपओचा अणण्यवसओ वा आउहियाए या के आयरिएका सामन्नसंजएइ वा रायसलिएइ वा बायलबिजुत्तेइ वा निन्नाणलविजुत्तेइ वा जुगपहाणेह वा पदयणप्यमानमेइ वा नमिस्थिय अन्न वा रमेज्ज वा कामेज्ज बा अमिलसेन्जबा भुजेज वा परिभुजेज्जमा जाप चियमंसमायरेक्जा से तुरंततलक्लगे अहन्ने अरे अरे अपस्थिए अपत्ये अपसत्ये अकाठाणे अमंगाते निरगिज्जे गरहगिज्जे खिसणिज्ने कुच्छनिम्जे सेणं पाये सेणं पाचपावे सेणं महापाये से गं महापावपावे से गं भइसीले से गं भट्ठायारे से गं निम्भहचारिते महापावकम्मकारी, जया में पायचित्तमभुद्विजातओ णं मंदतरंगेर्ण बहरेणं उत्तमेण संघपणं उत्तमेणं पोरसेणं उत्तमेणं सरोग उत्तमेणं तत्तपरिजनणेणं उत्तमेणं पीरियसामत्येणं उसमेण संवेगेणं उत्तमाए धम्मसदाए उत्तमेन आरक्सएन पायच्छित्तमनुपरेना, तेणं तु गोयमा! साहुर्ण महागुभागार्ग अहारमपरिहारहाणाई णव भचेरगुतीओ बागरिजति ।२४ा से भययं ! कि पच्छित्तेणं सुजमेना, गोपमा अत्येने जे गं सुनना, अत्यगे जेणं नो सुशेजा, भय ! केणं अन एवं बुबह-जहाज गोयमा! अत्येगे जे सुज्ोजा अत्यगे जे गं नो सुजिमजा, गोयमा अत्येगे नियडीपहाणे सढसीले कसमायारे से णं ससा आलोइताणं ससते चेच पायच्छित्तमणुपरेना, सेनं अविमुदसकलुसासए को मुज्जा , अत्येगे जे उजुपरवसरलसहावे जहावतंजीमहई नीस सुपरिट आलोहतार्ण जहोपाई चेष पायशिमहिमा से निम्मलनिकसविसुबासए विसुजोजा, एतेनं अहणं एवं पुचा जहाज गोयमा! अत्थेगे जे गं नो सुकोमा अस्गे जे सुज्ोना । २५। नहा णं गोयमा! इत्थी य गाम पुरिमाणमहामार्ग सापाय कम्माण वसहारा तमरपकरसाणी सोम्यहमम्मास्स णं अम्गला नरयावयारस्स समायरमवती अभुमर्थ विसकंदलि अग्गिय पनि अमोवर्ण विखइय अगामियं वाहि अचेयर्ण मुच्छ अपोचसम्मिमारि अणिपनि गुनि परलज्जए पासे अहेउए माय गोयमा! इस्थिसंभोगे पुरिसाचं मनसावि अथितिणि अमज्जायसणिज्जे अपत्यणिज्जे अणीहणिज्जे अविषप्पणिज्जे असंकप्पणिज्जे अणमिलमणिपजे असंभरणिपजे निविहंतिक्हिणनि, जत्रो में इत्थी नाम पुस्सिस्स गोयमा! सबप्पगारेहिपि दुस्साहिय विपित्र दोसुपायणं सरेमसंजणपिव अपुढचम्म खलियचारित्नपिच अणालोय अनिदियं अगरहिवं अकयपायचित्तज्ज्ञवसायं पर अर्णतसंसारपारियपूर्ण स्वसंदोह करपायच्छित्तविलोहियपिच पुणो असंजमायरणं महंतपाक्कम्मसंचयं हिंसपिय सवलतेलोकनिदिय जविपरसोगपचवायं घोरंथयारणस्यवासो इच मिरवराणेगबुक्सनिहित्ति, 'अंगपचंगसंतागं, चालावियपेहिये। इत्वीण तं न निझाए, कामरागविवदर्ण । १५६॥ तहाय इत्पीओ नाम मोयमा ! पळयकारयणीमित्र साकाल तमोचलित्ताउ मयंति विज्नु इन खणदिइनपेम्माओ भविसरमागयचायगो इव एकजमियाओ नावणपसूयजीवतमुबनियसिसुमक्खीओ इस महापाचकम्माओ भवंति खरपवणुचालिबलवणीवहीवेलाइव पहुविहक्किापकायोलमालाहिं समपि एमत्य असंठियमाणसानो मति सर्यमुस्मनोदहीमिव दुस्वमाहकइतवाओ भवंति पत्रको इस पडलमहाबाओ भनि जम्मी व सबभपसीओ पाऊब साफरिसाओ तकरो इस परत्यलोसओ साणो इव दाणमेचमिचीजो मण्डी इचहापरिचत्तनेहाओ एक्माइजणेगदोसलक्सपटिपुषणसगावंगसम्भतरचाहिराण महापावकम्माण अपिणयपिसमंजरीणं तत्पुष्पन्नजणत्वममापसूईन इत्वीचं अणवस्यनिजातिगंधासहविलीणकुच्छमिलनिवाणिजसिसणिजसवंगोपंगाणं सम्भतरवाहिराणं परमत्याओ महासत्ताणं निविणकामभोमार्ग गोयमा ! सम्वृत्तमुत्तमपुरिसा के नाम सपने सुविधायधम्माइम्मे खणमपि अभिलास गचिाना?।२६। जासि च अभिलसिउकामे पुरिसे तजोनिसमुच्छिमपंचेदियार्ण एकपसगेण चेच गवई सयसहस्साणं णियमा उपरको भवेजा, देव अर्थतमुहमत्ताउ मंसचक्सुणो ण पासिया २७ एएणं आहेण एवं बुचईजहा गोषमा! जो इत्यीय आलबेजा नो सलवेजा नो मावेजा नो इत्तीर्ण अंगोचंगाई संणिरिक्खेजा जापणं नो इवीए सबि एगे पंभयारी अदाणं पटिनेजा।२८ा से भय | किमित्वीए सलामुलायगोवंगनिरिक्ल कमेज्जा उबार मेहुर्ण ?, गोचमा ! उमयमवि, से भयवं! किमिस्थिसंजोगसमाचरणे मेडणे परिवज्जिया उपाहूर्ण बहुविहेमु सचित्ताचित्तवत्युक्लिाएम ११२३महानिशीषच्छेदमूर्य.aman-2 मुनि दीपरनसागर दीप अनुक्रम [३८७] ~12~ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [२], ------------- उद्देशक [३], ---------- मूलं [२९] +गाथा:||१५७|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत [२९] MUSN जीव माजजीपकायापानि, गोषमा इशानको प्रयाग महया यामिजाक में प्रवाहिता पार गाथा ||१५७|| मेहगपरिणामे शिविहतिक्षिण मनोनाकापजोगेन साहा साकाल जापाजीवाएति?, गोषमा सघ सम्हा विजिना २९४ से भय ! जे ण के साहवासाहणी वा मेहणमासेपिनासे थे रिजा. गोषमा जे के साह बा साहुणी वा मेहुणं सयमेव अप्पणा सेवेज्ज वा परेहि उपासेनु सेवापिज्जावा सेविजमाणं समजाणिज्ज वा दिवं वा माणुस वा निरिक्सजोगियं वा जाव से करकम्माई सचित्तापित्तवरथुपिसायं वा विनिहायसाणं कारिमा. कारियोवगरयोण मणसा वा वयसा वा कारण पा से णे समणे या समणी पा दुरंततलक्सो अवो अमग्गसमायारे महापाकम्भे गो गं बंदिज्जा गोगं चंदाविना नोर्ग बंदिज्जमाणं वा समगुजाणेजा तिविहतिषिदेणं जावणं विसोहिकालंति, से भय जे बंदेज्जा से किलभेज्जा, मोबमा! जे तं बंदेम्जा से अहारसण्ई सीलंगासहस्सधारीणं महाभागाणं तित्यपरादीणं महती आसापर्ण कुज्जा,जेणं तिथियरादीणं आसायर्ण कुजा सेणं अजमनसायं पाया जाय गं अर्णतसंसारिवत्तणं लमेजा।३०॥'विपहिबिस्थिर्य सम्म, सपहा मेहुनापिय । अत्यमे गोयमा ! पाणी, जे गो चयन परिगहं ॥ ७॥ जाचार्य गोयमा ! तस्स, सचित्ताचित्तोभयतर्ग। पभूयं पाणु | जीवस्स. भवेज्जा उ परिमाई ॥८॥ ताबएणं तु सो पाणी, ससंगो मोक्खसाहाणामाइतिगंण बाराहे, तम्हा कम्जे परिमाई ॥९॥ अत्यगे गोषमा ! पाणी,जे पयहिता परिगई। आरंभ नो विवम्जेमा, नंपीय भवपरंपरा ॥१६॥ आरंभे पस्थियरसेगवियलजीवस्स बइपरे। संघमाइयं कम्म, जंबवं गोयमा! मुगे ॥१५१ एमे बेईबिए जीवे एनं समर्थ अणियामाणे बलामिओगेणं हत्येण या पाएण वा अन्नयरेण वा सत्यागाउगरमजाएणं जे केई पाणी अगाउँ संघहेश वा संघद्यावेज वा संघहिमामाणं जगाई परेहिं समगुजानेजा से गं गोषमा ! जया त कम्म उदय गोजा तया मया केसेणं छम्मासेन दिना, गाद दुवालसहि संवमटरेहि.नमेव अगाई परियायेजा वाससह-8 स्सेणं गाई वसहि बाससहस्सेहि. समेच अगाई किलामेना बासलकरलेणं गाई दसहि वासलक्लेहि, अहाणं उदवेगा तबो बासकोडी, एवं विचउपपिविएसुबह ।३१'सुहमस्स पुदक्जिीवस्स, जत्यंगस्स विराहणं । अप्पारंभ तय लागि, गोयमा! सरकवली ॥२॥ सुहमस्स पुढविजीवस्स, पावती जत्य संमने। महारंभ नर्थ बेति, गोधमा ! सबकेनली ॥३॥ एवं तु संमिलतेहि. करमुकरडेहि गोषमा ! से सोहम्मे अर्णतेहि, जे आरंभे पवनए ॥४॥ आरंभ नामाण स. पदपुट्ठनिकाय । कम्म पद भरे सम्हा, तम्हारंभ विकग्जए॥५॥ पटवाइजजीवकायंता, समावेहिं सबहा। आरंमा जे नियहेम्जा, से अइरा(जम्मजरामरणसदारिदस्खाण) चिमुचन ॥६॥ नि, अत्यगे गोयमा! पाणी :. बजे एवं परियुग्मिाउं। एतगृहविच्छे, ग लभे सम्ममावनणि ॥आजीवे संमगायोडले, घोरपीस्वयं घरे। अचयंतो इसे पंच, कुज्जा सर्व निरत्ययं ॥८॥ कुसीलोसमपासत्ये, सयदे लपले तहा। दिट्टीएवि हमे पंच, गोयमा न निरिक्तए ॥९॥ सबदेसियं मां, समदुक्सप्पणासर्ग । सायागारवणुकाते, अन्नहा भणियमुज्मए ॥१७॥ पयमक्सरपि जो एणं, सान्चूहि पवेदिय । न रोएग्जामहा मासे, मिच्छदिही स निच्छिय एनाऊण संसम्मि, बरिसणालाचसंयत्र । संचासं च हियाकस्सी, सबोवाएहिं बजाए ॥२॥ मययं ! निभड्सीलार्ण, दरिसर्ण तपि निच्छसि। पच्छित्तं वागरेसीय, इति उभर्य न जुजए ?॥३॥ गोपमा! भट्टसीलाण, दुसरे संसारसागरे। पूर्व तमगुरूपिया, पायमिहने परिसिए॥४॥ भया ! किं पायच्चिनेण, छिविज्जा नारगाउ । अणुचरिऊण पचिछत, बहरे दुग्गाई गए ॥५॥ गोपमा! जे समग्जेज्जा, अणंतसंसारिवत्तणं। पच्छितेणं धुर्व तंपि. छिदे कि पूणो नरयाउयं ॥१॥ पायपिछत्तम भुषणेऽत्य, नासा किचि विग्जए। बोहिलाभ पमोनूगं, हारियं वन लम्भए । चाउकाबपरिभोये, नेउकायस्म निच्छिय। अमोहिलाभियं कम्म, गजए मेहुणेण व ॥८॥ मेहुर्ण आउकार्य च, नेउकार्य नहर या तम्हा तओनि जत्तेणे वाग्जा संजईदिए ॥१॥से भयचं! गारस्थीर्ण, सामेचं पपत्ता । (तो जा अबोही मवेज)एस तो सिक्लागुणामुग्यधरनं तु निष्कर ॥१८॥ गोयमा विहे पहे अक्साए, मुसमणे अमुसाचए। महश्यपरे पढ़मे. पीएऽश्यधारए॥१॥तिचिहलिपिहेण समणेहि.सासापजमुग्मियं । जाबजी वयं घोरं, पदिवज्जियं मोकससाणं ॥२॥ दुपिगचिहं निविद यापूर्व सारजमुझियं। उहिहकानिय तु षय ( देसेग) सबसे गारन्थी हि ॥३॥ तच लिपिहंतिपिह, इच्छारंभपरिगह। बोलिरंति अणगारे, जिलिंग परेंनि य॥४॥ इयरे (य) अगुज्विाना, इच्छारंभपरिमाई । सदाराभिरए स मिही. जिणन्दिय तू पृथए (ण धारयति) ॥५॥ना गोयमेगदेसस, परिकते गारो मने बयमणुपाठयंताण, नो सि आसावर्ण भने । ६.जे पुण सबस्स पटिकते, पारे पंच महबए। जिणलिंगं तु समुहद ने तिगं नो विजए॥ ७॥ तो महयासापर्ण तसि.इस्थिडगीबाउसेवणे। जननाणी जिणे जम्हा, एवं मणलाविणामिलसे ॥८॥ता गोयमा ! साहियं एवं. एवं बीमंसिर दर्द । विमापय जाई धिजा, निहिणो न अबोहिलाभियं ॥९॥ संजए पुण निधिला, एकाहिहिया आणादकम ययभंगा, नह उम्मग्गपवनणा ॥१९०॥ मेहुणं चातकार्य प, नेउकार्य नहेच या हा तम्हा तितयंति, (जत्तेण) बनेना सत्रहा मुणी ॥१॥जे परंते व पण्डित, म सकिलिसाए। जह भणियं पाह पाणुढे, निस्य सो नण ननई ॥२॥ भय : मंदसदेहि, पायलिन कीरई। अह काईति फिलिहमणे, नाऽमुक पिराए ? ॥३॥ नो रायादीहिं संगामे, गोयमा ! सलिए नरे। सादरणे मचे दुकर, नाणुकंपा विकाए ॥४॥एवं संसारसंगामे, अंगोय. तबाहिरं। भासादरिताण, अणुकंपा अगोपमा ॥५॥ भय ! सामि देहत्ये, क्लिए होति पाणिनो। जसमय निष्फिडे सतं, नक्सणा सो सुही नवे ॥६॥ एवं नित्यपरे सिदे, साहु धम्म विचिज अकज की तेणं, निसिरिएणं गही भरे ॥ ७॥ पायचिडण को वन्य, कारिएणं गुणो भवे । जेणं कीवस्सवी देसि, दुकर पुरणुचरं ॥ ८॥ उदरिडं गोयमा ! साई, पणभंगे जाच णो कये। पपिडीपाबंध चताप गं कि पकाए॥९॥ भाषसहस्स पपिंडपहभूमो इमो भये । पछित्तो एक्सरोहंपि, पाक्वर्ण खिष्यं परोहए। २० ॥ भय ! किमणुविजते, सुर्वते जागिएका?। सोहेड सवपापाई. पचित्ते सानुदेसिए ॥१॥ सुसाऊ सीयले उदगे, गायमा जावणी पिए। गरे मिन्ने विधाते, नाच नव्हाण उपसमे ॥२॥ एवं जापितु पच्छिल, असदमाग जा चरे । वाउ तस्त वयं पात्र, पहढए उपहायए ॥३॥ भव ! कि संबड्देजा, जपमादेम करपई। आगय ? पुगो आउनस, नेनिर्य किन हायए?.४॥ गोयमा ! जह पमाएन, निचांतो अहिडकिए। जाउत्तरस जहा पच्छा विस, गड्ढे तह र पाचगं ॥५॥ भयर्थ! जे विदियषरमत्ये, समपच्छित्तजाणगे। ते कि परेसि साहति, नियमकानं जहडिय?॥ गोयमा मलतेहि दियहे जो कोडिमुड्ने। सेवि बढे विणिबिडे, पारिवाहि मातिए आएवं सीलुण्जले साहू, पछि नबढाए।अन्नेसि निउणं (बाई) साहे, ससीसंपन्हारी जहनिटा महानिसीयसुवासंघस्स (२८१) 1११२४ महानिशीचच्छेदसूर्य, चार मुनि दीपानसागर 5 दीप अनुक्रम [४११] MARAN ~13~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [9], ------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [१] +गाथा:||१|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं महा। वसाहचर मुथक्वंधबोडले च जायजासरलास पर महानिहित अविहिए गिलकिन जाए ॥२॥ गोथमा। काम कम्मविभागागरण माग बायमचायणं ना एएसिन दोहं अजायणाणं विहीपुरगेणं समसाम बायर्णति ॥३१॥'अओ पर चउकन्न, सुमहत्याइसायं परं । आणाए साहेया, सुत्तत्थं जं जहहियं ॥१॥ जे उम्पाई परूग्जा , देग्जा वऽमुजोगम्स उपाएन्ज अचमचारी वा. अविहीए अदिपि वा ॥२॥ उम्मायंबलभेज्जा रोगायकस पाउने दी। मसेज संजमाओ मरणने वा गयापि आराहे ॥३॥ एवं तुजं बिहीपुर, पदमजमय परुपियं। बीए पेव विही एवं पाए सेसानिमं विहि ॥४॥ बीयज्झयणेऽपिले पंच, नबुढेसा नहिं भवे। तइए सोलस उसा, अह तत्व अंचिले १५॥ जंखहए चाउत्थेऽषि, पंचमंमि छायचिले। छहे दो सन मे तिन्नि, अहमे आयंबिले दस ॥६॥ अणिविखनमनपाण, संघाईन इमं महा। निसीहत मुक्कसंध, मोढवं च जाउनगपाणगंति ॥ आगंभीरस महामणो उ.संजुषस्स तोगुणे।सुपरिक्खियरस काढण, सयमनमेगस्स वायाखेतसोहीए नियंत, उपउत्तो भरिया जया। नया नाएज एवं न. अनहा उ अलिजद संगोवंगसुयस्सेयं, णीसंदं तत्तं परं। महानिहिव अविहिए, गिड़तेणं छलिए ॥१०॥ अड्वा सवाई मेयाई. बहुविग्याई भवति । सेयाचं तु पर सेयं, सुपकावंच निविग्पं | ॥१॥जे पर पुणे महाणुभागे से वाइया, 'से भयचं! केरिसे तेसिं, कुसीयादीच लक्खणं | सम्म विनाय जेणं तु. सबहाते विनवाए ॥२ गोचमा! सामनओ तेसि, लक्लपमेयं नियोधय। जनचा तेसि संसगी. सहा परिषजए ॥३॥ कुसीले नाप नुस्खयहा. जोसो दुम्हि मुगे। पासत्ये नाणमादी, सकले बाजीसतीबिहे शातत्य जे ते उ दुसयहा उ, पोषां वे नाव गोयमा!। कुसीले जेसि संसम्मीदोसणं मस्सई मुणी खणे ॥१५॥ तस्य कुसीले ताव समासओ हि ए-परंपरकुसीले यऽपरपरकृसीन्द य, नात्य ण जे ते परंपरकुसीले ते दुविहे गए सत्तगुरुपरंपस्कुसीले एगतिगुरुपरंपरकुसीले याराजेचि य ते अपरंपरकुसीले तेचि उ दुनिहे गए-आगमओ णोआगमओ यारातत्य आगमओ गुरुपरंपरिएणं आपन्टियाए ण केई कुसीरे आसी उ ने चेच कुसीले भवंति शिनोआगमत्रो अणेगविहा, संजहा-माणकुसीले दसणकुसीले चारितकुमीले तवकुसीले वीरदकुसीलेसनस्थ णंजे से नाणकुमीले से निविहे गेए पसत्याव पसन्धनाणकुसीले अपसत्यनागकुसीले सुपसाचनाणकुसीले। पातत्य जे से पसत्यापसत्यनामकुमीले से दुविहे गेए-आगमओ नोजागमओ ब, तत्य आगमओ विहंगनाणीवनवियपसत्यापसत्यपपत्थजालअजायणजमावणकुसीन्ले, नोभागमो अणेगहा पसत्यापसस्थपरपासंडसस्थत्यजाताहिजणऽज्झापणचायणाणुपेहणकुसीले ।६। तत्य जे ने अपसत्यनागकुसीले ते एगणतीसइबिहे बहुधे, जहा-सावजवायपिजामततंतपडंजणकुसीले १ विजमतताहिजकणकुसीले २(पिजामतप्ताहिझावणकुसीने) महरिसचारजोइसत्यपाउंजणाहिजणकुसीले निमित्तलक्षणपउंजणाहिजणकुसीले सउणलक्मणपउंजणाहिजणकुसीले हस्पिसिक्खापजगाहिजणकसीले थवेयपहुंजणा. हिजणकुसीले अधचयपउंजगाहिजणफुसीलेट परिसिायीलपवणपउंजणकावणकुमीले कामसत्वपउंजणाहिजणकुसीले १० कुहुगिंदजालसत्वपउंजणाहिजणकुसीले११मालेक्सपिजाहिजनकलीले १२लेपकम्मविजाहिजणकुसीले १३वमणविरेयगबहुवादिजालसमबरणकहणकाहणपणसहमतिमोरणतडणाइबहुदोसपिजगसत्यपउंजणाहिजाणवावणकुसीले १४एवं जा(ज)प१५जोगचुन्न १६वनचाउचाय१ आयदंडनीई १८सत्यवयाऽसणिपनत्र १९ऽयकंडर०स्वणपरिक्खा२१सहसत्य२२अमचसिक्रवा२३गुदमंतप्तकालदेस२५संधिचिम्माहोपएस२६सत्वरसम्म(ग)२८जाणवहार२९निरूपणत्यसस्थपउँजपाहिजणअपसत्यनामकुसीले, एकमेएसियेच पावसु. याणं कायणापेहणापरावणाअनुसंधणासपसायत्रणअपसस्थनाणकुसीले तत्व जेय ते सुपसत्यनाणकुसीले तेवि यदुपिणेए-आगमओणोजागमओ य, नत्यागमओ सुपसत्य पंचप्पयारं गाणं आसायंते मुपसत्यनागधरे या सायंते सुपसत्यनाणकुसीले । दानोआगमओय सुपसत्यनाणकुसीले अहहा गए, जहा-अकालेणं सुपसत्यनाणाहिजमझापणाकुसीले अविणएणं सुपसत्यनागाहिजमझापणाफुसीले जगहमागेर्ण सुपसत्यनाणाहिमणक. जसीले अणोरहाणे सुपसत्यनागाहिनणसावणकुमीले जस्स य सयासे सुपसत्यं सुत्तत्योभयमहीय निष्पवणसुपसत्यनागकुसीले सस्पंजगहीणक्वस्विचावरियहिजगमावणसुपसत्यनाणकुसीले विवरीयमुत्तत्योभयाहिजणIS ज्झावणमुपसत्यणाणकुसीले संविवसत्तात्योभयाहिजमझावणसुपसत्यनामकुसीले।९। तस्य एएसि अण्डषि पयार्ण गोयमा! जे केई अगोचहाणे सुपसत्य माणमहीयंति वा अजापति या अहीर्यत वा अमापर्यतं या समाजाणनि नेणे महापापकम्मे महती सुपसत्यनाणसासायणं पकुछति । १०॥ से भय ! जा एवं ता कि पंचमंगलस्स में उपहाणं काय?, गोयमा ! पढमं नाणं तओ दया, दबाए यसाजगजीवपाणभूयसत्ताणं अत्तसमदAरिसित, सत्रजगजीवपाणभूयसत्तार्ग अन्तसमदसणाओ य वेसि चेच संघहमपरिवावणकिलावणोडावणाइन्सुषायणभयविकर्ण तओ अणासबो अणासवानो य संवृद्धासवदारसं संडासपदारनेणं च दमोपसमो तो यसमझतुKA मित्तपतया समसमितपत्याए य अरागदोसतं तत्रो य अकोहया अमाणया अमायया असोभया अकोहमागमायालोभयाए य असायत्तं तो य सम्म सम्मत्ताओ यजीवाइपपत्यपरिमाणं तओ समय अपदिषद मत्यापरिचवनेण व अनागमोहमिच्छत्तक्सयं तओ विगो विवेगाओ य हेयउवाएयरत्युक्यिालगतबादलपस तओ य अहियपरिचाओ हिवायरणे य अचंतमभुजमो तओ य परमत्यपविनुत्तमसंतादिदसविहअहिंसालकखणधम्मागुहाणिककरणकारावणासत्तचित्तपा तओ व संतादिवसबिहअहिंसालपसणधम्माणुहागिककरणकारावणासत्तचित्तबाए पसनुत्तमा खेती सम्वृत्तमं मिउत्तं समुत्तम अजवभाव सनुत्तम समझतरसासंगपरिचार्ग सम्वृत्तम सपनानंतरसुवालसपिहातपोरचीसम्मकतवचरणाणुहागाभिरमणं सप्तमं सत्तरसचिहकसिगसंजमानुद्वाणपरिपालणेकपडलक्स सनुत्तमं समिारणं एकावहियं अणिगृहियालबीरियपुरिसकारपरकमपरितोल च समनुत्तमसमायज्माणसलिटण पावकम्ममललेवपक्वालणति सनुत्तमुत्तमं आकिंचर्ण सबुत्तमं परमपवित्तसाभावंतरेहि मंसुचिमुबसम्बदोसविष्णमुकनवगुत्तीसणाहजहारसपरिहारहाणपरिवेदियसरबरपोचमपयधारणति, तो एएणं पे सत्तमखंतीमपजजपमुत्तीतपसजमसचसोयाकिंचनसुदरभवयधारणसमुहाने व सनसमारंभविवजणं, तओ य पुडविडगामनिवाउपगफापितिचापंचिदिया तहेव अजीवकायसरंभसमारंभारंभाचं अचमणोपकायतिएण विविहंतिपिहेण सोइंदियादिसंवरणआहाराविसमाविष्पजदत्ताए वोसिरणं, तओ य अ(मलिय)द्वारससीलंगसहस्सधारितं अमलियबहारसतीलंगसहस्सधारणंच अस्खलियजसंडियअमिलियअधिराहियम११२५ महानिशीधरोदसूर्य, manuf-R मुनि तीपरनसागर दीप अनुक्रम [४६७] अत्र द्वितियं अध्ययनं समाप्तं अत्र तृतीयं अध्ययनं- "कुशील-लक्षणं" आरब्ध: ~14~ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [३], ------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [११] +गाथा:||१५|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत [११] गाथा ||१५|| ठमाणगापारविचितामिगहनियाहर्ण, जो य सुरमयतिरियाईरियपोरपरीसहोवसम्माहियासणं संमकरणेणं, तओ य अहोरायाइपडिमासं महापयर्स तओ निपाडिकम्मसरीस्या निप्पडिकम्मसरीरलाए व सुकमाणे निषकंपत्त, तो ब अण्णाइभवपरंपरसंविषअसेसफम्महरासिवर्ष अणतनाणदसणधारितं च चउगइभवचारगाओ निष्केट सबबुकस्वविमोक्स मोक्खगमणं च, तत्व अदिजम्मजरामरणाणिसंपनओगिट्टविओयसतापुष्पेगावसहमक्खाणमहचाहिनेयमारोगसोगदारिहदुक्खमययेमणस्सन,सओएगीवियं अतियं सिक्मयसमक्खयपूर्व परमसासयं निरंतर सघुतमसोवरवंति, वा सव्यमेवयं नाणाओ पपनेजा, नागोयमा एगनियतिषपरमसासतपुजनिरंतरसम्वृत्तमसोक्सखुणा पदमयरमेन नाचायरेणं सामाइयमाइयटोगबिंदुसारपसावसाणं दुबालसंग सुबना कालंबित्यदिजनविहिणाबहाणेणे हिंसादियं च लिविहंनिविहेण पटिनेण य सरर्वजणमनापियक्रसरागुणर्ग पयोदघोलपदयाणपुचि पुग्वाणुपुयिवाणाणुपुच्चीए सुपिसदं अचोरिकापण एगनेण सुविनेयं, तेच गोयमा अणिहगणोरपारसुविग्निचरमायहिंपिय य सुदुरपनाह संयन्टसोक्सपरमहउभूयं च, नस्सप सपनसोक्स भूयाओ न इहदेवयानमोकारविरहिए कई पार गण्डेजा. इडईययाणं च नमोकार पंचमंगलमेय गोयमा!, णो गमनति, ना णियमओ पंचमंगलसेन पटमं ताव विणीवहाणं कायध्वनिाश से भय ! कयराए विहीए पंचमगलस्स गं विणोपहाणं काय?. गोषमा! इमाए विहीए पंचमंगलस विणओबहाणं काय जहा- सुपसत्ये पेव सोहणे लिहिकरणमुहमस्खनजोगलमाससीचले विपमुक्जामाइमपासंकेण संजायसदासंवेगमलिय्यत्तरमहंतुलसतगृहजरमसायागयभत्तीपरमाणपुय्यं णिणियाणं दुबालसभनाहिएणं चेहयालए जंतुपिरहि ओगासे भत्तिभरनिम्मरूदधुखियससीसरीमावलीयफाडण(य)यणसययनपसनसोमचिरदिट्ठीणपणपसंवेगसमुच्छलतसंजायपहरयणनिरंतरत्रचितपरमसहपरिणामविसेमावासियजीवनीरियाणुसमयविवडेलपमोयमुबमुनिम्मलाभिरपरंतकरणेणं खितिणिहियजाणिसिउत्तमंगकरकमलमजलसोहंजलिपडेण सिरियसभाइपवरवस्थम्मतिथयरपदिमाधिविनिवेसियणयणमाणसेगम्मतगयनापसाएर्ण समयादवपरितादिगुणसंपञोपवेयगुस्साहस्थाणुडापकरणेकपडलक्सनचाहियगुरुतयणविणिग्गय विणयादिपरमाणपरिओमाणुकपोकलावं अणेगसोमसतावेगमहापाहिवियणाचोरक्रसदारिदकिलेसरोगजम्मजरामरणगनवासाइनसायमापमाहनीमनवोदहितरडगभूयं इणमो सबलगममज्मवत्तगस्स मिचहत्तदोसोवहयविसिहादीपरिकप्षियकुमगियापहमाणसेसउदिईनजत्नीविदसणिक पचासपोरस पंचमंगलमहामुयसंधस्स पंचनायगरापरिक्सित्तस्स पवरपरयणदेवबाहिडियस्स विपदपरिस्टिमेगालागसपरस्परिमाणं अर्णतगमपलवस्थपसाहम सामहामंतपयरपिजाणं परमपीयभूयं नमो अरहनाणति पदमनाय अहिजेया, नदियहे पापंक्तिदेणं पारेया, तहेव बीयरिणे अगाइसयगुणसंपओक्वेयं अगंतरमणियत्यपसाहर्ग अतस्तेणेव कमेणं उपयपरिचितगालावगपंचपसरपरिमार्ण नमो सिदार्गनिवीयजावणं अहि. जेयां, नदियहे य आयंबिलेण पारेया, एवं अगतामगिएगेच कमेणं अर्गतकनत्यपसाहन लिपपरिमिान्नेगानामा सत्तक्लरपरिमाणं नमो आयरियाणति जयमजायणं आयचिरेण अहिनियत्रं, नहा अर्गतरुनाथपसाहम तिपयपरिचिन्नेगालाच सत्तरखरपरिमार्ग नमो उमझायाति पाउत्थमज्झवर्ण अहिलेय दियहे व आयंबिलेण पारेय, एवं णमो लोए सरसाहणंति पंचममापर्ण पंचमदिगे आयचिरेण, नहेब नयवाणुगामियं एकारसपयपरिचिन्नतितयालापयनित्तीसक्खरपरिमाणं 'एसो पंचनमोकारो, सापाषपणासगो । मंगलार्णन सोसि, पर्म हद मंगसमितिचूतंति हसत्तमइमविगे नेणेच कमविभागण आयचिडेहि अहिजेया, एनमेय पंचमंगलमहासुवासंध सरचन्नपषसहिय पयस्वरपितुसत्ताविशुद्ध गुग्गुणोपयगुरुवाई कसिणमाहिजित्ताणं नहा काय जहा पुत्राणुपुबीए पच्छापुत्रीए जणागुपुत्रीए जीहगे नरेजा, नओ नेणेवातरमणियतिहिकरणमहननक्सत्तजो. गलगलसीचरजंतुविरहिमोगासावालगाइकमेणं अहममनेणं समजाणापिऊण गोयमा ! महया पर्वण सुपरिपूर्त मिळणं असंदिदं सुनत्यं अगहा सोऊगावधारेया. एवाए विहीए पंचमंगलसणं गोयमा ! पिणओपहाणी कायत्री १२॥ से भय ! किमेयस अतिचिंतामणिकप्पभूयस्ता पचमंगलमहासयक्संचरस सुत्तत्व पन्नन?, गोयमा ! एमाइयं एयरस अचितचितामणिकप्पभूयस्स णं पंचमंगलमहास्यासंघस गं मुलाय पण्यान, जहाजे एसपंचमंगलमहासुपरसंचे सेगं सबलाममंतरोचक्लीनिललेटकमहमयरंदव्य सध्यलोए पंचस्थिकापमिव जहत्यकिरियाणुराया(गए)सम्भूयगुणकित्तणे जहिष्टियफलपसाहचेच परमचुदवाए.साय परमई फेसिकायच्या सध्यागुतयाण, सध्यजगुत्तमुनमे यजे केई भूए जे केई मषिरसंति से सने पेय, अरहनादत्री ने चेब, णो गमन्नेति,ते य पंचहा-अरहते सिद्ध आयरिए उबाए साहनी य, तख एएसि पेप गम्मत्वसम्भाची मोजदा-सनरामरामरस में सम्परसेव जगस्त अहमहापारिहराउप्पाइसओक्सनिसर्व अणणसरिसमचिंतमाहप केवलाहिडियं परस्नम अरवित्ति अहंता, असेसम्मक्लएणं निहाभयंकरताउन पुणे नतिजमंति उपचतिमा अहंतापा, गिम्महियनिहवनिहलियवितीयनिहविषअभिभूयसुदुजयासेसअट्ठपयारकम्मरिउनाओ वा अरिहंतति वा. एवमेते अणेगहा पम्नविनंति पकषिजति आपपिजति पविजलि सिनंति उपदसिजनि. हा सिदाणि परमाणंदमहलपमहाकाताणनिस्वमसोक्साणि पिणपसुकमाणाइअचितससिसामत्यओ सजीवपीरिएणं जोगनिरोहाणा महापयत्तेणिति सिद्धा, अप्पयारकम्मपतएण या सिदं सज्झमेलेसिति सिदा, सिय मायमेसिमिति वा सिंजा, सिबे निहिए पहीगे सबलपत्रओयणवायकचमेलेसिमिति सिद्धा, एवमेते इत्पीपुल्सनससलिंगाणलिंगगिहिलिंगपत्तेययुबमोहिय जाव कमावयसिहाइभएहि अणेगहा पन्नपिजतिनहा अहारससीलंगसहस्साहिदियत छत्तीसाइविहमायारं जहडियमगिलाए अहन्निसामुसमय आयरतित्ति पपत्ततिति आयरिया, परमप्पणो अहियमावरतित्ति आपश्चिा, समसत्तस्स सीसगणा वा हियमायाति प्रायरिया, पाणपरिचाएऽपि उ पुढवादीण समारंभ नायरंति णारभति नाणुजाणति वा आवरिया, सुट्टमवरदेऽपिन कस्सई मगसावि पापमावरतित्ति या आयरिया, एपमेने गामठवणादीहि अणेगहा पनचिजति, नहा सुसंडासपदारे मगोषकायजोगत्तउक्टले विहिणा सर्वजणमताबिंदुपयवरपिसुबदुवालसंगमुयनाणज्झयणझावगं परमपणो अ मोक्योजायं झायतित्ति उवज्झाए, थिरपरिचियमणंतगमपजवत्यहि वा दुवालसंग सुयनाणं चिति अगुसरंति एगमामा११२६ महानिशीथच्छेदसूप -३ मुनि दीपरतसागर दीप अनुक्रम [४९२] ~15~ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [३], ------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [१३] +गाथा:||१६|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं TAS प्रत सत्राक [१३] + * गाथा ||१६|| सामानिलिया उपकाए, एवमेतेहिं (भेएहिं) अणेगहा पन्नचिजति, नहा अर्थतकहउम्गग्गयरपोरसवचरणाई अणेगवयनियमोपचासनामाभिमाहविसेससंजमपरिवालणसम्मंपरीसहोवसम्माहियासण साक्वविमोक्वं मोकसं साहयतिलि साहनो, अयमेव इमाए बुलाए माविजा-एतेति नमोकारी एसो पंचनमोकारो, किं करेजा.सा पाच-नाणावरणीयादिकम्मविसेसन परि(अपरिसे मेणं दिसोदिसं गासया सापापप्पणासमो, एस पाए पढमो उसओ, एसो पंचनमोकारो सापाचपणासणो किविहो उ१. मंगो-निनामसहसाहणेकसमो सम्मईसणाइाराहो अहिंसालक्समो धम्मो न मे गाएजनि मंगल,ममं भवाउ संसाराभोगलेला ताजा वा मशालं, बदपुड निकालपट्टप्पगारकम्मरासि मे गालिजा-विलिजयजनि पा मंगल, एएसि मंगलाणं जमेसिन मंगलार्ण ससि किए, पदम आदीए अरहताणं थुई चेष हवह मंगर, इनिएस समासस्थी, विम्यान दम तनहा-नेणं कानेणं | बने समएण गोयमा ! जे के पुश्वामियसहस्बे अरहते भानते धम्मतित्वगरे भवेजा से णं परमपुजापि पुगयो भवेजा,जओ ण ते सोऽपि एपलक्लगसमभिए भवेना, नजहा-अचिंतमपमेयनिश्वमाणाससिपवरयात्तमः गुगोहाहिडियनेणं तिहंपिनोगाणं संजनियस्यमहतमाणसादे, तहापजमंतरसंचियगुरुपपुष्णपभारसविद्वत्ततिस्थयस्नामकम्मोबएणं दीहरगिन्हायरसंतापकिनसिहिउलार्णव पदमपाउसवारामस्वरिसनपणसंपायमिव परमहिओपएसपयाणाइणा पगागदीसमोहमियानापिहपमायबुद्धकिलिङ्कापसायाइसमज्जियासहपोरवावकम्माचपसंतापरस पिण्णासगे भत्रमना सान्न अणेगजम्मनासविडनगुरुयशपामारासपचारेण समजियाउलबलबी- रिएसरियसत्तपरकमाहिहियतण मुकंतदिनचारपायगृहमारुमाइसएर्ण सपलगहनक्खनयंदपतीण मृरिए इस पयंहप्पयावदसदिसिपयासविष्फुरतकिरणपामारे गियतेयसानिपठायो सयलाणवि विजाहरणरामरीणं सदेवदाणपिदाणं । सुस्लोगाणं सोहम्मकनिदिमिलापत्ररूपसमुश्यसिरीए साहावियकम्मलयजणियदिवकयपपरनिरुतमापनसरिसविसेसाइसराइसवलवणकलाकलानिन्धरस्परिदसणेणं भवणपदवागमनरजोइसपेमाणियाहमिदसईद राकिनारगरपिनाहरस सरासरस्साविण जगस अहो ३जन अविहपुर्व विद्वमम्हहिं णमो सविससाउलमहंतापितपरमच्छरपसंदोई समस्याटमेवेगहसमुइय विद्वति तपसणउप्पमपणनिरतचहलपमोचा चिनयनो सहरिसपीवामुरायासपनि छ प्रमैनाणुसमयअहिणवाहिकपरिणामविससनेणमहमहंनिजपिरपरोप्पराणं विसायमुरगयहहहधीधिरत्युनधनापुनारयमिइणिविरजनाणगमणतरसपहियहिययमुचिहरसुलदयणम्पुणसिदिलियसगनचाचणं पसष्णो उ में सनिमेसाइसारीरिवाचारमुक केवलअणोपन्यासक्खरतमंदमददीहहुंकारविमिस्समुन्दीहाउपहलनीसासगणं अभिनिविबुद्धीसुणिच्छियमणसणं जगस्स. कि ने नवमणुचिमो जेनेरिस पनरगिरे नभिजलि तम्माबमणस णं देसण घेत्र गियणियवच्छत्यसनिहिजततकरयालण्याइवमहतमाणसचमकारे, ना गोयमा ! र्ग.एषमाइजणतगुणगणाहिड्डियसरीराण लेसिं सुगहियनामयजाणं जरतार्ण भगताण धम्मनिन्थगराणं संनिए गुणमगो. हरयणसघाए अहग्निसागुममय जीहासहस्सेणंपि वागरंतो सुबईपि अन्नवरे वा के पउनाणी महाइसई य छउमल्ये सयंभुरमगोयहिस्स इब नासकोटीहिपि गो पार गच्छेजा, जीर्ण अपरिमियगुणरपणे गोयमा अरहते भगवते धम्मस्थिगरे भनति, ता किमित्य भन्नड, जत्य यग निलोगनाहाणे जगगुरूणं भुषणेकर्षचूर्ण लोकतम्गुणर्खनपरचम्मनित्थंकराणं कई मुरिदाहपायगुग्गएगदेसाउ अणगगणगणाटकरियाउ भनिभरनिन्मरिकारसिपाण ससिपि वा सुरीसाणं अणेगमतरसंचियणिकम्मरासिजणियदोगवतोमणस्सादिसपलदुक्सदारितकिलेसजम्मजरामरणरोगसोगसंतानुप्रेयवाहियणाईण सबढाए एगगणसानभागमेग भणमामाण जमगसमयमेव दियरको अणेगगुणगमोह जीह विफुरति ताईपन सका सिदावि देवगणा समकालं माणिकणं, किं पुण अकेवली मंसचक्मणो ?, ता गोयमा! गं एस इत्यं परमन्ये वियागेयो, जहाजा निन्यगरा संनिए गणगजागोह तिपयरे चेष वायरति, म उण अमे,जओ सातिसया तेसि भारती, अहचा गोचमा किमित्व वभूयवागरणेणं ,सार मथए। जहा नामपिसवलकम्महमलकरहि विषमुकाणं तिविधियचाठमाण जिगवरियाणजो सरह ॥१६॥ सिविहकरणोपउनो खणे खणे सीलसंजमुजुत्तो। अविराहियषयनियमोसोऽपि हुआइरेण सिवरेजा ॥१७॥ जो पुण बुहाउविग्गो सुहतण्डार अलिक कमलवणे यययुमंगलजयसहवाबडो झणाणे किंचि ॥१८॥ भनिभरनि भरो जिणचरिदपायारबिंदजगपुरजो। भूमिनिषियसिरो कयंजलीबाबडो चरित्तहो॥१९॥ एकपि गुणं हियए धेरैज संकाइसबसम्मत्तो । अक्संडियनयनियमो नित्ययरनाए सो सिजने ॥२०॥ जेसिचणं सुगहियनामग्गहणाणं तित्ययराणे गोयमा: एस जगपाबडमहच्छेश्वभूए भुवस्स विषपायडमहंताइसयपवियंभो, तंजहा-सीणट्टपायकम्मा मुकाबहदुस्लगम्भवसहीणं । पुगरपिज पत्तकेवलमणपजपणाणपरिननणू ॥२१॥ महजोहणो बिबिहावमयरमवसागरमा उत्रिमा । दणऽरहाइसए भवनमणा खर्ण अंति॥२२॥ महता पिउताब सेतपागरण गोयमा ! एवं वधम्मतिस्थगरेति नाम सबिहियं पवरक्रसबहन तेसिमेष सुगहिवनामधिजाण भुषणपंपूर्ण जरहंतागं भगवंताणं जिमयरिंदाणं थम्मतित्वका उने, ण जन्नेसि, जओ यगजमतरपुडमोहोचसमसंवेगनिवेयजुकपाजत्वित्ताभिवतीसहसपपरसम्मईसणुतसंतविरियाणिगृहिय उम्गकट्टपोरफरतपनिरंतरजियाउनुगपुन्नबंधसमुदयमहाभारसचिटतउत्तमपवरपपिनविस्सकसिणधुणाहसामिसालअर्णतकालपत्नभवभाषणच्छिन्नपावपंधणेकअदिहातिस्वयरनामकम्मगोयणिसियसुकतदिनचाररुपनसविसिषयासनियमहलपसणसहस्समंदियजमुनमुनमसिरीनिवासपासवाकी इच देवमणुयविद्यमेततापर्णतकरणलाइयचमकनवणमाणसाउलमहंतचिम्हषपमोयकारया असेलकसिणपाचकम्ममलकलंकविष्पमुझसमचउरंसपवरपदमवजारिसहनारायसंघयणाहिडियपरमपचिनुनममुनिधरे, जे व भगत महायसे महासते महाणुभागे परमिट्टी सदम्मतित्यको भवंति।१४अन्नंच सयसनरामरतियसिंदसुंदरीरूपकंतितावन्न। सपि होज जाएगरासिण संपिण्डिय कहानि॥२३॥ ते बजिमयलणंगुहाकोहिदेसेगलक्सभामस्सासनिमिनसोहा जह कारउ ऊंचणगिरिस्सा२४ासि, 'अहवा नाऊण गुर्जतराई अन्नेसि ऊण सपत्यानित्यवरगुणागमगंतमागमरम्मतमन्नस्थ ॥२५ाज तियणपिसयल एगीहोऊगमुम्भमेगदिसामागे गुणाहिलोऽहं निश्चयरे परमपुणे ॥२६॥ ति, तेचियअदि पृए अरिहं गहमइसमन्ने।जन्हातम्हा ते चैव भावओगमह धम्मविस्थपरे॥२७॥ लोगेविगामपुरनगरविसबजनवयसमग्गभरहस्साजो जित्तियस्स सामी वस्साणनितेकरेति॥२८ानवरं गामाहिबई ११२७ महानिशीपच्छेदसूE, -३ मुनि दीपरनसागर आ ** दीप अनुक्रम [४९४] * ऊ RATOPA ~16~ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [१], ------------- उद्देशक [-1, ---------- मूलं [१५] +गाथा:||२९|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत बनि समाजानेजा, मोधमा गावियोवण उम्ममापवतणसामाणबुडीय [१५]] गाथा ||२९|| मुद्र सतहे एकमाममननाजो। कि देजा जरस नियगे तेलोर एत्तियं पुर्व ॥२९॥ चकहरो लीलाए सुछ सुपि दानामन्ने। तेणयकमागयगुरुदरिहनाम समासेन ॥३०॥(सयलबंधुवगरसति) सो मंना पकारं चकहरो मुख इनणं कले। दो निश्पयरे उग जगा जहिछियहफलए॥३१॥ तम्हाज इंदहीवि खिमा एमबलक्सेहिसाणुगगहियएहि उत्तमंन संदेहो।३सालोसपलदेवदामचगहरिचसरिरमादीणं तित्ययरे पुजयरेविय पार्य पणासंति॥३॥ तेसि यनितोगमहियाण धम्मनित्यकरण जगगुरुर्णाभारयणदावणदेन दुइवर्ण मणिय सामाषण चारित्नाणुहागकरमाधोरतपचरणादायक वित्याविरयसीलपूयासकारवाणादी माना गोषमा : एसेऽत्य परमात्ये जहा भाषणमुग्मविहारया यरलवर्णतु जिणपूया पिढया जाईण दोभिपि मिहीण पदमबिय पसरया का एबंचगोयमा ! केई अमुणियसमयसम्माये जोसमविहारी नियवासिणी अदिद्वापरयोगपचाए सयंमतीइड्दिरससायगारवाइमुच्चिए रागदोसमोहाइंकारमयीकाराइसुपडिमडो कसिगसंजमसम्ममुहे नित्यनिर्तिसनिधिणजकलणनिकिये पावायरमेकअभिनिविदी एनतर्ण अइडरोहकाभिमाहिए मिच्छरिदियो करसन्नसावनजोगपचक्याणे विणमुकासेससंगारंपरिन्महे तिनिहंतिबिहेणं पतिपयसामाइए य दवताए, न भावनाए, नाममेव मुंडे अपमारे महत्वषधारी समणेऽपि मपिताण एवं मन्नमाणे सव्वहा उम्मन्ग पवनंति, जहा किल अम्हे जरइंता भगवंताचं गंधमापदीपसमजणोचलेषणविचित्तवत्यालिपाइएहिं पूयासकारेहि अणुदियहमभवर्ण पकुवाणा तित्युच्छप्पर्ण कोमो, नपणो तहति, गोवमा ! वायाएनि गीण तहलि समणुजाणेला से भय केणं अहण एवं पुथा जहाणंच गोभ नहत्ति समजानेजा, गोषमा ! वयस्थाणुसारेणं असंजमचारोणं च मूलकम्मासनाओ य अग्मनसायं पडुब भूलेयरसहासहकम्मपयडीधा सम्बसाचनविरयाणा व पयर्भगो परमंगणंच आणाकमे आणाइकमेणं तु उम्मग्गगामिनं उम्मन्गमामिनेणं चसम्मग्गविपरोपर्ण उम्मन्गपत्तणसम्मम्गविप्पलोवणेणं चलाईर्ण महनी आसायणा, मोअअर्णवसंसाराहिंडणं, एएण अद्वेगं गोयमा ! एवं बुबह जहाणी गोयमा ! णो ण तहनि समजाणेजा ।१५) 'दबत्यवानो भावत्य तु दबत्यो बहुगुणो भक्ट वमहा। अहमहुजाणमुखीय उकायहियं तु गोयमाऽण्डे ॥७॥ अकसिमपपत्तगाणं विस्याविरयाण एस खलु जुनो। जे कसि मसंजयधिक पुष्फादीयं न कपए नेसिनु॥८॥ कि मन्ने गोपमा एस. पतीसिंदाणुचिहिए। जम्हा नन्हा उभयपि, अशुद्धजेत्यं नुपुजासी ॥९॥ विपिओममेवेत लेसिं, भावत्ववासभवो नहा । भाषषणा य उनमय (सन्न-स मरण) उपाहरण नहेच याचकहरमाणुससिदत्तदमगादीहिं विगिदिसे। पुछने मोयमा ! ताप, जं सुरिंदेहि मत्तीओं ॥१॥सविडिवए अगम्यसमे, प्यासक्कारेय कए। ताकितं सव्वसाकज निविह रिएहिणुदिनं। २॥ उपाहु सनचामे, सहा अविरएमागणु भयवं! सुरवरिंदेहि समयामेसु सबहा ॥३॥ अविरएहिं सुभत्तीए. पूयासकारे कए।ता जाइएवं नओ बुजा, गोयमेम नीसेलयं, देसक्रिय अचिस्यात, पिणिओगमभवत्यपि सयमेव सत्रनित्यकोहि ज गोयमा लमायरिया कसिमहकम्मरसयकारयं तुनावल्पयमणुढे ॥५॥ मवती उगमागम संतुफरिसमाईपमरणं जन्य । सपरऽहिओवरयाणण मणपि पपनए तस्य ॥६॥ता सपाऽहिजोपरएहिं उपयरहिट सबहा गेसिया सुपिसेस। जे परमसारभूयं विसेसर्वतयअणुदेयं ॥ ७॥ता परमसारभूयं विसेसवंतच अपनायगस। एतहिय पत्यं सहापई पयपरमत्थं ॥८॥ जहा- मेरुतुंगे मनिगममंडिएककंचणमए परमरमे।नयणमणागंजयरे पभूयविमाणसाइसए॥९॥ मुसिलिइपिसिसुलबुलंदमुविभन्न मुददमुगिसे। बहुसिंचयसपटाचयाडले पवस्तोरनसणाहे ॥५०॥ सुविसाल मुविष्टिले पाए पए परिचय(ज्य)सिरीए। मपमपमपैतडनानगरकपुरचंदणा मोए ॥१॥पपिहापिचित्तमपुष्कमाइपृयामहे सुपए या गचपणचिरणाजयसयाउले महरमुस्लमहाले ॥२॥ कुटुंदरासयजणसयसमाउले जिणकहाखित्तचिते। पकहतकहगणतन्त(च्छरा)गंधपतृरनिम्पोसे ॥३॥ एमादिगुणानए पए पए सामेानीय। नियभुवचिदनपुणजिए नायागरण प्रत्येण ॥४॥ चणमणिसामाणे यंमसहस्मृसिए मुरम्मतले। जो कारपेज जिणहरे नजोपि तवसंजमो अगंतगुणी ॥५॥ति, नपतंजमेग बहुभपसमनिय पात्र कम्ममलनेय। निडोपिऊन अइरा अर्गनसोक्सं पए लोकसं ॥६॥ काउंपि जिणायपणेहिं मंडियं सामेाणीवह। दागाइचउकेणं सदनि गच्योज अभ्यर्ग ॥ ७॥ण परजो गोयम ! गिहित्तिा जाता लवसनममुररिमाणवासीवि परिवहति मुरा। सेस चिनिन संसारे सासर्य कपरं? ॥ ८॥ कर ले मना मुक्तं सुचिरंगवि जय एक्समलिया । जंच मरणाचसासु बेक्कालीय तुच्छतु ॥९॥सवेणं चिरकालेग जसपलनरामराम हाइ सदन पर सुबमभूय मोपखसुखस्स अगंतभागेपि ॥६०॥ संसारिचसोक्सान सुमहताणपि गोषमा : नेगे। मज्जो दुक्ससहस्से पोरपडेग पुर्जति ॥१॥ ताई वसावजओपएणण याति मंडीए।मणिकणगसलमयलोदगंगाली जहर मणिचूया ॥२॥ मोक्समुहल्स उधम्म सदेवमणुषासुरे जगे इत्यं । तो मार्डिग सका नगरपुणे बहेश्य पुनियो ॥३॥काले भन्नड़ पुन्न सुचिरेणवि जस्स दीसए अंत। जे च विरसाचसाणं जसंसारागुबंधि? शान मरविमाणविद चिनियपपर्ण च देवलोमाओ। आइसिकयचिय हिययं जनवि सयासिकार जाइ ॥५॥ नरएम जाई आरस्सहाई एक्वाई परमतिफ्लाई । को बन्नेई नाईजीनंतो वासकोडिपि ॥६॥ता गोयम : वसचिहधम्मपोलसजमाणुहागला भावत्वमिति नाम नेणेष सभेज सक्सय सोक्स ।। आति, नारगभवतिरिवमने अमरमचे सुरवहत्तणे पानि । नो लम्भा गोयम! जत्व पातत्यसमवजम्मे॥८॥ सुमहचंतपहीनेसु संजमावरणनामवेजे। ताई गोयम ! पाणी भावत्ययजोग्णयमुनेद ॥९॥ जम्मंतरसपियमुरुपपुलपम्भारसंचिढत्तेणं । मागुसजमेण विणा गो लम्भइ उत्तम पम्मं ॥७॥ जस्साणूभापमो सुपरिवस्स निस्साएदभरहियस्सा लम्मइ अउलमत अपवयसोव निटोयो॥१५ बहुभवसंचिषतुंगपापकम्महरासिडहणई। लवं माणुसजम्म विवेगमाईदि संजुनं ॥२॥ जो न कुणा अत्ताहियं सुयाणुसारेण आसपनिरोई। अलिगसीलंगसहस्सधारणेनं तु अपमते ॥३॥ सो दीहरजोराषिपोसुक्सग्निदाचपगलिओ । उचायसंसतो अगंतनो सुबहुकाले ॥ ४॥ दुर्गधामेशविलीणसारपित्तोजासिमपतिइत्ये। वसजलसपूपदिणचिधिचिले गहिरचिक्सहो ॥५॥ कदकाफदतचलचरचलसदलबलदलस रजतो । संविडियंगमंगो जोगी जोगी बसे गम्ने । एकेकगम्भवासेस, जैवि पुणरवि ममेज ॥६॥ता संतात्रेयगजम्मजरामरणगम्भवासाई । संसारियदुक्खाणं विचित्तरूवाण भीएणं ॥ ७॥ भावत्यवाणुभा असेसभषमय सर्वकरं नाउँ। तत्वेव महता उजमेण ददमयंत पपइयां ॥८॥ इय चिनाहरकिचरनरेण ससुरासुरेणापि जगेण। संधुचते दुविइत्यवेहिं ते तिहुयणुकोसे ॥९॥ गोषमा ! धम्मतित्वको जिणे अरिहंतेत्ति, अह तारिसेचि (२८२) HR१२८ महानिशीथच्छेदसून मुनि दीपरनसागर दीप राम सामयिक मसूर को अनुक्रम [५१०] 2014 ~17~ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [१], ------------ उद्देशक [-], ---------- मूलं [१७] +गाथा:||८०|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं भने उज्यालय देवलोगमणुपता गम्भावरहीए असहमवाय निष्यत्तती जहव मातीमा बाहिनियोस। जथला प्रत महतभत्तीए ॥४॥ अमयाहार भागी लाओ सिद्धत्वच व्यत्य जम जम्हाल मेरनिरिसिहर जसवं निष्यत्तती जाहेब भलीए [१७] काकासम्मकाजाला गाथा इडीपवित्थरे सयलतियचाउलिए। साहीणे जगबंधु मणसावि जे खणं लारे ॥८॥ सिं पस्मीसरिय करसिरीयाणवलपमाणं च। सामत् जसकित्ती सुरलीगनुए जहेह अनयरिए ॥१॥जह काऊमममने उगता देवलोगमणुपते। तित्ववरनामकम्मे जह बर्व एगाइचीसचामेस ॥२॥जह सम्म परी सामधाराहना य अन्नमये। जातिसताओ सिवस्थप. रिणीचोदसमहासुमिमलों ॥३॥जह सुरहिगंधपक्लेव गम्भवसाहीए असहमनहरणं। जह सुरनाहो अगुडपल्यगलियं महंतमत्तीए ॥४॥ अमयाहा भत्तीए देश संधुना जाच य' पथओ। जा जायकम्मविनियोगकारियाओ रिसिकुमारीओ ॥५॥सर्च नियकत्तळ निव्वतंती जब भत्तीए । बीमपुरवरिंदा गस्वपमोएण समरिबीए रोमंचचपलाय।। मस्तिष्मरमायसगता है। मते सकयत्वं जर्म अम्हाण मेसमिरिसिहरे ॥७॥ होही समकालियमसरसमीरखंबहिनियोस। जयसरमहलमंगलकार्यशाही जायसीसहित 100 बहसरहिगंधवासियकंचनमणितुंग(स्वण)कलोहिं । जम्माहिसेयमहिम करेंति (जह) जिगकरो गिरि चालें ॥९॥ जहद वापरणं भय वायस अहरितोचि । जहगमा कुमार (परिणे बोहिति) जहम लोगंतिया देवा ॥९॥जह क्यनिक्समणमहं कति सड़े मुरासुरा मुश्या। जह अहियासे घोर परीसाहे दिवमाणुसतिरिच्छे ॥१॥ अह पणघाइचाउक (कम्म) हा घोरतबझानजोगअन्गीए। लोगालोमपयासं उगाए जहब केवल नाणे ॥२॥ केवलमहिमं पुणरवि-काऊणं जह सुरासुराईया। पुच्छति संसए धम्मणी इतमचरणमाईए॥३॥ जहाको जिगिंदो सुरकयसीहासपोचविहो पात पडचिहरेचनिकायनिम्पियं, जह पवरसमक्सर, तुरियं करति देवा, जं रिवीए जग तुला ॥४॥जस्य समोसरिनो सो भुवणे-- गुरु महायलो जरहा। बहमहपारिहस्यसुपिंधियं हवय तित्यियं नाम ॥५॥जह निहला असेस मिळतं विकर्णपि भााण । परिबोहिङण मग्गे ठवेन जहमणहरा दिवस १६. मिळति महामइगो सुत्तं संपति जहच य जिनिंदो। मासे कसिणं अत्यं अर्गतगमपज्जवेहिं तु जा सिजा जानाहो महिमं निशाणनामियं जहय । सजेवि सुरवरिंदा असमय तह विमोचंति ॥८॥ सोगत्ता पगलंतसुधोयगंडवलसरसापचाई । कलुणं विलासर हा सामि! कया अमाइत्ति ॥९॥ जा रहिगंधगम्भीणमहंतगोसीसषणमा। कठेरि विहिपूर्व सकारं सुरक्रा सवे ॥१०॥ काढणं सोगत्ता सुधे बसदिसिपहे पलोचना । जह खीरसागरे जिणवराणं (अट्ठी) पक्वालिऊणं च ॥१॥ सुरलोए नेऊणं आलिंषेऊण | पपरवगरसेणं। मगरवारियायचसयपत्तसहस्सपचेहि ॥२॥जह अचेऊण सुरा नियनियमवणेसु जहरूष युगति ( सर्व महया चित्वरेण जरहंतचरियाभिहाणे) अंतकटवसाणं त. समझाउ कसिण विनेयं ॥३॥ एत्य पुण जे पायं न मोनुं जद मज सायं। हवा असंबद्धरुयं गंधस्स य मित्यरमणतं ॥४॥ एवंचि अपत्यावे सुमहतं कारणं समुपदई । बाग- रिय ते जाण मनसत्ताऽणुग्गहाए । जहमा जत्तो जत्तो भक्सिजइ मोयगो सुसंकरिओ। तत्तो तत्तोषिजणे अहमुख्यं माणसं पीई ॥ ६॥ एवमिह अपत्याधि मन्तिभरनिष्मराम परिबोस । जमाया गुरुवं जिमगुणगणेवरसक्खित्तचित्ताणं ॥७॥ एवं तुजं पंचमंगलमहामुयक्रसंघस्स क्सा तं महया पर्वघेणं अर्णतगमपनवेहि सुत्तस्स य पिहभूयाहिं निजुत्तीभासचुणीहि जहर वर्णतनागदसणघरेहि तित्पयरेहि कालाणियं तहेच समासो क्लाणिनंत आसि, अहमया कालपरिहाणिदोसेमं ताउ निजुलीभासचुलीओ पोथिबाजो।१६इमओय वर्वतणं कालसमए महिड्डीपते पयाणुसारी बइरसामी नाम दुवालसंगसुयहरे समुप्पणे, वेगेयं पंचर्मगलमहासुयक्खंघस्स उद्धारो मूलमुत्तस्स मज्झे लिहिजो, मूलसुन्तं पुण सुत्तत्ताए गगहरेहिं अत्यत्ताए अरहतेहिं भगवतेहिं धम्मतित्वगरेहि तिलोगमाहिएहिं वीरजिणिदेहि पन्नवियति एस कुइटर्सपयाजो।१७। एत्य य जत्थ पयंपएणाणुलम् सत्तालावर्ग म संपमा वत्य सत्य सुपरहि कुलिहियदोसो न दायत्रोत्ति, किंतु जो सो एयरस अचिंतचिंतामणिकप्पभूयस्त महानिसीहसुयक्संचरस पुशायरिसो आसी ताहिर संडावंडीए उहियाइएडिहिंगहरे पत्तगा परिसडिया तहाचि अर्बतसुमहत्याइसति इम महानिसीहसुवक्त कसिमपनवणस्स परमसारभूयं परं तत्तं महत्वंति कलिऊणं पश्चात्तर्ण बहुमत्रसचोक्यारिकार्ड तहा य आयहिबद्याए आवरियहरिमदेणं जे सत्यायरिसे बिड़ न स समतीए साहिऊर्ग लिहियति, अन्नेहिपि सिबसेणदिनाकर पुरवाइजक्ससेणदेवमुत्तजसकवणवमासमणसीसरनिगुतणेमिचंजिणवासमणिसमगसबसिरिपमुद्देहि जुगप्पहाणसुबहरेहिं बहुमन्नियमिणति। १८ा से भयवं! एवं जहुचविणओबाणेच पंचर्मगलमबासुपसंचमविनिताण पुराणपुषीए पच्छापुचीए अणाणुपुत्रीए सरखंजनमत्तावितुपयक्सरविमुद चिरपरिचियं काऊ महया पर्वधे सत्तत्वं च पिनाय सओ व किमहिनेजा , गोयमा ! ईरियाचहियं, से मयर्थ! केम बढेम एवं सुचा-जहाग पंचमंगलमहामुयसंघमडिजिताणं पुणो ईस्थिावहियं अहीए', गोषमा! जे एस आया से जया गमणागमणापरिणामपरिगए अगजीपानभूयसत्ता अगोषउत्तपमत्ते संपवणजवदावणकिलामण काऊण प्रणालोपत्रपटिकते पेच असेसम्मक्सयडयाए किंचि चितवनसायमाणावएस अमिरमेना नया से एगचित्ता समाही मवेजा गया, जजो गं गमणागमणाइअणेगावाचारपरिणामासत्तचित्तबाए कई पाणी तमेव मातरमच्छ११२९ महानिशीबच्छेदसू Janav -2 अनिदीपातमागर ||८०|| दीप अनुक्रम [५६२] ETTTTor-EA ~18~ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [१९] गाथा ||१०६|| दीप अनुक्रम [५६२] “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं) अध्ययन [ ३ ], उद्देशक [-], मूलं [१९] + गाथाः ||१०६ || मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... .... आगमसूत्र - [ ३९ ], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ मूलं - ह्रिदय दुज्यसिए भिकाल विर(व) लेजा ताई तस्स फले विसंवादमा, जया उन कहिच अन्नाणमोहमायासेन सहसा एगिरिवादी संघट्टणं परियाणं वा क माछा बुद्ध रूपमन्देहिं पणरागदोसमोहमिच्छत्तअन्नादि अपिरलोपचचाएहिं कूरकम्पनिधिहिति परमसंवेगमावन्ने सुपरिट लोहता नं. दिसा गरहाणं पायच्छित्तमनुचरितार्थ गीसले अमाउलचिते अम्मा कषि आयहि चिदमाइ अनुजा तथा तप चेन उपने से वेला जया से तयत्ये उनसे नाता तर परमेगगचित्तसमाही इवेजा, तथा चैव सहजगजीवपाणभूपसत्तानं जफिलसंपत्ती जाता गोपमा अपकिंताए ईरियापहिचान कप्प कार्ड किंचिचेहापायं फलासायमनिकंयुगाणं, एएवं अगं गोयमा एवं पुबह जहा गं गोयमा समुत्योभयं पंचमंगलं चिरपरिचियं का तो इंरियासहि १९ से पराए नहीए मरियमही गोषमा जहां पंचमं २० से भयमिरियामिति किमहिने मा सत्ययायं चेदविद्वानं वरं सत्ययं एमेषमेणबत्तीसार आवहिं अरहंतत्वयं एगेण पडत्ये पंचाई आनि उपसत्ययं एमे उन एगेग येणं पणवीसा चिलेात्पर्य एमे चडत्ये पंच आविलेहिं एवं सरपंजणमताविंदुपयच्छेयपयक्खरविमुर्द अधिवामेलियं अहिजिताणं गोषमा त कसिणं सत्यं विन्देयं जत्थ संदेश पुणो २ बीमंसिप गीसंकमधारेऊ संदेहं करिजा । २१ एवं सुत्योभयत्त विदाइ चिहान अहिलेता तो सुपसत्ये सोने तिद्दिकरणमुत्तनक्लजोगलग्गससीबले महासत्तीए जयगुरूणं संपाइयपूजक्यारे पहिलाहियाहुम्मेण य मतिमरनिग्भरेण रोमंचकंचुयपुलमाणत सहरिसविसिवणारविन्देणं सदागवि बेगपरमचेर लगियपणरागदोसमोहमिच्छत्तमलक मुनिम्लविमलशुभशुभ परऽणुसमयसमुततमुपसत्य ज्यावसायगएणं भूषणगुरुजिदपदिमाविणिवेसियणपणमाणसे अनन्यमाणमेगाचितयाए पन्नोऽहं पुन्नोऽहंति जिणनंदासीकयजम्मोति मन्नमा चिरयकरकमलंजलिना हरियाणवीयजंतुविरहियभूमीए निहिजोमयजाणुणा सुपरिचिणीसंकीय हत्यत्तयोभयं पर पर मामा चरितसमयन्युपमावाइ अगगुणसंपवेएर्ण गुरुणा सद्धिं साहसाणीसाहम्मिय असे सर्वपरिचापरिचरिएणं चैव पढमं चेइए दियो तथनंतरं च गुणड्डे व सागोनहा सामियजणस्स में जहासतीए पणिवायजाणं मुहमम्ययमयचोरवयत्यपयानाइमा मामा का एयावसरंमि सुवियसमयसारेण गुरुणा पचेर्ण अक्लेवनिक्ले वाइएहिं पर्वधेहि संसारनिपजणणं सदासगुप्पावर्ग धम्मदेसणं काय २२। ओ परमस दावेगपरं नाऊ आजम्मानि पदाय जहा में सहलीमुलद्मगुस्सभवा भो भो देवामुनिया तर अजयमिए जीवतिकालियं अणुदिनं अतापलेयाचित् एवं इणमेव भो मनुयत्ता असहजसासपणमंगुरा सारंति, तत्य पुत्रहे साथ उदगपाणं न काय आहए साहू व बंदिए, नहा मा तान असणकिरियं न का जाए दिए, तहा रहे चैव तहा काय जहा अदिएहि चेहिं जो सझापामइमेजा । २३ एवं चाभिग्गहबंध काऊन जावजीचाए, ताहे व गोमा इमाए बजाए हिमंतिया सत्त गंधमुडीओ तस्युत्तमं नित्यारगपारगो भवेना सितिउचारेमाणेण गुरुणा सेवाओ, अम्णम भगवो रह ह भए भगवती महाविज्ञाए मजाए जब एनईएमआईए जय जय जयअंतर अपरआजहए आहा, उपचारी पत्ते साहिज, एयाए बिलाए ओ नित्यारमपारगो होइ. उपद्वावणाए वा गणिस्स वा अणुन्नाए वा तत बारा परिजदेवडा नित्यारगपारगो होइ, उत्तमपडिवणे वा अभिमंतिज जराहो भव, वयविनायगा उपसमंति, सूरो संगामे पवितो अपराजिजो न कन्पसमतीए मंगलवणी महणी व २४ वहा साहसाहुनीसमासगसढिगासेसाससाइम्मियजनचटत्रिपि समणसंयेणं नित्यारमपारगो नवेजा, पण समसलखणोऽसि तुमति उचारेमाणं गंधमुडीओ वाओ, तो जगगुरूणं निर्भिदाणं पूएगदेसाओ गंधदामिलाननिहाय सत्येणोमयसंथेसुमारीवयमाणं गुरुगा नीसंदेहमेवं भणिय जहा भो भो जम्मंतरसंचियरूयपुन्नपम्बार मुमुत्तिमुसलमणयजम्म! देवाणुपिया! इयं च नरपतिरियगइदारं तुति, अधगोय जयस फित्तीनीयागोत्तकम्मविसेसाणं तुमति, भक्तरगयस्सावि उ इदुलही उज्झ पंचनमोकारो भाविजम्मंतरे पंचनमोकारपमाजो जत्थ जत्थोवा तत्थ तत्युत्तमा जाई उत्तमं च कुलरुवारोग्यसंपयति एयं ते निच्छो भवेजा, अन्नंच पंचनमोक्कारणभावओम भवइ दासतं न दारिददोहाहीणजोगियतं न विगलिंदियत्तति किं बहुए ? गोयमा जे केई एयाए विहीए पंचनमोक्कारादिमुयमाणमहिजित्ताणं तपत्यानुसारेणं पयओ सावस्सगाइणिचाणु विजे अङ्गारससीलंगसहस्सेम् अभिरमेजा से नं सरागत्ताए जहणं निबुडे तओ सेवेजगुत्तरादीन चिरममिरमेडगे उत्तमकुलप्पसूई उलिसांगसुंदर समकलापत्तनमणाणं११३० महानिषच्छेद असर अत्र "वर्धमानविद्या" एवं तत् आराधना विधि प्रस्तुता ~ 19~ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [३], ----------- उद्देशक -1, ------- मूलं [२५] +गाथा:||१०६...|| ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत [२५]] गाथा ||१०६|| वारिपत्त व पाविऊर्ण मुरिवीचमाए रिदीए एगणं च दयानुकंपापरे निधिन्नकामभोगे सदम्ममणुदेऊन वियरयमले सिमेना।२५। से भय ! कि जहा पंचमंगलं नहा का सामाजयाइयमसेसपि सुषनाणमहिनिया, गोषमा तहा चे विणओबहाणमहीएया, गवरं अहिजिणि उकामेहि अहपिह चेष नाणापा सापयतेणं कालादी रस्सिना, अन्नहा मायाऽसापति, असंच दुवालसंगस्स सुखनामस्स पदमचरिमजामअहमिसमजायणावर्ण पंचमंगलम्स सोलसवजामियं च अन्नंच-पंचमंगल कपसामाइए या अकय सामाइए ना अहीए सामाश्यमाइयं तु सूर्य पत्तारंमपरिगाहे जावजीवकपसामाहए जहिनिणा, म उण सारंभपरिगहे अकयसामाइए, नहा पंचमंगलस आलाक्ये २ आयंबिन महा सकत्वषामुवि. दुवालसंगस्स पुण सुयनामस्स उद्देसगज्मयनेसु ।२६।से भया ! मुदुर पंचमंगलमहायुवकसंधस्स विणजोबहाणं पन्नन, महती य एसा नियंत्रणा नहं बा. लेहिं का,गोयमा! जेणं केई गइच्छेना एवं नियंतणं अविणजोरहाणेणं च पंचमंगलाइसुपनार्थ अहिजिणे जज्झायेद्र वा जनमाषयमाणस वा अणुन्न वा पयाद से णं ग मविना पिवयम्सेमाहवेजा इयम्मेण भवेना मत्तीजुए हीकिजा मुहलेजा अत्यं हीलिजा सुत्तत्वउभये हीलिना गुरुजे गं हीलिना मुत्तत्योभए जापणं गुक से में आसाएजा अतीताणागयरमाणे तित्ययर आसाइजा आपरिपउवायसाहणो, जेणं आसाइमा मुपणागमरिहंतसिद्धसाह से तस्सा णं मदीहयालमणतसंसारसागरमाहिंडमाणस तामु नाम संवृडरियडाम चुलसीडलक्सपरिसंस्खाणामु सीज़ोसिणमिस्स जोगीम तिमिसंधयारदुग्गंधऽमिज्मनिटीणलारमुत्तोमसिभपटिहत्यक्साजयुलस)पूवहिचिलिचितमहिरचिरस गजबालकवीमापोरगम्भवासेमु कढकढकतवलपलवलस्सटलटलटलस्सरजंतर(जत)सपिडियंगमंगस्स मुहरं नियंतणा. जे उण एवं चिहि फासणा नो मणर्यपि अइयरेजा जरबालविहाणेणं चेय पंचमंगलपमिजसुबनानस्स विणओचहाणे कोजा से गं गोचमा ! नो हीलिजा सुत्ने को हीलिजा अत्य को हीलिजा सुलत्योभए सेणं नो त्रासाइजा निकालभाषी नित्यकरे जो आसाइजा तिलोगसिहरवासी विद्यस्यमले सिदे णो आसाइजा आयरियावसायसाहुणो मुठ्या चेव मवेजा पियधम्मे दधम्मे भनीजुत्ते एगनेणं भवेना मुन स्थाणुरंजियमाणसे सदासंवेगमावन्नो, से एसण लभेजा पुणो २ भवचारगे गम्भवासाइयं अमहा जंतति ।२७। णपरं गोयमा! जेणं चाले जाच अचिन्नायपुन्नपाचाणं विससोर सातारण से पंचमंगलस क गोषमा ! एतेणं अनोगे, ण तस्स पंचमंगलमहामुयमवंधस्स एगमवि आलावगं दाय, जओ अणाइभवनारसमजियासहकम्मरासिदहणमिण समेतार्ण नवाले सम्ममाराहेजा लानं च आणेड, ता तम्स केवलं धम्मकहाए गोयमा ! भत्ती समुप्पाङ्गजा, नओ नाऊण पिषधम्म वयम्भ भतिजुन ताहे जावइयं पवारवाणं निवाह समयो भवन तापायं कारवेजा, राहभोयर्ण च दुविहनिपिहचाविण वा जहासत्तीए पचक्लाविजा ।२८। ता भोयर, पणयालाए नमोकारसहियाणं परत्वं पापीसाए पोस्सीहि वारसहि पुरिमदेहि रसहि अबदेहि विहिं निवीदएहिं पाहिं एगहाणगेहिं दोहि आयंबिलेहिं एगेनं सुबच्चायबिलेणं, मापारलाए रोहमाणविगहाविरहियरस समाए. गणाषित्तम गोयमा ! एगमेवायंबिलं माससमर्ण बिसेसेना, नो य जाचार्य तदोपहाणर्ग कीसमतो करेजा तावदयं अणुगणेऊण जाहे जाणेजा जहाण एनियमितेग तपोपहाणे 12 पंचमंगलसा जोगीभूओ ताहे आउत्तो पादेशा, अन्नहत्ति ।२९। से भयवं! पभूयं कालाइकर्म एवं, जई कयाइ जनताले पंचनामुपगच्छे तमो नमोकारविरहिए कहनिमई साहेजा ?, गोषमा ! जसमय घेच मुत्तोषयारनिमित्लेणं असदभावत्ताए जहासत्तीए किचि तपमारभेजा समयमेव तदहीयमुत्तायोमयं दद्वयं, जओ णं सो ते पंचनमोकार मनायो-12 मर्थ अविहीए गिरे. कितनह गेहे जहा भांतोषिक विप्पणसे, एयवसायत्ताए आराहगो भवेजा।३०1 से भवन ! जेल पुण अन्नेसिमहीयमाणा स्वापरणसओस । मेण काहादिलणेण पंचमंगलमहीयं भवेनासेऽपिय कितबोचहाण करेजा', गोबमा ! करेजा, से भय ! केणं अग. गोयमा गुलभगोहिलामनिमित्तेग एवं बाई अफर प्रमाणे णाणकुसीले गए।३१। नहा गोयमा ! पाजादिवसप्पमिईए जहत्तविचओव्हाणेणं जे केई साहू वा साहनी वा अपुरानामगह न कुजा तस्सासयि विराहियं सुनत्योभयं. सरमाणे एगम्मचिने परमचरमपोरिसीम दिया राओ यणाणुगुणेजा से णं गोयमा पाणकुसीले गए, से भपर्व ! जस्स अगस्यनाणावरणोबएण अनिसं पहोसेमानस्सण संपण्डरमापिसिलीगदमपिचिरपरिचिय(ज)मजा(सकिकुजा)नेणापि जावजीवामिम्गणं समायसीलार्ण वयानचंतहा अगदिन अददाइले सहस्से पंचमंगला सभापोभए सरमाणेगामाणसे पहोसिजा,से भय केणं अहे ?, गोयमा !जे भिक्षु जायजीवामिग्महेनचाउकालिय बायपाइ जहासत्तीए समायं न करेजा से गं गाणसीले गए।३शअन्नंच-जे कई जापजीवाभिमाईण अपुर्व नाणाहिगर्म कोजा तस्सासत्तीए पुवाहिय गुणेजा, नस्सावि यासनीए पंचमंगलाणं अदाइजे सहस्से परावसे सेवि ाराहगे, पनागाचरणं लवेत्ताण नित्ययरेश वा गणहरेज वा भवेत्ताणं सिज्जा ।३३से भया ! केणं अडेणं एवं बुबह जहाणं चाउकालियं सज्झायंकाय, गोषमा! 'मणचषणकायगुत्तोनाणाचरणं खयह अनुसमर्थन १९३१ महानिशीपच्छेदमूत्र - दीप अनुक्रम [५९८] ~ 20~ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [३], --------------- उद्देशक [-], --------- मूलं [३४/१] +गाथा:||१०८|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं कम् ॥११॥ ए वज मनाए प्रत माय गुणीमने (मुनि सूत्रांक [३४/१] गाथा ||१०८|| समाए बईतो सणे सणे जाइ र ॥८॥ उड्डमहे तिरियमि य जोसवेमाणिया व सिदी या सबो लोगालोगो सझायविउम्स पचावं ॥९॥दुवालसपिडमिपि तवे समि मारवाहि कुससबिडेपनि अस्थि पविष होही समयसमं नकोकम् ॥११॥एमतिमासक्लमणं संपच्छरमविय अगासिओ होना। समायाणरहिओ एगोचासकसपि ण लमेगा au१॥ उग्गमडपावणएसनाहि सूर्य तु निव मुंजतो । जाइ तिबिहेणारत्तो अणुसमय मवेज सज्झाए ॥२॥तासंगोयम! एगग्गमाणसतंग उपसिउँसका । संवच्छरखपणेणचि जेग तहि निजराणता ॥३॥ पंचसमिओ तिगुत्तो खंतो दंतो व निजरापही। एगग्गमाणसो जो करेज सज्जाय पुणीमने (मुभिर्मतो) ॥४॥जो नागरे पसत्यं मुयनाणं जो मुणेड मुहमायो । ठायासकारलं तकालं गोथमा ! दोन ॥५॥ एरोपि जो दुहनं सत्तं पडिकोहिउँ ठवा मम्णे। ससुरासुरमिपि जगे नेणेह पोसिओ अमाधाओ ॥ ॥ पाउपहाणो फषणमा नय गच्छाई कियाहीयो। एवं समोविजिणोपएसहीणो नोना ॥ ७॥ गयरागदोलमोहा चम्मकहं जे करेंनि समपन्नू । अणुदियहमपीसना सायाचाच मुनि ॥८॥ निमुणति अभयणिज एग निजरं करवाणं । जा अन्नहा ग सुनं अस्वंगा किचिवाएना.११९॥ एएणं अटेण गोषमा! एवं गई जहाणं जापानी अभिगह चाउकारियं समाय कायचति, वहाब गोत्रमा! जे मिक्सू विहीए सुपसत्वनानमहिनेऊण नाणमयं करेजा सेवि नाणकुसीले, एपमानानकुसीले अगहा पन्नचिजति । ३४ा से भव ! कतर ने दसणकुसीले, गोयमा! ते सणकुसीले एविहे नेए आगमओ पोजाममओ अतत्य आगमओ सम्मईसणं सकते खते विगुष्ठी विडीमोहं मछने जणोक्नुहए परिवदियधम्मसो सामनमुनिरकामा अचिरीकरणं साहम्मियार्ण अवच्छाहालणेणं अप्पभावणाए, एतेहिं अहहिं पाणंतरेहिं कसीले गए। गोआगमनीय सणसीले प्रणेमहा, जहा. चपसफुसीले पाणकुसीले सरमसीले जिम्माकुसीले सरीरकुसीले, तत्व बासुकुसीले तिविहे गए, जहा-पसरपवासकुसीले पसरवापसत्पपासासीले पसत्यनमसफुसीले. नत्य जे के पसायं उसमादितित्यपरर्षियं पुरओ चक्सुमोयरतिमेव पासेमाणे अणं कपि ममता पसत्यमापसे से नं पसत्यवखुकुसीले, नहा पसत्यापसत्यपकमुकमीले तित्यपरविं हियएणं अमठीहिप (पासेमागे) अ किंपि पीहिना से गं पसत्यापसत्वपक्सुफुसीले, नहा पसत्यापसस्थाई दबाई कागपगर्दकनिलिरमयूराई मुक्तदितिथिर्व वा रवर्ण तयारी पार विसले सेवि पसत्यापसत्यवासुकुलीले, तहा अपसत्यवस्कुसीले तिसहि पयारेहिं अपसत्या सरामा यतिसे भयर करे अपसाचे लिसद्वी पास मेएस. गोचमा इमे जहा-सातु कासारवा(कला) तारा मंदा मदलसा का विषका कुसीला जद्विक्सिया काणिक्सिया १० मामिया उमामिया पलिया पलिया पलिया | अमिता मिलिमिला माणुसा पसना पारखा २. सरीसपा असता अपसंता अथिरा बहुविगारा साणुरामा रोगोईरणी रोगजनाऽऽमवुष्पायणी मयणी ३० मोहनी भईरगी भयजन्ना मर्यकरी हिवयमेाणी संसयानहरणी चित्तचमकृष्णायणी णिक्दा अतिबदा ४० गया आगया गयागवपचागया निवारणी जहिलसणी जरइकरा तफरा वीणा दवावमा सूराधीराहमणी५०मारणी तापनी संतापनी कुदा बकुदा पोरा महापोरा चंदा दा मुद्दा हाहाभूयसरणा कसा सणिहा कारखसपिडत्ति.महिलाणं चलगुडकोडिगावकरमुविलिहियं दिन्नालले मार्य चमह मणिकिरणनिषयसकचावं कुम्मन्नर्य चलणं सममानिममामागूढ जाणं जंघा पिलकडियामोगा जहमणिवणाहीषणतरकहाभयलाहीको अरोडक्सगर्वतीकन्ननासनयणजपलममुहानिलाइसिरबहसीमंतयामोडपपेटतिलगडलकवोलकजलतमालकलापहारकटियनगणे उखाइराखगमणिरयणकडगकंकणमुदियाइसकतदिनाभरगरवासणनेत्या कामगिसंयुक्खनी निस्पतिरिवगइसुं अर्णवहुक्सदायगा एस साहिलाससरामविद्वलि एस चासकसीले । ३६ तहा पाणफुसीले जे के सरहिनधेिस संग गड दुरहिगंधे गुंछ से गं चाणकुसीले, महा सवणकुसीले दुबिहे गए पसत्ये अपत्ये य, नस्य जे मिक्यू अण्पसस्थाई कामरागसंवृत्तीवणुणालणसंदीपणाई गंधानपणुयहन्थिसिसाकामरतीसत्या सुडगं गालोएजा जापानको पायनिमाचरेमा से गं अपसत्यसमणकुसीले ए, तहा जे मिश्म पसस्थाई सिताचारियपुराणम्मकहाओ व अन्लाई चपम्मसत्थाई सुणेसाणं न किंचि आयहियं अणुहे गाणमयं च कोड से गं पसत्यसबमकुसीले गए, तहा जिम्माकुसीले से अणेगहा संजहा-लितकापरसायमदुरविललमणाई रसाई आसार्यते अविद्वासुबाई इहपरलोगोभपरिवार सदोसाई मयारजयास्थारणाई अपसम्भक्खाणासंतामिओगाई या भणने असमयनुधम्मदेसमापपलगेग य जिम्माकुसीले गए. से भयवं! कि भासाएपि भासियाए कुसीलतं भवति', गोयमा भबह से भव ! जइ एवं वाय धम्मदेसर्ण न कापा, गोयमा ! 'सावजडणपजाणवणाणं जो न जाणा पिलेस । बुपि तस्सम समं किमंग पुण देसणं काउं? ॥१२॥॥३७॥ तहा सरीरकुसीले दुबिहे गए- चट्टाकुसीले विभूसाकुसीले य. तत्व जे भिषण एवं किमिफलनिलयं सणसा माइमर्स साणपारिवंसणधर्म असुई असासर्य असारं सरीरगं आहाराचीहि गिचं चेडेगा णो ण णमो भगवसलवनागसणाइसमभिएणं सरीरंण अनपारखीसमारधीलाBI जममोमासे चेहाकुसीले, वहाच विभूसाकुसीले सेऽपि अणेगहा, तंजहा-तोडाभगमविमाणसंपाहणसिणासुबहणपरिहसणतंबोलवणपासणसणुग्यससमा (२८) १९३२ महानिलीयोमूत्रं जमा-२ मुनि दीपरमागर 4- 2 दीप अनुक्रम [६०८] 46 ~21~ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [३], ------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [३८] +गाथा:||१२१|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत [३८] गाथा ||१२१|| लहणपुप्फोमालणसासमारणसोवाहणविषगइमगिरहसिर उपविटुट्टियसनिवनक्लियविभूतावनिसचिगारणीयंसणुनरीयपाउरणदंडगमहगमाई सरीरविभूसाकमीले गए.एनेय पतषण उडाहपरे दुरंतपंतासमवणे अदये महापायकम्मकारी विभूमाकुमीले भनि, गए सणसीले । ३८ा नहा पारिनकुमीले अगहा मूलगुणउत्तरगणेमु, सत्य मूलगुणा पंच महापाणि राइनोपणछागि ने जे पमले भनेजा, तन्य पाणाइवायं पुढचीदगागणिमास्यवस्सइवितिय उपचिदियाईण संघहणपरियायणकिलामणोडवणे, मुसाबार्य यह या बरंच. ताय गुडुमें पयागाहा मरुए एक्मादी बादरी कमालीगादि, अदिखादाणं मुहम बावरं च तस्य सुहम तणडगलयानरमाइगादीर्ण गहणे, वायर हिरणसुवणादीण, मेहुणं दिघोरालियं मनोवयकायकरणकारायणाणुमइभेदेन अहारसहा, नहा करकम्मादी सचित्ताचितभेदेणे, गवगुलीविराहणेण वा. विभूसावनिएण वा. परिमई गुहुम बायाँ च. तन्य गहुम कापहमरक्षणममनो बादर हिरणमादीण गहणे धारणे पा, राईभोवणं दियागहियं दियाभुनं एवमादि, उत्सरगुणा 'पिंडस जा विसोही समिनीओ भावणा नबो इविहो । पडिया अभिमाहाविय उत्तरगुलमो वियागाहि ॥ १२१तन्य पिंडविताही-सोनस उम्ममदोसा सोलस उपायणाय दोसा उदस एसणाय दोसा सजोषणमा बनेन ॥ २॥ तब उगम दोसा-आहाकम्मुडेमिय पूईकम्मे व मीसजाये या टनणा पाहुटियाए पाओयर कीय पामि ॥ ३ परियहिए अमिह उम्भिन्ने मालोहडे इय। अग्नेि अणिसट्टे असोयरए य सोलसमे ॥४॥ इमे उपायणादोसा-धाई दुई निमिनेजाजीप वीमगे तिगिच्छाए। कोहे मागे माया नोभे यति बस एए॥५॥ पुषिच्छासंचन विजा मते य चुण्णजोगे य उपायणाय दोसा सोलमसमें मूलकम्मे य॥ ६॥ एसणादोसा सकियमक्सियनिक्सिनापिहियसाहरियदायमम्मीसे। अपरिणयलिसाहित्य एलणदोसा इस इति ॥ तस्युमामोसे मिहत्यसमुत्थे उपायणादोंसे साहुसमुन्ये एसणादसे उभवसमुन्थे, संजोयणा पमाणे इंगाल धूम कारणे पंचमंडलीय दीसे भवनि, नन्य संजोयला उमगरणभनयागसम्भनरबहिभएण, पमाणं बनीसं किर कबले आहारों कृच्छिपूरओ भगिओ। रागेण सइंगा दोसेण सधूमगंति नाय कारणं 'वेयण पेयायो इरियडाए य संजमहाए। नह पाणवनियाए छह पुण धम्मचिनाए ॥९॥नस्थि छहार सरिसिया विषणा भुजिज नमसमणडा। छाजो बेयावर्षण नर कार्ड प्रो मुंजे ॥१३॥ इरियपि न हिम्स पेहाईयं च संजम का। यामो वा परिहायह गुणणाप्पेहाय व जसना ॥१॥ विचिसोही गया, याणि समितीश पंचजहा-ईरियासमिई भासासमि एसणासमिई आवाणरमननिस्सेवणासमि उचारपासवणवेनसिपापजापारिद्वावणियासमिनहा गुती निषि-मणगुली वयानी फायगुनी, तहा भावणाओ वालस जहा अणिवलमारणा प्रसरणभाषणा एमनभावणा न्ननभावणा अमुवभावणा विचित्तसंसारमापणा कम्पासपमावणा संचरभावणा चिनिज़रभावणा लोगविश्थरभावणा धम्म सुपपवार्य सुपणनं निश्चयरेहिति तनचिताभावना बोही 5सातमा जम्मतरकोडीहिपिनि भागणा, एवमादियालरेम जे पमा कुजा से ण चारितकुसीने गए।३९/ नहा नपकसीले दुविहे गेए बनानवसीले अभिलपकुलीले यतन्य बजे केई विचित्ताणसणऊणोदरियाविनीसंवेषणसपरिचायकायकिनासंदीपयत्ति उहाणे न उनमेजा सेणं घग्झनवासीन्डे, नहाजे के विचिनपच्छिन्नविनयवेवावचसमायझाण उसागमि भए छहासुन उनमेजा सेणं अविभतरनबकुसीले ।४ातहा पदिमाओ पारस जहा मासादी सनंता एगगनिगसनराइदिण लिग्निा हरानी एगराती भिक्खूपडिमाण बारसगं ॥२॥ तहा अभिग्गाहा- दानो सेनो कालओ भावओ, तत्य दो कुम्मासाइया गया, खेनओ गामे बहि पा गामस कालो पदमपोरिसीमाईसुभाषत्रो कोहमाइसंपोज देहिडन गहिस्सामि, एवं उत्तरगुणा संखेचत्रो समत्ता, समसो पसंखेषेणं परिनाचारो, नवाचारोऽपि संवेणेहतरगत्री.नहा बीरिवाचारो एएस वेव जा अहानी, एएमुं पंचसु आयाराड्यारेसुज आउहियाए णो पमाया कप्पेण वा अजयगाए बा जयगाए वा पडिसेवियन नहेवायोइनाणं जमम्मपिऊ गुरू उपसंनितं नहा पायच्छिन नाणुमरेह, एवं अट्ठारसह सोलंगसहम्सागं जं जन्य पए वमने भवेजा से ण नेग नेणं पमापदोसणं कुसीले गए।११तहा ओसनेम जाणे. गिरथ लिहिणा, पासत्ये जाणमादीणं सच्छेद उस्मनमागामी सबके मेन्यं लिहिजनि. गंयनियरमयाओ. भगवया उण एवं पत्याचे कुसीलारी महापर्वधर्ण पनविए. एन्य यजा जा कस्बई अण्णण्णमायणा सा सुभुमियसमयसारेहिलो पउँस(जे)या, जो मूलारिसे पेव मदुर्ग, विपणहूँ नहि जत्थ २धानमा संवा तत्व नथ पाएहि सपहरेहि समितिक संगोवंगदुमालसंगाओ सुयसमाओ अन्नममगउगमवासंघअजायणहेसगाणं समुचिनिऊण किंचि किंथि संवत्झमाणे एवं लिहियंति, म उण सका कयंनि।४२। पंचए मुमहापाचे,जे ण बजेज गोयमः। संसावादीहि कुसीलादी, भमिही सो समनी जहा । १३३ ॥ भक्कायटिनिए संसारे, पोरबुक्ससमोत्यओ। अलईनो दसबिहे धम्मे, पोहिमहिसाइलक्स ॥४॥ एवं तु किर रिडत. संसगी गुणरासी। रिसिभिवासमवासणं, विकर्ण गोयमा सणे ॥५॥ नमहा कुसीलससम्बी, सबोचाएहि गोचमा पनियाऽऽयहियाली,जाजनिजामने ११॥ महानिशीथमछेदसूत्र, अww-३ मुनि दीपपनसागर दीप अनुक्रम [६२७] 144PNE ~ 22~ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [४], ------------- उद्देशक [-1, --------- मूलं [१] +गाथा:||१||मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं 124402 महानिसहमवसंघम्स नदयमज्मवर्ण ३॥ से णं भय : कई पुण लेण समाणा कुसीलसंसम्गी कायद्या आसी जाए अ एवारिसे अबदारुणे अचसाणे समक्खाए, जेण भवकायद्विईए अगोसारं भवसापरं भमिही से पराए स्वसंतने अलर्भने समष्णुपएसिए अहिंसालसणे संतादिदसबिहे धम्मे बोहिति, गोयमा ! णं इमे जहा-अस्थि डोष भारहे वासे मगहा नाम जपओ, नन्य कुसत्य नाम पुरं. तमि य उवलपुन्नपाये सुमुगियजीपाजीवादिषपत्ये सुमहणाइलणामधेजे हुवे सहोयरे महदीए सहदगे अहेसि. अहऽन्नया अं. नरायबमोदएणं वियलिय बिहन नेसि, म उण सत्तपरकमे, एवं तु अचलियसत्तपरकमाणं तेलि अर्बन परलोगभीरु विरयकूटकपदालियाण पटिवन्नजहोपाहदाणाइपउपखंघउपासमधम्माणं अपिसुणामपटरीण अमावावीणं, किंबहुणा, गोयमा! ते उपासमा णं आवसहा गुणरवणार्ण पवा संतीए निवासे सुषणमेत्तीर्ण, एवं तेसि बचासरवन्न निजगुगरपणाणपि जाहे अग्रहकम्मोएणं ग पहपए संपया नाहे ग पहुपति अवाहिवामयामहिमादओ हदेवयाणं जहिथिए प्रयासकारे साहम्मियसमाणो बंधुणसंपवहारे या।। अहन्नया अपने अतिहिसकारेसु अपरिजमाणेसु पणइयणमणोरहेसु बिहड़तेसुथ सुहित्यणमित्नधक्कानपुनणपगणेमु विसायभुवगएहि गोथमा चितिय तेहिं सहदगेहि, नंजहा- जानिहोना परिसस्स होइ आणापडिण्डो लोगो।गलिउदयं धर्ण विजुलाविदूरंपरिचया ॥१॥ एवंच चितिऊण परोप्पर मणिडमारदे, तत्व पढमो- पुरिसेण माणधणजिएण परिवीणभागनेणं ने देखा गंना जन्य सवासा ग दीसंनि ॥२॥ तहा बीओ 'जस्म धणं तस्स जणो जस्सऽत्यो तस्स बंधवा बहवेधणरहिमो उमणसो होर समो दासपेसेहिं ॥३॥ अह एवमपरोपर जोजेर. संजोनेऊण गोषमा ! कर्य देसपरिचायनिष्ठयं तेहिति जहा पचायो देसंवरंति, नत्याग कयाई पुज्नति चिरचिलिए मनोरहे हवा पाजाए सह संजोगो जद दिनोबा मन्नेजा, जापणं उझिाकर्ण न कमागय कुसन्धलं पडियन्न निदेशगमणे । २। अहऽन्नया अनुप्पाहणं गठमाणेहि विद्या तेहि पंच साहुणो कई समणोचासगति, तो भनियं गाइलेण-जहा भो भो गमती: भरमुह पेट के रिसो साहुसयो', ता एएणं वेव साइसत्येणं गच्छामो, जड पुणोचि चूर्ण मेता, नेग भणिय एवं होउत्ति, नमो संमिलिया जन्य साये, जारणं पयाणमग वहति नाचणं भनिओ सुमती गाइलेणं, जहा महमूह गए हरिसतिलयमरणयच्छविणो सुगहियनामजस्स बाचीसहमतित्वगरस्सणं अरिहनेमिनामस्स पायमूने महनिसम्मेण एमचारिय आसी, जहा जे एवंविहे अणगारको मति ने य कुसीले, जे य कुसीले ने रिडीएवि निरिक्सिडेन काति, ना एते साहुणोतारिसे, मगार्ग न कपए एनेसिस अम्हाण गमणसंसगी, ता वयं एते, अम्हे अप्पसत्येण र पासामो, न कीरह नित्ययस्वयणस्थानिकमो, जो समुरासुरस्यापि जगस्स अलंपणिहा नित्थयरवाणी, अन्नंच जाच एतेहि समं गम्मद साधणं चिहाउसाच दरिलणं, आलाबादी णियमा भति, ता फिमम्हेहि तित्यपरवाणि पित्ताणं गत एवं तमणुमाविऊण ने सुमति हत्ये गहाय निजडिओ नाइलो साहुसत्याजो।३। निविडोवासुविसोहीए फासुगे भूपएसे, नबो मणिय मुमदना,जहा गुरुणो मायापित्तरस जेहभाषा नहेब भहणीण जन्युनर न दिजा हा देव भजामि किंतत्य ? ॥४॥ आएसेऽपि इमाणं पमाणपुर्व तहसि ना(का)य। मंगुलममंगुलं या नत्य विचारी न कायरो ॥५॥गर एव यी मे अज दावा अजमुनरमिमस्सा खरफरसककसाणिनिरसहित ॥६॥ पादचा पर उच्छल जीहा में जेहभाउणो पुरसओ ?। जस्मुढ़ी विपियंसणोह रमिजोऽसहविलिनो ॥ ७॥ अहना कीस ण लगाइ एस सर्व च एव पभणतो?। जंतु कुसीले एते दिडीएवीण दवने ॥८॥साहुणोति, जाच न एक्सायं वायरे नाव इमियागारकुसलेणं मुणि माइलेणं, जहा ण अख्यिकमाइनो एस मणगं सुमती, ता किमहं पहिमणामिति चिति समादत्तो जहा- कजेण विण अकंटे एस पवित्रो हुताय संचिहे। संपत अणुणिजतो ण याणिमो कि च बहु मन्ने ?॥९॥ ताकि जणुणेमिमिण उपाहु पोलउ सणवताल था। जेणुवसमियकसाओ पहिरजातं नहा सर्व ॥१०॥ अहला पत्यापमिणं एयरसपि संसर्य जयहरेमिा एस ण बागा भरो जाप विसेसं गाऽपरिकहियं ॥१॥ति चितऊर्ण मनिउमादत्तो-नो देमि तुम दोसग पावि कालरस देमि दीसमह। हियमुदीएं सहोयरावि मचिया पकुष्पति ॥२॥ जीवाणं चिय एवं दोसं कम्मडजालकसियाण जपउगानिष्किाणं हिजओचएस नबुझति ॥३॥ पणरागदीसकुममोहमिहत्तसवलियमणार्ग। भाइ चिर्स कालउडे हिमोपएसामयणा ॥१॥लि, एकमायग्निऊण तो भणिय सुमाणा, जहा तुम चेष समवादी भनम एवाई. परं गजनमेवं जं साह अपनवार्य मासिना, अन्न कि न पेष्ठसि तुम एएसि महाणुमागाणं चिहिय?, उमदसमदुवालसमाससमणाईहिं आहारगहणं गिम्हामु थापगडा वीरासबउकडयासणनाणामिगहधारणेणं च कहनचोऽणुचर. मेणं चपयुक्त मंससोगियंति, महाउवासगो सि तुमं महामासासमिती पिइया नए जेगेरिसगुणोचउत्तापि महाभागाणं साहम कुसीलत्ति नाम संकप्पियंति, नओ भणिय नाइलेणं-जहा मा पच्छ! तुम एतेगं परिओसमुपयासु, जहा अहयं आसबारेण परामसिओज, अकामनिजराएवि किंचि कम्मरखयं भरा, किं पुगज बालतवेणं !, ता एते पालतम११३४ महानिशीपच्छेदमूर्ष, art-1 मुनि दीपरमागरम ज पसीने अप्पसत्येण पे समं गम्मद साह दीप अनुक्रम [६५४] श अत्र तृतियं अध्ययनं समाप्तं अत्र चतुर्थ अध्ययनं- "कशील-संसर्गी आरब्ध: ~ 23~ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूलं) अध्ययन [४], ------------- उद्देशक -1, ---------- मूलं [४] +गाथा:||१४|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||१४|| सिगो बहो, जोकिकिपि उसालमणयामित्तमेएसिन पास अन्न-वच्छ सुमह! पत्थि मम मागोवर कोवि सुहमोवि मसावि उपओसो जेगाहमेएसि दोसगहणं करेमि, किंतु मए भगवनो नित्ययरस सगास एरिसमचारियं जहा कुसीले अदद्ववे, ताहे मणियं समहणा, जहा जारिसो तुम निम्बदीओ तारिसो सोवि तिस्पयरो जेण तुजा. मेयं वायरियति. नओ एवं भणमाणस्स सहत्येण संपियं मुहकदर सुमदरस गाइलेणं, भनिओ य जहा भरमह! मा जगेकगुरुणो तिथपरस्सामायणं कुणसु. मए पूण भागसु जहि चिय, नाहते किंचि परिभणामि. वो भणियं सुमहणा, जहा जा एतेवि साहुणों कुसीला ना एत्य जगे कोई सुसीलो अस्थि, नओ मणियं णाइलेग. जहा भरमा रामा इत्यं जयालंपणिजवकस्स भगवओ पयगमायरेया चाथिकमाए न विसंचएजा, णो णं चालतवस्तीण चेद्वियं, जो गं जिगइंरक्यणेण नियमओ नाव कुसीले इमे दीसति, परजाए पुण गंधपि णो दीसए एसि, जेणं पिच्छ २ तावेवस साहुको विजय मुदगंतगं दीसह ता एस वाय अहिगपरिनहबोसे कुसीलो, प एवं साहण भगवाई जमहि । बपरिग्यहविचरण करे, ता पच्छ! होगसनेहि नो एसेमणसाऽज्जाबसे जहा जइममेयं मुहमनग विष्षणस्सिहिडताबी कत्थकई पावेजा, नोएवं चिनेहमूढो जहा अहिगाणुवओ. गोवहीधारणेणं मजा परिगाहवयम्स अंग होही अहवाकि संजमेऽभिरओ एस मुहगतमाइसंजमोवोगधम्मोरगरणेगची सीएजा', नियमओण विसाए. गरमत्ताणयं हींगसतो. इमिड पायडे उम्ममायरनं च पर्वसेज परवर्ण चमडलेडलि, एसा उप पेच्छसि सामणवत्ता,एएवं कई नीए पिणियंसणाइ इवीए अंगयदि निमाइजण जं नानोदयपडिकतन कि नए म चिन्नाय?.एस उण पिच्छेसि परुडविष्फोडगविहिवाणणो . एतेनं संपर्य र लोयहाए सहत्येगमदिनकारगहणे कर्य, तएपि बिहमेयंति, एसो उप पेनछसि संचाटिए काते एएणं अणुग्गए मूरिए उडेह पचामो उम्ग मुस्विति नहा विहसियभिणं, एसो उ पेण्डसीमेसि जिहसेहो एसो अन पीए अणोपडत्तो पत्तो विजुकाए कुसिओ, ण एतेणं कप्पगहण कयं, नहा पभाए हरिपतगं वासाकप्पचलेणे संघहिय, नहा बाहिरोइगरसगं परिभोग कर्य, बीपकावस्सोप्परणं परिसकिजो, अविहीए एस सारठिाओ महरं वंटिल संकमिओ, नहा पहाडिवोज साहना कमसयाइकमे इंरिय पटिकामियां, नहा चरेया तहा चिया तहा भासेप तहा सएप जहा उकायमइगया जीवाणं सुदुमबापरपज. नापजनगमागमसाजीवपाणभूयसलाणं संघपपरियावणकिलामणोदवणं ण भवेला, ता एलेसि एवदयार्ण एयस्स एकमविण एवं दीसए, जे पुण मुहर्णत पहिलेहमाणो अज मए एस चोइओ जहा एरिस पडिलेहर्ण करेसि जेण बाउकाय फहफडस्स संघ जा सरियं च पडिलेहणाए संनिर्य कारणंति, जस्सेरिस जयर्ग एरिसं सोपोगं गहुँ काहिसि जमण संदेह जस्सेरिसमाउतलणं तुजाति, एथं च नएहं विणिचारित्रो जहा मूगो ठाहि. अम्हाणं साहुहि सम किंचि भरे, या कप्पे, ता किमेयं न विसरिय , ना भटमुह एएण संमं संजमस्थाणतरा एगमतिको परिस्सिय, ता किमंस साहू भन्नेजा जसेरिस पमत्ततर्णण एस साहू जसेरिसं मिदम्म संपल(ब)ल, भरमुह पेच्छ २ सुणो इस णित्तिसो छकायनिमरणो कहानिरमे एसो,जहया वरं सुणो जस्स मुसहममवि नियमवयभंग णो मवेजा, एसो उ नियमभंग करमाणो केणं उपमेजा ?,ना बच्छ सुमह भदमुहग एरिसकत्तवावरणाओ भवंति साह, एतेहिं चकतहिं तिस्थयरवयणं सरेमाणी को एतेसि पंदणगमचि करेजा.अच-एएसि संसम्मोणं कयाई अम्हाणपि चरणकरणेस सिदिलतं भवेजा, जेणं पुणो २ आहिंडेमो पोरं भवपरंपरं, नओ मणियं मुमहणा, जहा जा एए कुसीले जा पा सुसीले तहावि मए एएहि समं परजाकायबा, जे पुण नुम को हसितमेच धम्म, गवरं | को अजन समापरि सको, वा मुबसु करें, मए एतेहि सम गंतजावणं को दूर पर्यति ते साहुणोत्ति, जो मणियं गाइलेणं भरमुह ! मुमहणो कडागं एनेहि समं गचङमाणस तुम्भति, अइयं च तुम्भ हियरपर्ण भणामि, एवं ठिए जंघेच बहुगुणं नमेवाणुसेवय, णाईतए दुक्खेण घरेमि, अह अन्नया अगोवाएहिपि निवारिजनोण ठिो गओ सी मंदनगो मुमती गोयमा ! पाहमओ य, अह अनया पर्वतर्ण मासपंचगेणं आगजओ महारोरवो दुवालससंबच्चरिओ मिक्सो, नजओ ने साहुणो नकालदोसेणं अगालोइयपडिकना मरिडणावरना भूवजक्सरसखसपिसायादीर्ण वागमतरदेवाणं पाहणत्ताए, नजओ पविऊण मिच्छजातीए कुणिमाहारकरनाबसायदोसओ सत्तमाए, तओ उबहिऊर्ग ड्याए चवीसिगाए सम्मत्तं पावेहिति, सोय सम्मत्तलभभवाओ तइयभवे चउसे सिजिनहिति, एगो ण सिविरहिह जो सो पंचमगो सबजेहो, जो णं सो एगेनमिन्दहिही अमनो य, से भय जे ग से सुमती से भो उबाहु अभय?, गोयमा ! भो, से भवर्ष ! जहणं भवे ना गं मए समाणे कहिंसमुप्पाने ?, गोयमा ! परमाहम्मियासुरेसु । ४ से भया ! किंमो परमाहम्मिया सुरेसु समुपजा, गोवमा जे क पारागदोममोहमिच्छत्तोबएणं सुक्चसि(कहियपि परमहिओपएस अनमनेता बालसंग च सपनाणमयमाणीकरि ययागिमान समयमा अणायारं पसंसियाणं तमेव उच्छणेजा जहा सुमागा उचाप्पिय 'न भवंति एए कुसीले साहुनी,अहाणं एए विकुसीले तो एवं जोन कोई मुसीलो. अस्थि निश्टियं मए एलेहि | 21 ११३५ महानिशीथच्छेदसूE, Kadana मुनि दीपरतसागर 12 दीप अनुक्रम [६७७] ~ 24~ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [४], ------------ उद्देशक -1, ---------- मूलं [५] +गाथा:||१४...|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं पत्रकार प्रमाइनमेल अनुशागतसिारिपत्तपमानवादका उमो समोण से गोधमा । ठाम सिंधूमहानदी पापा चणं जुग जुग स्थिभायार भ गाथा ||१४|| बसम पाजा काया, हा जारितोनिदीओ तारिलो सोऽपि तित्वयरो'त्ति एवं उच्चारेमाणेणं. से गं गोथमा! महंतापितामणदेमाणे परमाइमियायो अपाजेशा.से मय:। परमाइम्मियासुरदेषा गं उबहे समाणे कहिं उपपजे ?, भगवं! परमाइम्मियसुरदेवाणं उनहे समाणे से सुमती कहिं उपवजेजा, गोयमा! नेणं मंदमागेणं आणामारपसंमुच्छप्पणं करेमाणेगं सम्ममापणासणे अभिणदिय, तकम्मदासेगं अर्णतसंसारिपत्तणमनियं, वो केलिए उक्वाए तस्स साईजा' जस्म में अजेयपोमालपरिय सुविनस्थि पउगसंसाराभोज वाताणति नहापि संखेवो सुगर, मोयमा ! इणमेव जंबूदीपदी परिक्सिविऊणं ठिए जे एस लमगजलही एयरसणं जंठामं सिंपूमहानदी पबिट्टा तप्पएसाओ पाहिणेणं रिसाभाएणं पणपनाए जोयणे पायाए मनांतर अस्थि परिसंतापदायर्ग नाम अबतेरसजोयणपमार्ण हत्यिकभाषा बल, नस्स य लवणजलोदएणं अदुजोषणाणि उस्सेहो, सहिच अर्थ. नघोरतिमिसंधवाराउ घडियालगसंठाणाउ सीयालीस गुहाओ, सासुचणं जुगं जुर्ग अंतरतारे जलयारिणो मणुया परिवसति, ने य बजारिसहनारायणसंपवणे महावलपरकमे अह सेस्सरयगीपमार्ग संखेजचासाऊ महुमजमंसप्पिए सहारओ इत्वीलोले परमदुवनउमालअणिडलरससि(क्लिोपतण मागवडकयमुहे सीहोरदिही कीतनीस अदावियपट्टी असणिण निरपहारी पुदरेय भवंति, सिति जाओ अंतरंडगगोलियाओ ताओ गहाय बमरीणं संसिएहि सेयपुच्छयालेहि गपिऊण जे कोई उभयको नियंपिकण महापुनम जबरयणवी सागरमणुपविसेजा से णं जलहत्थिमहिसगाइगमयरमहामच्छतंतुसुमुमारपभितीहिं बहसावतेहि अमेसिए चेच संबंपि सागरजलं आहिडिऊग जहिन्छाए जचस्यगसंगई करिब अहयसरीरे आगच्छे, ताणं च अंतरंडगोलियाण संबंधण ते पराए गोषमा अणोरम सुपोर दारुणं दुसर्स पुरजियरोदकम्पक्समा अणुभवंति से भय केणं अर्ण ! | गोषमा तेसि जीवमाणाणं को समजे तओ गोलियाओ गहेर्ड जे?.जया उण ने पेप्पति तया बहुविहार नियंतगाई महया साहसेणं सबरवबकरवालकतचकाइपहरणाडोनेहि बहमुरधीरपुरिसहि पविपुषण सजीवियोलाए पनि, सिप विष्यमाणाणं जाई सारीरमाणसाई उक्साई भवति ताई सोसनारयएक्सेस जा पा उपमेजा से भय को उण ताओ अंतरंहगोलियाङ गेमिना'गोयमा तत्येव लवणसमुद्दे अस्थि स्यनदीव नाम अंतरदीयं, तस्सेव पडिसंतापदायगाओ बलाओ एमतीसाए जोयणसएहि संनिवासिणी मण्या, भयन! कयोण पओगेण , खेशसभापसिदेण पुषपुरिससिदेणं च विहाणं, से भययं! कयरे उप से पुषपरिससिदे विही तेसिति. सोयमा ! नहियं स्यपदीचे अस्यि वीसएगणवीसलद्वारसबसनसत्तधणूपमाणाई घरदसंठाणाई बरिहारसिलासंपुडाई, लाई च विघाडेऊन ते स्यणदीवनिवासिगो माया पुत्रसिबखेलसहावसि पेष जोगेण पश्य मठिया महओ अजय तरेर्ड अचंतलेवाडाई काऊणं तओ तेसि पकमंसलं दाणि बहुणि जचमहुमजमंदगाणि परिवति, तमओ एयाई करिव सुरंबदीहमहररमकडेहि आस्मेत्तार्ण सुसाउपोराणमनमजिगामच्छियामयपदिपुणे पहुए छाउगे गहाय पडिसनापदायगचलमागच्छंति, जाच गं नत्यागर समाणे ते गुहावासिणो मण्या पेच्ठति ताप क तेसि रणयदीपगणिवासिमण्यार्ण पहाय पहिचापति, साओ ने सि महुपडिपुर्ण लाउन पच्छिक अन्नत्वपओगेर्ण कहजाणं जाइणयरवेग दुर्व खेविकर्ण स्यगदीचाभिमहे वचंति, इयरे वन महमोसादीर्थ, पूषो सुदछबरं तेसि पिट्ठीए (पिक्तिरमाणा) घाति, वाहे गोषमा! जाच गजचासो भवति तापणे सुसाउमगंधदासकारिष पोराणमजलाउममेग पमुजूण पुणोचि जइणयरवेगेणं रवणदीपत्तो पति, इयरे यतं मुसाउमहुगंधदवसकारियं पौराणमनमांसाहय, पुणो सुरक्लयरे तेसि पट्टीए पार्वति, पुणोपि तेसि महपडिपुजलाउगमे मति, एवं ते गोयमा! महुमजलोलिए संपलम्पो वाचाणति जायण ते घरसंठाणे बहरसिलासपुडे, ता जावाँ तापवयं भूभार्ग संपरायति ताच जमेवास बारशियसंपुर जंभापमाणपुरिसमुहामारं बिहाडिय चिट्ठा तत्वे जाई महुमजपतिपुचाई समुदरियाई सेसलाउगाई ताई तेसि पिणामाणाणं ते तत्थ मोतूर्ण नियनियनिलएसुवर्चति, इयरे व महुमजलोलिए जाच सत्य पविसंति ताव ण गोयमा जे ते पुत्रमुके पकर्मससंडे जेपते महमजपढिपुन्ने मंहगे जंचमहुए पालितं सर्वतं सिलासंपुढं पेक्सति ताच तेसिमईत परिमोसं महा तुही महतं पमोई ना एवं तसि महमजपकर्मस परिभुजेमागाणं जाप गच्छति सत्तह दसर्पचेष वा विणाणि तापले खाडीपनिवासी मया एगे सनबसाउहरमा पारसिळ पदि. ऊर्ण सत्तापतीहिन हति, अन्ने स परहसिलासपुडमायलित्तार्ण एमई मेलति, तमि अ मेलिजमागे गोषमा ! जहन कहिचि तदितिभागओ सेसि एफ्फरस दोडपि वा गिफेड भ वेगा तो तेर्सि रपणदीपनिवासिमणुयाण सनिविपासायमंदिरस्त उपायणं, तक्मणा व सिं हत्या संघारकालं भवेजा, एवं तु गोयमा! सेसि तेणे मजासिलाधरहसंपुटेणं गिलि. याणपि नहिय र जापनसहिए दलिऊणसंपीलिए सुकुमालिया य(ण)ताव तेसिंगो पाणाइस्कम मवेजा, ते य अडही वारमिच दुइले, तेसि तु तस्य व पारसिलासपुर कम्। गगोणगेहि आउत्तमावरेणं अरहापखसरसन्गिचक्कमिष परिमंडलं ममालिय ताप गं संहति जाचणं संपच्छर, वाहे वं नारिस अचंतघोरबारुणं सारीरमाणसं महादुक्खसन्निवार्य समभषमाणा पाणाकर्म मानहापि ते तेसि अड्डीउ णो कुदंति, नो दोपले भति, णो संवलिजति, गो परिसंति. नवरं जाई काहनि संविसंधाणपणा तासमार (२८५) २१३६ महानिशीपच्छेदसूत्र - गुनि दीपरनसागर * दीप st अनुक्रम [६७८] ~25~ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [४], ------------ उद्देशक -1, ---------- मूलं [५] +गाथा:||१४...|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं विडताणवि जजरीभति, तनो ण इयरुवलपरास्सेव परिसविध पुग्णमिव किंचि अंगुराइयं अद्विखंड बठूर्ण ते स्वगदीचगे परिओसामुमती सिलासपुडाई उचियाडिऊण ताओ अंतरंडगोलियाओ गहाय जे तस्य तुषाहणे ते अणेगरिन्यसंघाएणं विकिणति, एतेणं चिहाणेणं गोयमा! ते रवणदीवनिवासिणो मया ताओ अंतरंगोलियाओ गेहंति, से अवर्ष! कई ते कराए तं वारिस अचंतपोरदारुणमुदुस्सह एम्सनियरं विसहमाणे निराहारपाणगे संघ. मनं जाव पाणे विचारयति, गोषमा सकयक्रम्माणुभाषाओ, सेसं तु पहचागरणनुबविचरणादरसे पासे भयर्व! तोऽनी समए समाणे से सुमती जी काहि उपचायं लभेजा, गोषमा! तत्वेष पडिसंतापदायगवले, तेणेच कमेणं सत्त भयंतरे, तोचिरइसाणे तोचि कन्हे समोवि वाणमंतरे, तोचि लिंबताए वनस्सईए, नजोषि मणुएम इस्पित्ताए, तोचि उडीए, तोचि ममुबत्ताए कही, तमओपि पाणमंतरे, तोचि महाकाए जहाहिवनी गए, तोचि मरिऊर्ण मेहुणासले अर्णतपणफतीए, सोधि अर्गतकालाओ मणुएम संजाए, तओविमगुए महानेमिनी, मोवि सनमाए, नजोवि महामच्छे परिमोयहिमि, नो सत्तमाए, मोवि गोणे, तोचि मणुए, ओपि बिहनकोइलियं, तोपि जलोयं, नोपि महामो, तोचि तंदुलमच्छे, तोवि सत्तमाए, तओवि रासहे. नसोचि साणे, नसोधि किमी, मनोवि दरे, वमोवि तेउकाए, तोपियू, तओपि महुबरे, नओपि चंडए, नसोधि उद्देहिय, तोचि षणकाए, तोचि अर्गतकालाओ मणुएम इत्थीरवणं, तो छडीए, तो कमेक, नो वेलामंडियं नाम पर सत्योपज्झायगेहासो लिंग(पत्न)नेगवणाई, नजोधि मणुए सुमित्थी, सोधि मण्यताए पंडगे, नजोवि मणुपनेर्ण दुग्गए, तोपि दमए, तोचि पुढवादीमुं भक्कावहिए पत्तेयं, सओ मणुए, तो चालतवस्सी, तो वागमतरे, सोधि पुरोहिए, तओपि सनमीए, तओ मच्छ, ती सत्तमाए, नओपि गोणे, तबोषि मणुए महासम्मरिही अविरए पकहरे, तो पढ़माए, तोचि इन्भे, तोवि समणे अगगारे, तोचि अगुत्तरसूरे, नत्रोविचकहरे महासंघपणे भवित्ता निविभकामभोगे जहोवाह संपूर्ण संजय काऊच गोयमा ! से गं सुमहजीवे पडिनिडेजा।६।नहा बजे भिक्खू पा मिक्सुणी वा परपासंडीणं पसंत करेजा जे याचिन मिमगाणं पसंसं करेजा जे निहगाणं अनुकृतं मासेजा जेणं निष्डगाणं आषवर्ण पवेसेजा जे जे निमार्ण गंधसत्वपयक्रसर वा परवेजा जेणे निष्पगाणं संतिए कायकिलसाइए नवेइ वा संजमेह वा नाणे या विवाह पा सुएडवा पंटिबेइ वा अभिमुहमुबपरिसामनागए सलाहेजा सेऽविय गं परमाहुम्मिएस उपरजेजा जहा सुमती। 31 से भवर्ष : नेणं सुमाजीपेणं नफाले समगनणं अणुपालिय नहानि एवंचिहहिनारयतिरियनरामरविचित्तोचाएहिं एवायं संसारा हिंडण : गोयमा आगमचाहाए लिंगगाहर्ण कीरान ईभमेव केवल मुदीहसंसारहेउभूध, गोणन परियाय निक्ला नेणेच संजम कर मन्ने, अन्नंच-समणनाए से य पढमे संजमपए जे फुसीलसंसपीणिरिहरण, अहा ग णो निरिहरे ता संजममेव ण ठाएमा, ता तेणं सुमहणा तमेवायरिब नमेष पसंसिय नमेष उत्सप्पियं तमेव सलाद हियं तमेचाहियंति, एवं च सुनमाकमिन्नाणं एवं पए जहा सुमती तहा अमेसिमपि सदरविरदसणसेडरणीनभइसमोमेयरसग्गधारिणगसमगदुईतदेचरक्खियमूणिणामाडीणं को संस्थाणं करेजाना एवमह चिहत्ताणं कुसीलसंभोगे साहा पजनीए।दा से भय ! किं ते साहुणो तस्स गाइलसाइटमस देणं कुसीले उया आगमजुत्तीए, गोवमा ! कई सइदमस्स रायसेरिसो सामायो ? जेणं तु सच्दनाए महाणुभाषाण सुसाहर्ण अवणवार्य भासे, तेनं सड्ढगेणं हरिपंसतिलयमरमयच्छविणो चाचीसदमधम्मनित्ययरअरिहनेमिनामा सयासे पंदणचनियाए गएणं बायारंग अर्णतगमनहिं पाविनमार्ण समवधारियं, सत्य व उनीसं आपारे परिजति सि वर्ग जे केद्र साहू वा साहनीना अभयरमायारमहकमेजा से गं गारस्थीहि उपमेयं, अहऽन्नहा समगुहे बाऽऽयरेजा पा पाणविना बा तो गं अर्णतसंसारी मवेजा, मा गोयमा! जे तुमुहर्णतर्ग अहिग परिगहियं तस्स नाप पंचमम-६ हायस्म मंगो, जे गंतु इत्थीए अंगोवंगाई मिन्माइऊण णालोदय तेणं तुमचेरगुत्ती पिराहिया, तमिराहणेणं जहा एगदेसदइदो पदो ददो भन्न नया पडत्यमहायं भर्ग, जेग य सहत्येणुपाऊणादिना भूई पडिसाहिया । तेणं नुतापमहाय मग, जेम य जणुग्गओ मूरित्रो उम्माओ भणिओ तमायनीयवयं भर्ग, जेष उण अनागोदमेण अच्छीणि पहोयाणि तहा अपिहीए पहटिशार्ग संकमण कयं बीयकायं च अनं वासाकापस्स अंचलगेण हरिय संघहिबं विजूए कुसिओ मुहर्णतगणं अजवणाए काफहस्स पाउकायमुदीरिय तेण तु पदमपयं भर्ग, नभग पंचम्हंपि महाया भगो कओ, ता गोयमा! आगमजूनीए एते कुसीला साहूणो.जओ गं उत्तरगुणाणपि भंगण इद,कि पुण जे मूलगुणाणं, से भय ता एपणाएर्ण विचारिक महराए घेत्तरे, गोयमा इमे अहे सम.से मयचं ! केणं अट्ठण , गोयमा ! सुसमणा वा सुसाचएडवा, ग तय भयंतरं, जहवा नहोपडद सुसमणनमणुपारिया अहा गं जहोपाई मुसावगत्तमनुपालिया, जो समणो समणत्तमायरेगा नो सावए सापयत्तमइयरेजा, निरदयारं वर्ष पर्ससे, तमेष य समणुहे.गपरं जे समणधम्मे से गं अचनपोरएबरे नेणं असेसकम्यक्रलयं, जहवे. गंषि अहुभकतरे मोक्सो, इयरेणं तु सुदेणे देवगई समाणुसन वा सायपरंपरेणं मोक्सो, नवरं पुनोचि संजमाओ, ता जे से समणधम्मे से अपिधारे सुविचारे पण( पुण्ण विचार तहनिमपालिया, उवासगाणं पुण सहस्साणि विधाणे जोज परिचाले तस्साइयारंवण भये तमेष मिहे ।।से भय ! सो उण गाइलसइदगी कहि समुप्पन्नो गोपमा! सिबीए, से मपर्व कद. गोषमा ' नेणं महागुभागेणं नेसि कुसीलाणं पिउद्देऊण नीए व बसायनरसंहसंकुलाए पोरकंतारादईए सत्रपाकलिमलकलंकाविष्पमुकं तित्ययरवयणं परमहिये सुदाहं भवसाएरॉपित्ति कलिऊणं अतविसुबासएणं फायदेसमि निप्पटिकम्म निसवार पहिचन्न पायचोजगमगमणसमंति, अह अन्नया तेगेर पएसेणं विहरमागो समागओ तिथपरो अरिहनेमी तस्स अ अनुग्गइहा एतिष प्रचलियसत्तो भन्यसत्तोनिकाऊणं, उत्तिमापसाहणी कया साइसया देखणा, तमायन्नमाणो सजलजलहरनिनायदेबदुंदुहीनिग्योसं तिथपरभासं सहजमवसायपरो आरुढो खपगसेडीए अउपकरण, अंतगडकेवली जाओ, एरोणं अहणं एवं बुधर जहाणं मोयमा ! सिद्धीए, ला गोवम! कुसीलसलमगीए विपहियाए एवायं अंतरं भवति ।१०।महानिसीहस्स पउत्यमायणं ४ात्र चतुर्याप्ययने बहरः सदांतिकाः केचिदानपकाम सम्यक बावत्येव, तेरवादपानरस्माकमपि न सम्पादचान इत्याह हरिमादमूरिः, न पुनः समिर चतुर्याध्ययन, अन्यानि ११३७ महानिशीथच्छेदसूत्र, Goetra247 मुनि टीनार PAPNAWARA ||१४|| दीप अनुक्रम [६७८] ~ 26~ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [१] गाथा |||| दीप अनुक्रम [६८४] "महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं) - अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [-1. मूलं [१] + गाथाः || १था मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ........... .... आगमसूत्र - [ ३९ ], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ मूलं या अध्ययनानि, अस्यैव कतिपयैः परिमितैराठापरधानमित्यर्थः यत् स्थानसमवायजीयाभिगमपज्ञापनादिषु न कथंचिदिदमाचस्ये यथा प्रतिसंतापकस्थलमस्ति तद्गुहावासिनस्तु मनुजास्तेषु च परमाधार्मिकाणां पुनः पुनः सप्ताष्टवान् यावदुपपातः तेषां चला परहसंपुटैर्मिलितानां परिपीड्यमानानामपि संवत्सरं यावत्प्राणव्यापत्तिर्न भवतीति वृद्धवादस्तु पुनर्यथा तावदिदमा सूत्र, विकृतिनं सायद मविष्टा प्रभूताथाश्रुत स्कंधे अर्थाः सुप्तवतिशयेन सातिशयानि गणधरोक्तानि वह वचनानि तदेवं स्थिते न किंचिदाशंकनीयं ११ एवं कुसीलसग्गि सोवाएहिं पहिलं उम्मग्गपट्टियं गच्छं जे वासे लिंगजीवगं ॥१॥ से गं निविग्धमफिलि सामन्तं संजम नेजा ने सिया भावे, मोक्खे दूरयरं लिए ॥ २॥ अयेंगे गोयमा पाणी, जे ते उम्मम्मापट्टियं गच्च संवासइत्ताणं, ममती भवपरंपरं ॥ ३॥ जामदजामं दिगप, मासं संपवा सम्ममापट्टिए गच्छे संवसमास गोयमा ॥४॥ लीलायमाणस्स निरुच्छाहस्त धीमनं पक्खोचेक्लीय पन्नेए महाणुभागाण साहु ॥ ५॥ उनमें सचामे पोरवीरतमाइ सक्वासंकभया तस्स वीरियं समुच्छ ॥ ६ ॥ पीरिएणं तु जीवस्स. समुच्छलिएण गोधमा जंमंतरकर पाये, पाणी हियएण निये ॥ ७ ॥ तम्हा निउ निमाले गच्छ सम्पापट्टियं निवसे तत्थ आजम्मं गोयमा संग मुर्गी ॥८॥ से भयर्थ कमरे से गच्यो जेणं यासेज एवं तु गच्छस पुच्छा जाणं ययासी, गोयमा जत्य णं समसत्तुमितले अर्थसुनिम्मसुतकर आसायणाभी सपरोवयारमन्युजए उनका सामु अमादी सविसेसचेतियसमयसम्भावे दाणविमुके सत्य अणिगृहियचलवरियपुरिसकारपरक एवं संजईकपपरिभोगनिए एते धम्मंतराय एतेन (स) लई एतेषं इत्यिकहा मत हालेक द्वारायकहा जणवयकहापरिमट्ठायारका एवं विचितियारसबनीस विचिनमप्यमेाविप्यमुळे एते जहालीए अडारसहं सीलंगसहस्साणं आराइगे सयलमहचिसाणुसमयममिलाए जोवगम्यरूपए बहुगुणकलिए मडिए अलसी नेगमहायसे महासत्ते महाणुभागे नाणदंसणचरणगुणावचे गणी [१] से भययं किमेस बाजा ? गोमा त्ये जे वासेला अत्येगे जे गं पोवासेना से भय के अद्वेणं एवं बुध जहां गोमा जे वाजा अन्ये जेणं नो वाजा, गोषमा अत्येगे जे आगाए लिए अथे जे आणाविरागे जे आणाठिए से सम्बदमनाणचरिताराहये, जे णं सम्मणनाण परिताराह से गंगोमा अर्थतविक सु (यह मोमोजे व उण आणाविराह से पंजाबंधी कोई से णं अतानुबंधी माणे सेणं अतानुबंधी कपये से अाधी लोभे जे अर्णतागुचंधी को हाइकसाथ चडके से णं पणरागदोसमोहम छतपुंजे से णं घणरागदोसमोहमिच्छत्तपुंजे से अगुत्तरपोरसंसारसमुदे जे अणुत्तरघोरसंसारसमुद्दे से पुणो २ मे पुणो २ जरा पुग्यो २ म जे पुणो २ जम्मजरामरण से गं पुणो २ बहुमतरपरावते जे पुणो २ बहुमतपराय से पुणो २ लसीइजोखिमाहिंट जे पुणो २ लसी जोक्सिमा से पुणो २ मुदुस पोरतिमिसंघारे रुहिरचिलिचिले वसपूयवंतपित्तभिचिखतदुग्धा किल्ली जंत्रालय कविसत्यरंटपडिपुत्रे अणिउत्रियणिऽइपोरखंडमहारो दुस्वदारणे गम्भपरंपरापवेसे जे गं पुणो २ दारुणे गन्धपरंपरापसे से दुक्खे से गं कैसे से र्ण रोगार्थ के से सोगसंतापुत्रेय जेणं दुक्ख केसरोगार्थ कसोगसंताप से अणि बुली जेणं अनिवृत्ती से जट्टियमणोरहाणं असंपत्ती जे गं जहट्टियमणोरहाणं असंपत्ती से नं नाव पंचम्पारअंतराय कम्मोदर जत्य पंचम्पयारकम्मोदर एत्य णं सवाणं अम्गणीए पढमे नाच दारिदे जेणं दारिदे सेवा अयसम्मका अतिनिकटकराती मेलामागमे जेथे अपसम्भवाणजकित्सिकलंकरासी गाने से व जे निदणिजे जे जे जे सम्रपरिभूयजीविये जेणं परिभूयजी पिए से णं सम्मदंसणनाणचरितगुणेहिं सुदूरपरेण विप्यमुळे चैत्र मयजम्मे अब्रहा वा समपरिए चेषणं भवेजा, जेणं सम्मदंसणनाणचरिता गुणेहि सुदूरयाणं विप्यमुक्के शेष न भये से णं अनिरुद्धासदार चैत्र, जेणं अनि रुदासपास्ते चैव से बहलाका बलपावकम्मायय से बंधे से णं बंधी से गंगुली से णं चार से पूर्ण सहमकडाणमंगलजाले दुडियोले नगाइए कम्मली से कक्लडपण निगाइयकम्मगंठी से षणं एगिंदियत्ताए बंदिलाए तेईदियताएं चरिदिवचाए पंचिदियत्ताए नास्पतिरिय्कुमाणुसे अणेगविहं सारीरमाणसं दुःखमणुभवमाणे देय, एए अद्वेणं गोयमा एवं युवइ जहा जत्थेगे जे वासेना अत्येंगे जे नो वाजा २ से भययं कि मिल्छ उच्छाइए के गच्छे भवेजा, गोयमा जे गं से आणाचिरागे मन्छे भवेजा से नियमिन्छ उच्छा भला से भय कपरा उण ता जाणा जीए लिए गच्छे आगे भवेजा, गोयमा संखाइएहिं धातरहि गच्छस में जाना पहना जाए लिए गते आगे मजा ३ से भय कि सिखाती मेरा जन्थि के अन्य भाणंतरे जे उस्सयोग या अवाएग वा कहनि पमापदोसेणं असई अफमेल कण या आराहगे भवेजा, गोपमा मिच्छयओ नत्थि से भय के अद्वेणं एवं बुम्बइ जहां णं निच्छपज नन्थि, गोयमा तित्थयरे साथपरे नित्थे पूर्ण चाडबन्ने समणसं स गच्छे पढ़िए, गच्छेत्रिणं सम्महंसणनाणचरिते पड़िए, ते य सम्मदंसणनाणयरिते परमपुजणं गुजरे परमसरण्णा सरणपरे परमसे परे ताईच जन्य गं गच्छेअन्नयरे ठाणे कल्प विराजिति से गच्छे सम्मापणास उम्मदेसए जेणं गच्छे सम्मग्गपणास उम्मदेसर से निच्छवाह एवं गोयमा एवं पुई जहान संखादीधाण गच्छे मेरादाराजे गच्छे एगमन्नयरहाणं अइकमेव आणाचिरागे । ४। से भगवं वइयं का जाप गच्छस्स णं मेरा पन्नविया केवइयं का जाव णं गच्चस मेरा बाइकमेया गीयमा जागणं महायसे महासने महासुभागे दुप्पस अणगारे साथ मेरा पचविया जाप महायसे महासने महाणुभागे दुप्पस अणगारे ताव णं गच्छ मेरा नाइकमेचा १५० से भय कमरे में लिंगेहि कमियमेरे आसावणाबद्दल उम्मम्मपट्टियं गई बियाणेज्ञा १, गोयमा! जे असंठवियं सच्छंदयारिं अमुणियसमयसम्भावं लिंगोजीचं पीठफलगपडिवढं अफासुबाहिरपानपरिभोई अमुणियसत्तमंदीधम्मं साचस्सगकालाकारं वरसगाणिक उपारितावस्पर्श ११३८ महानिछेद अ मुनि दीपालसागर अत्र चतुर्थ अध्ययनं समाप्तं अत्र पंचमं अध्ययनं "नवनीत सारं" आरब्धः ~ 27~ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [५], ....------ उद्देशक [-], ---------- मूलं [७] +गाथा:||९||मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं विषयमयहरं देहिति व विषा तुपाहणतील मोगमा! असंठिय च गणणापमाणऊगाइरिसरबहरणपत्तनगमहर्णतगाइउवगरणधार गुरुवारणपरिभोई उत्तरगुणनिराहगं मिहत्वछंदाणुवित्ताइसम्याणपवसं पुढवीदगागनिवाऊवणफईचीयकायतसपाणधितिषउप दियार्ण कारणे वा अकारणे वा असती पमायदोसओ संघहमादीस अदिदीस आरंभपरिगहपवितं अदिन्नालोयणं विगहासीलं अकालवारि अपिहिसंगहियनपरिक्तियपावित्रोचट्टावियासिक्सविधवसविहविणयसामावारि तिमिर्ण इढिरससायागारवजायाइमवचाउकसायममकारअहंकारकठिकलहमेशाउमररोहमागोयगय अठावियबहुमयहरं देहित्ति निच्छोडियकर बहूदिवसकयलोयं निजामततंतजोगजा(गंज)पाहिजणिकपदकावं अदमूलजोगमणिोग दुकालाइजालं. वणमासज अापकीयमाइपरिभुजगसील किंचि रोगार्यकमालंपिय तिगिच्छाहिणंदणसी जंकिंचि रोगार्यक्रमासीय विद्या तुपहनसीसं कुसीलसंभासणाणुवित्तिकरणसी अगीयत्यमुहविणिमायागदोसपायहिवयणाणुहाणसीलं असिवणुखग्गगडीपकुंतचकाइपहरणपरिग्गहिवाहिंदणसील साहूचेसियजन्नसपरिवत्तकबाहिंडणातील एवं जायचं अ हाओ पपकोडीओ ताप गं गोषमा! असंठियं चेष गई वायरेजा।६। नहा अवणे इमे बहुप्पगारे लिंगे गच्छस्सणं गोयमा समासो पग्नविति.एतेय एवारिसेणं गुरुगुणे चिन्नेए जहा- गुरू ताप सम्बजगजीपपाणभूषसत्ताणमाया भवा, किं पुण गण्डरस, सेणं सीसमणार्ग एगणं हिय मियं पत्य इहपरयोगमुहावह आगमाणुसारेण हिजोबएस पयाइ, सेणं देविदनारदरिबीमार्णपि पवस्त्तमे गुरुवएसप्पयाणलभेतं चा(सत्ता)पाए परमक्सिए जम्मजरामरणादीहिणं इसे मध्यसत्ता महंगाम सिवयह पातित्तिकाकर्म गुरुपएस पयाड, सणो गं बसणाहिए जहाणं गहन्पत्ये उम्मसे, अस्थिएज पा जहा णं मम इमेण हिजोपएसपयाणेणं अमुगहलाम भकेजा, णो ण गोयमा ! गुरु सीतार्थ निस्साए संसारमुत्तरेजा, जो जे परकएहि सासुहासुहेहि कस्सइ संपर्क अस्थि असा गोयम! एच एवं ठिमि जइ बवपरित्तगीयत्यो । गुरुगणकलिए य गुरुणा भणेज असई दम पयर्ण ॥९॥ मिण गोणसंगुलीए गणेहि बा दंतपकलाई से सहमेव करेजा कजनमेष जागति॥१०॥ागमपिऊ कथाई सेये कायं ममिज आयरिया । वह सदहिया भपिया कारण तहि ॥१॥जो गेहा गुरुवपर्ण भन्नत भाषओ पसन्नमगो। ओसहमिव पिजत सेतस सहावई हो ॥२॥ पुग्नेहिं बोइया पुरक्खएहिं सिरिभायणं भपियसता । गुरुमागमेसिनहा देक्यमिव पलवासंति ॥३॥ बहुसोक्खसयसहस्साण दायमा मोवगा दुहसवान । आयरिया फुडमेयं केसिपएसीय ने हेऊ॥४॥नस्थगइनमणपरिहत्यए कर सह पएसिणा मा। अमरविमाण पतं ते आपरिषपभाषणं ॥ ५ ॥ चम्ममाएहि आइसमहुरेहि कारणगुणोचनीएहिं । पाहायंतो हिवयं सीसं चोहज आयरिजो॥६॥ एत्यं चापरिभाणं पणपर्य होति कोडिलक्खाओ। कोडी सहस्से कोडी सोय नह एलिए ॥ ७॥ एनेहिं मझाओ एगे निमुन गुण()गणाइन्ने। सकुत्तमभंगेर्ण नित्ययरस्सऽगुसरिस गुरू IIसेऽविध गोषम देवयवयणा परित्यगाई सेसाई। तं तह आराहेमा जह तित्यपरे चाउमीसं ॥५॥ सामी एत्य पए दुवालसर्ग सुर्य तु भणियाई। भन सहा अविमिणिमो समाससारं परं मने ॥२०॥ जहा- मुणिणो संघ विस्वं गण पश्यण मोक्समग्ग एगट्टा। इसपनाणचरिने घोरुगत र गमडणामें य॥१॥ पयलंति जन्य धगधगधगत गुरुणोधि चोदए सीसे । रागहोसेणं अह अणुसएणत गोयम! ण गच्छं॥२॥गया महानुभाग तत्य पसंताग निजरा किला । सारमवारणचोयणमादीहिंग दोसपडिपत्ती ॥३॥ गुरुणी वणुपले सुषिणीए जियपसहे धीरे । परि यो पापिय पपि गारथिए न विगहसीले ॥४॥ खते देते मुसे गुते वेरमामग्गमाडीणे । बसव्हिसामावारीमावस्सगसंजमुजुते ॥५॥ सरफरसककसाणिहरहनिरनिराइ सय । निम्नभाणनिवारणमादीहि न जे पओसंति॥६॥जेवण अफिसिजणए गाजसजणए गडकजकारी य । नवपक्षयणुदाइको ठगयपाणसेसेचि ॥ ७॥ सजायमाणनिरए पोरतपचरणसोसियसरी गपकोहमाणका दृजिमयरागदोसे पर ॥८॥ विपजोपयारकसले सोलसविहवयणभासणाकुसले। गिरवजयणमगिरे ग य बहुभमिरे पुणमणिरे ॥९॥ गुरुणा कलमको लरकफसफस्सनिठुरमणिहूँ। भगिरे तहति इचा भनि सीसे तयं गई ॥३०॥ नूरुजिाय पत्ताइस ममतं निम्पिहे सरीवि। जायामायाहारे बायालीसेसणाकुसले ॥१॥ पिण कचरसत्य मुंजता न येव दपत्वं । अश्वार्षगनिमित्तं संजमजोगाण वहमर्थ ॥२॥ वेषण पेयापये हरियडाए य संजमहाए। तह पाणबत्तिबाए उई पुण धम्मचिंताए ॥३॥अपुग्नाणमहणे चिरपरिचिवधारणेकमुजुने । सुतं अत्यं उभयं जाति अनुट्टयति सया ॥४॥ अङ्क नाणसणचारित्ताचार पचाउमि । अणिमूहियबालपीरिए अगिलाए पणियमाउत्ते ॥ ५॥ गुरुणा सरफरमाणिहानिदरगिराए सयदुवं । मणिरे को पढिसरिति जरथ सीसे तरं गच्छं॥६॥ तवसा अचितउपमहादिसाइसपरिदिकलिएवि। जत्य नहीलंति गुरू सीसे तंगोयमा गळं ॥७॥ साहि. विलयपाबाउयाण विजया विद्वत्तजसपुजे। जय नहीलंति गुरूं सीसे तं गोयमा ! गच्छं ॥८॥ जत्थासलियममिलिय अबाइई पयक्खरपिसदं । विणओपहाणपुर्व दुवालसंगपि सुचना ॥९॥ गुरुवलपमत्तिमरनिभरिकपरिभोसलबमालाये। अझीयति सुसीसा एगमामणा स गोषमा गई ॥४०॥ सगिलाणसेहवालाउलस्स गठसा इसचिई रिहिगा। कीर याच गुरुआणत्तीएं तं गच्छ॥१॥ दसचिहसायापारी जत्थ ठिए भासनसंपाए। सिन्झतिय गुमति पण य संडिजह नयं गच्छ॥२॥इच्छा मिच्छा तहकारो, आपस्सिया व निसीहिया । आपुच्छणा य परिपुच्छा, दणा य निमंतणा ॥ उपसंपया यकाले सामाचारी भये बसविहा 30३॥जस्य व जिह कणिवा जानिजह जेहषिणयमाणं । दिवसेणपि जो जेहो पो हीलिजइ तय गर्छ । ४॥ जत्थ व अनाकर्ष पाणचाएचि रोखुम्भिकरो। प य परिभुजद सहसा गोयम ! गई तब मणिय ॥ ५॥ जत्थ य अनाहि समय घेराविण अइति गवदसणा। ण व मिझायति स्वीगोचंगाई से गई ॥ ६॥जय य सन्निहिउक्खडआइडमादीण नामगहनेऽपि । पूर्वकम्मा भीए आउना कम्पतिमि ॥७॥ जत्थ य पचंगुम्भउबुजयजीत्रणमरहदप्पण। बाहितावि मुणी मिक्सति तिलोत्तमंपितंग ॥ ८॥ पायामेनेगवि जत्य भहसीलस निमहं निहिणा। बहुलदिजुबसेहस्सवी की गुरुमा तयं गच्छ॥ ९॥मए निहुयसहावे हासदविपलिए विगहमके । असमं. जसमकरेते गोपरमध विहरति ॥ ५० ॥ मुगिणो गाणामिगहनुकरपच्छिन्नममुपरवाणं। जाया चित्तचमक देविवानपिन गई ॥१॥ जत्व यवनपदिकमणमाइमंडलिपिहाननिउणजू । गुरुषो असलियसीले सायं ११३९ महानिशीथयोदसू Jaavel-v मुनि टोपाजसागर दीप अनुक्रम [६९८] ~ 28~ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [५], ---.--- उद्देशक [-], --------- मूलं [७...] +गाथा:||५२|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं मा भवति समत्व । भयमा चारसवि अनावे ॥ ७ ॥ तस्म लपि गेम्हमादीसु । "जय अजाहि गायम ! विविवरण अनानासपनिमा) गाथा ||२|| कठुग्गतबनिरए॥२॥ जत्यय उमादी नित्ययराणं सुरिंदमहियाणं । कम्महविष्पमुकाण आणं न खलिगाइ स गच्छो॥३॥तित्वया वित्ययो तिथं पुण जाण गोयमा! संघ । संघय लिए गच्छे गठिए नागदसणचरिते॥४॥णाईसणस्स नान दंसणनाणे भवंति समत्व । भषणा चारितस्स तु देसणनाणे पुर्व अस्थि ॥ ५ ॥ नाणी देसणरहिओ परिसरहिनो प भमइ संसारे। जो पुण चरित्तजुनो सो सिजर नस्थि संदेहो ॥६॥ नार्ण पगासय सोहो गयो संजमो य गुतिकरो। निव्हपि समाओगे मोपलो कस्सवि अमावे ॥ ७॥ तस्सवि यसकंगाई नाणादितिगस्त संनिमावीणि । तेसिपकेवापर्य जत्थाणुदेजइस यच्छो ॥८॥ पुढविदमागनिवाऊवणकई तह तसाण विविहार्य। मरणतऽविण मणसा कीरद पीडे तयं गच्ळ ॥९॥जत्य य बाहिरपाणस्स चिंबुमेनपि गेम्हमादीम। सम्हासोसियपागे मरनेवि सुणी ण इच्छति ॥६- जत्थ य सूतापिसाय अन्नवरे पा शिचित्तमायके । उपन्ने जलगुजालणाई म कति मुगी तयं गच्छं॥१॥जस्थ य तेरसहल्ये अजाओं परिहरति णागहरे । मणसा सुपदेययमिव सामरित्यी परिहरंनि ॥२॥ (र)तिहासलेड्डदपणाहबाई कीरए जत्या धावणदेवणरुपण ण मयारजयारउधरणं ॥२॥ जन्चिस्वीकररिस अंतरिय कारणेचि उपग्ने । बिहीपिसदित्तम्गीविसंच बलिनाइ स गच्छो ॥४॥ जस्थिस्वीकरफरिसं लिंगी अरहावि सयमपि करेजा। तं निभायजी गोयम ! जा. मिना मूलगुणवाहा ॥५॥ मूलगुणहि उखलियं प्रगुणकलियपि सविसंपन्न । उत्तमकुरिपि जाय निदाहिना जहिं नपं गच्छ॥६॥जय हिरणपणे धमचन्ने कसदृसफलिहाणं । सपणाण आसणाग पनप परिमोगो से तयं गई ॥ ७॥ जन्य हिरण्यासवर्ग हत्येण परागर्यपि नो छिपे। कारणसमप्पियपिहुखणनिमिसबंपित गळ ॥८॥ दुखसंभश्यपासणट्ट अजाग चालचित्ताणं । सत्तसहस्सापरिहारठाणवी जत्थस्थितं गई ॥९॥ जनस्वपटिउत्तरेहि अजा उ सादुणा सदि। पलपनि मुकवाची गोषम! किनेण गोण?॥७॥ जन्य य गोयम! पदविहविकपकशोलपंचम्ममाणे। अजाणमहिला भणियं न फेरिर्स गय?॥१॥ जत्येकंगसरीरा साहू सह सारणीहि हत्यसया । उदई गण्डेन हि गोयम ! गामि का मेरा ॥२॥ जय ज अजाहि सम संतापायमाझ्यवहारं । मोतु धम्मुबएस गोयम! केरिसं गई? ॥३॥ भयरमणियतविहारं णिययविहारंण नाव साहूर्ण । कारणनीयापास जो से नस्स का पना॥४॥ निम्ममनिरहंकार उजुने नाणसणपरिने । सपलारंभचिमुफे अपडिवडे सदेहेवि ॥५॥ आधारमायरले एनसेलेविगोपमा मुणिणो । बासनयंपि वसते गीयन्ये राहगे भणिए ॥६॥ जन्य समुदेसकाले साहूर्य मंदारीएं अजाओ। गोयम ! ठपनि पाये इन्धीरज न ले गई ॥ ७॥ जप य इत्यसएविय स्वनीचार पाउण्डमुणाओ। उइदं इसण्हमसह में (ग) कति अजातयं गच्छं ॥८॥ अबयाएपवि कारणपसेग अजा चउमगाउ । गाऊयमपि परिसकति जत्थन करिस गच्छ९॥जस्म य गोयम साह अजाहि समं पहमि अणा । अपचाएणपि गरज तय गचडमि का मेरा ॥८॥ जत्य व तिसविभय चरसुरामामादीरणि साह । जजाउ निरिसखेजात गोयम फेरिसं गई ॥१॥जस्थ व अजाल पटिग्गाहदंडादिपिपिहनुषनरन । परिभुजा साहुहिन गोयम ! केस्सिं गम्॥२॥आरलाई मेसज वरमुदिविषदमंपि पुद्धिकरं । अमाल मुंगद का मेरा साथ गपळमि?॥३॥सोऊण गई सकुमालियाए तह ससगमसगमणीए । सावन पीससिया सेबड्डी पम्मिओ जाण ॥ ४॥ चारिन मोर्नु आपरिच मयहरं ष गुणरामि । मा बट्टायेई अपमान गर्छ॥ ५॥ वणगणि(चिड)ययकुहायवेजदुग्जामूदाहियपाउ । होजा मावारियाओ इत्वीरलं नसे ग पवफ्सा सुयदेखी नवलदीए सुराहिवणुयावि। जन्म रिएजा कजाई इत्थीरज नतंग ॥ ७॥ गोयम पंचमहन्वय गुनीणं निराह पंचसमिईणं। इसपिहचम्मस्सिक कहरि खलिजानतं गई ॥ ८॥ दिगदिस्वियम्स बमगरस अभिमुहा अजचंदगा अजा। निच्छा आसपाहणं सो विणओ मध्यअजाण ॥ ५॥ पाससयदिक्सियाए अजाए अजदिक्खिनो साहु। मत्तिभरनिश्मराए वंदनविणएण सो पुजो ॥९॥ अजियलाभे गिदा सएम रामेण जे असंतुहार भिक्खायरियामागा अभियर्स गिराऽऽहंति।१॥ गयसीसगण ओमे मिक्तापरियाअपचा घेर । गणिहिनि गते पाचे अभियला गवसंता ॥२॥ ओमे सीसपमासे अपहियदे अजंगमतं चाण गमेज एगटेने गणेज यासं पिपयवासी ॥३॥आपणाण भरिभोलोजो जीवस्सी . जउकामसाज पिष्टदलोएतं मालवणं कुणइ ॥४॥जय मुणीण कसाए चमविनंतवि परकमाएहि । अनज समुद्देउ सुगिविही पंगुला नर्थ (गच्छ)॥५॥ धम्यंतरायभीए भीए संसारगम्भवसहीणं । गोदीरिजकसाए मुणी मुणीर्ण सगळ॥६॥सीलनवदाणभाषणचाचियम्मतरायभवभीए। जत्वरह गीयत्वे गोयम! गई तयं पासे ॥ ७॥ जन्य य कम्मविवागरस चिहियं पठाईए जीवाणे । गाऊगमपरदेऽवी नो पकुष्णनिगमई जन्य य गोयम : चिह कहवि सूमाण एकमवि होना। मच्छ विविहणं बोसिरिय बदन अनस्थ ॥९॥ सूणारंमपवितं गच्छ सुजलंपण बसेजा । जे पारितमुहितु उजालं ते नियासेना ॥१०॥ नित्थयरसमो री जयकम्पमापतिमाते। आगं अइकमंते के कापुरिसे न सप्पुरिसे ॥१॥ महापारी सूरी भट्टाचाराणुविक्लो सूरी। उस्मग्गतिओ सूरी निष्णिवि मग पणासंति ॥ २॥ उम्मग्गठिए मूरिमि निन्दय भासत्तसंचाए। जम्हा मगमणुसतिसम्हागतं जुनं ॥३॥ एकपि जो दुहनं सत्तं परिचोहित मनो। ससुरासुरंमिवि जय तेणेई पोसियं अमाचार्य.४. भूए अस्थि भविस्सनि कई जगपंदणीयकमजुयले । जेसि परहियकरगेकाबलसाण बोलिही कालं ॥५॥ भूए अणाइकास कई होहति मोयमा ! सूरी । नामग्गहणेणचि जेसि होज नियमेण पश्चिानं ६॥ एवं गाववत्य दुप्पलहाण(ब)तरं तु जो खंटे। गोयम ! आण गणि निच्छयोऽर्णतसंसारी । जसबलजीवजगमंगलेककहाणपरमाणे । सिदिपए बोच्छिम् पच्छित होजन गनिनो ॥८॥ तम्हा गमिणो समससुमिनपारखेग परहियरएणं । कतामसुगा अप्पणो य आणा ण रुपैया ॥९॥ एवं मेरा गाँधेयानि एवं गाय लपेत्तु तिमारपेहि परिषद्ध संसाए गणिगो अजरिमोहिमपाति॥११॥ग लभेइिंति य अ अर्णतहुत्तोचि पीरमर्म नित्य पिउगइनवसंसारे विहिन पिरं सुदुखते ॥१॥ बोइसरनुलोमे गोचमा बालग्गको. डिमेपि । नरिथ पएस जाय अपंतमरणे न संपत्ते ॥२॥ पुलसीइजोगिलक्ले सा जोणी नरिच गोषमा बहई । अत्याग अर्गतहुलो सजीवा समुपज्ञा ॥२॥ सूर्यहिं अग्गिषचाहि, संनियस निरंतरं । जापइर्य गोयमा। शुक्स, गम्भे अगुणं तयं ॥४॥ गम्भाजो निष्पिदंतस्स, जोणीजैतनिपीलगे। कोडीगुर्ण तवं दुक्खं, कोडाफोबिगुणपि वा ॥५॥ जापमाणाण जे एक्वं, मरमाणाण जंतुर्ण । तेण हुक्लविचागे(निवाग), जाईन सरंति (२८५) १९४० महानिशीथडेदसूत्र 3000 मुनि दीपरासाना दीप अनुक्रम [७४२] भ करू ~29~ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [५], ------------- उद्देशक [-1, ---------- मूलं [८] +गाथाः||११७|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं P ॥११७|| अत्तणि ॥६॥ नाणाविहास जोणीस, परिभमतेहि गोयमा । तेण दाखवियागेण, समरिएण गवि जिाए ॥ ७॥ जम्मजरामरणदोगबवाहीओ चिटुंतु ता । रुनेजा गम्भवासेण, कोण पुढो महामई महिपहपाले . 8 अमुईकस्लिमठपूरिए । अगिट्टे य दुमिर्गधे, गम्मे(ता) को पिई समे? ॥९॥ ता जत्य दुक्सविविखरणं, एगंतसुहपाचर्ण । से आणा नो संडेजा, आणाभंगे कुजो मुहं ? ॥१२०॥ से भयवं! अहहं सारणमसाई उस्सग्गेण या अश्या एण वाचडहिं अणगारेहि समंगमगमागमणं निसेहियं नहा वसह संजईण हेहा उस्सम्मोणं चउहंत अभाने अक्वाएणं हत्यलयात उद गमणं गाणुष्णायं आर्ण वा अइकमंते साहवा साहुणीओ वा अगंतसंसारिए समस्खाए ता पां से दुप्पसहे अणगारे असहाए भफेजा साविय चिण्डसिरी असहाया चेष भवेजा एवं तु वे कहं आराहगे मवेजा?, गोयमा! णं दुस्समाए पस्थिते ते चउरो जुगप्पहाणे खाइगसम्मत्तनाणदंसणचरित्तसमन्निए भवेजा, नत्य जे से महायसे महाणुभागे दुप्पसहे अणगारे से गं अर्थताविसुद्धसम्मदसणनाणचरितगुणेहि उनसेए सदिसुगइमम्मे आसाषणामीक अर्थतपरमसदासगरमासम्ममाहिए पिरूमायणामललस्यकोमुईसनिम्माईजुकरविमलापरपरमजसे पंडाचं परमपंदे पुजार्ण परमपुजे भवेना, नहा साचिय सम्मत्तनाणचरित्तपडागा महापसा महासत्ता महाणुभागा एरिसगुणजुला चेष सुगहियनामधेजा पिण्डसिरी अणगारी मकेमा, संपिणं जिणदत्तफासिरीनामं सावगमिहुणं | बहुवासरवाणिजगुणं चेव भवेजा, तहा तेसि सोल्लस संवाराई परमं आउँजह य परियामओ जालोइयनीसातागं च पंचनमोकारपराणं चटत्यमगं सोहम्मे कप्पे उपचाओ, तपर्णतरं च हिडिमगमणं, तहाचि ते एवं गच्छत्यर्थ गो चिटपिम् । दासे भय ! केण अट्टेणं एवं सुबह जहाणं तहाचि एवं गच्छवचत्वं णो विलंचिंसु,गोयमा ! इओ आसनकालेणं चेष महायसे महासने महाभागे सेजभषे नामं अणगारे महातपसी महामई दुवालसंगसुयपारी भयेजा, सेणं अपसवाएणं जपाउसे भवसत्तेसु य अतिसएग विन्नाय एकारसहं अंगाणं पउदसण्हं पुराणं परमसारणपणीयभूयं सुपउणं सुपदमा(यघरोज्जोय सिदिमम्मे दसवेयालियं गाम मुयल मिडेजा, से भया ! कि पदुम, गोयमा ! मगर्ग पहुंचा, जहा कई नाम एवस्त से मणगस्स पारंपरिएग थेवकालेणेव महंतचोदुक्खामराजो चउगइसंसारसागराओ निष्केटो भवतु ?. सेविण विणा सत्रनुपएसेणं, से य सत्र वएसे अणोरपारे । दुरपगारे अर्गतगमपनवेहि नो सका अप्पे कालेणं अवगाहिलं. लहाणं गोयमा! अइसएणं एवं चिनेज्या, एवं से णं सेशंभवे जहा 'अणंसपार बहु जाणियाई, अणो अकालो बहले अविग्थे । ज सारभूत में गिटिया, हंसो जहा सीरमिपंचमीसं ॥१२१॥ तेणं इमस्स भनसत्तम्स मणगस्स तत्तपरिमाणं भवत्तिकाउ जावपं दसवेपालिय सुबक्सं णिमाबाहेजा,नेचचोख्छिन्नेर्ण तकालवालसंगेणं गणिपिरमेणं जायणं समाएपरियंते दुप्पसहे नावणं सुन-- स्पेणं पाएना, सेजसबागमनिस्संदं बसचेयालियमुपक्संघ सुनो अज्झीहीय गोयमा से दुष्पसहे अणगारे, नओ तस्स णं दसवेयालियमुत्तस्साणुगबत्थाणुसारेणं सहा चेव पवालिजा, गोणं सम्दवारी भवेजा, नत्य दसवेयालियमुपये तकालमिणमो दुवालसँग सुयक्तंचे पहिए भवेजा, एएणं अगं एवं युवाइ जहा नहावि गं गोयमा ! ने एवं गच्छववत्वं नो विचिस् । ५। से भय ! जाणं गणिोवि अयंतापिसुद्धपरिणामस्साच कर दुस्सीले साउंदत्ताएइ वा गारवनाएइ वा जापाइमयत्ताएइमा आणं आफमेजा से गं किमाराहगे भफेजा, गोयमा ! जेणं गुरू समलनुमिनासो गुणगेम ठिए सवयं गुलामुसारेण पेत्र विसदासए विहरेजा तस्साणमइ-- ऋतेहि गवणउएहि पाहि सएहि साहणं जहा सहा व अणाराहगे भवेशा॥१॥से भया ! कपरे गं ते पंचसए एकविवजिर साहूर्ण जेहिं च णं नारिखगोववेयस्ल महाणुभागरस गुरुणों आणं अइकमिउंणाराहियं , गोयमा! | ण इमाए चेष उसमयाउनीसिगाए अतीनाए नेपीसइमाए चउवीसिगाए जानणं परिनिबुडे पाठवीसइम अरहातावर्ग अदक्कतेण केवाएणं कारण गुणनिष्फन्ने कम्मसेलमसमूरणे महापसे महासने महाणुभागे सुगहिवनामधेने बहरे गाम गन्दाहिबई भए. तस्स ग पंचसय गच्छ निम्ांधीहि विणा, निमगंधीहि सम दो सहस्सेय जहेलिना गोपमा : नाओ निग्गंधीओ अबंतपरन्टीयमीरूपाउ सुविसुद्धनिम्मतकरणाओ संताओ देवाओ मुनानो जिइंदिया ओ अचानणिरीओ नियसरीरस्ताविय कायवच्छलाओ जहोक्हअर्थतपोरवीतषचारणसोसियसरीराओ जहा या निस्थवरेण पनवियं तहा ने अदीणमणसानो मायामयहंकारममकारख(र)तिहासस्वेदङकदापणाहयायनियमकात्री नस्सायरिपस्स सपासे सामन्नमति , नेयमारणो सोचि गोयमा ! न तारिसे मगागा, अहऽनया गोयमा ! वे साहुणोतं आयरियं भणति जहा जाणं भयर्व ! नुमं आणहिता णं अम्हेहि तिस्थयनं करिय चंदप्पहसाभियं वंदिय धम्मचकं गणमागच्डामो, ताहे गोयमा ! अदीणमणता अणुतावलगंभीरमहराए भारतीए भणिय नेणायरिएणं जहा इच्छायारेण न कापड निन्थयन गर्ने सुविहिपाणं, ना जाय गं बोलेड जन ताप णं अहं तुम्हे चंदापह बंदावहामि, अन्नच जत्ताए गएहि असंजमे परिजइ. एएणं कारणं तित्वयत्ता पहिसहिजइ, नओ तेहि मणियं-जहा भयर्थ! फेरिसो उण तिस्थयनाए गच्छमाणाणं असंजमो भवइ ?. सो पुण इच्छाबारेण, विजवार। एरिस उहावेजा हजणेणं बाउलम्गो भग्निहिसि. लाहे गोषमा वितिय तेज आयरिए जहाणे ममं वाकमिय निच्छयो एएगचिहिनि नेणं तु मएसमय चर(प)नरेहि वयंति, अह अन्नया सुबहुं मणमा संचारकर्ण पान मणियं तेण आयरिएणं-जहाण नुम्भे किचिपि मुत्तत्वं पियाणह चिय तो जारिस तित्थपनाए गच्छमाणाणं असंजमं भवन तासि सयमेव पियाणेह, कि एत्य बहुपलबिएण?, अन्नच-पिदियं तुम्हेहिपि संसारसहाय जीवाइययस्थतनंच, अहऽन्नया बहुउपाएहिंग चिणिवारितस्तवि तस्सायस्विस गए पते साहुगो कुदेणं कयं तेर्ण परियरिए वित्ययत्ताए, लेसि च गच्छमागार्ण करथइ अणेसणं कत्थर हरिवकायसंघ कत्व बीयकमर्ण कथा पित्रीलियादीण तसाणं संपणपरिताचणीरत्रणासभत्र कत्थर पाइहपटिकमण कत्थाइ ण कीरए चेच चाउकालियं समाय कल्याण संपाडेजा मत्तमंडोपपरगन्स पिहीए उभयका पेहपमजणपडिलेहगपालोटण, किंबहुणा'. गोयमा ! किनियं भनिहिड ? अहारसव्ह सोलंगसहस्साणं ससरसविहस्सगं संजमस्स दुवालसविहस्स पं. सम्भतरबाहिरस्म तबस्स जाव से संताइअहिंसालक्सणसेच य दसविहस्साणगारधम्मस्स जन्यकपर्य पेष सुबहएणपि कालेग चिरपरिचिएग दुवालसंगमहासुपरसंघेणं पहुभंगसयसंपत्तणाए दुक्तं निरहयार परिचालिऊण जे, एवं च स जहाभणियं निरहयारमगुहेयंति, एवं संभरिका चिनिय नेण गच्छाहिनाणा-जहा गं में विष्यमलेग ने ११४१ महानिशीषच्छेदसूत्र Hidiarul-V मुनि दीपक्षमागर दीप अनुक्रम [८०७] yawrah ~30~ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क आगम “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [५], ------------- उद्देशक [-], --------- मूलं [११] +गाथा:||१२२|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत [११] + गाथा ||१२२|| ForLIRALA दुहसीसे मजा आणाभोगपचएणं सुबह असंजर्म कातिलेच स ममऽच्छतिय होही जत्रो कहतेसिं गुरू ताई तेसि पट्टीए गंतूर्ण पडिजागरामि जेणाहमित्य पए पायच्छिणं णो संबोजोति वियपिऊणं गो सो आय-3 रिओ तेसि पट्टीए जाच गं विढे लेन असमंजसेन गच्छमाणे, नाहे गोयमा! सुमहुरमंजुलालावेर्ण भणियं तेणं गच्छाहिनाणा जहा भो भो उत्तमकुलनिम्मलबसविभूसणा अमुगजमुगाइमहासत्ता साह पहपडिपन्नाणं पंचमहायाहिडिवतणूर्ण महाभागार्ण साहुसाहुणीणं सत्तावीस सहस्साई पंडिलाणं सबसीहिं पन्नत्ताई, ते य सुउपउनहिं क्सिोहिजति, व उणं अन्नोपउत्तेहि, ना किमेयं मुन्नामुन्नीए अणोवउत्तेहिं गम्मइ बन्दायारेणं उपयोगं देहअन्नब-इणमो सुत्तत्यं किं तुम्हाणं विसुमरियं भपेजा गं सारं समरमवत्ताणं जहा 'एगे इंदिए पानी एग सयमेष हत्येण वा पाएण वा अन्नयरेण वा सलागाइअहिगरणभूओवगरणजाएगंजे केई संघहेजा वा संघहाचेनावा एवं संपद्रियं वा परेहिं समणुजाणेजा से ण न कम्म जया उदिन्न भनेना तथा जहा उच्छुसंवाई जति तहा निष्पीलिजमाणा छम्मासेणं सोना, एवं गाढे दुवालसहि संपच्छरेहिं त कम्मं वेदेशा, एवं जगादपरियापणे बाससहस्स.. गाढपरिवाचणे दसवाससहस्से, एवं अगाइकिलामणे वासलकर, गाडकिलामणे दसपासनक्साई, उदवणे यासकोडी, एवं तेईवियाइसुपिणेयं, ना एवं चरियाणयाणा मा तुम्हे मुज्महत्ति, एवं च गोयमा सुत्तानुसारेण सारयंतसानि नरसायरियस्त ने महापाचकम्प गमगमहालेणं इलोइलीभूएणं तं आयरियाणं स्वर्ण असेसपायकम्मदुश्वविमोयगं यो बहु मन्नेति, नाहे गोयमा ! मुणियं तेणापरिएणं जहा नियो उम्ममापहिए सरपगारेहि चेत्र में पाचमई दुहसीसे, ता किमहमहमिमेसि पट्टीए लाहीचागरण करेमाणोऽणुगच्छमाणो य सुक्साए गयजलाए णदीए उबुझ, एए गच्छतु दसदुवारेदि, अयं तु ताकायहियमेवाणुविद्वेमी, कि मन परकएणं सुमहतएणापि पुन्न पभारेणं घेवमवि किची परित्तार्ण भवेजा, सपरकमेणं घेप मे आगमुत्ततपसंजमाणुहाणेणं भगोयही सरेयबो, एस उण तित्ययराएसो जहा अपहियं काय जइ सका परहिये च पयरेजा। अत्तहियपरहिवाणं अचहियं चेन काय ॥१२२॥ अन्नंच-जह एते नवसंजमकिरिव अणुपातिहिति तओ एएसि चेव सेवं होहिड. जहण करहिति तो एएसि र दुग्गइगमणमणुसरं हवेना, नवरं नहानि मम गच्छो समप्पिओ गच्छाहिबई जहूर्व भणामि, अन्नं च-रे वित्थवरेहि भगतेहि उत्तीस आयरियगुणे समाइडे सिं तु अयं एकमविणाइकमामि जइवि पाणावरम मना, जं चागमें इहपरलोगविरुवं तं णायरामिण कारयामिण कजमाणं समणुजाणामि, ना मेरिसगुणजुत्तसमापि जाइ भणियं ण करेंति तामिमेसि वेसमाहर्ण उदालेमि, एवं च समए पत्नत्ती जहा-जे केई साहू वा साहुणी वा वायामिनेणापि असंजममणुचेना से ज. सारेजा चोएना पहिचोएजा, सेणं सारेजने वा चोइजते पा परियोइगते वा योग में क्षणमचमनिय अलसायमाणे वा अभिनिविटेड वाण तहत्नि पडिपजिय इर्छ पउंजिनाणं तत्व को पडिकमेजा से गं तस्स नेसगर्ग उहालेला. एवं तु आगमुत्तणाएर्ण गोयमा! जाप नेणायरिएणं - एगम्स सेहस्स बेसम्महणं उदालिय ताप गं अबससे दिसोदिस पणट्टे, ताहे गोयमा ! सोय आयरिओ सनिर्थ लेसि पट्टीए जाउमारहो णो णं तुस्यि २. से भया ! किमई तरिय २णो पयाइ ?, गोयमा ! साराए भूमीए जा महर संक्रमेजा महुराए सारं किण्हाए पीयं पीयाओ किण्हं जलाओ बलं चयाओ जलं संकमेजा तेणं बिहीए पाए पमनिय २ संकमेयाई, णो पमजेना तो दुवालससंवच्छरियं पण्ठितं भकेजा, एएणमट्टेण गोयमा! सो आधरित्री ण तुरियर गच्छे, बहऽनया सुयाउत्तविहीए पंडिलसंकमणं करेमाणस्स गं गोयमा ! तस्सायस्विस्त आगमओ पवासरखुहापरिगयसरीरो विवडदादाकरारकर्यतमामुरा पत्यकालमिव घोररूबो केसरी, मुणियं च शेण महाणभा. मेणं गच्छाहिवाणा जहा- जइ दुर्य गच्छेजइ ना चुकिना इमल्स, गर्ग दुर्य गच्छमाणाणं असंजमं ना करे सरीरलोच्छेष ण असंजमपचत्तर्णति चिंतिऊन विहीए उपडियरस सेहस्स जमुदालियं वेसग्गहर्ण तं दाऊग ठिओ निष्प टिकामपायचोकगमणाणसणं, सेऽपि सेहो नहेप, आऽनया अचंतचिमुहतकरणे पंचमंगलपरे सुहज्झवसापत्ताए दुनिधि गोयमा! पापाइए तेण सीहर्ण अंतगडे केवली जाए अप्पयारमळकलंकमके सिदे य, ते पुण गोयमा ! एकूणपंचसए साइर्ण तकम्मदोसेणं जे दुक्समभवमाणे चिनिजं चाणुभूयं जं पाणुभचिहिति अणवसंसारसागरं परिभमने तं को अर्णतेणेपि कालेणं भणि समत्यो'. एएने मोषमा ! एगणे पंचसए साहणं जेहिं च णं नारिस गुणोचनेतस्मा गं महाणुभागस्स गुरुणो आर्ण अकामियं णो आराहि अतसंसारिए जाए।११श से भवन ! कितिथपरसंनिपं आणणादकमेना उयाहु आपरिषसलियं, गोयमा ! क्टबिहा आयरिया भवति, तंजहा-नामायरिया ठरणायरिया दवावरिया भाचायरिया, नत्यनजे ने भावायरिया ने निस्थयरसमा चेष दमा, नेसि संतियाण(ऽऽणा) पदकमेजा।१२। से मययं कयरेण ने भावायरिया भवति, मोयमा! जे अजपाइएपि आगमविहीए पर्य पएमाणसंचरंति ने भाषायरिए, जे उण वाससपदिपिसएपि हुनाणं पायामेनेजपि आगमत्री चाहिं करेंनि ने गामठनपाहि गिओइयो, से भय आपरियाणं केवइयं पायच्छिन भवेगा?. जमेगस्स साहो नं आपरिषमयहरप. पत्तिणीए सत्तरसपूर्ण, अहाणे सीलबलिए भनिनो विलम्वगुणं, ज अदुक्का जन सुकर, नन्हा सहा सबप्पयारेहि पायरियमयरपतिणीए ज अत्ताणं पायचिउत्तरस संरक्सेय, अक्ललियसीलेहिं च भषयम् । १३॥ से भय : जेणं गुरु सहसाकारणं अन्नपरहाणे नुकत्र वा खलेज पा से आराहगे ण पा?, गोयमा ! गुरुणं गुरुगुणेम बहमाणो अक्सलियसीले अपमादी जणालस्सी सबालंबणविप्पमुझे समसमेतपक्से सम्ममापसवाए। जावणं कहाभणिरे सहमजुने मवेजा गोणं उम्मग्गदसए अहिमाणरए भना, सहा सापयाहि गं गुरुमा तात्र अप्पमत्रोणं भविष, णो णं पमण,जे उण पमादी भवेजा से णं दुरंतर्षतलक्सचे अवड्वे महापाचे, जह सबीए होगा ताणं नियवदुबरिब जहावनं सपरसीसममाण पक्खाविय जहा दुरंतपसलक्षणे अदहावे महापावकम्मकारी सम्मग्गपणासओ अहनि एवं निदित्तागं गरहिताण आलोइताणं च जहाभगिय पायच्छित्तमचरेना से ण किंचुरेसेणं आराहगे भवेज्जा, जाणं नीसाले नियटीविष्णमुझे, नपुणो सम्मग्गाओ परिभसेज्जा, अहार्ण परिभस्से तओ मारहेड । १४॥ से भय रिसगुगजुत्तस्सगं गुरुणो गच्छनिक्खे काय?, गोबमा जेणं सुबए जेणं सुसीले जे गंदढाए जे गं बढ़चारिते जे गं अणिदियंगे जेणं जरहे जेणं गयरागे जे गं गयदोसे जे गं निट्टियमोहमिण्टसमलकसक जेणं उपसते जेणं मुबिन्नायजगहितीए जे गं सुमहात्वेरम्ममगमतीणे जेणं इत्थी1 ११४२ महानिशीथपछेदसून, अन्य -५ मुति दीपरनसागर II दीप अनुक्रम [८१७] रून ~31~ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [५], ------------ उद्देशक -, ---- मूलं [१५] +गाथा:||१२२...|| ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत [१५] गाथा ||१२२|| कहापरिणीए जेणं भत्ताहापदिनीए जे नेणगकहापरिणीए जेणं रायकहापहिणीए जे जणक्यकहापडिणीए जे गं अचंतमणुकंपसीले जे परलोगपचचापभीरू जे जे कुसीलपडिजीए जेणं विनायसमयसम्भावे जेणे/31 गहियसमयपेयान्डे जे गं जहन्निसाणुसमयं ठिए खंनादिअहिंसालक्खाइसबिहे समगधम्मे जे गं उजुत्ते अहाखिसाणुसमयं दुवालसबिहे नबोकम्मे जेणं मुउपउने समयं पंचसमिईस जे मुगुने सब तीसु गुत्तीमुंजेणं आराहगेट ससनीए अट्ठारसह सीलंगसहस्साणं जेणं अपिराहगे एगंतेणं ससनीए सत्तरसहिस्सगं संजमस्स जेणं उस्तम्गाई जे गं बनाई जे गं समसनुमेनपक्से जे सत्तभयट्ठाणविषमुके जे णं अहमयडामविषजढे जेणं नवाई चमचेरानीपं चिराहणामी जेणं पहमए जे ण आयरियकुलम जे अदीणे जेणे अकिविणे जेणं अणाससिए जेणं संजाईचगम्स पडिवस्वे जेणं सययं धम्मोवएसदायगे जे सययं ओहसामाचारीए परूपमे जेणं मेरा-- बहिए जेणं असामायारीभीम जेणं आलोपगारिहपावनितनवाणपबच्छगरसमे जे गं बंदणमंडलिचिराहणाजागगे जेणे पटिकमधमंडलिविराहणजागगे जेणं सज्झायमंडलिविराहणजागगे जेणं वत्स्वाणमंडसिविराहणजागगे जे जालोयणामंडल्लिचिराहणजाणगे जेणं उडेसमंडल्लिविराहणजाणगे जे गं समुदेसमंडल्लिविराहणजाणगे जेणे पानापिराहणजाणगे जेणं उबढ़ावणाविराहणाजामगे जेणं उद्देससमुहेसाणुचाविराहणजाणगे जे शंकालक्खे. नाभावभावतरंतरपियाणगे जेणं कारखेनदवभावानंबणविण्यमुके जेणं सबालवृहदगिलाणसे हसिस्वगसाहम्मिगजाहावणकुसले जेणं परूमगे नाणदसणधारिततोगुणार्ण जेवरए धरए पभावगे नाणदसणचरित्ननपोगुणार्ण प्राजेपदसम्मले जेणं सययं अपरिसाई जे पीइम जे गंभीर जण ससामसे जेण दिणयरमिच अगनिभवणीए नवतेएवं जे ण ससरोवरमेऽपि उकापसमारंभविषजी जेणं तवसीलदाणभाषणामयचविहपम्मतरायभीक जेणं सवासायणामी जेब इडिटरसमायागावरोहमाणविष्यमके जेणं समापस्सगमुजने जे ग सविसेसन्टबिजने जेणे आचडियापिडियामनियोचि गायरेजा अपजे जे नो पनिहो जे गं नो भोई जे गं समासा साक्षायझणपडिमाभिग्गइपोरपरीसहोपसम्गेम जिवपरीसमे जे गं मुपनसंगहसीले जेणं अपत्तपरिहापणचिहिजे ण अग:(द)यबोंदी जेणं परसमयसतमयसम्मवियागगे जेण कोहमाणमायालोमममकारादितिहा। K लेकंदापणाहवायविषमुके थम्मनही संसारबासचिसयाभिलासादीण बेरगप्पायगे परिवोहगे भासत्ताणं से गं गच्छनिक्लेवणजोगे से गं गणी से गं गणहरे से गं तिल्के से णं तिस्थयरे से ग अरहा से णं केवटी से ण जिणे से निन्थुम्भासगे से णं बद से ण पुजे सेणं नमसमिजे लेणं इथे सेणं परमपपिने से गं परमकावणे से णं परममंगले से सिद्धी से णं मनी से णं सिये से गं मोक्से से गं नाया से णं समग्गे सेणं गती से गं सरने से णंसिदे मने पारमए देवे देवदेवे, एयम्स णं गोयमा ! गणनिस्वेवं कुजाएवस्स गणनिस्व कारखेजा एवम्स से गणनिक्वेवकरण समाजाणेजा, अबहाणं गोयमा! आणाभंगे।१५/से भय केवइयं कालं जाय एस आणा पवे-4 हया' गोयमा! जाच मं महायले महासते महाणुभागे सिरियमे अणगारे से भगवं! केपडएर्ण कालेणं सिरिपने अणगारे मवेजा, गोयमा होही दुरंतपत्तलक्सणे अवसे रोहे चंडे पर्यटे उमापयंउटे निम्मेरे निकिचे निम्धिणे निनिस फरयरपारमई अणारिए मिडदिट्टी की नाम रायाण. सण पाचे पाहुडियं ममाटिउकामे सिरिसमणसंप कयरवेजा, जापणं कपत्थेइ नाच गं गोयमा! जे केई सत्य सीलड्ढे महाणुभागे अचलियसने तपोहणे अणयारे तेसिंच पाटिहेरियं कुजा सोहम्मे कुसिलपानी एरावणगामी सुखरिद एवं च मोयमा देविनचदिए दिपबएन सिरिसमणसंधे मिहिजाग गए पासंड्यामे, जान गंगोयमा! एगे अचिजे अहिंसालसणवंतादिवसविहे धम्म एगे अरहा देवाहिदेवे एग जिगालए एगे व पूए दक्से सकार सम्माणे महायसे महासते महाणुमागे दडसीलायनियमचारए नपाहगे साह. नस्य गं वदमिष सोमरेमे मुरिए पनपनयरासी पुढपी इव परीसहोवसग्गरहे। मेरमंदरचरे च निष्पर्कपे ठिए अहिंसालक्खणलतादिदसहि धम्मे, से में मुसमणगणपरिचुरे निरम्भगपचामलकोमुईजोगजुने इस महरिसलपस्थिरिए महबई बंद अहियवरं चिराइजा, गोषमा! सेण सिरिपने अणगारे, तो गोयमा: एपनियं कालं जाप एसा आमा पोइया ।१६। से भय: उइदं पुष्ठा, गोयमा ! तजो परेण उपद हायमाणे कालसमए, नस्य णं जे कई कायसमारंभपिपजी से णं घने पुन्ने पदि पुए नमसणिजे मुजीवियं जीवियं नेसि।१७से भया ! सामन्ने पुच्छा जाचणं यासी. गोयमा अत्यगेजे जोगे अत्यगे जेनो जोंगे, से भयर ! केव जण एन बुबह जहाणं अत्यगे जानजेमं नो जोगे?. गोयमा! अत्यगे जेसि णं सामने पतिकुहे भागे। जेति वर्ग सामन्ने नो पटिकुहे. एएणं अटेणं एवं युगइ-महार्ण अन्धगे जेणं जोगे अत्येगे जेणं नो जोगे, से नवर्ष कयरे ते जेसिपं सामने पडिकडे, कयरे पाते जेसिंचणं सामने नो पडिकुडे?.एएणं अद्वेग एवं पुबहजहा अत्यगे जे गं विकडे अन्धेगे जेनी विरुदे.जे ण से विरुदे से र्ण पडिसेहिए.जेणं से णो विरूद से नो पडिसेहिए. से भय केणं से विस्वे के या गं अनिष्?. गोयमा! जेजेस देसेसुं दुगुंडणि जे जेमु देसे, दुगंलिए जे जेसु देसमुं पडिकुटे से गं नेसु देसमुं विरहे, जे य णं जेसुं दसेसु णो दुगुंडगिजेजे य णं जेसु देसेसु नो दुछिए जेवण जेसु देसमु णी पडिकुट्टे से ण नेसुं देसेस नो विरुदे, गन्य गोयमा ! जे जेसुंरदेसमु पिकडे से पण नो पाए जे गं जेमु२ देसे णो पिरब से गं पाए.से भय से कत्था देसे के चिमटे के बाणो विख्ने, गोयमा जे केई परिसइबा इथिएह बारागेण वा दोसेण वा अणुसएणया कोहेण वा सोभेण वा अवराहेण वा समणं वा माहगं ना मायरं वा पिपरं पा भायरं वा भनि भाइयं वा सुयं वा सुयसुयं वा यूयं पाणनुयं वा सुई वा सामाउयं वा दाइयं वा गोनियं वा सजाइयं वा विजाइयं वा सयर्ग वा असयणं वा संबंपियं वा असंयं. धियं वा समाह वा जसणाई या इढिमंत पा अपिहिमनं वा सएसियं वा पिएसिय पा आरियं वा अणारियं पाहगेज या हणावेज पा उहरिज या उड्यापिज वाले गं परियाए अओगे, सेणं पाये से गं निदिए से गंगरहिए ला से छिए से णं पटिकुढे से गं पटिसेहिए से थे आचई से ण विधे से अबसे से णं अफित्ती से गं उम्ममो से अणायारे. एवं राबडो एवं तेणे, एवं परजुवापसत्ते, एवं अभयरे वा केई सणाभिभूए, एवं आसफिलिडे एवं छहाणडिए एवं रिणोपहुए अविनायजाइकुलसीलसहापे एवं बहुचाहिवेवणापरिमयसरीरे एवं रतलोलुए एवं बहुनिदे एवं इतिहासाखेहडकंदप्पणाहकायकजारिसीले एवं बहुकोले एवं बहुपसको जायण मिच्छादिडिपति 11 ११५३ महानिनीयच्छेदमूर्वम - मुनि दीपानसागर दीप अनुक्रम [८२१] ~32~ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [१८] गाथा ||१२३|| दीप अनुक्रम [८२४] ドンチョディションマンション “महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं) - मूलं [१८] + गाथाः || १२३|| अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... .... आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं ........... श्रीकुपवा से गोयमा जे केई जायरिएड वा मयहरएइ वा गीयत्ये वा अगीयत्वेह वा आयरियगुणकलिएड या मयहरगुनकलिए वा भविस्सायरिएड वा भविस्समयहरएइ वा लीभेण वा गारवेण वा दोन्हं गाउयसवाणं अन्तरं पाशा से गोयमा इस्कमिय मेरे से णं पवयनकार से त्यिवच्छित्तिकारए से संपत्तिकारए से णं वसणाभिभृए से णं अदिपरयोगपबचाए से णं अणायारपचिने से णं अकलवारी से पाये सेणं पापपाये से णं महापापपात्रे से गोपमा अभिहियचमिच्छादिट्टी १८ से भय के जणं एवं बइ गोयम आयारे मोक्यो जो अणायारे मोक्यमग्गे एएवं ब्रहेण एवं चुम्बई से भयर्थ! कमरे से आधारे करे वा से अणाबारे गोयमा आधारे आणा. अणायारे नंनप्पडिक्क्ले, तत्थ जे नं आणापडिक्क्स्ले से णं एते सम्रपयारेहिं सहा वणिजे जे आणापडियों से एगणं लक्षपयारेहिणं समा आय रणि नागोया जाणिला जाणं एस णं साम चिराजा से सावित्रा १९ से भय कह परिक्खा गोयमाणं जे केइ पुरिसे या इथियाओ का सामनं परिजिकामे कंपेरा वा रहरेज्जा निसीएज्जा उडापकरेज समने वा परगने का आसाएड वा साए वा तदहुतं वा इजा पोहवा गहने दोइजमाणे कोई उपाए वा अहे दोनिमित्ने वा भवेजा से णं गीयत्थे गणी अन्नयरे या महादी महया नेउन्नेषं निरूवेला जस्सगं एयाई परं तजा से णो पावेजा से गुरूपडिणीए भविता से निम्सले भजा सम्वहा से पधारे केवल एग अकरए भवेशा से जे वाले का गुण वा विद्याण या गारपिए भवेज्ञा से णं संजय पडसीले भवेज्जा से बहुचे भजा २० से भयवं कमरे से बहुवे वृच जे ओसन्नविहारीणं ओसमे उज्यविहारीणं उज्जुषधिहारी निम्म निम्मी रंगए चार इव गडे खणेण रामे यख खच दसगीपरावजे खणेणं टप्पपरकचतुरजराजनगर सर्वच भरिए पिस ॥१२॥ तिरियं च जानी वाणरहणमंत केसरी। जहां णं एस गोयमा तहाँ से बहु ॥ १२४ ॥ एवं गोमजे में असई कमाई के चुकखलिएणं पडावेजा से णं दुरदाणवयहिए कला से णं सनिहिए गो धरेशा से आयरे गो आ मनोरणे तो पढिनेहा से नो उहिलेजा से णं तस्स सत्यं नो अणुजाला से णं नस्त सदि गुज्रहस्व मंतिया एवं गोवमा जे केई एदोसविमुके से गोयमा मच्छप जणारियणी पाजा एवं सानो पड़ा एवं गणना एवं एवं विकपियकरचरण एवं छिन्नकन्ननासा. एवं कुवाहीए गरमाणसह यवहिरं एवं अकडकायं एवं बहुपास एवं पणरागदोसमोमिच्छत्तमलखपतियं एवं उस एवं पोराजन एवं जिला देववनीकरण मोडयं चक्र एवं उन (महड) चार एवं कापावे. एवं तु जाप में नामहीणं धामही जाइहीणं कुलहीणं बुद्धिही पन्नाही गामउदययहरं वा गामउमपहर वा अपना निदियामहीजाइयं वा अविन्नाय गोमा दिक्ले गोपाविजा. एएस तु पार्थ अन्नपरपए खज्जा जी सहसा देणपुत्र कोडीन गोयम २१ एवं पाले नहेब (ज) जहा (मणियं) । स्यमन्नकिनेको गोयम मुक्तं ॥ १२५ ॥ गच्छेति गमिस्संति व ससुरापुर जगणमंसिए बीरे भुवणेक्कपाटजसे जमणिगुणहिए] गणिणो ॥ १२६ ॥ से व जेई यसमयमा होत्या विहीएड वा अविएड वाफस रामंडलम्मा उनीसहित सत्यमेवनात परियारस्वामा वा बायाएका कारण वा कहिच ठाणे न्यादिपरिणामे होना अस पोज पा पापमा वा अनुमाने वा से आराहने उचार जणाराहगे ?, गोयमा अणाराह से भय के अगं एवं पुबइ जहां मं गोवमा अगारा, गोपमा इमे दुवासंगे सुपना अपमा नि सम्भूयस्थपसा अाइसि सेणं विददाणं अतुलबलवीरएसरियसनपर कम महापुरिसावार के निदान सोहा इसका सर्वदा जिणचराणं अणासिदार्थ अपना पह्माणसमयसिज्जामामार्ण अन्नेति व आसन्नपुरका अनंताणं सुगहिनामा महायसाणं महासत्ताणं महाणुभागाणं तिला नाणं जगणं जमेवंपूर्ण जगगुरू रिसीणं पत्रस्वरधम्मनित्यंकरा अहंताणं भगवंताणं भूयभविस्साईयणागपरमाणनिखिलसेकसिदिवसभाषा असहाए परे एक से मुमनाए अपनाए बंधनाए ि वपन्न जड़िए जड़िए चैत्र मास जहिए जहए जहिए एक से इमे दुवासंगे गणिपिट, सिपि ददानं गिखिलजगविदियसर सज्जन आगइ (इति) हासबुद्धिजीवाइनले जाए सहायकमणि जगासायनिज्जे नहा चैत्र मे दुवासंगे सुना सजगज्जीपण भूयसत्ताणं एगने दिए मुद्दे स्वमे नीसेसिए आगुगामिए पारगामिए पसत्वे महत्ये महागुणे महाणुभावे महापुराणुचिन्ने परमरिसिदेखिए दुक्लक्सयाए कम्मखयाए मोक्याए संसार नारनवाए निकट उपसंजिना विहरि किमुतमन्न ता. गोयमा जे के अमुचियसमयसग्भावे या विश्यसमयसारे वा अविहीएड वा गच्छाहिवई वा आयरिएड या अंनोविदपरिणामेत्रि होत्या. गच्छायारमंडलमा उनीसही आपारादि जान में अक्षरस्सा आ पसगाइकरणिस्स में पयसारम्स असती मुकेश वा खल या ते इमे दुवाल सुनाने असा पयरेजा, जे इमे दुवासंगपणाणनिषदंतरोग एवं पयअक्वरमपि अग्रहा पयरे से गं उम्मी पर्वसेजा, जे पं उम्ममी पर्यसे से गंजणाराने भवेज्जा ता एएम अद्वेगं एवं सुखद जहा गोयमा एतेषं अणाराहगे २२ से भय अथ कई जणमिणमो परमगुरूणंची अणि परमसरणं फुटं पवई पपई परमा कणिकम्महदुक्खनिवर्ण पचणं अमेज या पकमेज्ज वा पेज वा संदेज्ज वा विराहेज्ज वा आसाइज्ज वा से मणसा वा वचसा का कायसा वा जाय गं बयासी गोयमाणं अगते काले परिवहमाणेणं संपयं दस अच्छे भवितत्य असलेले अभ असंखेज्जे मिच्छादिट्टी असंखेज्जे सासायणे दपलिंगमासीय सच्छंदता मेर्ण सफारिज्जते एन्ए धम्मिगतिका बहुये अदिकला जणं पश्यति (२८६) १९४४ महान असणे - मुनि दीपसागर ~ 33~ जाना एवं पंगु जयंगम चरणकर Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [५], -------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [२३] +गाथा:||१२६|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूल प्रत 894ky [२३] गाथा ||१२६|| समभुषामिय रसलोलताए बिसयलोलताए दुईतिदियोसेणं जणुवियह जहद्वियं मग्गं निद्ववंति उम्मन्गं च उस्सप्पयंति, ते य सचे तेण कालेणं इस परमगुरुमापि अलंपणिज पनयर्ण जाधणं आसायंति ।२३। से भयवं ! कयरेऽणतेणं कालेणं दस अच्छेरगे भषिसु?, गोयमा ! णं इमे तेणे कालेणं ते अणं दस अच्छेरगे भवति, तंजहा-तिस्थयराणे उचसम्गे सम्भसंकामणे वामातिस्थयरे तिथवरस्स देसणाए अमनसमुदाएर्ण परिसाधे सचिमाणाण चंदाइचाणं तित्वायरसमवसरणे आगमगे वासुदेवानं संलझुणीए अनयरेण पा रायक उहेगं परोपरमेलावगे इहईतभारहे सेत्ते हरिवंसकुलप्पत्तीए चमरूपाए एमसमएणं अट्ठसयसिद्धिगमणं जसं जयाणं पूयाकारगेनि । २४० से भय ! जेणं कई कहिंचि कयाई पमायदोसओ पपयनमासाएमा से में किं आयस्विपयं पावेजा, गोयमा ! जे णं कई कहिंधि कयाई पमापदोसओ असई कोहेण वा माणेण वा मायाए पा लोभेण या रागेण या - दोसण या भएण वा हासेण वा मोहेण वा अनाणदोसेण वा पचयणस्स णं अनयरहाणे बदमिनेणवि अणायारं असमाचारि परूबेमाणे वा अणुमसेमाणे या पबवणमासाएजा से गं बोहिंषि णो पावे. किमंग जापरियपयलंभं?.से भयर ! किं जम मिच्छाविट्ठी आयरिए भवेजा, मोयमा! भयेम्जा, एवं चणं इंगालमदगाईनाए. से भय ! कि मिच्याविट्ठी निक्समेजा, गोयमा! निस्समेजा, से भयर्व! कयरेणं लिंगेर्ण से णं बियाणेजा जहा ण युवमेस मिच्छादिही, गोयमा! जेणं कयसामाइए सबसंगविमुत्ते भवित्ताण अफासुपाण परिभुजेजा जेणं अगगारचम्म पटिवजित्ताणमसई सोइरिथ वा तेउकार्य सेवेजवा सेवाविजया सेविजमाणे अने समणुजाणेज मा तहानव बमचेरगुती जे केई साहुबा साहुणी वा एकामवि वंडिज वा पिराहेज वा खंडिजमाणं वा विराहिज्जमाण बाभचेरगुती परेसिं समणुजाज्जा वा मणेण वा बायाए वा काएक वा से गं मिष्ठादिट्टी, न केवल मिच्छा-16 दिही अभिगहियमिच्छादिदी बियाणेजा।२५ा से भय जेणं केई आयरिएर वा मयहएड वा असई कहिंदि कयाई नहानिह संचिहाणगमासज इणमो निर्गध पचयणमबहार पनवेजा से णं किं पायेजा, गोयमा! जं सावजाचरिएणं पापियं. से भय ! कयरेणं से सावजायरिए। किं वा नेणं पापियंति, मोयमा! णे इबो य उसमादिनित्यकरचउवीसिगाए अणतेणं कालेणं जा अतीता अक्षा पउवीसिगा तीए जास्तिो अहयं नास्तिो चेव सत्तरवणी पमाणेणं जगच्छेस्यभूओ देविंदविदवंदिओ पवरवरचम्मसिरिनाम चरमधम्मतित्थंकरो अहेसि, तत्व य तित्वे सत्त अचडेरमे भूए, अहऽनया परिनियुडल्स पं नित्यकरस्त कालकमेणं असंजयाणं सकारकारवणे णामऽच्छेरगे बहिउमारदे, तत्वणं योगाणुपत्नीए मिघातोवहयं असंजयपुयाणुरवं बहुजणसमूहतिवियाणिऊण नेणं कालेणं तेणं समएणं अमुणियसमयसम्भावहिं तिगारवमइसमोहिएहिं णाममेत्तआयरियमयहरेहि सहढाईणं सयासाओ दविणजाय पटिम्गहिवरखंभसहस्मृसिए सकसके ममलिए चेइयालगे काराविऊन ते चेच तुरंतपतलकुलगाहमाह आसईएहि ते चेय चेहपालगे नीसीय गोविऊणं च बलबीरियपुरिकारपरकमे संत बले संते पीरिए संते पुरिसकारपरकमे पाऊणं उग्गाभिग्गहे अणिययविहारं णीयावासमासइलाणं सिदिलीहाऊणं संजमाइसु ठिए, पच्छा परिचिचार्ग लोगपरलोगावार्य अंगीकाऊय य मुदीई संसार तेसु चेव मढदेवउलेसु अचत्वं गघिरे मुन्छिरे ममीकारहंकारेहि गं अमिभूए सयमेच विचित्तमदामाईहिंगं देवचणं काउमभुजए. जं पुण समयसारं परं हम सामयण ने दूरसुदूरवरेणं उज्झिायनितंजहा-सो जीवा सके पाणा सो भूया सो सत्ताण ताण अजायेयवाण परियावेयाण परिपेनवाणविराहयवाण| किलामेयवा ण उहवेयवाजे केई सुहमा जे केई बायरा जे केई तसा जे केई पाचरा जे केई पजत्ता जे केई अपजत्ता जे केई एगिदिया जे केई में दिया जे के दिया जे कई बड़रिदिया ने कई पंचिंदिया तिविहनिविहेणं मगेर्ण वायाए काएणं जंगुण गोयमा ! मेहर्णन एगते ३ मिडयो ३ बादंइतहा आउनेउसमारंमंच साहा सापयारेहि सर्व विषमेजा मुगीति एस धम्मे धुने सासर पिइए समिब लोग सेयन्नहि पाएत्ति । २६॥ से भय! जेणे कई लाहू या साहुणी या निर्णये अणगारे वहस्थ कुजा सेर्ग किमारपेजा,गोयमा! जेणे कई साह पा साहुणी वा निम्नथे अणगारे दास्थय कुजा से गं अजयएइ वा असंजएइ पादेवमोइएइ वा देवबगेन वा जावन उम्मगपाहिएत या वृक्षमियसीलेह बा कुलीलेव वा सन् दयारिएड या आलबेज्जा।२७ एन गोयमा! तेसि जणायारपबित्तार्ण बहूर्ण आयरियमयहरादीगंएगे मरगयच्छवी कुवलयमहानिहाणे णाम अणगारे महानवस्सी अहेसि, कस्स गं महामहते जीवाइपपत्थे सुतत्यपरिन्नाणे मुमहंत चेव संसारसागरे तानु तामुं जोणीसुसंसरणमयं समहा सवपयारेहि गं अर्थतं आसायणामीकयत्नणं, नकालं तारिसेऽपी अ. संजमे अणायारे बसाहम्मियपत्तिए नहाची सो नित्थयराणमाणं गाइकमेड, अहऽन्नया सो अणिगृहियचलनीरियपूरिसकारपरकमे मुसीसगणपरिवरिओ सानुपणीयागमन । स्थोभयानुसारेणं वगयरामदोसमोहमिच्छत्तममकाराहंकारो सात्व अपडिबडो, कि बहुगा, सगुनमगाहिद्वियसरीरी अणेगगामागरनगरसेवकम्बहमहंबदोणमुहाइसग्निसधिः मेसेर्मु अगंगे भासत्ताणं संसारचारगविमोक्वणि सद्धम्मकहं परिकहेंतो विहरिसु, एवं च वर्षति दियहा. अन्नया में सो महागुभागो विहरमाणो आगमओ गोषमा! नेसि णीयविहारी. 1 ११४५ महानिशीपच्छेदसूत्र, अमा मुनिपरनसागर दीप अनुक्रम [८३४] 4 Atter ~34~ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [५], ------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [२८] +गाथा:||१२७|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं [२८] गाथा गमावासगे, तेहिच महानवमी काऊग सम्माणिो किकम्मासणपयाणाणा समुचिएर्ण, एवं च मुहनिसनी, चिहिनाणं धम्मकहाणाविणोएणं पुणो गर्नु पबनो. ताहे मणिो सो महागुभागो गोयमा नेहिं दुनिनलमपणेहि सिंगोषजीपीहि भट्ठायासम्मग्गपवनगडमिगहीयमिष्ठादिहीहिं, जहा गं नवयं ! जर तुममिहा एक पासारनियं चाउम्मासिव पनिष तो गमेत्य एनिगे दयालो भनि गूर्ण तुम्मागनीए, ता कीरी अणुम्महत्यमम्हाणं हेच चाडम्मासियं, नाहे भगिय नेण महागुभागेण गोयमाः जहा भो भो पियंपए! | जइपिजिणालए नहापि सापजामिणं णाई यायामिनेणंऽपेयं आपरिजा, एवं घसमयसारपरंततं जहडियं अविचरीयं णीसंक भणमाणेणं नेसि मिच्छादिडीलिंगीणं सासधारीणं मझे गोषमा! आसकलिय तिथपरणामकम्मगोयं तेणं कुवलयप्पमेणं, एगभवाचसेसीको भवोयही. नस्य य दिवो अणुविजनामसंपमेनगो अहेसि, नेसि च बहहि पापमईहि सिमिGIणियाहि परोप्परमेगमय काऊण गोयमा ! ना दाऊर्ग विणलोइयं चेतं नस्ल महाणुभागसुमहतपस्मिणो कुवलयापहानिहाणं कयं च से सावजायरियामिहान, सहकरण, गर्य च पसिद्धीए, एवं सदिनमाणोऽपि सो तेणापसत्यसरकरगेगं तहाचि गोयमा ! सिपि ग कुप्पे । २८ । अहन्नया तेति दुरायाराणं सद्धम्मपरंमुहाणं अगारचम्मानमारधम्मोभयभट्टाणं निंगमेलनामपायार्ण कालकमेणं संजाओं परोपरं आगमपियारो जहा ण सढगाणमसाई संजया पेच मढवेउले पडिजागनि संटपटिए यसमारावयति, अन्नं च जाप करने से पा समारंभे कनमाणे जइस्साचि गं गस्थि दोससंभव, एवं च केई भमंति-संजमं मोक्वनेयार, अन्नेमणति-जहाणं पासायपडिसए प्यासकारवलिबिहाणाईसणं तित्युच्छप्पणा चेच मोपवगमणं, एक्मेसिमविजयपरमत्याणं पावकम्माणं जं जेग सिई सो नै बेपुरामुम्सिखलेणं मुहेर्ग पालबनि, ताहे समुद्विय पावसंघई, नरिय य कोई तस्य आगमकसलो तेसि मरो जो तत्व जुनाजुनं विचार जो ब पमागपुग्मुपासा, नहा एगे भगति जहा अमुगो अमुग त्यामि चिड़े, असे भगनि अमूगो, अन्ले भगति-किमित्य बहुगा फरपिएणं !, सवेसि सम्हाणं साधनायरिलो एण्य पमाणति, नेहि मणिर्य जहा एवं होउनि हकारावेह लई. नओ हकारावित्रो गोपमा सो हि सापनाथरिओ, आगजो दृरदेसाजो अपटिबदलाए विहरमाणी सलाहि माहि जापन विही एमाए अजाए, साबत कलुग्गतमचरणसोसियसरीरं चम्महिसेसतणं अतं तपसिरीए दिन सारजापरिय पक्षिय सपिम्हियं तकरः (ख)मा वियकिउं पयत्ता- अहो कि एस महाणुभागे सो जरहा किंवा गं धम्मो वेव मुनिमंतो, किंबहुना .तियसिंददापि वाणिजपायजुओ एसनि चिनिऊग भत्तिभरनिम्भरा आयाहिणपबाहिण काऊ उत्तिर्मन संघहमाणी डिति मिचडिया चलणे गोपमा! सरसणं सावजायरियस्स, दिहो यसो तेहिं दुरायारेहि पणमिजमाणो, अन्नया र्ण मोनेसि तत्थ जहा जगगुरुहि उपाईनहा चेव गुरूपएमाणुसारेणं आणुपुत्रीए जहाद्वियं सुनत्यं वागड तेऽपि तहा चेव सदहाति, अन्नया नाव वागरिय गोषमा ! जाच गं एकारसहमगाणं घोरस पुजाण पालसंगमस सुपनाणस गाणीयसारभूयं सयलपावपरिहारहकम्मनिम्महणं आगयं इनमे गण्डमेरापन्नाणं महानिसीहसुपक्संचरस पंचममझवर्ण, एत्येष गोषमा नाप पखाणिय जाय गं आगया इमा गाहा 'जस्वित्वीकरफरिस अंतरिय कारणेचि उत्पन्ने । अरहाऽपि करेज सर्य नगर मूलगुणमुकं ॥१२॥ओ IS गोयमा ! अप्पसंकिएण व चितियं नेणं सायनायरिए जा रह एवं जहडियं पन्नवेमि नओज मम बंदणर्ग दाउमाणीए नीए अजाए उनिर्मगण चलणगे पुढे नं सद्दिपि दिहुमेएहिति ता जहा मम सावजापरियामिहान कर्य नहा अन्नमपि किंचि एल्मु काहिनि जेतु सालोए अपुनो भविस्म, ना अहमन्नहा सुनत्य पन्नवेमि',नाणं महती आ. सायणा.तो कि करियामेत्यति', किं एवं गाई पापयामिकिपागअन्नहावापन्नपेमि?,जहवा हाहाण जुत्तमिण उभयहाविअर्थतगरहियं आपहियट्ठीणमेयं, जो गमेत समयाभिषाओ जहा - भिषा चालसंगरसणं मुयनाणस असई चुक्सलियपमाया संकादीसभयतेन पयक्रवारमनाबिंदुमपि एक परुपिज्जा अन्नहा वा पन्नवेज्जासंदिई वा सुत्तस्थं वस्वाज्जा अविहीए अजओगरस वा वरसाज्जा से भिम् अर्णतसंसारी भवेज्जा, ता कि एन्थ 'जहोहीच भवउ, जहडियं पेव गुरुपएसाणुसारेण सुलत्थं पपक्लामिति चितिऊण गोयमा ! पपासाया णिखिलापयविमुद्धा सा नेण गाहा, एयानसरंमि चौडओ गोयमा ! सो रोहिं लपंतपसणेहिं जहा जइ एवं ता तमपि ताप मूलगुणहीणो जावणं संभस्तु से तरिक्स तीए अज्जाए तुम बंदगगं दाउकामाए पाए उत्तमगेणं पुढे, नाहे इहलोगायसमीरु खरसस्थामडारीहओ गोयमा सोसापजायरिओ विचिनिओ जहा जे मम सावजावरियाभिहाणं कथं इमेहि तहान किपि संपर्य काहिति जे गं तु सबलोए अपुज्जो भविस, ना किमित्वं परिहारग दाहामिति चितमाणेणं संभरिय वित्थपरखवणं, जहाणं जे के आयरिएर वा मयहरएड का गमाहिगई सुयहरे भज्जा से गं अकिचि सबन्नुर्णतनाणीहि पाधापवायहाणं पडिसेहियं तं सबसुयाणुसारेणं चिन्नाय साहा सवपयारेहि ज णो समाचरेग्जाणो गं समापरिज्जमागं समणुजाणेजा, से कोहेग वा मागेण वा मायाएवा लोभेण वा भएन वा हालेण वा गारवेण वा दप्पेण नापमाएण वा असती चुकललिएण का 1-११४६ महानिशीपचनसूत्र - मुनि दीयरलसागर ||१२७|| दीप अनुक्रम [८३९] ~35~ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [५], ------------- उद्देशक -, ---------- मूलं [२९] +गाथा:||१२८|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत ज [२९] गाथा ||१२८|| दिया या राओ या एमओ या परिसागओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा विविहंतिविहेण मणेण वायाए काएक एतेतिमेव पयाणं जे केई विराहगे मवेना से गं भिक्षू भुजो २ निंदणिने: गरहणिजे खिसणिजे दुगंणिजे सबलोगपरिभूए बहुवाहिवेयणापरिगयसरीरे उकोसटिईए अर्गतसंसारसागरं परिभमेजा, तस्थ गं परिभममा खणमेकपि न कहिचि कदाइ निबुई संपावेजा, तो पमायगोयरमयस्स में पावाहमाहमहीणसत्तकाउरिसस्स हई चेर.समुडिया एमहंती आयई जेण ण सको अहमेत्य जुनीसमं किचि पडिउन पचाउंजे, नहापरलोगे य अर्णनभवपरंपरं भममाणो चोरवारुणार्णतसो य दुक्खस्स भागीभविहामिऽहं मंदभमोनि चिनयंतोऽक्लक्खिओ सो सावजायरिओ गोयमा! तेहि दुरायारपाकम्मदसायारेहिं जहाणं अलियखरमच्छरीभूओ एस, तओ संयुद्धमणं खरमच्छरीभूयं कलिऊणं च मणिय लेहि दुहसोयारेहि जहा जाव नो छिममिणमो संसयं नाव ण उई वस्तार अस्थि, ता एत्थ परिहारगं बायरेजाज पौडजुनीखम कुम्गहनिम्महणपचालति, तो तेण चिनियं जहा नाहं अदिन्ने] परिहारगेज चुकिमो मेसि, ता किमित्य परिहारग दाहामिनि चिनयतो पुणोचि गोयमा ! भणिो सो नेहिं दुगवारेहिं जहा किम? चिंतासागरे णिमजिऊणं ठिओ?, सिग्यमेवं किंचि परिहारगं वयाहि. णवरं तं परिहारगं मगिजाज जहुतन्वीकि(त्विक)याए अवभिचारी,नाहे सुदरं परितप्पिडणं हियएणं मणियं सायनायरिएणं जहा एएणं प्रत्येणं जगगुरूहि वागरियं जंजओगस्स मुत्तत्व न दायर, जओ आमे पडे निहतं जहा जलं तं घर्ट विणासेइ इव सिद्धतरहस्स अप्पाहारं विणासेड़ ॥१२८॥ ताहे पुणोचि तेहिं भणियं जहा क्रिमेयाई टबरलाई असंबदाई दुब्भासियाई पलयह?. जब परिहारगंण बाउं सके ता उफिट मय आसगं ऊसर सिग्धं इमाजी ठाणाओ, कि देवस्स रुसेना जत्य तुर्मपि पमाणीकाऊणं सबसंपर्ण समयसम्मावं वायरेट जे समाइहो?.तओ पुणोपि मुदरं परितप्पिकर्ण गायमा ! अन्नं परिहारगमन्लभमाणेणं अंगीकाऊणं दीहसंसार भणियं च साचवायरिएणं जहाणं उम्सग्गाचाहिं आगमो ठिओ, नुम्भे ण यापहेयं, एगेनो मिठतं. जिणाणमाणामणेगतो, एवं च वयष गोयमा! गिम्हायरसंताबिएहि सिहिउरोहिं व जहिणषपाउससजलपणोरधिमिर सबहुमाणं समाइच्छिय सहि दुहसोयारहि, तजो एगवयणदोसेणं गोयमा नियधिकमाणन संसारिपनणं अपडिकमिऊणं च तस्स पावसमुदायमहासंघमेवगम्स मरिठण उपचन्नो नाममंतरेणु सो साचनायरित्रो, नओ चुओ - समाणो उतन्नो परसियभत्ताराए पटिनासुदेवपुरोहियधाए कुच्छिसि, अहऽन्नया नियाचिर्ड तीए जगणीए पुरोहियभजाए जहाणं हा हा हा दिन्नं मसिकुचयं सानियकुलस्स हमीए रायाराए मा धूयाए साहियं च पुरोहिवस्स, नओ संतपिऊण सुइरं पहुंच हियएम साहार निविसया कया सा तेणे पुरोहिएणं, एमहंता असाहुन्निपारअयसमी. रुणा, अहऽनया धेषकालंतरेण कहिचि पाममलभमाणी सीउल्हयायपिज्झटिया सुरकारहछा)मकता भिक्खदोसे पवित्रा दासत्ताए रसवाणियगरस गेहे, सत्य व बहूर्ण मज. पाणगाणं संचियं साहरा अणुसमयमुभिहुगंति, अन्नया अणुदिणं साहरमागीए तमुभिद्रुगं बठूर्ण च बहुमजपाचगे मनमाविषमाणे पोगा चसमुरिसने नहेच तीए मजमंसस्सो2 पनि दोहलगं समुप्पमं जावणं से बहुमनपाणं नटनउत्तचारणमहोइटचेष्टतकरासरिसजातीय मुज्झियं सुरसीसपुछकाडिमयगयं उचिई बच्च(उछु )प्रखंड न समुहिसिउँ समारदा, नाह सुमेर उचिट्ठकोडियगेमु जंकिंचि जाहीए मज्झं विवकं नमेबासाइउमारदा. एवं प कावयदिणाइसमेणं मजमसस्सोपरि दटं गेही संजाया, नाहे तसेच रसवाणिजगम्स गेहाउ परिमुसिऊर्ण किचि कंसदसदविणजायं अन्नत्य विकिणिकणं मनं समंस परिभुजा, नाचणं चिन्नार्य नेण गमवाणिजगेग, साहियं च नरबहणो, नेणापि वजमा समाइवा, नस्थ याउले एसो गोयमा ! कुलधम्मो जहा जा काई आपन्नसत्ता नारी अवराहदोसेर्ण सा जाप ण नो पसूया ताप णं नो बाचाएपकाहि किणिउत्तगणिगितगेहि सगेहे नेडाग पमूह समय जाब णितिया ससेयबा, अहान्नया गीया तेहि हरिएसजाईहिंसगेहि. कालकमेण पसूया य दारगं तं सायनायरियजीर्ष नओ पसूयमेत्ता व नं बाय उझिकण पणा मरणभयाहिताचा सा गोषमा ! दिसिमेकं गंवृणं, वियाणियं च तेहिं पावेहिं जहा पणद्वा सा पावकम्मा, साहियं च नरवडणो मूणाहिनाहि जहा ण देव ! पणदा सा दुरायारा कय. गिम्भोचम बारगमुजिाऊणं, रन्नावि परिभनियं-जहाजा नाम सा गया ता गाउन वालग पहिचानेजाम, सबहा महा काय जहान बालगं ण वारजे, गिष्हेगु जमे पंचसहस्सा दविणजायस्स, ओ नरवाणी संदेसेणं सुपमित्र परिवारिओ सो पंसुलीनणओ, अन्नया कालकमेर्ण मओ सो पाचकम्मो मृणाडिवई, नओ रखा समणुजागिओनस्सेव बारगस्स | परसार, कओ पंचमह सयागं अहिया, सत्य य समाहियापए ठिओ समाणो ताई वारिसाई अकरगिरजाई समहिनाणं गओ सो गोषमा सत्तमाए पुटवीए अपाहाणनामे निर। याचासे सावजापरिषजीचो, एवं तं तस्य तारिसं घोरपचंदरोई सदाकर्ण बोकसं नित्तीस सागरोवमं जाव कहकहवि किलोणं समणुभषिकर्ण दामो समाणी उवयन्नी अंतस्दीचे टएगोरुषजाई, तओवि मरिऊणं उक्वन्नो तिरिवजोणीए महिसताए, सत्य यजाई काईपि गारगदुस्साई तेसिनु सरितनामाई अणुभविऊण उनीसं संक्च्छराणि नजओ गोषमा! ११४७ महानिशीथपछेदसूर्य, amavarrive मुनि दीपरतसागर दीप अनुक्रम [८४३] ~36~ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) गायकलो भाग मा यामाहारदोलणं को समाणो परिगलमायो मा खिसिजमामा माओ लमाणी लालाबाजा तो नरगोचर्म प्रत सिडिहिडता माणो व जाप जी [२९] गाथा “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [५], -------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [२९] +गाथा:||१२८|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं मओ समाणो उत्पन्नो मणएम, तओ गओ वासुदेवताए सो सावजावरियजीवो, सत्यवि जहाऊयं परिवालिऊणं अणेगसंगामारंमपरिणहदोसण मरिण गओ सत्तमाए. ओपिनि सहिष्ण मुरारकाला उपचन्नो गपकन्नो नाम मनुयजाई, तोचि कुणिमाहारदोसेणं करज्यवसायमई गओ मरिऊणं पुणोपि सतमाए बहिष अपाहाणे नित्यागासे. तोस. हिउणं पुणोचि उत्पन्नो तिरिएम महिसत्ताए, तत्थवि णं नरगोचर्म दुक्समणुभवित्ता मओ समाणो उक्वन्नो बालनिहवाए पंसुलीमाहणपूपाए कुश्छिसि, अहऽन्नया निउत्तपभडन्नगमसाइणपाडणवारजुण्णजोगदोसणं अणेगवाहियणापरिगयसरीरी सिडिहिडंतो कुडवाहीए परिगलमाणो सालझाडेनकिमिजालेणं सजतो नीहरिओ नरोधमपोक्सनिवासाओ कभवासाओ गोयमा सो सावजायरियजीवो, तओ सबलोगेदि निदिनमाणो गरहिनमाणो दुछिनमाणो खिसिजमाणो सबलोगपरिभूतो पाणलाणभोगोवभोगपरिसज्जिजो गम्भवासपमितीए र चिचित्तसारीरमाणसिगोरक्तसंतत्तो सत्त संपरसपाई दो मासे बचउरो दिणे य जाप जीविऊर्ग मोसमाणो उपचन्नो वाणमंतरे. तो चुओ उववन्नो माएमुं पुणोषि सूमाहिवताए नओवि तकम्मदोसेणं सान्तमाए वोचि उबढेऊण उपबन्नो तिरिए चकियघरंसि गोणचाए, नत्यय वसगडलंगलायाणेणं अहजिसं जयारोपणे पचिऊन कुहिषडविय संध समुग्लिए य किमी ताहे अपखमीहयं संध जुयधरणस्स विष्णाय पडीए पाहिउमारबो नेणं पकिएणं, अहालया कालकमेणं जहा संघ नहा पबिऊण कुहिया पट्टी, तथापि संमृच्छिए किमी, सडिऊण विगयं च पहिचम्म, ता अकिचियर निष्पत्रोयणनि पाऊण मोकलिओ गोयमा! तेणं पकिएणं तं सलमलितकिमिजालेहि गं खजमाणं बहा सावजापरियजीपं, तओ मोफलिओ समाणो परिसडियपहिचम्मो बहुकायसागकिमिकुत्तेहि सपनाम्भतरे विलुप्पमाणो एकूणतीर्स संवच्छराई जाच आउ परिचालेऊणं मओ समाणो उपपणो अणेगवाहियणापरिगयसरीरो मगुएसुं महाधणार्ग इभस्स गेहे, तस्य यमणविरेवणखारकडतिनकसायतिहलागुग्गलकाढगे आवीय. माणस्स निषिसोसणाहिंच असमाणुयसम्पापोरदारणबुक्सेहिं पजालियरसेव गोयमा! गओ निफलो तस्स मनुषजम्मो, एवं च गोषमा सामनायरियजीयो चोदसरयलोग जम्महा मरणेहि निरंतरं परिवरि(रि)कर्ण मुदीहार्णतकालात्री समुपनो मणुपत्ताए अचरचिवहे, तत्व प भागवसेणं लोगाणुवतीए गओ तित्थयरस्म वनवत्तियाएपडितोय पाओ. सिदो। अइह देवीसमतित्थयरपासणामस्स काले, एवं ने गोयमा! सावजायरिएण पावियं, से भव! किंपचायं नेणाणुभूयं एरिसं साई पोरदार महादुरसनिषायसंघहमित्तियकाल नि?, गोयमा! ज मणिर्य तकालसमयं जहाणं "उत्सम्गावचाएहि आगमो ठिओ, एगंतो मिच्छत, जिणाणमाणा अणेगंतोत्ति' एवषयणपणार्य, से भय ! कि उससगावपाएहिणं अनो ठियं आगम', एर्गतं च पविगइ. गोयमा ! उस्सग्गावपाएहिं चेष पवयणं ठिये, अगं च पनविजा, णो एर्गत, गवर आउद्यायपरिमोर्ग सेउकायसमारंभ मेहुणासेवणं | च एते तो धाणतरे एगते ३ निच्छयत्रो ३ बाई सत्रहा सापयारेहि णं आपहिबहीण निसिद्धति, एत्वं च सुताइकमे सम्मग्गविप्पणासणं उम्मगपपरिसणं तओय आणाभंग आणाभंगाजो अगंतसंसारी, से भयवं! कि तेण सायनायरिएणं मेहुणमासेविर्य , गोयमा ! सेषियासेक्यिं, णो मेवियं गो असेनियं, से भयत्र ! केणं अडेणं एवं पुषह, गोयमा! सीए अजाए काल उनिर्मगेण पाए फरिसिए, फरिसिजमाणे य णो नेण आउंटिय संबरिए, एएणं अद्वेणं एवं गोयमा ! पुषड, से भय ! एण्हसेतस्लाविण एरिसे पोरधिमोक्से वापुनिकाइए कम्मर्षधे, गोपमा एपमेयंग असहति से भपर्व : तेण विस्थपरणामकम्मगोयं आसकलिय एगभवाक्सेसीको आसी भवोयही ता किमेयमतसंसारा हिंडनति? गोषमा ! निषषषमायदोसणे, नम्हा एवं चियाणित्ता भवविरहमिच्छमाणेणं गोयमा ! मुविठ्ठसमयसारेणं गच्छाहिषवणा सबहा सरपयारेहि सवस्थामेस अर्थत अप्पम ने भपियांति बेमि । २९॥ महानिसीहसुपरसंचरस बालसंगमषनाणस्म गवणीयसारनाम पंचमं अज्नयर्ण ५॥ भय ! जो रत्तिदियह सिदतं पदह सड क्लाणे चितए सततं सोकिअगायारमायरे, सिर्जनगयमेगपि, अक्सर जो विधाणई। सो गोषम! मरणतेविनाचारं नो समायरे।१।से भय ! ता कीस दसपुषी दिसेणे महापसे पान पिचा गणिकाइ गेहं पविहोय मई 1, गोयमा 'तस्स पसिर मे भोगहल सलियकारण भवभयभीओतहावितुर्थ, सो पाजबागी ॥१॥ पायास अवि उददमुहं, सर्ग होजा अहोमहं । ग उपो केसलिपातं. पयर्ण । अचहा भये ॥२ अर्थ सो बहुपाएमा, सुपनिषवे विधारि । गुरुणी पामूलें मोतूर्ण, लिंग निजिसजोगी॥३॥तमेव स्वर्ण सरमागो, दंतमग्गो (दत्तभंगो) सकम्पुणा। मोगहले कम्म वेदेव, पदपुहनिकाय ॥ ४॥ भव! ते केरिसोचाए. सुपनिषदे वियारिए।जेगुझियम साम, अजवि पाणे धरेड सो ? ॥५॥ एते से गोयमोबाए, केवलीहि पाए।जहा विसपपरान्ओ, सरेना मुत्तमिर्म मुनी ॥६॥ तंजहा तवमुब(मह)पूर्ण पोरं, आइयेजा सुदुकरें। जया विसए उदिति, पडणासम विसं पिने। 0 उम्मधिऊ मरिया, नो परिल पिराहए। एवाई न सकेजा, ता गुरुर्ण लिन समषिया ॥८॥ विदेसे जत्थ नागच्छे, पडत्ती तत्त्व गतृगं । अगुवर्य पालेजा, मी गं भविया गिबंधसे ॥९॥ता गोयम ! गंविसर्ग, गिरिपडणं । जाप पत्युर्य । तापायासे इमा वाणी, पडिलोपि णो मरिज तं ॥१०॥ दिसामुहाई जा जोए, ता पेच्छे चारण मुर्णि। जकाले नस्थि ते मन्, विसमाविसमारित गओ॥१॥(२८) श्री ११४८ महानिशीवच्छेदम, जय-5 मुनि दीपरजसागर अत्र पंचमं अध्ययनं समाप्तं अत्र षष्ठं अध्ययन- "गीतार्थविहार" आरब्ध: ||१२८|| यत्रो ३ बजारिएका माण आटिय गोये आसायिणास दीप अनुक्रम [८४३] पसिद मे भोगहलावद वियारि । गुरुणो पाए । जेनियम सामान, अदिति, पणालण विसावया नियते । ~37~ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [१] For+sa गाथा ||१२|| दीप अनुक्रम [८५८] "महानिशीथ” छेदसूत्र -६ (मूलं) - अध्ययन [ ६ ], उद्देशक [-1 मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ........... · मूलं [१] + गाथाः ||१२|| [६] "महानिशीथ" मूलं ...आगमसूत्र [ ३९ ], छेदसूत्र - तावि अमहियासेहि, पिसएहिं जान पीडिओ ताप चिंता समुप्यन्ना, जहा कि जीविएण मे ? ॥ २ ॥ कुदेन्दुनिम्मलयरागं, तित्यं पापमती अहं उडाहितोऽह सुज्झिरसं, कत्थ गंतुमणारिओ ? ॥ ३ ॥ जहवा सण चंदी, कुंदरस उण कापहा कलिकलकलकेहि बजिये जिणसासणं ॥ ४ ॥ ता एवं सलदार किलेसक्यंकरं पश्यणं खिसार्वितो, तृण सुई? ॥ ५ ॥ युग्मकं गिरिं रो, अन्नाणं चुनिमो पुर्व जान विसययतो नाहं किंचित्युदाई करं ॥ ६ ॥ एवं पुगोषि आरो संकुच्छ गिरीय संवरे फिल निरागारं गयणे पुणरवि मानिये ॥ ७॥ अवाले न ते म परिमं तुम्भं इमं तणुं वा बदपुढं भोगलं बेइत्ता संजम कुरु ॥ ८ ॥ एवं तु जाय में पारा चारणसमणेहिं लेहिओ। साहे गंतॄण सो लिंग, गुरुपामुले निवेदितं ॥ ९॥ तं सुत्तस्थं सरेमाणो दूरं संतरं गज तत्वाहारनिमित्तेनं, बेसाए घरमागओ ॥ २० ॥ धम्मलानं जा भाई, अस्वलानं पियग्गओ लेणावि सिद्धिगुणं, एवं भवति नाणियं ॥ १ ॥ अवतेरसकोटीओ दविणजायरस जा तहि हिरणविहिं दावे मंदिरा पडिगच्छ ॥ २॥ उत्तुंगथोरपणवा, गणिया आलिंगिडं दर्द। भन्ने कि जासिमं दविर्ण, अधिहीए दाउ चुड़गा ॥ ३ ॥ णवि मचियत्रयं एवं फलियं पभाणियं जहां जा ते विही इडा तीए द (आ) पच्छ ॥४॥ गहिऊणाभिहता. विती मंदिरं एवं जहा न ताव अहयं भीषणपाणविहिं करे ॥ ५॥ दस दस बोहिए जाब, दिग्रहे २ अणि पन्ना जा न पुन्नेसा, काइयमोक्खं न ता करे ॥ ६॥ अन् मेदायमा जोडियस्सरि जारिसगं तु गुरुलिंगं भवे सीपि नारि ॥ ७॥ अस्तीत्वं निहीफाउं, चिओ खोसिओवि सो तहाऽऽराहिओ गणिमाय, बढो जह पेमासेहिं ॥ ८ ॥ आलावाओ पणओ पगपाउ रती रतीइ पीसंभो पीसंभाओ ही पंचविहं वह पेम्मं ॥ ९॥ एवं सो पेम्मपासेहिं बद्धोऽपि साचगन्तणं जहोवइ करेमाणो, दस अहिए या दि दि ॥ ३० ॥ पडियोहिऊण संविग्गगुरुपामुळे पवेसई संपर्क मोहिओ सोचि (श्री), दुम्मुहेम (ह भणे) जहा तुमं ॥ १॥ धम्मं लोगस्स सास, अनमि मुज्झति पूर्ण विषयं धम्मं जं सर्व माणुचिसि ॥ २ ॥ एवं सो वयणं सोचा, दुम्मुहस सुभासियं चरथरथरस्स कंपतो, निदिउ गरहितं चिरं ॥ ३॥ हा हा हा हा अंक मे मसीले कि कर्य । जेणं तु सुत्तो इप्पसरे, गुडिओऽखुइ किमी जहा ॥ ४॥ पी पी पी पी अहन्ने पेच्छ मेऽणुचिडियं। जबकंचणसमऽत्ताणं, असइसरिसं भए कयं ॥ ५॥ खमंगुरस देहस्स, जाविपत्ती मे भवेता तिरवयरस पामूलं, पायच्छितं चरामि ॥६॥ एसमागच्छती एवं चिताव गोयमा पोरं चरिऊण पायच्छित संवेगाऽम्हे हिं भासिये ॥ ७॥ घोरवीरतवं कार्ड, असु हकम्मं वदेत्तु य। सुकज्झाणं समारुहिउं केवलं पप्प सिज्झिही ॥ ८ ॥ ता गोयमेवणाएणं. बहू उपाए वियारिया लिंग गुरुम्स अप्पेडं, नंदिसेगेण जह कयं ॥ ९ ॥ उस्सयां ता तुम बुज्झ, सिर्वतेयं जट्टियं ततउदयं तरस, महंत आसि गोयमा ॥ ४० ॥ तावि जो विसउइन्ने तवे घोरमहातयं अगुणं तेगमणुचिन्नं नावि बिसए व जिए ॥ १ ॥ ता बिसभक्षणं पडणं, अणसणं तेण इच्छियं एवंपिं चारणसमणेहिं मे वारा जाच सेहिओ ॥ २॥ ताय य गुस्स्स रपहरण, अप्पिय तं देवरंग। एते ते गोयमोबाए सुयनिवदेवियाणए ॥ ३ ॥ जहा जाय गुरुणो न स्यहरणं, पहला वन अलिया तावाकर्ज न कायचं, लिंगमवि जगदेखिये ॥४॥ अन्त्य ण उज्झिय गुरुणो मोनून अंजलि जह सो उपसमि सको गुरुता उपसाई ॥ ५ ॥ अह अन्नी उपसमि सको तोडवी तस्स कहिलई गुरुणायि तयं मन्नस्स, गिरा पेय कबाइवी ॥ ६ ॥ जो भदियो बीयपरमडो, जगद्विवि यागगो एयाई तु पयाई जो, गोयमा णं विडंबए ॥ ७॥ मायापर्व चमेणं, सो ममिही आसटो जहा भययं न वाणिमो कोऽवि मायासीलो हु आसडो ? ॥८॥ किं वा निमित्तम्वचरिओ, सो भमे बहुदुहडिओ परिमस्सऽन्नस्स तिमि, गोवमा कंचनच्छवी ॥ ९॥ जायरिजो जासि भूइक्खो तस्स सीसो स आसटो महाबाई तूर्ण अह मुलत्थं अहिजिया ॥ ५० ॥ ताव को उहलं जायं णो णं विसएहि पीडिओ चिते व जह सिद्धते एरिसो दंसिओ निही ॥१॥ तो तरस पमाणेणं, गुरुयणं रंजितं दर्द तपगुणं कार्ड, पडणाणसणं विसं ॥ २ ॥ करेहामि जहाऽपि देवयाए निवारिओ दीहाऊ णत्थि ते मबू, भोगे भुंज जहिन्छिए ॥ ३॥ लिंग गुरुस्स अप्पे, अन्नं देतंतरं वय भोगलं पापच्छा चोरवीरत] [पर] ॥ ४ ॥ अहवा हा हा अहं मूढो, आयसोण सहिओ समणानं परिसं जुतं, सयमयी मणसि पारिडं ॥ ५ ॥ पच्छा उ मे पछि आलोएना घरे अवर्ण आलो, मायाची भन्निमो पुणो ॥ ६ ॥ तो दसपास आयाम, मासकखमणस्स पारणे। बीसाबंचिलमादीहिं दो दो मासाण पारणा ॥ ७॥ पणुवीसं वासे तत्थ, चंदायनतवेण य उइमदसमाई, अदुवाले यण ॥८॥ मह्पोरेरिखपच्छित्तं सयमेवेत्याचरं गुरुपामूलेऽवि एत्येयं पायच्छितं मे ग अग ॥ ९ ॥ अहवा तित्थपरेणेस, किमहं बाइओ विही ? | जेणेयमहीयमाणोऽहं. पायच्छित्तस्स मेलिओ १ ॥६०॥ अहया सोचिय जाणेज सन्तु पच्छितं अणुचराम्यहं जमित्यं चिविययं तस्स मिच्छामि दुख ।। १ ।। एवं तं कई घोरं पायच्छितं सयंमती काऊपि ससको सो वाणमंतरियं गजो ॥ २ ॥ हिट्टिमोवरिमगेवेयविमाणे तेण गोयमा वर्धतो आलोहना, जतं परिछतं कुडिया ॥ ३ ॥ वाणमंतर १९४१ महानिछेद अन्य मुनि पर ~38~ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) ཡཱ + ཋལླཱཡྻ ||६४|| अनुक्रम [1000] "महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं ) उद्देशक [-] अध्ययन [ ६ ], मूलं [...] + गाथाः ||६४|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ... .... आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं ........... - देवत्ता, चणं गौयमा!ऽऽसडो सहलाएं तिरिच्यो नदिपरमागओ ॥ ४ ॥ नियं तत्व पटवाणं, संघट्टमडोसा तहिं बसणे वाही समुप्यण्णा, किमी एत्य संमुच्छिए ॥ ५ ॥ त किमिएहिं सजतो, बसणदेसंमि गोयमा मुक्काहारो सि ले विगत सा सा ॥ ६ ॥ अदूरेण पयोन्ते तू जाई सरेत्तु य निदिउं गरहिउं आया, अणसण पडिवज्जिया ॥ ७॥ कागसाणेहिं खर्जतो, सुदभावेण गोयमा। अरहंताणंति सरमाणो, समं उज्झिय सं वं ॥ ८ ॥ कालं काऊन देविंदमहापोससमाणिओ जाओ तं दिवं इदं समभो तओ चुओ ॥ ९ ॥ उवचनो बेसत्ताए, जा (न)सा नियटी ण पयडिया तओवि मरिगं वह अंतति कुलेदिओ ॥ ७० ॥ कालकमेणं महुराए, सिपदस्स दियावणी सुज होऊ पटिबुद्धी, सामनं कार्ड निबुडी ॥ १ ॥ एवं तं गोयमा सिहं, निगडीपुंजं तु आस जे य समुह थिए, वयणं मणसा चिच ॥ २ ॥ कोउले विसयाणं, ण उणं रिसाएहिं पीडिए सच्छेदपछि ममिओ भयपरंपरं ॥ ३ ॥ एवं नाऊणमपि सिद्धनिगमालावगं जाणमाणो हु उम्म कुखा जे सेविया हि ॥ ४ ॥ जो पुण सङ्घसुयन्नाणं, अई या वयपि वा। बच्चा बन मम्मे तस्स अहो ण बज्झई एवं नाऊन मगसाचि, उम्नो पत्ता ॥ ५॥ सिमि, भवं असं काऊ, पछि जोकरेज वा तस्स बरं पुरओ, अनि कुप्पई ॥ ६ ॥ ताऽजुतं गोयमा मिणमो वय माणसावि चारिडं जहा काउमकत्तव्यं च्छित्ते तु सुज्झि ॥ ७ ॥ जो एवं पयणं सच्चा सद अणुचरे या भट्टीला सच्चेसि, सत्यवाही स गोयमा ॥ ८॥ एसी काउंचिपच्छित्त, पाणसंदेह कारणं आणाअवराह दीवसिहं पविसे सभी जहा ॥ ९ ॥ भयवं जो परि पुरिसयारपरकम्। निगृहंतो तयं परह पन्छितं तस्स किं भये ॥ ८० ॥ नस्य होह पछि असमास गोयमा जो तं धामं वियाणेता, वेरी सन्तिमक्खिया ॥ १ ॥ जो ब बीरियं सन्तं, पुरिसयारं निगृहए। सो सपच्छिन्नपच्छितो, सदसीलो नराहमो ॥ २ ॥ नीयागो दुई घोरनरए सुकोसियति । येतो तिरिजोगीए हिडेजा पठाईए सो ॥ ३ ॥ से भयवः पावयं कम् परं वै समुदरे जणणुभूषण णो मोक्खं पाप कि वह ? ॥४॥ गोमा बासकोटी हि अगाहि संचियं परिछतरी पाहणं विली बइ ॥ ५ ॥ [पणपोरंपयारतमतिभिस्सा, जह सुरम्स गोयमा पायच्छित्तरविस्सेयं, पार्थ कम्मं पणस्सए ॥ ६ ॥ वरं जड़ तं पच्छिलं, जह भणियं तह समुदरे (बलबीरिय) असदभावो अणिगृहियपुरियारपरकमे ॥ ७॥ अन्नं च काउ पच्हितं, सहवं मणुबरे जो दुद्धियो यसो दीहं चाउइयं ॥ ८ ॥ भय फरसाएला ? पछि को व देन था? फस्स व पच्छित देना आलोयावे वा कई ॥ ९॥ गोमालीय ताव केवल सुवि। जोयणसएहिं तृण सुमारेहि दिनए ॥९०॥ नागीणं तयाभावे एवं आहि मईए । जस्स विमलपरे तस्स तारतम्मेण दिजाई ॥ १ ॥ उरसम्म पन्नपितरस, उसको पडियरस य उस्सग्गरुणी चैव सङ्गभावंतरेहिं णं ॥ २ ॥ उवसंतस्स दंतस्स संजयस्स तवस्णिो । समितीगुलिपहाणम्स, दढचारिनस्सासदभाविमो ॥ ३॥ जालोएना पढिच्छेजा, दिना दावि वा परं अहन्निसं तदुहिई, पायच्छित अणुथरे ॥ ४ ॥ से कलिये तरस, पच्छित्तं वइ निच्छियं? पायच्छित्तस्ठागाई, केवहयाई? कहेहि मे ॥५॥ गोयमा जं सुसीलाणं, समणाणं दसह । खलियागयपतिं संजई ने नवगुणं ॥६॥ एका पापच्छित जइ सुसीला दइया अह सीलं विराहेजा, ता ते हनइ सबगुर्ण ॥ तीए पंचेंदिया जीवा, जोणीमज्झे निवासियो। साम नवलाई स पासंति केवली ॥ ८॥ केवलनाणस्स ने गम्मा णोऽकेवली ताई पासती जोहिनाणी बियाणेए, जो पासे मणपजयी ॥ ९॥ ता पुरिसं संघती कोण्गमितिले जहा ससुरा रंतु मत्ता महति (ति) या ॥१००॥ चकम्नी गाटाई का वोसिलिया बाबाइजाय दो तिचि सेसाई परियाई ॥१॥ पायलस ठाणाई खाईपाई गोपमा अगालो तो हु एक्कपि समरणं मरे ॥ २ ॥ सहस्नारीणं, पोहे फालिन निग्पिणो सतहमा सिए गमे, टफ गितिई ॥३॥ जं तस्स जन्तियं पार्थ, तित्तियं तं नवं गुणं । एकसि त्थीपतंगेणं, साहू बंधेज मेहुणे ॥ ४॥ साणीए सहस्वगुणं मेोकसि पिएकोडीगुणं तु विजेणं, नइए बोही पणस्सई ॥ ५ ॥ जो साहू इथियं ददतु सियो रामेहि बोहल्या परमो कराओस होही? ॥६॥ अपोहिलामियं कम्म जो अह संजई मेहुणे सेचिए आए पबंधई ॥ ७॥ जम्हा ती एए अवांत गोयमा उम्मामेव वहारे, निव सहा ॥ ८॥ भगवंता एएन नाएग. जे गारत्वी मउकडे रनिदिया ण उति इत्वीय तरस का गई ? ॥ ९ ॥ ते सरीरं सहत्येनं छिंदिऊणं अग्गीए होमंतितोऽवि सुदी पण दीसई ॥ ११० ॥ नारिणिति सो परदाररस जई करे। सावगधम्मं च पालेह गई पावे मज्झिमं ॥१॥ भव! सदारसंतोसे, जइसने मज्झ गई। ता सरीरेऽवि होमंतो कीस सुद्धि ण पावई २ सदारं परदारं वा इत्थी पुरिसो व गोयमा रमतो बंध पाच णो णं भवइ जगी ॥ ३ ॥ सावराय जहु जो पाले परदारगं चए जावजी तिणिं, तमणुभावेण सा गई ॥ ४ ॥ वरं नियमणिस्स, परदारगमन (ग) रस य अभियनस्त भये मंच, चित्तीए महाफलं ॥ ५ ॥ ११५० महानिद मुति दीपरखसागर ••• अत्र सूत्र-क्रमांक ९०९ एव वर्तते, परन्तु मया स्खलनत्वात् १००० लिखितं । ••• (मैने मेरे मूल संपादनमे भूलसे ९०९ के स्थानमे १००० लिख दिया था, आगे भी सूत्र - क्रमांक १००१, १००२, १००३ इसी तरह छपे थे, इसिलिए सभी प्रकाशनोमे यहीं गलति जारी रक्खी है।) www. ~39~ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [६], -------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [१...] +गाथा:||११६|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं RA मुथैवार्णपि निवित्ति, जो मणसावि पिराहए। सो मओ दुग्गाई गच्छे, मेघमाला जहजिया ॥६॥ मेघमालजिर्य नाहं, जाणिमो भुवणबंधन! | मगसाबि अणुनिवत्ति, जा संडिय दुग्गई गया ॥ ७॥ वासुपूजस्स तित्यमि, भोसा कालगच्छवी । मेघमालजिया जासि, गोयमा ! मणदुबला ॥८॥सा-नियमोगासे पक्सं दाउँ, काउंभिक्रया य निग्गया । जबजो एस्थिगी सारमंदिरोवरि संठिया ॥९॥ आसनमंदिरं अग्नं, लंपित्ता गंतुमिच्छगा। मणसाऽमिनंदेवं जा(ब), ताव पजलिया दुवे ॥१२०॥ नियमभंग तयं सुहम, सीए तस्थण णिदियं । नियमभंगदोसेणं, डज्झित्ता पदमियं गया॥१॥ एवं नाउंसहमषि, नियम मा विराहिह । जेधिल्या अक्खयं सोमवं, अणतं च अगोवमं ॥२॥ नवसं जमे वएसंच, नियमो दंडनायगो । तमेव खंटमाणस्स, न वए णो व संजमे ॥३॥ आजम्मेणं तु जं पावं, वजा माधगो । बयभंग काउमणस्सा, न श्रेषऽवगुणं मुणे ॥४॥ सयसहस्सं सलद्धीए, जो सामित्तु निक्समे। वर्ष नियमसंईतो, जे सोनं पुजमजिणे गा पबित्ता य निचिना य, गारस्थी संजमे तये। जमणुडिया वयं लार्म, जाप दिक्खा न गिण्डिया ॥६॥ साहुसाहुणीबम्गेणं, पिनायामिह गायमा जेसि मोजूण ऊसासं, नीसासं नाणुजाणियं ॥ ७॥ तमपि जयणाए अणुमाय, विजयगाए ण सहा । अजयणाइ ऊससंतस्स, कओ धम्मो? कओ नयो ? ॥८॥ भय! जावार्य दिई, तावइयं कहष्णुपालिया। जे भने अबीयपरमत्थे, किबाकिचमयाणगे ? ॥९॥ एगनेणं हियं ययणं, गोयम ! विस्संति केवली। णो परमोडीह काति, हत्थे पेतूण अंतुणो ॥१३०॥ नित्यपरभासिए बयण, जे तहत्ति अणुपालिया। सिंदा देवगणा तस्स, पाए पणमंति हरिसिया ॥१॥ जे अपिदयपरमत्थे, किचाकिसमजाणगे। अंधोधीए सि सम, जलबलं गडठिकारं ॥२॥ गीयत्यो य विहारो, बीओ गीयस्थमीसओ।समगुन्नाओ सुसाह, नरिच नइयं विषप्पणं ॥३॥ गीयत्वेजे मुसंवियो, अणालस्सी बढ़गए। अखलिबचारिते सवर्य, रागदोसचिवजए॥४॥ निहुचिबहुमबहाणे, समियकमाये जिइंदिए। बिहरेजा सेसि सर्दिनु ने छाउमस्थेपि केवली ॥५॥ सुहुमस्स पुढवीजीवरस, जत्थे स्था व विहार, 10 गीयत्वमासा समगुलाब सामना गस्स किलामणा । अप्पारंभ तयं बैंति, गोयमा! सबकेवली ॥६॥ मुहमस्स पुटवीजीवस्स, पावती जस्थ संभव । महारंभ तयं विति, गोयमा! सबकेवली ॥ ७॥ पुढचीकाइयं एकदरमलेतस्स गोषमा!। अस्सायकम्मोह विमोबसे ससहिए ॥८॥एवं च जाऊतेऊलाऊ तह वणरसती । तसकाय मेहणे तह, चिकगं पिणइ पावगं ॥ ९॥ तम्हा मेणसंकर्ष, पुटवादीण पिराहणं । जावजीर्ष दुरंतफलं, तिमिहति विहेण वजए॥१४॥ ता जेऽपिदियपरमाथे, गोयमा ! णो यजे मुगे । तम्हा ते विचनेजा, दोगाईपंथदायगा ॥१॥ गीयत्वस उपपणेणं, किस हलाहल पिये। नित्रिकप्पो पभक्खेजा,तक्सणा जंसमुहये। परमत्वो विसं तोसं(नो न), जमयरसायर्ण चुन। णिविकपणं संसारे, मजओपि सो अमयसमो ॥३॥ अगीयस्यम्स पयगेणं, अमयपि ण पोहए। जेण अपरामरे हविया, जह कीला जो मरिजिया ॥४॥ परमस्यओ ण तं अमर्य. संविस ते हलाहलाण तेग अपरामरो होना, भक्षणा निहणं गए॥५॥ अगीवत्वकुसीलेहि.समें निविहेण वजए। मोक्लमम्मास्सिमे विधे, पहमी तेणगे जहा ॥६॥ पजलियं हयवहं बढ़. णीसंको तन्य पपिसि। अतागंपि डहिजाति, नो कुसीले समातिए ॥ ७॥ पासलक्संचि मूलीए, संभिको अपिछया सुहा अगीयत्येण सम एक सदपि न संवसे ॥८॥ पिणाविनंतमतेहि. घोरविहीविसं अहिं । उसंतपि समातीच, - जागीय कुसीलाहम ॥९॥ विसं खाएन हलाहलात कि मारेइ तक्मण। ण करेऽगीयत्यसंसगि, विढये लक्लंपिजं नहिं ॥१५०॥ सीहं वापं पिसायं था, पोररुवमयंकरं । ओगि-4 लमाणपिसीएजा, ग कुसीलमगीयस्थ सहा ॥१॥ ससजम्मंतर सतुं, अवि मनिता सहोयरं । वपनियम जो चिराहेजा, जगवं पिपसे नये रि॥२॥ व पविट्ठी जलिय यासर्ग, नयापि नियम सुहर्म पिराहियं । बरं हि मच्चू सुचितुवकम्मुणो, न यावि नियम अनुण जीवियं ॥३॥ अगीयस्थत्तदोसेण, गोयमा ! ईसरेण उजं पत्तं वे निसामेत्ता, लहु गीयस्थो मुणी भवे ॥४॥से भयब! णो बियाणेऽई. इसरो कोवि मुणिवरो। किवा अगीयत्वदोसेणं, पर्त नेण? कहेहि गो॥५॥ उनी सिगाए अचाए.एत्व भरइंमि गोयमा ! । पढमे तित्थकरे जइया, विहीपण निबुडे ॥६॥ नइया निधाणमहिमाए, घनरूपे सुरासुरे। निवयंते उप्पयंते व, बछे पचनवासिउ ॥७॥ अहो अच्छेयं अन, मबालोयमी पेनिछमो।ण दजाल सुमिण बामि दिकत्या पुणी ॥८॥एवं पीहापोहाए, जिआई सरिनु सो। मोहं गतृण खणमेक,मारुयाऽऽसासिओ पुणो ॥९॥ परपरपरस्स कंपतो, निवि गरहिउँचिरं । अत्ताणं गोयमा धणिय, सामर्ष गहिउमुजी ॥१६० ॥ अह पंचमुहिय लोष, जापाठवा महायसो। सविणयं देवया तस्स, स्यहरणं नाच ढोयई ॥ १॥ उग्गं कई तवचरणं, तस्स बठूण ईसरो। लोओ पूर्व करेमाणो, जाच उगतृण पुच्छई ॥२॥ केण तं दिक्खिओ? काय?, उप्पयो को कुलो तव ? । मुत्तस्थं कस्स पामूले, साइसवं हो समजिय? ॥३॥ सो पचएगबुद्धो जा. सच तस्स वियागरे । जाई कुलं दिक्ता सुतं, अर्थ ज य समजियं ॥४. सोऊण अहमो सो, इमं चितड गोयमा। अन्लिया अणारिओ एस, लोग इभेण परिमसे ॥ ५॥ ताजारिसमेस मासेड, वारिस सोऽनि जिणवरो।म किंचिस्प पियारेणं, तुहिकई चिरंठिए।६॥ अहवाणहिणहि सो भगवं !, देवदामपणमित्रो। मनोगपिज मका, पि चि. ११५१ महानिशीवादसूत्रं सा -5 मुनि दीपातमागा IAN सरकारका ||११६|| दीप अनुक्रम [१०५२] ~ 40~ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) PANKA “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [६], ------------- उद्देशक [-1, ---------- मूलं [२] +गाथाः ||१६८|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं मा निज संसर्ग असावेस जो होउ सो होउ, किं नियारेण एत्य मे। अभिनंदामीह पक्कनं. सवदोक्ल(स)चिमोक्मणि दाता पडिगओ जिणिवस्स. सयासे जाते क्लाई।भवणेस जिणवर ताप, गणहरसामी पयद्विजो ॥९॥परिनियंमि भगवते, धम्मतित्वंकरे जिणे। जिणाभिहियमुत्तत्व, गणहरो जा पहाई ॥१७॥ तापमालाचगं एवं, वरसामि समागर्य। पुटवीकाइगमे जो, माचाए सो असंजओ॥१॥ता इसरो पिचितई, सहमे सुद्धविकाइए। सबत्य उदकिगंति, को ताई रक्सिाउं तरे? ॥२॥ हलुईकरेइ अत्तागं, एल्यं एस महायसो। असदेयं जणे सहलायाले), किमत्येयं पपक्ला ? ॥शा अचंतकटपट एवं, कारखाणं तस्सवी फुट। कण्ठसोसो पर लाभे, एरिस कोऽचिहए? ॥४॥ता एवं विषमोर्ण, सामर्थ किचि मनिझम । जया न पा कहे धम्म, ना लोउऽम्हा ण उगाई ॥५॥ आया हा हा बहूं मूढो, पापकम्मी जराहमो। पचरं जा णाणुचिहामि, अशोऽणयेवती जणो ॥॥जेगेषमणनाणीहि. सबहिं पवेदिय। जो एदि जनहा पाए, तस्स अट्ठोग बना(विज)दाताहमेयरस पचिर्स, पोरं महतुकर वर । बहू सिम्य सुसिम्पयर, जाव मयू ण मे भये टा आसायणाकर्य पात्रं, आसंजेण निकुन(कित)ती। दि वाससयं पुन्न, अहसो पच्छिन्नमाचरे॥९॥ तारिस महापोर.पायपिछले सयंमई। कार्ड पत्तेयबस्स, सयासे पृणोषि गओ ॥१८॥ तस्यापि जा सुणे पक्रया, वापऽहिगारमिमागर्थ । पुढवादीण समारंभ, साहू तिनिहेण बजए॥१॥ढमूढो हुत्य जोईता. इसरो मुस्खमभुलो चितेतेयं जहित्य जए. कोण ताई। समारभे ॥२॥ पुटवीए ताप एसेन, समासीणोविचिढई। अगीए रवयं खाया.(सबीयसमुम्भव)॥३॥ अन्नंच विणा पाणेणं, खणमेकं जीवए बाई । ताकिंपिनं पचाखेल, ज पथ्यः मस्थतियं मा इमस्सेय समागच्छे, ण उणेयं कोइ सरहे। ता चिट्ठल नाय एसेत्वं, वरं सोचेव गणहरी ॥५॥ अहवा एसोन सो मा एकोपि मणियं करे। अलिया एवंविह धम्म, किंचुसेणं तंपिय॥६॥साहिनई जी सुपेकिथि,णतुणमचंतकड्यई। अहवा चिटुतुतायेए, जहयं सयमेष वागरासुहराहणं जं धम्म, सोविअणुढए जणोनि कालं कडयास्सऽन, धम्मस्सिनि जाय चिंता ॥८॥ धरहडिलोऽसणी ताब, णियडिओ तस्सोपरि । गोयम! निहणं गजओ ताहे. उषयनो सत्तमाएं सो॥९॥ सासणरमण अपनाणसंसमापदिनीयताए इसरो। तस्य दारुणं दुक्ख, नरए अणुभवि चि ॥ १९०॥ इहागओ समुदमि, महामन्छो भवउण। पुणोनि सत्तमाए य, नितीसं सागरोचमे ॥१॥ दुविसई दारुणं दुक्सं, अणुहविऊनिहागओ। सिरियपक्सीसु उपपन्नी, कागलाए स इसरो ॥२॥ नजोवि पदमिव गर्नु, उमहिना इहागो। दुइसाणो भयेसाणं, पुणरवि पदामियं गओ ॥३॥ अहित्ता तो इडई. खरो होउ पुणो मञो। उववन्नो रासहत्ताए, इम्भवगहणे निरंतरं ॥४॥ ताहे मणुस्सजाईए, समुप्पन्नो पुणो मजो उपचन्नो वणयरत्नाए, माणुसनं समागमओ ॥५॥तोऽपि मरिठ। समुष्पन्ना, मजारते स इससे। पुणोनि निरए गंतु, (जह) सीहनेणं पुणो मओ ॥६॥ उपजिउंचउत्पीए, सीहत्तेण पुगोऽपिहा मरिडणं चउत्थीए, गंतुं वह समागओ आलोचि नरवं गंतु, चकियत्तेण ईसरोसिसोवि कुट्टी होऊर्ण, परक्वदिओ मनो॥८॥ किमिएहिं खजमाणस्स, पन्नास संवच्चरे। जाऽकामनिजरा जावा, सीए देवेमुक्वजिउँ॥९॥ नओइह नरीमन, सदूर्ण सतमि गओ। एवं नरगतिरियोस. कुभियमणुए इसरो॥२००॥ गोयम! सबरंपरिम्भमिउ, पोरनुक्ससुदक्खिी । संपा गोसालओ जाओ, एस समेवीसरमित्रो॥१॥ तम्हा एवं बियाणेता, अचिरागीयस्थे मुणी । भवेजा विदिवपरमस्थे, सारासारपरिन्नुए॥२॥ सारासारमपाणेत्ता, अधीयत्यत्तदोसओ। वयमेनेणापि रजाए, पावर्ग जे समलियं ॥३॥ नेणं नीए अहसाए, जा जा होही नियंतणा। नास्यनिस्विकुमाणुस्से, ने सोचा को चिई लभे? ॥४॥ से भयो ! का उण सा रजिया किंवा तीए अगीयो. सेन पयमेनेपि पापकर्म समनिय जस्सण विवागर्थ सोकगं को चिई लमेजा ?, गोयमा ! णं इहेव मारहे पासे मदो नाम आयरिमो मेसि, तस्स प पंचसए साहणं महानुभा. गाण दुवालससए निम्गंधीण, नस्य य गच्छे पात्परसियं ओलावणं तिवंडोवित्तं च कदिउद विषमोचूर्ण चात्य न परिभुजा, अनया रमानामाए अजियाए पुषकयअसुहपाचकम्मोदएर्ण सरीरमं कुछवाहीए परिसडिऊर्ग किमिएहि समुरिसिउमारवं. अहऽन्नया परिगलंतपूइलहिस्तणू त रजजियं पासिया ताओष संजो भगति जहा हलाहला दुकरकारगे! फिमेयंनि ?, नाहे गोयमा ! पडिभणियं तीए महापापकम्याए भग्गलकरपणजम्याए रजजियाए, जह। एएणं फासुगपाणगेण आबिजमाणे विगहूँ मे सरीरगति, जावेयं पालये ताब संसुहिय हिय गोयमा समसजईसमूहस्स, जहा गं निजामो कासुगपाणमंति, नओ एगाए नत्य चिनियं संजईए-जहाणं जइ संपर्य चेष ममेयं सरीरगं एगनिमिसम्मतरेगेव पडिसडिकणं खंटखेडेहिं परिसडेजा तहावि अफासुगोदगं इत्य जमेण परिमुंजामि, फासुगोदगं न परिहरामि, अनंच कि सबमेयं फासुगोदगेर्ण जमीए सरीरमं विगढ़, सबहाण सबमेयं, जो गं पुश्कयअनुहपाचकम्मोदएणं सामेवंचिह हवइत्ति सुदयरं चिति पयत्ता, जहा से भी पेच्छ २ असाणदोसोबयाए दमदहियथाए विगतलमाए इमीए महापाबकम्माए संसारपोरक्तदायर्ग केरिसं दुद्वयर्ग गिराइयं ?, जं मम कालविवरसुपि गो पविसेजत्ति, जओ भतरकएणं असहपावकम्मोदएणं किंचि वारिनुक्सबोहगमयसम्म क्खाणकुट्ठाइयाहिकिलेससन्निवार्य देहमि संभवन, न जन्नहत्ति, जे तु एरिसमागमे पढिना, तंजहा को देड कस्स देजइ विहिब को इस हीरए कस्स । सयमपणो (२८८) ११५२ महानिशीपच्छेदसूrajents था ||१६८|| दीप अनुक्रम [११०४] ~41~ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [६], ------------- उद्देशक -, ---------- मूलं [२] +गाथा:||२०५|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं AAT AAPAN पछाक था ||२०५|| विद अलिया दुहपि सुक्खंपि॥२०५॥ चिंतमाणीए चेव उप्पन्नं केवलनाणं, कया य देवेहि केयलिमहिमा, केवलिणायि णरसुरासुराचं पणासिय संसयतमपडलं अजियाणं च, सजो भत्तिभरनिम्भराए पणामपुर्व पुट्टो केवली रजाए, जहा भयवं ! किमहमहं एमहंताणं महावाहिवेवणाणं भाषणं संयुत्ता , ताहे गोथमा ! सजलरहस्मुईदुहिनिम्पोसमणोहारिगंभी. रसरणं मणिय केवलिणा-जहा सुणसु दुकरकारिए! जं तुम सरीरविहढणकारणति, नए रत्तपित्तदृसिए अम्नंतरओ सरीरमे सिनिदाहारमाकंठपए कोलियगमीसं परिभुतं, अन्नंच. एल्थ गच्छे एशिए सए साइसाहुणीणं तहानि जापाएर्ण अच्छीणि पक्खालिजति वावइयपि बाहिरपाणगं सागारियडाइनिमित्तेणापि णो णं कयाइ परिभुबह, नए पुण गोमुत्तपडिग्गहणगयाए तस्स मच्छियाहि मिणिहिणितसिंपापगलालोलियवयणसणं सढगसुवस्स बाहिरपाणर्ग संघटिऊण मुहं पक्वालिपं, वेण व पाहिरपाणयसंपहणविराहणेणं ससुरासुरजगवंदाणपि अलंघणिजा गच्उमेरा अइकमिया, तंवण खमियं तुज्या पक्षणदेवयाए, जहा साहणं साहुनीणं च पाणोचरमेविण छि(क)पे हत्येणाविज पूवतालायपुरवरिगिसरियाइमतिगयं उदगति, केवलं तु जमेव चिराहियं वयगयसयलवासं फासुगं तस्स.परिभोगं पनतं बीयरागेहिं. ता सिक्खयेमि एसा ह बुरायारा जेणऽमावि काविण एरिसमायारं पपत्ते. इत्ति चितिक अमुर्ग २ चुष्णजोग समुसिमाणाए पक्सित्तं असणमामि ते देवयाए, संच ते गोवलक्विउँ सकियंति देवयाए पस्थि, एएण कारण ते सरीरै बिहडियंति, ग. उण फासुदगपरिभोगेणति, ताहे गोयमा ! रजाए विभाचियं जहा एवमेय ग अन्नहत्ति, चितिऊण विनवित्रओ केवली-जहा भयवं! जब अहं जान पायचितं चरामि ता कि पापा म एवं नपुं.तओ केवलिणा मणियं-जहा जइ कोई पायपिउन पयच्छइता पन्नप्पा, रजाए भणियं-जहा भय ! जहा तुम चिय पायण्डितं पयच्छसि, अन्नो को एरिसमह प्पा, लोकेबलिणा भणियं-जहा एकरकारिए पयच्छामि अहं ते पच्छितं नवरंपत्तिमेवणस्थि जेणं वे सही भवेजा, रजाए भगिय-भय ! किं कारगति!. केवलिणा मणिय- 12 जहाज ते संजाइवंदपुरजो गिराइयं जहा मम कासुयपानगपरिभोगेण सरीरमं बिहढियति. एवं चतुङपापमहासमुदाएकपिडं तुह बयणं सोचा सखुबाओ सबाजो चेव इमाओसं. जईओ, चिनियं च एयाहिं-जहा निच्छपओ विमुचामो फासुगोदगं, तयज्यवसायस्सालोइयं निंदियं गरहियं याहि, दिशं च मए एयाण पायटिन, एत्वचएण सत्यपदोसेणं जं से समजियं अचंतकडचिरसदारुणं नवपुडनिकालय तंग पावरासितं च तए कुछभगंदरजलोदरखाउगुम्मसासनिरोहहरिसागंडमालाहिं अगवाहियणापरिगयसरीराए बारितदुक्लदीहम्पत्रयसभाखाणसंवायुवेगसंदीवियपजालियाए अर्णवहिं भवग्गणेहिं सुदीहकालेणं तु अहमिसागुमवेयावं.एएर्ण कारणेणं एसेमा गोयम ! सा रजजिया जाए अगीयस्यत्तदोष बायामेतेणेव एमहतं दुक्खदायमपापकम्मं समजियंति।।'अमीयत्यत्तदोसेग, भावसुर्दिण पाचए।विणा भाचविसुदीए.सकलसमगसो पुणीमवे॥२०६॥ अणुधेयकलसहिययत, जगीयत्यत्तदोसओ। काऊग लवणजाए, पत्ता दुक्खपरंपरा ॥७॥ सम्हा गाउ बुद्धेहि.साभाषण साहा। गीयत्वेण भपिताणं, काय निकालस मर्ग ॥८॥ भयर्ष ! नाहं पियाणामि, लक्खणदेवी हु जजिया। जा अकल्लसमगीयत्वत्ता, काठ पत्ता दुक्सपरंपरा ॥९॥ गोयमा! पंचसु भरहेस एचएस उस्सप्पिणीजोसप्पिणीएएगेगा सत्रकाले पाउबीसिया सासयमयोदिछत्तीए 'भूया तह य भविस्सई अणाइनिहणाए सुपुर्व एस्था जगठिद एवं गोयम! एयाए चउबीसिगाए जा गया ॥२१०॥ अतीयकाले असीइमा, ताहियं जारिसगे अइयं । सत्तरयणी पमाणेणं, देवदाणयपणमिओ॥१॥ तारिसओ चरिमो नित्यपरो, जया तया जंबुदाडिमो। राया मारिया तस्स, सरिया नाम बहुस्सुया ॥२॥अनया सह इइएणं, घृयत्व बहुउवाइए करे। देवाणं कुलदेवीए, चंदाइबगहाण य॥३॥ कालकामेण अह जाया, प्या कुवलयलोयणातीए वेहि कर्य नाम, उखगदेवी अहम्नया ॥४॥ जाच सा जोत्रण पत्ता, ताप मुका सयंवरा । परियं तीये वरं पयर, गयणाणंदकलालयं ॥५॥ परिणियमेत्तोमओ सोवि भत्ता, 'सामोहं गया पयलं ते. सुयणेणं परियणेण या नालियंटयाएणं, दुक्खे आसासिवा ॥६॥ ताहे हा हाऽऽकद करेऊण, हियवं सीतं च पिहिउँ। अत्ताणं चोपड़ाहि. पहियं दसदिसासु सा ॥७॥ तुष्टिका बंधुवम्गस्त, पयमे हि तुससमस । ठियाऽह कड़वयदिणेमुं. अनया तिथंकरो ॥८॥बोहितो भरकमलपणे, केवलनाणदिवायरो। बिहरंवो आगओनत्य, उजाणमि समोसदो॥९॥ सस्स बंदणभनीए, संतेउरवलवाहणो। सचिड्दीए गओ राया, धम्म सोऊग पाहओ॥२२०॥ तहि सतेउस्मुपधूओ, सहपरिणामो अमुच्छिओ। उम्ां कहूं तवं पोरै, दुकर अणुचिडई ॥१॥ अन्नपा गणिजोगेहि, सोऽवी ने पवेसिपा। असमाहहिवयं काउं, लावणदेवीण पेसिया ॥२॥ सा एगतेवि चिटुंती, कीडते परिवाए। बगेयं विचितेड़, सहलमेवाण जीवियं ॥३॥ जेणं पेचियस्स, संपहली चिप्लिया। सम पियवमंगे, निबुई परमं जणे ॥४॥ अहो तित्थंकरेगाऽम्ह, किम चासुदस्सिण । पुरिसत्थीरमंताण, सपहा विणियारियं ॥५॥ता पिदुक्लो सो अग्नेसिं, गहबुक्संग यागई। अम्गी बहणसहाओपि, दिहीविडोण मिड्डहे ॥धाजहबा न हि न हि भगवंत, आणाविर्तन अन्नहा। जेण मे दण कीडते, पक्षी पायुभियं मणं आ जाया पुरिसाहिलासा में, ११५३ महानिशीथच्छेदस्व rics मुनि दीपरत्सागर दीप अनुक्रम [११४२] THATANTROVER ~42~ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [६], -------------- उद्देशक [-], ------- मूलं [२...] +गाथा:||२२८|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||२२८|| जान सेवामि मेहर्ण । जं सुविणेविन काय, तं मे अब विचितियं ॥८॥तहा य एत्य जम्मंमि, पुरिसो ताव मणवि। निच्छिओ एत्तियं कालं, सविर्णतेवि काहिचिति ॥९॥ता हाहाहा दुरायारा, पावसीला अणिया । अहमहाई चिर्तती, तित्ययरमासाइमो ॥२३० ॥ तित्यपरेणावि अचंत, कई कदयद वयं । अदुदरं समादिई, उम्गं घोरं सुबुदर१॥ता निविहेण को सको, एवं अणुपालेऊ । वायाकम्मसमावरणेचि, रक्ल णो तइयं मणं ॥२॥ अदा चिंतिजा दुक्लं, कीस पुण मुहेण य। ता जो मणसावि कुसीलो, सकुसीलो साकजेसु ॥३॥ ताजं एत्य इर्म खलियं, सहसा तडिक्सेण मे। आगयं तस्स पच्छितं. आलोहत्ता लई चरं ॥४॥ सईणं सीलबंतीणं, मजो पदमा महाऽऽरिया। पुरंमि दीयए रहा, एवं सम्गेवि घूस ॥ ५॥ सहाय पायधूली मे, सचोपी चंडए जणो। जहा किल सुझिजएमिमीए, इति पसिद्धा अहं जगे॥६॥ ताजा आलोयणं देमि, ता एवं पयडीभो। मम भायरो पिया माया, जाणित्ता ९ति दुखिए ॥ ७॥ अहना कहषि पमाए, मे मगसा विचितियं । तमासोइयं मया, मझ बम्गस्त को हे? ॥८॥ जायं चिति गठे, ताईतीएं कंटगे। कुटियं उसत्ति पाययले, ता णिसत्ता पडुडिया ॥९॥बिते अहो एत्य जम्मंमि, मजा पायमि कंटग। वकयाइ खुर्तता किं. संपर्य एत्य होहिई ? ॥२४०॥ आमा मुणियं तु परमत्य, जाणगे (मए) अणुमती कया। संपईतीएपिडाहीए.सील वेण विराहियं ॥१॥ मूबंधकारवहिरपि, कुई सिडिविडियं पिडं। जाप सीलं न संडव, ता देवेहिं बुधईशा कंटग व पाए में, मुत्तमागासगामियं । एएणं ज मह चुका, तं मे लाभ महतियं ॥३॥ सत्तवि साहाउ पापाले, इत्थी जा सणसावि या सील संसाणेइ, कहं जणणीए मेम? ॥४॥ ताजंण गिवडई वनं, पंसुविठ्ठी ममोपरि । सयसकरं ग कुलद या, हियर्य तं महारग ॥ गावर जाइ मेयमालोयं, ता लोगा एत्य चिंतिही । जहाऽमुगस्स धूयाए, एवं मणसा अजापसियं ॥ ६॥ तं नं नपि पाओगेणं, परववएसेगालोइमो। जहा जइ कोड एयमापसे, पच्छितं तस्स होइ कि? ॥७॥चिव सोऊण काहामि, तवेणं तत्य कारण। पुण भययाऽजई. चोरमचंतनिरं ॥ ८॥ सर्व सीलचारितं, तारिश जाब नो कर्य। तिविहतिविहेणगीसाई, ताच पाचे गलीयए ॥९॥अहसा परवचएसेण, आलोएता वर्ष घरे। पायच्छित्सनिमित्तेण, पन्नास संवरेग२५०० सहमवसमतुवासेहि, लयाहि हदस बरिसे । अकयमकारियसंकप्पिएहि.परिभूष(भुग)मिक्खलमोहिं ॥१॥षणगेहिंदुभिरि भुजिएहि सोलस मासलमणेहि पीस आयामाबिलेहि.आचस्सर्ग अछाडेती चरई व अदीनमणसा, अहसा पनिछत्तनिमितं ताहेब गोयमा बिते. पच्छिले कम्त ॥2॥ ता किं तमेषण क(ग)यं मे, जं मणसा जमवसियं तया ।इपरहेवि उ पच्छितं. इयरडेच उ में कयं का ता कि सब समायरियं, चिरोती निहणं गया। उर्गा कई वर्ष घोर, दुकरंपि परितु सा ॥५॥ सईदपायच्छितेणं, सकलुसपरिणामदोसत्रो। कुत्थियकम्मा समुप्पन्ना, बेसाए परिचेदिया।६॥ संडोडा गाम बङगारी, मालइडगवाहिया । विणीया साबेसाणं, घेरीए य पाउरगुणं ॥७॥ लावन्नतिकलियावि, बोडा जाया तहावि सा । अन्नया बेरी चिंतेड़, मन बोडाए जारिसं ॥८॥ सावन्न कती रूप, नस्य भुपोषि तारिख । ता विरंगामि एवंए, कन्ने गर्क सहोडयं ॥९॥ एसा उण जाच विउप्प(जीजे, मम धूयं कोविणेभिडही। अहा हा हा जुत्तमिगं, घुया तुलसापि मे गवरं ॥२६॥ सुविणीया एसाथि, उष्पन्नत्य गच्छिही। ता तह करेमि जह एसा, देसंवरं गयाधि य॥१॥ण समेजा करवाई याम, आगाइ पदिशिया। देदेमि से वशीकरणं, गुज्जकादेस तु सीहिमो ॥२॥ निगडा च से देमि, ममा तेहि नियंतिया । एवं सा जुन्नचेसाजा,मणसा परिवप्पिङ सुते ॥३॥ ता खंडोडावि सिमिणमि, गुज्मं सीटिजंतगं। पिच्छद निपडेय दिजति, कन्ने नासं च रहियं ॥४॥सा सिमिणई पियारेई, गहा जह कोईण पाणा। कहकइति परिभमंती सा, गामपुरनगरपट्टणे ॥५५ उम्मासेणं तु संपत्ता, सखंडणाम खेडगं । तस्य वेसमणसरिसविहार डापुनस्स सा जुया ॥ ६॥ परिणीया महिला नाहे. मच्छरेण पजच्छ ले) वढं । रोसण फुरफुर्नसी सा, जा दियहे केश चिट्ठछ ।॥ ७॥ निसाए निम्मर सायं, संडोडी नाच पिच्छई। बड़े धाइया बुर्ति, दिल पे समागया दानपक्सिविऊण गुज्यते, पलिया जाच हियय। जाच दुक्लसरकता,चालचुलेवी केसा ॥९॥ तासा पुगो विचितेत जावजीचं ग . इहए। नाव देमी से वाहावं, जेण मे भवसएसुचि ॥२७०॥ न तसं पिययर्म काउं, इसमो पढिसमरति या। ताहे गोयम आगेर्ड, पक्रियसालाउ अयमयं ॥१॥ सावित लिंगमे तं, जोणीए पक्सित्तं पुस । एवं दुक्खभरता, तत्य मरिऊण गोयमा!॥२॥ उपनन्ना चकनाहिस्स, महिलाश्यपत्तेग साइनो परंडपुत्तस्स, महिला ने कलेवरं ॥३॥जी. निसर्यपि रोसेण, सेतुं समुहमर्य सा। साणकागमादीणं, जाय पत्ते विसोदिसि मा वाध रैतापुत्तोदि, बाहिरभूमीउ आगओ। सो य दोसगुणे गाउँ, गहुं मणसा पियपिउं। गंतृण सा पामूल, पाजा का निगुटो ॥५॥ सो लालणदेवीए, जीचो खंडोहीपत्तमा । इत्थीरपणं भविता, गोषमा उद्विय गओनसय महासं, अधोरे वारण नहि। शतिकोगे निरयावाले, मुचिरं दुखेण वेहउँ ॥७॥हागजो समुप्पयो, तिरियजोणीए गोयमा !। साणणाह मयकाले, विलगो मेहुणे तहिं ॥८माहिसिएणं को पानी पिये मुशिविरसागर परिणामदोमाया तहापिसा । अन्यथा नाही असा हा काम मि से वली दीप अनुक्रम [११६७] ~ 43~ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [२] गाथा ||२७९|| दीप अनुक्रम [१२१८] "महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं ) अध्ययन [ ६ ], उद्देशक [-], मूलं [२...] + गाथाः || २७९|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं - जोगी समुहला तत्थ किमिएहिं दसवरिसे, खदो मरिण गोयमा ॥ ९॥ उपबन्नो बेसताए, तओषि मरिठण गोयमा एगूर्ण जाव सपवार, आमगन्भेसु पचिओ ॥ २८० ॥ जम्मदरिस्स गेम, माणुसतं समागओ तत्व दोमासजायरस, माया पंचत्तमुवया ॥ १ ॥ ताहे महया किलेसे धनं पाठं घरापरिं जीवावेऊण जगणं, गोउलिम्स समहिओ ॥ २ ॥ तहियं नियजणणिच्छीरं, आवियमाणे निबंधि (छावस्ए ) गोणिओ दुहमाणेण जंबई अंतराइयं ॥ ३ ॥ तेषं सो लक्खजाए, कोडाफोडी भवंतरे जीवो चन्नममाणो (तो तो नियलितो हम्मतो दम्मंतो) बिच्छोतो व हिडिओ ॥ ४॥ उन्न मणजोगीए. डामिनित्तेण गोयमा तत्थ य सागयपालेहिं कीलिउं (या) उड गया ॥५॥ ताओ उच्चट्टिणिह से ल माणुसत्तणं जत्य य सरीरदोसेणं, एमहंतमहिमंडले ॥ ६॥ जामदजामपडियं था, जो लडं वेरलियं जहिये। पंचेव उ घरे गामे. नगरपुरपट्टणेषि ॥ ७॥ तत्थ य गोयम! मणुयत्ते, णारयदुक्लान सरिसाए। अगे रणरणं पोरे दुक्खेऽणुमो ॥८॥ सो लक्खणदेवीजीची, सुरोदसाणदोसओ मरिऊण सत्तमि पुढवि, उन्न रखडोहणे ॥९॥ तत्व य तं तारिस दुक्ख, तित्तीस सागरो मे अणुभवि उन्नो झागोणित्तोग य ॥ २९० ॥ खेत्तखलगाई यमती भंजती य परंति या सा गोणी बहुजणोहेहि, मिलिऊगागाहकवलए पवेसिया ॥१॥ तत्त्व सुती जयाहि नृसिती तब य कागमादीहिं लुप्ती. कोहाविडा मरेउणं ॥ २ ॥ ताहे जिणे रणे. मनदेसे दिडीविसो सप्पी होऊन पंचम, पुढवि पुणरवि गओ ॥ ३॥ एवं सो जाए. जीवो गोपमा चिरं घनघोर दुक्खसंतती चमइसारसागरे ॥ ४ ॥ नारयतिरियकुमगुए, जाहिङित्ता पुणोवि होही सेणियजीवस्स, नित्थे पउमस्त सुजिया ॥ ५ ॥ तत्थ य दोहावाणी सा, गामे नियजणणीओविय गोयम दिट्ठा न फस्सावि, अच्छीय रहदा नहि भये ॥ ६ ॥ नाहे समजणेहि सा उचियणित्तिकारण मतिगख्यविलगा, खरेरूदा ममादि ॥ ७॥ गोयमा ओपक्खपखेहि बाइयलरविरसटिडिमं निदाडिहि ण अन्नत्थ, गामे लहिहिइ पविसिद्धं ॥ ८ ॥ ताहे कंदफलाहारा, रन्नवासे वर्तति या (दहा) मच्छेदरेण विणत्ता पाहीए मज्या देस ॥ ९४ त सब सरीरं से, भरिलंसुदराण । तेहिं तु पितृप्यमाणी सा. दुसहघोरदुहाउरा ॥ ३०० ॥ वियणता पउमतित्वयरं तप्यसे समोस पेच्छिही जाव ता सीए. (अन्नेसिम बहुवाहियणापरिगयसरीराणं तसविहारिभवसत्ताणं नरनारिंगणाणं तित्थयरदंसणा चैव सङ्घदुक्तं विणिीि ॥ १ ॥ ताहे सो जाए, तहियं सुजियत्ति जिओ गोयम घोरं तवं चरिडं दुक्खाण अंतं गच्छिही ॥२॥ एसा सा लक्खणदेवी जा अगीय पदोओ। गोयम! अणुकरसचित्ते, पत्ता दुक्खपरं परं ॥ ३ ॥ जहां गं गोयमा एसा लखनदेविया तहा सकचित्ते गीयत्वे ऽगते पत्ते दुहावनी ॥ ४ ॥ नम्हा एवं वियागिता, सप्रभावेण सङ्ग्रहा गीयत्येहिं भवेय काय तु (सुदिनिम्मलमिलनी सा) निकल मध्यंति बेमि ॥५॥ पणयामरमरूपमन्यु चलणसययनजयगुरु जगनाह! धम्मतित्थपर, भूयभविस्सवियाग ॥ ६ ॥ तवसा निकम्मांस, वंमवइरवियारण उकसाय (दल) निवण, सहजगजीववच्छल ॥ पोरंचवारमिच्छत्तनिमितमतिमिरणासण। लोगालोगपगासगर, मोहवइरिनिभण ॥ ८॥ दुरुज्झिवरागदोसमोमोस सोमसतसोम सिनकर अतुलयबलविरयमाहत्यय तिहुणिक महायस ॥ ९ ॥ निस्वरूप असम, सामुदायविभूसिया ॥३१०॥ भयवं परिवाहीए. सर्व किंथि कीरए अथके इंडिदुदेणं, कर्ज से कब लम्भई ? ॥१॥ सम्म समे मंसि दितिये जम्मे अगए। तलिए सामाइयं जम्मे उत्ये पोसह करे ॥ २ ॥ दुदरं पंचमं उड़े सति एवं सत्तनवइसमे जम्मे उदिमाइ ॥ ३ ॥ विवेकारसमे जम्मे, समणगुणी भवे। एयाए परिवाडीए संजयं किं न अक्खसि १ ॥४॥ जं पुण सोऊन मगलो, बालपणी (उनिय केरिसस्स व सदं उगई, जउइसिर्ड नासे दिसोदिसिं ॥५॥ नमीरिस संजम नाह, इलिया उ मालया सोडपि नेच्छति, ती कहं पुण? ॥६॥ गोयम तित्यंकरे मोनुं, अशो लिओ जगे जड़ अस्थि कोइ तामगड, अहाणं सुकु मालओ ? ॥ ७॥ जाणं मन्वापि देविंदो, जयमंगुडयं कर्म आहार देह भत्तीए, संघ सययं करे ॥ ८॥ देवलोग संते, कम्मा से गं जहिं घरे अभिजाएनि तहिं सययं हिरट्टी परिसई ॥ ९ ॥ गम्भावनाण तसे, ईई रोगा य सण अणुभावेण खयं जंति, जायमित्ताण तणे ॥ ३२० ॥ आगंपियासणा चउरा देवसंघा महीहरे। अभिसे सहिइटीए कार्ड सत्थामे गया ॥ १ ॥ अहो अव केती दित्ती रूपं अयोगमं जिणानं जारि पायगुणं इहं ॥ २ ॥ स देवलोगे सहदेवाण मेलि कोटाकोडिगुणं कार्ड, जवि उण्हालिए ॥ ३ ॥ अह जे अमरपरिगहिया नाणत्तयसमझिया कलाकलावलिया, जणमणानंदकारया ॥ ४ ॥ सयणबंधवपरिवारा, देवदाणवपूया पणइयणपूरियासा, भुत्तमहालया ॥ ५ ॥ भोगिस्तरियं रायसरि गीयमा तं तजिये जा दियहा केई भुजति, ताब ओहीए जाणिउं ॥ ६ ॥ वणभंगुरं अहाँ एवं लच्छी पावविवटणी ताजाताविक अम्हे, चारित नाचिट्ठियो ? ॥ ७॥ जावेरिस मणपरिणामं ताब लोगंतिगा सुरा। मुषितं मर्गति जगली वहिययं नित्यं पत्तिहा ॥ ८ ॥ ताहे बोसनदेहा हिस १९५५ महानिद मुति दीपरत्नसागर ~ 44 ~ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [६], -------------- उद्देशक [-], ------- मूलं [२...] +गाथा:||३२९|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं त्य, अहोभाहारगत न सकियो ||३२९|| जानमं। गोयमानणमिय परिचिचा, जईदाणवि डावह ॥९॥नीसंगा उगे कई पोरंपादुकर गये। भुषणस्सवि उकई, समुपायं चरतिते ॥३३०॥ जे पुष खरहरफुहसिरे, एगजम्मसुहेसिणो।तेसि दातलियाणपि, सुलपिनो हियइच्छिय॥१॥ गोयम ! महुपिंदुस्सेच, जावइयं वाचायं सुई। मरणतेची न संपजे, कयर हाउलियतर्ण ? ॥२॥ अहया गोयम! पचवलं. पेन्छय जारिसयं नरा। दलिय सहमति, नियुणिजान कोइवी ॥ ३॥ कई कारति मासखि, हालियगोचालनण। दासतं तह पेसतं, गोड सिषेबहु ॥४॥ ओलग्ग किसिपानिज, पाणचायकिलेसिय। दालिदऽबिहात्तर्ण केई. कर्म काउण घराघरा असा विगोवेर्ड, दिणिढिणितेज हिंडिर्डीनमाम्याडकिलेसेणं, जो समजति परिह(हिर ॥६॥ जरजुन्नफुट्टसयछिद, लद कहकवि ओढणं । जा जना कति करिमो. फहं तातमचि परिह(पहिरणं ॥ आतहाविगोयमा बुझ, फुडचियापरिकुर्ड। एतेसिं चेमजाउ, अणंतर भणियाण कस्सई ॥८॥ लोय याचारं च, चिचा सवाकियं तहा। भोगोवभाग दार्ण च, मोत्तूर्ण कदसमासर्ग॥९॥धावि गुपिड सुदर, सिजिऊण अहमिस । कागणि कागणीकाओ, अई पाय विसोवा | करवा कहिषि कालेज, लक्स कोटिं च मेलितं जा एगिष्ठा मई पुन्ना, बीया णो संपजए॥१॥ एरिसर्थ हातलियतं, समालच गोयमा!। धम्मारंभमि संपडा, कम्मारंभे न संपडे ॥२॥ जेणं जस्स मुहे कपल, गंडी बन्नेहि धनए। भूमीए मह(ठ)पए पार्य, इत्थीलक्खेसु कीडए॥३॥ तस्साधिन भवे इच्छा, अन्नं सोऊण सारिय। समुदहामिले देस, अहसो आणं पहिच्छर ॥४॥ सामओपयाणाई, अहसो सहसा फडजिङ। तस्स साहसतुलणवा, गृहपारिएण वया ॥५॥ एमागी कापडावीओ, दुम्मार गिरी सरी । पित्ता बहकालेणं, दुक्खदुक्लं पत्तो नहिं ॥ ६॥ दुख सुक्खामकटो सो,जा भमडे परारि । जार्यतो भिडमम्माई. नत्य जइ कहविज गजए॥७॥ता जीतो ण केला, अह पुन्नेहि समुदरे । तो परिवत्तिय देई, वारिसो स गिहे विसे ॥८॥को न सि परियगो सन्ने?, ताहे सो असणाइसु । नियरियं पायडेऊन, जुवासजो भवेउण ॥५॥ साबन जाण)यामेणं, संडासंडण जुज्झि। अह नै नरिव निजिणिज. अहवा तेण पराजिए॥३५०॥ बहुपहारगा ताहिरंगो, गयतुरयाउा(C) अहोमहो। णिवा रणभूमीए, गोषमा सो जया नया ॥१॥ तस्स द्वालियन, सुकुमालतं कहि वए?। जो केवल सहत्येणं, अहोभागं च घोविउं ॥२निडतो पाय ठवि, भूमीए न कयाइपि। एरिसोऽवीस दलिओ, एयावत्यमुपागओ॥३॥ जह मन्ने धम्मचिड्ढे ता, परिभणडन सकियो। तो गोयमा! अहन्नाणं, पाचकम्माण पाणिणं ॥४॥ धम्महागंमि मई,न कयादि भविस्सए। एएसि इमो धम्मो, इजमीण भासए ॥५॥ जहा खंतपियवार्ण, सर्व अम्हाग होहिडता जो जमिन्छेले तस्स, जइ अणुकूलं पवेयए ॥६॥ तावपनियमविहगावि, मोक्र्सइन्छति S पाणियो। एए एने ण संति, एरिस चिय कहेयर । गवरंग मोक्सो एषाण, मुसाचार्य आचई। अचराग दोसं च मोहच, मयदाणपनिणं ॥दानित्यकराणं गो भयंस रणो भवेजा उ गोयमा!। मुसाचार्य ण भासते, गोयमा वित्थंकरे ॥९॥ जेण तु केवलनाणेण, तेसि पचासगं जगं । भूयं भई भपिस च. पुन्नं पार्य नहेब ५ ॥३६०॥ जकिषि निमुनि लोएम.सासि पापही पाचालं अवि उददमुह, सम्र्ग एजा अहोमुहं ॥१॥णूर्ण तिथपरमहभणियं, पयर्ण होजन अन्नह।। नाणं इसणचारित, सर्व पोर गरम ॥२॥ सोमामग्गो कुडो एस, पार्वती जहाद्वि अन्नहा न विस्थयरा, वाया मणसा व कम्युणा ॥३॥ भगति जति भुणस्स, पलयं हवा नसणे। हि साजगजीवपाणभूयाण केवलं, अगुकंपाए नित्थयरा, धम्म भासति अपितह ॥४॥ जेणं तु समविणे. दोहम्मदुस्खदारिदरोगसोगगइभय। म भविना उचिइएणं, संतापगे नहा ॥५॥ भवयं ! एरिस का भणिमा, जहर अणुपतय। गवरमेयं तु पुच्छामो, जो जं सके सत करें ? ॥६॥ गोयमा ! पेरिस जल, सणं मनसा विचिति । अह जा एवं भोगाया धारे हजपा SI पपकरे खंडरग्याए, एको सकेट साइयं। अमो समंसमजाई, अशो रमिकण एस्थिय ॥८॥ असो एयंपि नो सके, अन्नो जोएड परसर्य। अन्नो पापमुहे एमु (अन्नो एपि) भणिऊण ण सकणोई ॥५॥ चोरियं जारिय अन्नो, अन्नो किचिन सपकुषोई। मोनुं मोनुंरूरत्यरिए, सके चिहेतु मंचगे ॥३७॥ मिच्छामि कहमिय हत, एरिस नो भगाम-E गंगोयमा अनरिजमणसि. नपि तुजा कहेमहं ॥१॥ एत्य जम्मै नरो कोई, कसिणुमा संजमं तसं जाणो सका काउंजे, तहवि सोगापियासिनो ॥२॥ नियमं पक्सिसी दारस, एवालापारणा रपहरणोगिय रसिय, एसियतु परिचारियं ॥३॥ (सकुणोइ) एपि न जावजील, पालेता इमरसती । गोषमा म बीए. सिदि खेलसाओ पर ॥४॥ मंडपियाए भवेयर, एकरकारि भवेतु या गरं एवारिस मचियं, किमडेगोयमा ! पर्य? | पुगोतं एवं पुर्वामी, 'नित्थकर चटन्नाणी, ससुरासुरजगहए। निमित्यसिनिा योऽपि तमि जम्ने न अन्नए, जम्ने । (तहावि) अणिगृहिला बर्स विरिथ, पुरिसवारपरकर्म। उर्ग कई तसं पोरं. एकर अपना अन्नेससिनेस, पगासंसार सभीएम। (जै जहेब विस्थयरा भणति) तहेब समगुडेया, गोयम ! सर्व जहडियं ॥८॥ जं पुण गोयम ! ते मणियं, परिवाडीए कीख । अबके दिदुदेणं, कर्ज कप सम्मए? ॥९॥ तत्थरि गोयम! विद्वत, महासमुहमि कच्चमो। अन्नेसि मगरमादीणं, संघहा भीउवामओ ॥३८॥ बुडनिड करेमाणो (सबलीसातोम्मली )पेठापेतीए कत्थई । (२८९) ११५६ महानिशीथच्छेदसूत्र, - मुनि दीपालसागर दीप अनुक्रम [१२६८] ~ 45~ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [६], ------------ उद्देशक [-], ---------- मूलं [२...] +गाथा:||३८१|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं ाथा ||३८१|| (डालीरितो) नहोणासंतो धार्यतो, पलायंतो दिसोदिसि ॥१॥ उच्छतं पच्छात, हीलणं बहुविहं तहि सहतो घाममलईतो, सणनिमिसपि कत्थई ॥२॥ कहकहवि दुपसंतत्तो, गुबहकारोहिं तं जलं अवगाहंतो गओ उवार, पडमिणीसंदसंपर्ण ॥३॥छि महथा किसेणं, लर्बु ता तत्व पेच्छई। गहनासत्तपरियरिथ, कोमचंद खहेऽमले ॥४॥दिपंतकुपलयकन्हार, मुयसयपत्तपणकई कुरुलियत हसकारंडे, पकचाए सुमेह य॥५॥ जमविलु सत्तमपि साहास (अनुज चंदमंडल) तद विम्हिओखर्ग, पिता एवं जहा होही ॥५॥ एवं सम्गं ताई. (यवाणं पमीय) बंधवा पर्यसिमी।बहकालेणं गवेसेड. ते घेतण समागओआपणपारंपवारस्यणीए, भदवकिन्हचा उत्साहिताण पेचड़े जायन रिविं. बमुकाला निहालि ॥८॥ पुण काठमो नुजह उ, तहावित रिदिन पेच्छद । एवं पउगईभवगहणे, हुल माणुसत्त॥९॥ अहिंसालक्खणं धम्म, सहिऊणं जो पमायई । सो पण बहुमबलक्लेस, दुक्खेहि माणुसत्तर्ग, पिन सामाई धम्म, तरिद्धि कच्छमी जहा ॥३९॥दियहाई दो पतिभिव,जदार्ग होइ जंतु लगेगा समायरेण तस्सवि, संकाय वेड पवि. संतो॥१॥जो पुण दीपपासो चुलसीईजोगिलक्खनियमेणं । सरस नवसीलमाय संबलय किं न चिवह? ॥२॥जह २पहरे दियहे मासे संवारे व बोलति । नहर गोयम जाणम् दुम्से आसमयं मरनं ॥३॥ जस्स न नजा काल म य वेला नेय दियहपरिमाणं । नाएवि नास्थि कोदवि जगमि अजरामरो एल्वं ॥ ४ ॥ पानी पमायवसओ जीबी संसारकजमुजुत्तो। दुक्सेहि न निचिन्नो मुस्वेहि न मोयमा! तिप्पे ॥५॥ जीवेग जागि उचिसजियाणि जाईलए देहाणि। बेहिं तओ सयलंपि तिहुयर्ण होज पटिहत्य ॥६॥ नहदंतमुदभमुह-8 खिकेस जीवेण विष्पमुकेसुनि। तेमुवि हरिज कुलसेलमेकगिरिसन्निभे कहे ॥ ७॥ हिमवतमलपमंदरदीचोदहिवरणिसरिसरासीओ। अहिययो आहारो जीवणाहारिओ अर्णतहुतो ॥८॥ गुरुतत्समरकंना अंमुनिचाएण जं जलं गलियं । अगहतलावनईसमुहमाईसु गवि होजा ॥९॥जाबीचं पाठीरं सागरसलिलाउ बहुवर होजा। संसारमि अणते अबलाजोगीएं एकाए ॥४००॥ सत्ताहविपनसुकुहियसानजोगीए मझदेसमि। किमियत्तण केवलएण जाणि मुकागि देहागि ॥१॥ तेसि सत्तमपुढचीए सिबिखेच याच उपकुमर्ड। चोहसरतुं लोग व अर्णतभागेणपि भरेना ॥२॥ पत्तेय कामभोगे कालमर्गतं इहं सउवभोगे। अप्पुन थिय मनइ जीयो तहवि य विसपसोक्सं ॥३॥जह कच्छाको कछु कंडयमाणो । दुहं मुणड सोपव। मोहाउरा मणुस्सा तह कामहं गह चिति ॥४॥ जाति अणुभवति य जम्मजरामरणसंभवे दुस्से। नव चिसएम विरजति (गोयमा!) दुग्गागमणपस्थिए जीवे ॥५॥ सवगहाणं पभयो महामहो सत्रदोसपायी। कामम्गही दुरणा जेणऽभिभूयं जग स (तस्स वसं जे गया पाणी)॥६॥ जाति जहा भोगिदिसंपया सबमेव धम्मकले। तहदि दढमूढाहियए पार्य काऊण दोगई जति॥७॥पचा सणेण जीचो पित्तानलधाउसिमसोभेहिं। उनमहमा विसीयह तरतमजोगो इमो दुलहो ॥८॥ पचिदिवत्तर्ण माणुसत्तणं आयरिए जणे मुकुलं । साहुसमागमसुणणासदहणाऽरोगपाना ॥९॥ सलाहिविसविसूइयपाणियसत्पम्गिसंभमेहि चा देहतरसंकमणं करेह जीचो मुहलेण ॥४१०॥ जापाउ साससं जान बोधि अस्थि वसाओ। तार कोज अपहियं मा तपिहहा पुणो पन्छा ॥१॥ मुरवणुविनुस्खणदिनसंशाणुरागसिमिणसमं । देह इति त वियना मम्मयमंड य जलमारिय॥२॥ इय जाव म चुकसि एरिसस खणभंगुरस्स देहस्स। उग्गं कई पोरं परम् वयं नरिष परिवाडी ॥३॥ गोयमोनिवाससहरसंपि जई काकणं संजम गषिउलंपि। अंत किलिङ्गभावो नवि सुझाइ कंडरीउन ॥४॥ अप्पेणवि कालेज के जहागहियसीलसामना । साहंति निययकज पॉडरिपमहारिसिव जहा ॥५॥ग असंसारमि मुहं जाइजरामरणदुक्खगहिवस्स। जीवस्स अस्थि जम्हा लम्हा मोसो उपाएओ ॥४१६॥ सापयारेहिं सत्रहा सपभावभावंतरेहिणं गोयमोत्ति बेमि ॥ महानिसीहसुपरसंधस्स उनमनझयणं गीयत्वपचहार नाम समनं ६॥'भय ! ता एवनाएणं, जे भनियं आसि मे तुर्म (जहा)। परिवाडीए (त) किन अकखसि, पायव्दितं तत्व मापी ॥१॥ हा गोषम ! पथिनं, जह तुम नमालयसि। नवरं धम्मपियारो ने, को सुपियारिमओ फुडो ॥२॥ण होइ तस्स पछित, पुणरवि पुच्छेज गोचमा!। संदेह जाप देहत्य, मियानं नाव निष्ठयं ॥३॥ मिच्छनणवि अभिभूए. तिथपरस्म विभासिय। वर्ण लंपिनु विपरीयं, बाएता पविसति ॥४॥ (पोस्तमतिमिरवडलंधयारं पायालं) णवरं सुविचारित कार्ड, नित्यचरा सयमेष या मगनिन जहा चेष, गोयमा! समणुहए ॥५॥ अत्येगे गोयमा ! पाणी, जे पानिय जहा तहा। अविहीए तह चरे धर्म, जह संसारा ग मुचए॥६॥से भव ! कवरेण से विहीसीलोगो, गोयमा ! इमेन से विहीसिलोगो, जहा चिडवर्ण पडिकमणं, जीवाइतत्तसम्भाष । समिइंदियदमगुली, कसायनिग्गहणमुवओगं आनाऊन सो वीसत्यो सामायारि कियाकलापा आलोय नी. सडो आगम्भा परमसंविग्गो ॥ ८॥ जम्मजरमरणभीओ पगइसंसारकम्मदहगहा। पइदियह हियएण एय अणवस्य सायतो॥९॥ जस्मरणमयणपउरे रोगकिलेसाइबहुविहतरंगे। कम्महुकसायामाहमहिरमबजलहिमामि ॥१०॥ भमिहामि भट्टसम्मत्तनाणचारितलबबरपोजो। कालं अणोरपारं अंतं दुक्खाणमलमतो ॥१॥ता करवा सो दियहो जत्याहं सन११५७ महानिशीथयोदसूर्य artict-29 मुनि दीपनार दीप अनुक्रम [१३२० अत्र षष्ठं अध्ययनं समाप्त अत्र सप्तमं अध्ययन/(चूलिका-१)- "एकांतनिर्जरा" आरब्ध: ~ 46~ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक -1, ------- मूलं [१] +गाथा:||१२|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं CATIO- 4 2R5RVA ||१२|| मिससमपक्रयो । नीसंगो पिहरिस मुहमाणनिरंतरों पुणेोऽभवई ॥२॥ एवं चिरचिंतिपभिमुहमणोरहोरुसंपत्निहरिसमावसिओ। भनिभरनिम्मरोणयरोमंचयपुलइयंगो ॥३॥ सील गसहस्सहारसह धरणे समोच्छवसंयो। उत्तीसायारकंठनिविषासेसमिच्छतो॥४॥ पढिकने पवज विमुकमयमाणमच्छरामरिसो। निम्ममनिरहंकारी विहिने मोयमा ! विहरे ॥५॥ विहगहनापरिचदो उजुतो नाणदसणचरिने । नीसंगो घोरपरिसहोवसम्गाई पजिर्णतो ॥६॥ उमाअभिग्गहपडिमाइ रागदीसेहिं दस्तरमको । राजमाणविपजिओ य विगहाय अ असनो ॥ ॥ जो चंदणेण बाई आलिंपद वासिणा व जो नच्छे । संधुणइ जो अनिवइ समभापो हुन दुल्हपि॥१८॥ एवं अणिमूहियाविरिअरिसकारपरकमो सममणसणाणिलिदटकेचणो (केमा) पश्चित्तकलतपुत्तसहिसयणमेसर्वचषधणधन्नसुवन्नहिरण्णमणिरयणसारभंडारी अचंतपरमयेरमवासणाजगियपवरसहजनवसायपरमधम्मसदापरो अकिहिनिकलसाजीणमाणसो पयाय)नियमनाणचारिसतपाइसयलभुषणिकर्मगलअहिंसालक्खगसंताइदसविहयम्मागुहाणेनपदलायो सवायसरातकालकरणसवायज्माणमाउ-21 नो संसाईयप्रणेगकसिणसंजमपाए अविखलिओ संजयविश्यपरिहयपबक्खायपावकम्मो अणियाणो मायामोसविजिओ साह वा साहणी वा एवंगुणकलिओ जा फहपि पमायदोसेणं असई कहिचिकत्या पायाह वा मणसाइपा कायेगेह वा तिकरणपिसुद्दीए सबभायंतरहि बेर संजममायरमाणो असंजमेण छलेजा तस्स चिसोहिपर्य पायपिउनमेव नेमं पायन्डिनेणं गोयमा ! तस्स विमुदि उवचिसिजा, न अन्नहत्ति, तत्थ णं जे जेसं ठाणेसु जत्य जत्थ जावइयं पठितं तमेव निफियं पच्छितं भन्नइ से भय ! केगमद्वेण भन्नइ जहा णं तमेव निझुकियं मन्न?, गोयमा ! अगंतराणतरकमेणं इणमा पच्छित्तमुत्ता, अणेगे भासत्ता चउगइसंसारचारगासो बद्धपुट्टनिकाइयदुप्रिमोक्तधोरपारदकम्मनिबडाई संचुन्निऊण अचिरा चिमुचिहिनि, अन्नंच-नणमो पच्छित्तसुन अणेगगुणगणाइन्नस्स दवावयचरितस्स एगलेणं जोगस्सेय विपरिखए पएसे चउकन पनवेया, तहा य जस्स जापइएणं पायशिनेणं परमविसोही भवेगाने तसगं अणुयत्तगापिरहिएण धम्मेकरसिएहिं बयणेहि जहडियं अणूणाहियं नामइयं चेव पायच्छिल पथच्दडेजा, एएणं अद्वेणं एवं बुबा जहाणे गोषमा! नमेन निकिय पायचित महारासे भय ! कदचिद पायच्छितं समुबई, गोयमा ! दसविहं पायच्छितं उपदई न च अणेगहा जाप णं पारंचिए।२। से भयर्ष : केवयं कालं जाप इमस्सगं पायण्डित्तमुतस्साणुहाणं बहिही?, गोयमा: जापर्ण ककी णामे रामाणे निहर्ण गच्छिय, एकजिणाययणमंडियं सह सिरिणभे अणगारे, भयर्व ! उइड पुच्छा, गोयमा! उइदं न कई पुण्णभागे होहि जस्स गं इगमो सुपकसंध उपइसेजा।३।से भय ! केवइयाई पायपिछत्तस्स णं पयाई, गोयमा ! संखावयाई पायसिस पयाई से भय नसिम संखाइया पायण्ठित्तपयाणं किंतं पदम पायमित्तस्स णं पर्य, गोयमा! पाणिकिरिया से भय ! किन परदिनकिरियर गोयमा ! जम. णुसमयाहग्निसा पाणोचरम जावाणुद्वेयजाणि संलेजाणि आचस्सगाणि, से भव ! केणं अद्वेण एवं पुबह जहाणं आपस्सगाणि ?, गोयमा! असेसकसिणहकम्पक्सयकारिउनमः सम्मसणनाणचारिचमचंतपोरवीणकढ़एदुकरतवसाहपहा सुपरुविनंति नियनियविमसुदिपरिमिएर्ण कालसमएर्ण पर्यपयेणाहग्निसागुसमयमाजम्म अवस्समेव तिस्थराइस कीरति अणुहिजति उपदसिजति परुपिजति पन्नविनंति सपर्य, एएणं अट्ठणं एवं बुचड़ मोयमा ! जहाणे आपस्सगाई, लेसि च गं गोयमा ! जे निश्कालाइकमेणं वेलाडकमेणं समवाइकमेणं अलसायमाणे अगोषउत्तपमते अविहीए अन्नेसि च असई उपायमाणो अन्नयरमावस्सन पमाइय संवेणं बलवीरिएपं सातलेहडनाए आलंग पा किंचि पेचूर्ण चिराइयं पारिय णो णं जहुनयाल समण्डेजा से गं गोयमा ! महापापच्चिाती भवेना ।४। से भय ! कि त चिइयं पायश्चित्तस्मण पर्य, गोषमा बीयं तदर्य पाउत्य पंचम जान णं संलाइयाई पायचित्तस्स गं पयाई नाच गं एवं चेच पदमपापभिउत्तपए अंतरोक्गयाई समणुविंदा, से भय केणं अडेणं एवं बुचड़, गोयमा ! जओणं समावस्समकालागुपेही समिक्खू णं रोदहवाणरागदोसकसायगावममकाराइसु र्ण अणेगपमापालंबणेमुंच सबभावभावंतरंतरेहिं णं अचंतनिष्पमुको भोत्रा, केवा तु नाणदसणचारिनं नवोकम्मसकाय माणसम्माचसाणे(सने शुजनजाणिगृहिणवलनीरियपरकमे सम्म अभिरमेजा, जाच गं सदम्यावस्सगेमुं अमिरमेजा नावणं सुसंकुडासपदारे इकेजा, जाय णं हवेजा ताव में सजीवकीरिएणं अणाइभवगणसंचियागिहराकम्मरासीए एगणिद्वणेकवडलक्सो अणुक्रमेण निराजोगी भवेत्तागं निरइदासेसकम्मणो निमुकजाइजरामरणच उगवसंसारपास. पंधणे व सानुक्सविमोक्सलेलोकसिहरनिवासी भवेजा, एएणं अवेर्ण गोयमा ! एवं बुबह जहा णं एवं चेव परमपए अवसेसाई पायच्छितपयाई अंसरोवगयाई समपिंदा । 1 से भया ! कयरे ते आवस्सगे ?, गोयमा ! गं चिदवंदणादजो, से भय ! कम्हि आवस्सगे असई पमायदोसणं कालाइमिएका बेलाइकमिए बा समयातिकमिए वा अगोवउत्तपमत्तेहिं अविहीए या समणुडिएइ वा णो गं जहुत्यालं विहीए सम्म अडिए वा अर्सपट्टि(टि)एड वा वित्यपटिएर वा अकएर वा पमाएइ वा केवइयं पायचितमुवइसेगा', गोयमा! १९५८ महानिशीपच्छेदसूErushka मुनि दीपननसागर दीप अनुक्रम [१३६८] ~47~ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूलं) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [६] +गाथा:||१८|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||१८|| जे केई भिषण वा मिक्सुणी वा संजयविश्वपटिहयपचनसायपावकम्मे दिक्खादियाप्पभिईओ अणुवियह जायजीवाभिग्गहेणं सुधीसत्वे भत्तिनिभरे जसविहीए मुत्तत्यमणु|सरमाणो अपण्णमाणसेगम्गचित्ते तमयमाणससहज्वायसाए चयहिणतेकालियं चेइए वंदेला तस्स गं एगाए चाराए लागं पायच्छित उपइसेजा बीयाए ठेय तइयाए उबवावर्ण, अविहीए पेडयाई वंदे नजओ पारंचियं, जओ अविहीए चेहयाई बंदेमाणो अमेखि असद संजईडकाऊ, जो उण हरियानि वा बीमाणि या पुकाणि वा कलागि वा पुपट्टाए वा | महिमढ़ाए वा सोभट्ठाए वा संघहेग वा संपट्टावेज वा छिदिन वा छिदावेज वा संघहिताणि वा छिदिर्जताणि या परेहिं समणुजाणेज वा एएसं सबेसुं उपहावर्ण खमणं पड़त्वं आयक्लिं एकासणगं निविगइयं गादागादभेदेणं जहासंखेगं णेयं ।६। जे पं चेहए बंदमागस्स वा संथुणेमाणस वा पंचप्पयारं सायं वा पयरेमाणस्स वा विश्पं करेजवा कारेज या कीरतं वा परेहि समजाणेज वा से तस्स एए दुवालस उडे एकासनगं कारणिगस्त, निकारणिये अचंदे संवच्छर जाच पारंचियं काऊण उपहुचेजा। जेनं पडिकमण नो पदिकमेजा से पं तस्सोपवावर्ण निदेसेजा, पाहपडिकमणेणं समर्ण, सुनामुनीए अगोवउत्तपमत्तो वा पडिक्कमणं करेजा दुबारसं, पडिक्कमणकालस्स चुक्का पार्थ, जकारले परिक्कमर्ण करेजा चउर्थ, कालेण वा पटिपकमणं णो करेजा चउत्य, संथारगो वा संघारगोवविद्वो वा पहिस्कमण करेजा दुवालसम, मंडलीए ण परिक्कमेजा उबवाचणं, फुसीलेहि समं पडिक्कमणं करेजा उपडावणं, परिभट्ठयमचेखाएहि समं पडिकमेजा पारंचियं, सारस समणसंघस्स तिबिहंतिबिहेण समणमरिसामणं अकाऊण पडिकमणं करेजा उपद्वान, पयंपएणाविधामेलियं पदिकमणमुर्तण पयजा चउत्थं, पडिकमणं ण काऊणं संथारगेइ वा फलाहगेइ वा तुयहेजा खमणं, दिया तुयहेजा दुबालसं, पटिकमणं काउं गुरुपामूलं बसहि संदिसाचेन्नाच ग पप्पेहेड चउत्त्वं, वसहि पहिऊगं ण संपवेएजा छटुं. वसहि असंपनेएताणं रयहरणं पचुप्पेहिजा पुरिमर, पहरणं विहीए पचुप्पेहिताणं गुरुपामूल मुहर्णतगे अपचुपहिय उपहिं संदिसायेजा पुरिकहीमइद), जसंदेसावियं उपहिं पचुणेहिजा पुरिवई, अणुकउत्तो उबाहिं या वसहिं वा पचुप्पेहे बुवालस, अविहीए वसहि वा अषयरं वा भंडमनोवगरणजार्य किचि अगोवउत्तपमत्तो पचुप्पेहिजा दुबालसं, वसहि वा उहि वा भेटमत्तोचगरणं वा अपहिलेहियं वा दुष्पटिलेहियं वा परिभुजेजा दुबाला, वसहि बा उचहि वा भंद्रमत्तोषगरणं वाण पपिहिना उबट्ठावणं, एवं वसहिं उपहिं पप्पहिनाणं जम्ही पाएसे संधारयं जम्ही उपएसे उपहीए पन्युप्पेहर्ण कयं तं पामं गिणं हलयहलयं दंडापुंठणगेण वा स्वहरणेण वा साहरेतार्ण तं च कवरं पच्चुप्पे हितु उप्पडयाउ ण पटियाहिजा दुवालसं. छप्पड्याओं पटिगाहिताणं तं च कवचरं परिहवेऊर्ग ईरियं ण पटिफमेजा पउत्थं, जपच्युपहियं कववरं परिहवेजा उपहावर्ण, जागं उपायाजो हवेजा अहाणं नस्थि ताजो बालसं, एवं क्सहिं उपाहि पाचुप्पेहिऊणं समाहिं खइरोधार्ग च ण परिवेजा चात्य, अणुगाए मृरिए समाहिया सयरोटर्ग वा परिहवेना आवबिल, हरियकायसंसतेइवा चीयकायससनेइ वा नसकायवेडदियाईहिंबा संसले वंटिले समाहि वा लहरोडगंवा परिहने अभय वा उचाराइयं वा बोसिरिता पुरिमर्द एकासणगायविलमहक्कमेणं जाणं णो उदवर्ण संभवेजा, अहा उदयणासंभाषिए नओ खमणे, तंप दितं पुणरवि पडिजागरिक नीसक काऊणं पुणरवि आलोएताणं जहाजोर्ग पायपिठनं ण पटिगाहिजा तओ उबहावर्ण, समाहि परिहवेमाणो सागारिए संचिक्लीयए संचिक्सीयमाणो वा परिहवेना सवर्ण, अपचुपहियदि जाकिचि बोलिरेजा तो उवट्ठापणं, एवं वसहिं उहि पशुप्पेहेनाणं समाहिं खहरोजगं च परहवेत्ताणं एगग्गमाणसो जाउत्तो विहीए सुत्तस्थमणुसरेमाणो ईरिय न पडिकमेना एकासनगं, मुहर्णतगणं विणा ईश्विं पटिकमेजा बंदर्न पटिकमण वा करेजा जमाएज वा सज्झायवा करेजा बायणादी सवय पुरिम, एवं च ईरियं पटिकमित्तार्ण सुकुमालपम्हलनचोपडअविकिदेणं अविददंडेणं दंडापुच्छणगेणं वसहिं न पमने एकासणगं, पोहारियाए वा पसहि बोहारिना उबट्टावर्ण, वसाहीए दंटापुंछगर्ग दाऊण कयर ग परिवेजा चउत्थं, अपचपहियं कयवरं परिहबेजा वालासं, जहग छप्पडयाउण हवेजा अहवाग हमेजा बजोणं उबड्डावर्ण, वसहीसठियं कयवरं पचुप्पेहमाणेण जाओ अप्पड्याजो सत्य अन्नेसिऊ२ समुचिणिप२पडिगाहिया ताओ जइण सधेसि भिक्खूर्ण सरिभाऊ देना तो एकासणी, जइ सयमेव अत्तमा ताओ उप्पडयाओ पडिग्गाहिजा अर्ण ण संविभइ दिजाण व अग्णपणो पडिगाहेजा तओ पारंचियं, एवं वसहि दंदापुंजणगणं विहीए य पममिळणं कयवरं पशुप्पेहेऊण उपदयाओ संविभातिकणं च न कपचर ण परिहनेजा परिहवित्ताणं च सम्म बिहीए अबंतोषउत्तएगगामाणसेण पर्यपएणं तु मुत्तत्योभयं सरमाणे जेणं भिक्खूण ईरियं पडिक्कमेजा तस्स अ आपविलं खमणं पहिलं निदेसेजा, एवं तु आइकमिजा थे गोयमा! किंणगं दिवइदं पटिगं पुत्रव्हिगस्स गं पदमजामस्स, एयावसरम्ही उ गोयमा! जे मिक्यू गुरूर्ण पुरो विहीए समायं संदिसापिऊन एगग्गचित्ते सुबाउत्ते बड़े धीहए घडिगोणपदमपोरिसी जावजीचाभिग्गहे अणुदियह अपुषणाणमहर्ण न करेजा तस्स दुवालसमं पच्छित्तं निदेसेजा, अपचनाणाहिजगस्स असई ११५९महानिशीपच्छेदम medias मुनीपरनसागर दीप अनुक्रम [१३८०] ~48~ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक -], ------- मूलं [८] +गाथा:||१८|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं जमेर पुवाहिनियं तं सुत्चत्योभयमणुसरमाणो एगग्गमाणसे न पराक्तेना भत्तित्वीरायतकरजणवयाइविचित्तचिगहामु अणं अभिरमेजा अवंदणिजे, जेसिं चणं पुवाहीयं मुर्त मत्येव अउथ्यमाणमहपस गं असंभवो वा तेसिमवि पडिगृणपदमपोरिसी पंचमगर्ल पुषो २ पराक्त्तणीयं, जहाणे यो परावत्तिया निगई कुनीया वा निसामिया या सेणं अयंदे, एवं पटिगृणगाए पदमपोरिसीए जे गंभिक्षु एगमाचित्तो सजशा काकर्ण नबो पत्नगमतगकमढाई मंडोवगरणस्स गं अवस्सित्ताउत्तो बिहीए पच्युप्पेहर्ण ण करेजा तस्स पडत्व पश्छिल निदिसेजा, निवरपुलदो पत्तिसदो जइमे सवस्य पापयं जोजणीए, जाणते मंडोवगरणं ग भुजीया महागं परिभुजे दुवालसं एवं आता परमपोरिसी. बीयपोरसीए अस्थगहर्ण न करेजा पुरिमइट, जागं पसागस्स में अभावो, बहा गं वाखाणं अत्येवम सुणेजा अबदे, नक्सागसासंभवे कालवेले जाव बायणाइसजमार्य न कोना दुपाठस, एवं पत्ताएकालनेलाए जंकिंचि अइयराजयदेवसिपाहयारे निदिए गरहिए आलोइए पटिकते जंकिंचि काइर्ग वा बाइर्ग वा माणसिगं चा उस्सुनायरणेण वा उम्मगायरणेण वा अप्पासवणेण वा अकरणिजसमायरमेग वा दुज्झाइएक वा दुमिचिनिएक वा अणायारसमायरमेण या अणिच्छियवसमापरणेण पा जसमणपाजग्गसमायरणेण वार नाणे सो चरिने गए सामाइए तिहं गुत्तिपादीर्ण पठण्हें कसापारीण मंचष्ट महरयादी छण्हें जीवनिकायादीर्ण सत्ताई पिटेशणमाईर्ण अहह परयणमाइयाईणं नयह सचेरगुती(नाई) इसविहस्सगं समणधम्मस्स एवं तु जाय णं एमाइअगेगालायगमाईणं खंडणे पिराहणे या आगमकृसालेहि णं गुरूहि पायच्छित्तमुबबई ननिमित्तेणं जहासत्तीए | अणिदियबलबीरियपुरिलयारपरकमे असदलाए अदीमागसे अणसणाइ सबझंतर दुवालसविहं तपोकम्म गुरुणमंतिए पुगरवि णिहकिऊणं सुपरिकुड काऊगं तहति अभिनंदिनाणं संडासंदीपिमतं वा एमपिरहि बाण सम्ममणुचेनासेणं अव से भयचं ! के जडेणं संडासंडीए काऊणमगुचि जागोयमा! जेर्ण भिक्स संबई पाउम्मास मामलमण वा एकोलग काऊ न सक्कगोइते गं छहमदसमदुबालसदमासमखमणेहि त पायबिट अगुपवेसेड. असमपि जंकिंचि पायपिसाणुमयं, एतेणं अद्वेणं संशसंडीए समचिड़े, एवं तु समोगा किंचुर्ण पुरिमद, एपावसरमि उजे ण पडिक्कमतेन वा बंदतनया सझार्य करने या परिममतेन वा संचरतेन वा गएर वा ठिएइ वा बालगेड या उहिवरगापालेउकाएग वासिलियाडगे मोजा सेणं आयषिऊणं ण संवरेणा तओ चउत्थं, असि तु जहाजोगं जहेब गायचिलागि परिसंति, सहा सससीए स्पोकम्यं णागडेड नजो चउम्मषां पायपिटर्स तमेव पीयदियहे उचाइसेजा, जेसि च णं बताण या पडिककमंताण या डीह बा मजार वा छिदिऊगं गये हवेना तेसिं च णं लोयकरण अनस्य गमगं | गंमाणं उम्मतवाभिरमण, एयाईग कुनि नओ गावरझे, जेणं तु तं महोत्वसम्गसाह उत्पावर्ग इन्निमित्तममंगलापहं हरिया, जे गं पदमपोरिसीए वा बीयपोरिसीए वा चकमणियाए मा परिसकाएशा जगालसग्निहीए या उड्ढी करेगा सेणं जद्द पबिहेणं ण संवरेजा नजओ छह दिया डिले पडिहिए राओ सन्नं बोसिरेना समाहीए पाएगासणं गिलाणस्स, अन्नेसि तु उहमेय, जन गं दिया ण चंडिल पधुपहियं गीण समाही संजामिया अपचुपहिए वडिले अपहिवार पेच समाहीए स्वीए सन्न वा काइयं वा योसिरिजा एमासणम गिलाणस्स, सेसा दुवालस, अहा गं बिलाणस्त मिक्कई या, एवं पदमपोरिसीए बीयपोरिसीए या सुनस्थाहिजणे मोनुर्ण ने गं इवीकडं वा भनकहवा देसकहं या रायकर या नेणकहं वा गारस्यियकई वा अन्न या असंबदं रोष्टरमाणोदीरणाच्ई पत्यावेज वा उदीरज या क्षेत्र या कहावेजवा से संबपरं जाव अबदे, अहाग पदममीयोरिसीए जइणं कमाई महया कारणवसेणे (पडिग या) अबपडिगंवा सम्झायन कवं वस्य मिष्बाई मिलापस्ता, असि निमिगइयं, इदनिट्टरनेण वा गिधाणेच या जाणं कहिंचि केगा कारणणं जाएणं असई गीयत्वगुरुणा अगणुमाएर्ण सहसा कयादी बाहपरिकमर्ण कय हवा नजो मासं जान अचंदे, चाडमासे जाच मुणवयं च, जेणं पदमपोरिसीए जगहकंनाए नदयाए पोरिसीए अवताए भया पाणं या पडिगाहेगवा परिभुजेज वा तस्सगं पुरिमर्द, पेदएदि दिएदि उपओ कोमा पुरिमा, गुमलो अंनिए गोपओग करेगा पउत्प, अकएणं उपओगणं किंचि पहिगाहेना चढल्वे, अविहीए उपओर्ग करेजा स्वपण, भत्सहाए या पाणहाए वा संकजेण वा गुरुकनेण वा बाहिरभूमीए निम्गाने गुरुगो । पाए उत्तिमगेण संपत्ताण आवस्तियं ण करेजा पपिसी पंपसालाईसणं बसहीदुनारे मिसीहियं ण करेजा पुरिमर्द, सनहं कारणजायाणमस बसहीए बह निग्गच्छे गठबझ. समा म छेओपहावर्ण, अगीयस्थस्स गीयत्वस्स या संकभिजस्म मत या पाणं वा मेसज वा वयं वा पचं वा दंडगं वा अविहीए पडिगाहेम्जा गुरूगं पणालोइम्जा नइयवयम्स वेद मास जाच अवदे मृणायब भत्तहाए या पापहाए वा भेसनहाए ना सकण या गुरुकत्रेण वा पबिट्टो गामे या नगरे वा रायहाणीए वा निगवउवचारपरिसागिहेड या नय कह या बिकई वा पत्यायेम्जा उमावर्ण, सोचाहणो परिसकेज्जा उपहावणं, उपाहणाउ पडिगाहिना खयणं, वारिसे णं संविहाणमें उमाणाउ ण परिभुजेज्जा खवर्ण, गो वा ठिो वा केगह पुडो निउणं महर बोचं कमावडियं अगडियमनुभई निहोस सबलजणमगाणंदकास्य इहपरलोगगुहामहं स्वर्ण प भासेजा अने, जाइ नाभिमाहिलो. (२९.) १९६- महानिशीथप्छेदसूshruta मुनि दीपसागर गाथा ||१८|| दीप अनुक्रम [१३८२] ~ 49~ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [८] +गाथा:||१९|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं था ||१९|| सोलसदोसविरहियंपी समाबज भासेजा उबहावर्ण, बहु भासे उबहावर्ण, पडिनार्य भासे उबडावणं, कसाएहि जि(जने अर्षदे, कसाएहि समुइमेहि मुंजे स्यणि वा परिवसेजा मास जाच मुणपए अर्थदे व उपहावर्ण च, परस्स या कराई फसाएसमुदीरजा दरकसायरस वा कसायबिंद करेजा मम्म वा विचिवाल(आलबेला एते गच्छरमो. कसं भासे साल 2 कयास भास दुवालस, सरफरसकासणिठूरमणि भासेना उबढ़ावणं, दुबोल देइ खमणं, फिलिफिलिकिय(4)कारहं प्रमं डमरे वा करेजा गच्छयझो, मगारजगारं या बोलेसवणं, बीयबाराए अर्वदे, चईतो संघवज्झो, हणतो संघवझो, एवं खणंतो भंजतो हसतो लडितो जलिंतो जालावंतो पर्यंतो पयाययंतो, एवेसु सबेसु पत्तेगं संपकझो, गुरूंपि पडिसूरे जा जनवा मपहराइयं कहिचि हीलेजा गच्छायारं या संघाचार वा पंदणपडिकमणमाइमंडलीयम्म वा अइसमेजा अविहीए वा पञ्चावेज वा उपहावेज वा अओगस्स वा सुत्तं वा अस्य वा उभयं वा परवेजा अविहीए सारेज वा बारिज वा पाएज वा विहीए वा सारणवारणचोयणं ण करेजा उम्मम्मपहियरस वा जहाविहीए जाचणं सयलजगसमिझ परि| वाटीपूर्ण भासेना अहियभासं सपालगुणावह, एनेस सोसु पत्तेगं कुलाणसंघबमो, कुलगणसंघबज्मीकयरस यं अर्थतपोरवीरतवाणुहाणानिस्यस्सावि णं गोयमा ! अप्पेही, तम्हा कुलगणसंपन्झीकबरसणं खणखणपडिगइपडिग बाण चिट्ठयाति, अपच्युपहिए यद्यिो उचारै वा पासवणं वा खेल वा सिंचाचं वा जात वा परिहानेजा निसीयंतो संटासगे ग पमज्जेजा निविगायायंबिलमहकमेणं, भटमत्तोषगरणजाय किचि दंडगाई ठक्तेइ वा निक्लियतेह वा साहस्ते या पटिसाहस्तेज वा मिण्हतेड़ या पडिगिण्हतेह वा अविहीए उनेजा | वा निक्लिवेज वा साहरेज वा पडिसाहरेज बा गेण्हेज वा पडिगेण्हेज बा, एतेनुं असंसात्तसत्ते चाउरो आयंबिले, सलत्तखित्ते उपहावर्ण, दंडगं वा स्यहरणं वा पायपुंछण या अंतरकप्पगं वा बोलपहर्ग या पासाकर्ष वा जाप णं मुहर्णतगं या अभयरं या किचि संजमोक्मरणजायं अप्पडिलेहियं वा दुष्पडिलेहियं वा ऊगाइरितं गणणाए पमाणेण वा परिभुजे सपण सात्य | पत्तेग, अपिहीए नियंसणुत्तरीय स्वहरणं दंडगं बा परिभुजे चडत्वं, सहसा स्यहरगं संघे निक्खिबह उबढ़ावणं, अंग या उवर्ग वा संवाहायजा खवणं, स्यहरणं सुसंपट्टे पाउत्थं, पमत्त सस सहसा महणताह किषि संजमोवगरणं विप्पणस्से तत्थ गं जाव समणोषहावर्ण, जहाजोगं गवेसणं मिडकई पोसिरण पडिगाणे च, आउकायतेउकायरसणे संघहणाई एगलेणं गिसिद्धे, जो उण जोईए अंतलिक्सबिंदुवारेहि वा आउत्तो वा अगाउनो वा सहसा कुसेजा तस्स गं पकहिय चेवायंबिलं. इत्थीर्ण अंगावययं किंचि हत्येण वा पाएण वा दंडगेण या करवरियासमोण या लणखपएण वा संपट्टे पारंचिय, सेसं पुगोपि सत्याणे पण माणिहिद, एवं तु आगयं भिक्खाकाल, एयाक्सरम्ही उगोषमा जे भिक्खू पिटेसनाभिः |हिएणं विहिणा अदीणमणसो 'बजेतो बीयहरियाई, पाणे व दगमट्टिय। उनवार्य विसम खाणं, रनो मिहबईणं च ॥१९॥ संकटाणं विपन्जनों पंचसमिनिगुत्तिजुनो गोयरपरिवाए पाहु। डियं न पडियरिया तस्सणं चउत्यै पायच्छिन उपहसज्जा जइण नो अमत्तही, ठवणकुलेमु पविसे स्ववर्ण, सहसा पडिवस्थ वरपटिमाहितं लक्खणा ग परिने निरोबरचे मंडिले खपणं, अकर्ष पहिगाहेज्जा उत्थाइ जहाजोग, कर्ष वा पटिसेहेड उबढ़ावणं, गोवरपबिट्टो कहं या विकहं वा उभयकहं वा पत्यावेज पा उदीरेग्ज या कहेज वा निसामेज पाई. गोयरमागओ य मतं वा पाणं या मेसज या जे जेण दिसायं जहा य पडिग्गहियं के सहा सर्व पालोएज्जा पुरिषद, इरिथाए अपटिकताए मनपाणाइयं आएग्जा पुखिहर्ड, ससससेहिं पाएहि अपमजिजएहि इरिथ पडिकमेज्जा पुरिच(म)इ, हरियं पडिकमिउकामो तिमि बाराउ चलणगाणं हेडिमं भूमिमार्ग ण पमग्जेम्जा गिविइग, कलोहियाए वा मुहर्णतण या विणा दरिय परिपकमे मिक्कडं पुरिमहद पा, पाहुडियं आलोइत्ता समायं पडवेन तिसराई धम्मोमंगलाई ण कोढज्जा पाउत्थं, धम्मोमंगलगेहि वर्ग अपरिष. हिएहि चेदयसाहहिं च अयंनिएहिं पारावेज्जा पुखिड्द, अपाराविएणं भर्स वा पाणं वा मेसज्ज या परिसुंगे घउत्थं, गुरुणो अंतियण पारावेज्जा नो उबओगे करेजा नोगं पाहू. डिय आलोएज्जा ण सज्ज्ञार्य पडवेज्जा, एनेस पत्तेयं उपहावर्ण, गुरुविय जेणं नो उपडते हवेज्जा से गं पारचियं, साहम्मियाणं संविभागेर्ण अपिहलेणं जंकिंधि भेसम्जाइपरिभुजे उई. मुंजतेह वा परिवेसंसिए वा पारिसाडियं करेजा उदलं. नित्तकायकसायंबिलमहरलवणाई साई आसाइते या पलिसात या परिभुजे पउत्थ, नेसु वेप से राग गच्छे खमणमा ट्ठम वा, अकएन काउससम्मेणं विगई परिभुजे पंचेच आयक्लिाणि, दोहं निगई उड्न परिभुजे पंच निकायमाणि, अकारणिगो विगइपरिभोग कुजा अट्टम, असणं वा पाणं चा मेसन वा गिलाणस आसानुगरिय परिभुजे पारचिय, मिलागाणं अपडिजागरिएणं भजे उपहावर्ण, सत्रमवि मियकता परिचिचाणं गिलाणकता न करेजा अवी. गिलाणकत्तबमालंबिऊणं निययकत्ता पमाएजा अपंद, गिलागकर्ष ण उत्तारेजा अहम, गिलाणेणं सर्दि एगलदेश गंतुं जमाइसे न कुमा पारंथिए, नवरं जाणं से गिलाणे सत्यचिन्ने, अहाग सनिवायादीहिं उम्भामियमाणसे हपेजा जो जमेव गिलाणमाइई तन कायचं, तस्स जहाजोगं कायन, ण कोना संघरजमो, आहाकम्म वा उदेसियं वा पूर्वकर्मा वा १९६१ महानिशीपच्छेदसूत्र, अ अनि दीपरतसागर दीप अनुक्रम [१३८४] ~50~ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [८] +गाथा:||१९...|| ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं PROTHER था ||१९|| मीसजायं वा ठवर्ग वा पाइडियं वा पामओयर बाकीय वा पामिश्च वा परियष्ट्रिय वा अभिहट वा उम्भिन वा मालोहर्ड या अच्छेनपा अणिसई या अन्सोवरं वा धाईनिमित्त जाजीचपणीमगविगिच्छाकोहमाणमायालोमेणं पुस्विसंधवपच्छासंघवविज्जामंतचुनजोगे संकियमक्खियनिक्खित्तपिहियसाहरियदायगुग्मीसे अपरिणयलितउदिययाए बायालाए दोसेहिं अभयरदोसेण दृसिय आहारं या पाणं वा मेसज्जं या परिभुजेज्जा सम्पत्य पत्तेगं जहाजोगं कमेणं खमणायंचिलादी उपसेन्जा, ग्रहं कारगजायाणमसई मुंजे अद्यम, 3. समं सइंगाल मुंजे उबहाचणं, संजोइय २जीहालेइडताए मुंजे जार्यविलखवणं, संते वक्लवीस्थिपुरिसयारपरकमे अहमिचउदसीनाणपंचमीपज्जोसवणचाउम्मासिए पात्यहमछाडे न करेज्जा खवणं, काप गावियह चउत्थं, कप्पं परिवेज्जा दुवालसं, पत्तगमत्तगकमठा वा अनपरं वा भंडोबगरणजाचं अतिपिऊर्ग ससिणिदं वा असिगिर्द वा अणुहिये । ठवेजा पडत्य, पत्तास्सर्ग गठीउ ण ठोटिज्जाण सोहेज्जा चउत्थं पच्छितं. समुदलमंडलीउ संपन्जा आयाम संपई वा. समुदेसमंडालि छिपिऊण शालगन देजा नि-1 विइय, समुद्देसमंडली चिनिऊर्म दंडाठणगं च डाऊणं हरिवं न पडिक्कमेम्जा निम्विाइयं, एवं इरिय पटिकमिनु दिवसावसेसियं संपरेग्जा आयाम, गुरपुरसओ ण संयरिज्जा पुरिमट, अविहीए संवरेम्जा आयंबिलं, संवरिताणं चेदयसाहूर्ग बंदणं ण करेज्जा पुरिमर्द, कुसीलस बंदण दिवा अचंदे. एपावसरम्ही उ बहिरभूमीए पापियकरजेणं गंतूर्ण जावापामे ताव णं समोगादेज्जा किंचूणा तइयपोरिसी, तमचि जाय गं इरियं पडिक्कमित्ताणं बिहीए गमणागमणं च आलोइउणं पत्तगमत्तगमगाइयं भंडोजगरगं निविखवा नाचणं अमाहिया तइयपोरिसी हवेज्जा, एवं अदक्कताए तइयपोरिसीए गोषमा! जेण भिक्खू उचहि थडिलाणि विहिणा गुरुपुरओ संदिसावित्तार्ण पाणगस्त य संपरे उर्ण कालमेलं जाव सज्झायण करेजा तस्स गं छई पायच्छित्तं उपवसेज्जा, एवं च आगयाए कालवेलाए गुरुसंनियं उपहिं बिड़े मंदगपडिक्कमणसज्झायमंडलीओ बसहिच: पहितार्ण समाहीए सरोडगे व संजमिऊ जत्तणगं उबहिं पंडित पचुप्पेहिल गोपरयरिय पदिपकमिऊगं कालो गोयरचरियापोसणं काऊण तओ देवसियाइयारविसोहिनिमित्तं काउस्सर्ग करेग्जा, एएसं पत्तेग उद्धावणं पुरिमड्डेगासणगोचडापर्ण जहासलेणं गये, एवं काऊर्ग काउस्माम्यं मुहर्णनगं पत्रुप्पेहे विहीए गुरुणो किनकम्म काऊणं किंचि कत्यद सुरुम्गमपभिईए चिट्टतेण या गतिण या परीण वा भर्मवण या संभर मीण या पुदीदयअगणिमास्यवणस्सइइरियतणीयपुष्करलाकिसलयपवासंकुरदलपिविषउपमि. बियाणं संपनगपरियावकिलापणउत्पर्ग वा कर्य हवेता सहा तिहं गुत्तादीर्ण चउष्ट्रं कसाबाईणं पंचण्डं महायादीण उहं जीवनिकायादीणं सत्तष्ठं पाणपिडेसणार्ग अठव्हं पक्ष्यणमायादीग नरहं संभचेरादीण बसविहस्स तमणधम्मस्स नाणसण चारिताणं चज स्वडिय जं विराहियं त निविऊर्ण गरहिऊणं आलोइऊणं पायच्छितं च पहिवरजेऊर्ग एमामामाणसे सुलत्योभय पगिय भाषमाणे पदिपकमणं ग करेज्जा उवठ्ठावर्ण, एवं तु असणं मजो मूरिओ, चेहएहिं अवंविएहि पडिकमज्जा चउर, एथं च अक्सर विशेय, पटिस-- मिऊगं च निहीए वणीए परमजामं अणुणगं सज्वायं न करेज्जा दुवालस, पदमपोरिसीए अगइसकताए संधारगं संदिसावजा छठं, असंदिसापिएणं संथारगेणं संधारेज्जा पउत्य.. अपचुप्पहिए मंडिल्ले संधारेइ दुवालसं, अविहीए संचारेना चउर्व, उत्तरपट्टगेणं निणा संधारे यउत्स्थं, दोउड संधारेजा बाउन्यं, सुसिर मणप्पयादी संघारंजा सयं आयंबिलाणं, समस समणसंघरस साहम्मिया(गमसाहम्मिायागं च सबसेव जीवरासिस्स सबभावमातरहिणं तिनिहतिविहेणं खामणमरिसावणं अकाऊण चेहएहिं तु अवविएहिं गुरुपामूलं च उपहिदहस्सासणादणंच सागारेग पचक्लागणं जकएका विवरेसुंचकापासरूवेणं तुह(अहवाएहि संथारम्ही ठाएजा,एएसं पत्तेगं उपहापणं, संथारगम्ही ठाऊणमिमस्सगं धम्मसरीरस गुरुपारंपरिएर्ण समुबलबेहिंतु इमेहि परममंतक्सरेहिं दसमुवि दिसामु अहिहरिपतवागमतरपिलायादी रक्ल प करेजा उबहानर्ग, दसमुचि दिसामु रक्सं काऊर्ण दुवालसहि भावणाहिं अभावियाहिं सोविना पणुचीसं आचिलाणि,एक निदं मोकणं पडिबुद्ध इरियं पदिकमेत्तार्ण पदिकमणकालं जाब सरक्षार्य न करेजा दुवालस, पसुते दुसुमिण या कुसुमिथ बा उग्गहेजा सएण उसासाणं काउस्सर्ग, स्वणीए टीएज पा सासेज वा कलहमपीढगदंडगेण वा सहुक्का पडरिया समर्ण, दिया पाराओ वा हासखेडवपणाहवार्य करेजा उपहावन, एवं जेन भिक्खू सुमारकमेणं कालाइक्कमेणं आवासगं कुधीया तस्स णं कारगिगा मिचकाई गोयमा पायथा मासेमारी अकारगिरी तेसिंत में जहाजोगं वउत्थाइ उपएसे, जेणं मिल रहे करेजा सरे उपहसेजा सरे गावागाउसदे य सबत्य पापर्य पत्तेयं सापएस संबसाया, एवं जे मिक्सू आउकार्य वा नेउकार्य वा इत्थीसरीरापयर्थ चा संबोजा नोगं परिभुजजा से गं तस्स पणुवीस आयविलाणि उवइसेना, जे उण परिभुजेजा से गं तुरंतपतलक्सणे अवहरे महापाचकम्मे पारथिए, अहा गं | महातपस्सी हवेजा सत्तरि मासलमणार्ग सरि अदमासलमगाणं सरि दुवालसाणं सपरि दलमाणं सपरि अद्माणं सवरि उहागं सपरि धउत्थागं सपरि आयंबिलार्ण सरि एग११६२ महानिशीथयोदसूध, #virala मुनि दीपरमागर दीप अनुक्रम [१३८४] ~51~ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [८] +गाथा:||१९...|| ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं रहेजा, जे में समगुडेन्जा से कालमा समाहिहिड?, गोथमा ! जाव में आयात्मक आवरततो समगुडेजा से में आसाणपुरक्वडे यो विफरेना । १० इमल्स में बोलणे जान गं अदढोति ।। जयाय गोमा लगाहीयणामधेग्जे निहाप लोमान वदणि था ||१९|| शहाणार्ण सरि सुद्धायामेगासणाणं सवार निविगइयाणं जाच णं अणुलोमपडिलोमेणं निहिसेजा, एयं च पायच्चित्तं जे य गं भिक्खू जविस्सतो समणुढेजा से ण आसप्णपुरफलटे 8 नेये। दासे भय ! इणमो सरि सरि अणुलोमपडिलोमेणं केवइयं कालं जाव समणुहिहिह, गोयमा ! जावणं आयारमग वा(ठा)एग्जा, भयवं! उड्ड पुच्छा, गोयमा ! उड़ा कई समणुद्वेज्जा केई यो समणुढेमा, जेणं समजुद्देम्जा से णं बंदे से गं पुज्जे से णं दधे से सुपसत्यमुमंगले मुगहीयणामधेजे तिव्हपि लोगाणं बंदणिज्जत्ति, जे ण णो समगुडे से पावे से गं महापाचे से महापावपाचे से ण दुरंतपतलालणे जाच णं अबढवेत्ति।९। जया गं गोयमा! इणमो पच्छित्तमुत्तं बोब्छिजिहिइ तयाणं चंदाइबगहरिक्ततारमार्ण सत्न अहोरते तेयं जो विकरेजा।१०। इमरस बोच्छेदे गोयमा ! कसिणसंजमस्स जमायो, जओणं सबपावपगिट्ठयगे पेय पचिउत्ते, सारसणं तवसंजमाणुट्ठाणस पहाणमंगे परमपिसोहीपए, परयणस्साविण गवणीयसारभूए पाते । ११॥ इणमो समवि पायच्छिते गोयमा! जावइयं एगस्य संपिडियं हवेचा नावइयं वेध एगस्त णं गच्छाहिबरणो मयहर-1 पपत्तथीए यबउगुणं उबइसेना,जओणं सबमविएएसि पर्वसिय हवेना,अहा गमिमे चेपमा संगोजातओजनेसि संते धीचलनीरिय(ए)सतरागममुजमहाहावेज्जा, अहा Pणं किंचि सुमहंतमनि तओऽणुड्डाणमभुज्जमेज्जा तागं न वारिसाए धम्मसहाए, किंतु मंदुच्छाहे समणुडेज्जा, भग्गपरिणामस्स य निरत्यगमेय कायकसे, जम्हा एयं तम्हाउ अबिताणवनिरणुवंचिपुत्रपम्भारेणं संभ(ज)जमाणेवि साहुणोन संजुज्जति, एवं च सवमवि गच्छाहिबद्यादीणं दोसेणेच पवतेजा, एएर्ण पबुबइ गोयमा ! जहा गं गच्छाहिवड्याईणं इसमो सत्रमवि पच्छित जावइयं एगस्य संविडियं हवेना ताबड्यं चेव चाणं उबइसेना । १२ । से भयन ! जेणं गनी अपमानी भवेत्ताणं मुयाणुसारेणं जहुत्तविहाणेहिं पेय सवयं अहनिस गच्छंन सारवेजा तस्स किं पायण्डितमुवइसिजा!, गोयमा! अप्पउत्ती पारंचियं उपइसेना, से भयव! जस्स उण गणिणो सकपमायालंबणविष्पमुकस्ताविणे सुयाणुसारेण जहुत्तविहागेहि व सषयं अहमिस गच्छ सारखेमाणस्स उ केई तहाबिहे दुसीले न सम्म समावरेजा तस्सबि कि पच्छित्तमुपइसेजा ?, गोयमा ! उबइलेजा, से भवन ! केणं अडेणं ?, गोयमा ! जओ णं तेणं जपरिकिसयगुणदोसे निकसमाविए हवेज्जा एएणं, से भययं किं तं पायच्छित्तमुवासेज्जा?, गोयमा ! जेणं एवंगुणकलिए गणी से णं जया एवं विहं पावसी गळ लिपिहतिषिहणं वोसिरिताणं आयहियं नो समणुढेना तया ण संघबज्झे उपासेजा, से भवर्ष! जया गं गणिणा गर्छ तिचिहेणं बोसिरिए हवेज्जा तया गच्छे जावरेना?.जइ संबिग्गे भवेत्ताणं जहुन पच्छित्तमणुचरेता अमस्स गच्छाहिक्हणो उपसंपजिलाणं सम्मम्ममणुसरेना तओणं आयरेजा, अहाणं सबछंदताए नहेब चिडेसओ ण चाउचिहस्सावि समयसंघस्स बन गच्छंणो आयरेजा।१३। से भय ! जया से सीसे जहत्तसंजमकिरियाए वइति तहानिहे य केई कगुरू तेसि विक्र्स परूबेज्जा तया णे सीसा कि समगुडेज्जा ,गोयमा घोरवीरतयसंजर्म, से भय कह', गोयमा ! अनगच्छे पविसेत्ताण, वस्त संविएणं सिरिगारेणं अलिहिए समागे अक्षगण्डेमुं पवेसमेव ण लभेजा गया गं कि कुविज्जा , गोयमा ! सापयारेहि णं तं तस्स संतिय सिरियारं फुसावेग्जा, से भय ! केण पयारेणं से तस्स संतियं सिरियार सापयारेहिणं कृसियं हवेजा, गोयमा! अक्सरेस, से भयवं! किंणामे ने अक्सरे ?. गोयमा ! जहाणं अपडिगाहे कालकालनारेमुंपि आई इमस्स सीसाणं वा सीसणीगाणं वा, से भयर्व ! जया णं एवंविहे अक्षरे ण पयादी ?, गोयमा ! जया णं एवंविहे अक्सरे ण पयादी तया गं आसमापावयणीणं पकाहितागं च उत्थादीहि समयमित्ताणं अक्सरे दावेजा, से भय ! जया गं एएणं पयारेणं से गं गुरूअक्सरेण पदेजा गया कि कुजा, गोयमा! जया णं एएणं पयारेणं से पं कुगुरू अक्सरे नोपय तयाणं संपवनो उबदसेम्जा, से भय के अद्वेष एवं सुबह गोयमा! सुदतु पयट्टे इममो महामोहपासे गेहपासे तमेव विप्पजहिता अगसारीरिगमलोसमुन्यचडमहसंसारपसभयभीए कहकहति मोहमिच्छनादीणं खओक्समेणं सम्म समोवलभित्ताण निविणकामभोग निरणयचं पुनमहिने,तंच तपसजमाणुटाणेणं, तस्सेव नवसंजमकिरियाए जापणं गुरु सयमेव विग्ध पयरे अहाणं परेहि कारचे कीरमाणे या समशुवस्खे सपनखेण वा परपक्वेण वाताव तस्स महाणुभागमा साहुणो संनिय चिनमाणमपि धम्मजीरियं पनस्से जावन धम्मपीरियं पणमसे नाव णं जे पुषमागे आसन्नपुरमखडे चैव तो पणसे, जदणं णो समगलिंग विषजहे ताहे जे एवंगुणोक्षए से गं गण्ठमुज्स्यि अन्नं गच्छं समुप्पयाइ. तत्थवि जायण संपवेस ण लभे ताच गं कमाइ उण अविहीए पाणे पबहेजा कबाइ उप मिचात्तमा गमिष्य परपासंडियमासएजा कयाइ उण दाराइसंगई काऊर्ग अगारवासे पविसेना अहा णं से ताहे महातपस्सी भवेनाणं पुणो अतपस्सी होऊ परकम्मकरे हवेजा जायणं एवाईनहति ताप गंएगतेणं पुइिंद्र गच्छे मिच्छत्ततमे जायणं मिच्छनतबंधीकए बहुजणनिबहे दुक्खणं समगुडेजा बुग्गादनिवारए सोक्सपरंपरकारए अहिंसालसणसमगधम्मे, जाव में एया भवंति नाच गं तित्यस्लेव बोच्छित्ती, नाच गं सुबूस्वचाहिए परमपए, जानन सुरववाहिए परमपए ताव अर्जनसक्सिए पेप मासा ११६३ महानिशीथमोदमूत्रं. rof-3 मुनि दीपरासागर दीप अनुक्रम [१३८४] TANYAHAR ~52 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत [१४] “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक-1, ------- मूलं [१४] +गाथा:||२०|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं IT संघाए पुणो घडगईए संसरेजा, एएनं जडणं एवं पुथइ गोयमा ! जहा गंजेणं एएणेच पयारेणं गुरू अकबरे को परजा से से संपराही उपहसेगा ।१४। से भय ! केवाए कालेणं पहे गुरू भविहिति?, गोयमा! इओ व अदतेरसहं वाससयागं साइरेगाणं समइकताणं परओ भबिसु, से भव! के अड्डेज, मोचमा ! कालं इवीरससायगारवसंगए ममीकारबहकारगीए अंतो संपजलतोंदी अहमहतिकयमाणसे अमुणियसमयसम्भावे गनी मचिंसु, एएणं अद्वेणं, से भययं ! किन सोऽनी एवंविहे नाकालं गगी भवींसु.गोयमा ! माएगणं नो सके, कई पुण दुरंतपत्तलक्षणे अवठ्ठचे एगाए जगणीए जमगसमग पसूए निम्मेरे पावसीले दुम्जायजम्मे सुरोइपयंडाभिमहियदरमहामिमारिवठी भपिंग से भय ! कहं ते समुचलक्सेजा ?, गोयमा ! उस्सुत्तउम्मग्गपपत्तणुदिसणअणुमहपचएण ।१५। से भययं ! जे गं गणी किंचियावस्सगं पमाएजा, गोयमा ! जे गं गणी अकारणिये किंची सगमेगमपि पमाए से गं अपद उनसेला, जे तुसुमहाकारगिगेवि सं गगी सणमेगमवीण किंचि णिययावस्सगं पमाए से गं दे पूए बहुवे जावगं सिदे बुद्ध पारगए सी. पहुकम्ममले नीरए उपहसेजा, सेस तु महया पर्वधर्ण सत्याणे व माणिहिड।१६। एवं पच्छिन्नविहि, सोऊण गाणुविद्वती। अदीणमणो. जंजाय जायाम,जे से आराहगे मणिए ॥२०॥ जलजलणसावयपोरनरिवाहिजोगिणीण भए।तह भूयजक्रसरक्वससुदपिसायाण मारीणं ॥२१॥ कलिकलहनिन्धरोहगताराइसमुदमजोया चिंतिय अपसाउने संभरिया बद सदमा विजा ॥२२॥ पूजसएशजणामदेणउजजन्माणाममएहमतदकमाउणआदइएइमपबाजागाहमहराचसहममहमुअणजमवायएउजाण्ञमचउन्हमहमसुख मालम्पएहाइसम्अम्बा(पत्यंतरे पूनाएरईजनभमान उजमनमनाउममएहइम्ताब्दकाउन्आइएहाम्पमानभागोहाअपहरउपउनुहम्मदसउउजनउमघटएजोजअम्तउएहमदम्वधसूइसकाउञ्जमथएहवासम्अम्तउ)एयाए परविजाए विहीए अनाणगं समहिमंतिऊर्ग इमेए सत्तक्सरे उत्तमंगोभयसंघकृष्टीचरणतलेसु संणिसेजा जहा जाउन उत्तमंगे कउयामसंधगीचाए यामकुण्डीए का नामचलणपले लए वाहिणचलणयले मनुआ दाहिमकुण्डीए दा दाहिणसंधीपाए।१७।' दुसूमिगदुनिमित्ते गहपीउपसम्ममारिरिभए। पासासणिविग्तएवापारिमहाजनविरोहे ॥२शाजंचऽस्थि भयं लोगे, तंस निहले इमाए विजाए।सत्यपहे (स(महे मंगलयरे पापहरेसयलयरसयसो. क्सदाई काउमिमे) पचिडते, जाणं तुणतम्भने सिहो ॥२४॥ तालहिऊम निमार्ग (ग) मुकुलुप्पत्ति दुषं च पुण बोहि । सोक्सपरंपरएक सिजो कम्मरबंधस्यमलपिमुके ॥२५॥ गोयमोति बेमि। से भया! कि प(ए)यामेतमेव पत्तिविहान जेणेवमाइस्से ?, गोयमा! एवं सामने वालसह कालमासान पददिणमहग्निसाणुसमयं पाणोधरम जाप सबालबुदसेहमयहररायणियमाईण, नहा य अपडियायमहोऽसहिमणपजवनाणीउ छडमत्यतित्यपराणं एगतेणं अम्मदठाणारिहायस्सगसंबंधियं घेर सामगं पच्छिल समाइट, नो णं.. एयायुमेतमेव पचिठतं, से भय : किं अपडियायमहोऽवहीमणपजवनाणी उउमस्थवीयरागे सयलावस्सगे समणुठीया. गोयमा! समगुट्ठीया, न केवलं समणुठीया जमगलमगमे. पाणवरयमणुठीया, से भयवं! कह ?, गोयमा! अचिंतबलबीरियबुद्धिनाणाइसयसत्तीसामत्वेग, से भया ! केणं अटण ते समगुठीया, गोयमा! मा ण उस्मत्तम्ममापन में | भवउत्तिकाऊणं । २८ा से भय कित सविसेस पायपिठलं जावन वयासी ?, गोथमा! पासारनिय पंचमाभियं वसहिपारिभोगियं गच्छापारमाकमण संघाचारमइकमणं गुनीभेस पपपरणं सत्तमंडाठीधम्माकमणं अगीयस्थगच्छपयाणजार्य कुसीलसंभोगजं अविहीए पाज्जादाणोक्हायणाजाय अउस्मस सुनस्थोभयपणवणणार्य अगाणयणिकपसरवि. चरणाजार्य देवतिय राहय पक्सि मासिवनामासिव संपच्छरिय एहियं पारलोइयं मूलगुणविराहणं उत्तरगुणविराहणं आभोगावाभोग आउहिपमापरपापिय पयसमधम्मसं. जमतपनियमकसायदंदगृतीयं मयभयगारपईदियज वसणाइकरोटिज्माणरागदोसमोहमिच्छनडकरज्यवसायसमुत्वं ममत्तमुण्टापरिमहारनजं असमिइनपठीमसामित्नधमंतरायसनायुवेगासमाहाणुप्पायर्ग संखाईया जासायणा अनपरासायणयं पाणवहसमुत्य मुसाबायसमुत्यं अदनादाणगहणसमुन्य मेहमसेवणासमुत्थं परिमहकरणसमुत्वं राइमो. पगसमत्य माणसिर्व वाइर्थकाइयं असंजमकरणकारवणअनुमइसमुत्व जाणं गाणदसणधारिलाइयारसमुत्य कि बहणा , जानदयाई तिगालचिरणादी पायशिलताणाई | पणलाई नापायं च पुणो बिसेसेण गोयमा ! असंखयहा पन्नविनि (अनी) एवं संधारेजा जहा गं गोयमा! पायचित्तसुतस्स णं संखेजाओ निगुतीओ संजाओ संगहणीको संलिजाई अणुओगदाराई संखेजे अक्सरे अगते पनवे जान दसिज्जति उपदसिजति आपचिजति पन्नविनंति परुपिजति कालाभिम्गहनाए दशाभिमहत्ताए खेलानिमाहताए । भाषाभिग्गाहताए जाप ण आणुपुरीए अगाणुपवीए जहाजोगं गुगठाणे सुनि पेभि । १९ । से भवन ! एरिसे पच्छित्तमाहुले से भय ! एरिसे पच्चित्तसंपट्टे से भयय! एरिसेपण्ठित्ससंगहणे अस्थि कई जे णे आलोइताणं निदिनार्ण गरहितार्ण जाच णं अहारिहं तपोकर्म पायच्छितमणुचरिनाणं सामनमाराहेजा पत्यणमाराहिजा जाच आपहियद्याए उक्संपमित्तार्ण सकर्जतमई आराहेजा, गोयमा ! गं पठविहं आलोयणं विंदा, संजहा-नामालोयर्ण ठपणालोपर्ण वालोषणं भावालोयर्ग, एते चाउरोऽपि (२९१) 3 ११६४ महानिशीचोदसूत्र, Saras अनि दीपरमागरा गाथा ||२०|| दीप अनुक्रम [१३९०] ~53~ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [७/चूलिका-१], --------- उद्देशक -1, ------- मूलं [२०] +गाथा:||२६|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत htg100 सत्राक [२०] 94. * दिए कि उनका पदिता गाथा ||२६|| पए अणेगहानि चउधा जोइन्जंति, तत्थ नाव समासेग णामालोयर्ण नाममेरोणं, ठवणालोयर्ण पोत्थयाइसुमालिहिय, दवालोयणं नाम जे आलोएनाणे असदभावनाए जहोबाई पायण्डिनं नाणुविहे. एने तमोऽधिपए एगतेणं गोयमा ! अपसन्थे, जे गं से चउत्थं भाचालोयणं नाम ते गं तु गोयमा ! जालोएताणं निदिनार्ण गरहिनाणं पायच्छित्तमणुचरितार्ग जावणं आयहियहाए उपसंपजितागं समजुत्तममई आराहेजा, से भय ! कयरे से चउत्ये पए, गोयमा! भावालोयणं, से भय ! किंतं भावालोय?, गोयमा जे गंभिक्यू एरिसे संवेगवेरणगए सीलतवदाणभाषणचाउरपंचसुसमणचम्ममाराहणेकंवरसिए मयनयगारवादीहि अर्थतविप्पमुक्छे सधभाषभावसरेहि गं नीसाने आलोइताणं विसोहिपयं पटिगाहिताणं तहनि समणुदठीया सनम संजमकिरिव समणुपालिजा ।२०। जहा कयाई पाचाई साहि, जे हिअट्ठी गराए। तेसि नित्यक्सयहि.सुदी अम्हाण कीरत्रो॥६॥ परिचिचार्ण तयं कम्म, चोरसंसारदुक्सद। मणोनयकायकिरियाहि.सीलभारं घरेमिऽहं ॥७॥जह जाणइ सान, केपली तित्थंकरे। आयरिए पारिनड्डे, उपरायसुसाहुणो ॥८॥ जह पंच लोयपाले ब, सना धम्म य जाणते। नहालोएमिहं सत्र, तिलमिलपि न निण्हयं ॥ ९॥ तस्येव जं पायपिन, गिरिवरगुरुयपि आवए। तमगुबरेमि दे सुदि, जह पाये अनि विलिगाए ॥३०॥ मरिऊर्ण नस्यतिरिएस. कभीपाएस करवाई। कथा करवत्तजले हिकत्या मिनो उ मूलिए ॥१॥ चसणे पोलणं कहिमि, कन्या ठेवणभेषण पंधर्ण लंघर्ग। कहिँमि. कन्थाइ दमणमंकणं ॥२॥ पन्धणं बाहर्ण कहिमि, कत्थाइ बहणतालण। गुरुभारकमणं कहिं चि, कत्थइ जमलारपिंधर्ण ॥३॥ उत्पद्विअविकडिभंगं, परवसो नरहं छह । संताबुशेगदारिद, विसहीहामि पुणोयिह ॥४॥ता रहाई व सपि, नियरियं जहदिठयं । आलोइता निदिना गरहिता, पायश्चित्तं चरितुणं ॥ ५॥ निहामि पावयं कम्म, सति | संसारदुक्खय। अन्भुदिठना नवं घोरं, पीवीरपरकर्म ॥ ६॥ अर्चनकटवर्ड कलं. दुकरं दुरणुचरं। उनगुग्गयरं जिगाभिहिब, सबलकाताणकारणं ॥७॥ पायच्छित्सनिमिनेणं, पारसधारकारय। आयरेणं नवं परिमा, जेणुभ सोक्सई नj ॥८॥ कसाए पिहलीकटटुं, इंदिए पंच निग्गहं । मनोवईकायदंदाणं, निम्यहं धणियमारभे ॥९॥ आसपदारे निम्मेत्ता, चत्तमयमच्छरसमरिसो । गवरागदोसमोहोई. नीसंगो निष्परिगहो॥४०॥ निम्ममो निरहंकारो.सरीजचंतनिपिहो । महायाई पालेमि. निसयाराई निमिडओ॥१॥हबी धी हा अहोऽहं. पाची पायमती अह। पापिठो पाचकम्मोऽहं पापाहमाहमयरोऽहं ॥२॥ कुसीलो भट्ठयारिनी, भिसूगोषमा अहं। चिलातो निकियो पापी, फरकम्मीह निग्विणो| ॥३॥णमो दाह समिर, सामन्नं नाणदसणं । चारितं वा विराहेता. अणालोइयनिदियागरहियायपच्छित्तो, बावजंतो जई आई ॥ ४॥ ना निच्छयं अणुतरे, घोरे संसारसागरे। निबुतो भयकोडीहि, समुनरंतो ग वा पुणो ॥५॥ना जा जराण पीडेड, बाही जाव न केई में। जापिदिया न हायति, नाय पम्मे परेडं ॥ ६॥ निरहमारेण पापाई, निदि 15 गरहि चिरं । पापभित्तं परिवाण, निकलको भवामिऽहै ॥ ७॥ निकलुसनिकलंकाणं, मुदभाचाम गोयमा ! | नमो नई जयं महियं, सुदूरमबि परियलिनुर्ण ॥८॥ एवमालोयण बाउं. पायच्छिन चरिनुण । कलसकम्ममलमुर्क, जाणो सिजिाज नम्वगं ॥९॥ता पए देवलोगमि, निचूजोए सर्यपहे। देवदुइंहिनिग्योसे, अच्रासयसंकुले ॥५०॥ तओ चुया इहागंतु. सुकुम्पत्ति लभेतुणं । निविनकामभोगा य. तवं काउंमया पुमो॥१॥ अणुत्तरविमागे, निवासिऊहमागया। हवंति धम्मलित्ययरा, सयानेलोकबंधया ॥२॥ एस गोयम! विद्यये, सुपसात्ये उत्थे पए। भाषालोयणं नाम, अक्सयसियसोमवदायगो ॥३॥नि बेमि, से भय ! एरिसं पप्प, विसोहि उत्तम परं । जे पमाया पुणी असई, कत्यह चुके सचिज वा॥४॥ लस्स कि मवे सोहिपर्य, मुविसुई चेत्र लक्सिए। उयाहुणो समलिसे?, संसयमेयं वियागरे॥५॥ गोयमा निदिउँ गरहिउँसुहरं, पायचिउत्तं चरितुणं । निक्खारियवस्थमिवाएण संपर्ण जो न रस्सए ॥ ६॥ सो सुरहिगंम्भिाणगंधोदयविमलनिम्मलपविते । मजिजखीरसमुदे, असुईगददाए जा पटर ॥ ७॥ एता पुण तस्स सामग्गी, (सबकम्मक्लवकरा)। अह होज देवजोग्गा, असुईगंध सुदुदरिस ॥ ८॥ एवं कयपच्छिन्ने, जे ण उजीवकायवयनियमं । बसणनाणचरितं, सौलंगे वा भपंगे वा ॥९॥ कोहेण व माणेग व, मायाोने कसायदोसणं । रामेण पोसण प. (अभाण) मोहमिछत्तहासेणं (वाचि) ॥ ६॥ (भएणं कंदपवण) एएहि य अन्नेहि य गारखमालवणेहि जो खंडे। सो सबहुवि माणे, पसे अनागग निरए ॥१॥(खिसे भय ! कि आया संरक्वेयो उयाह जीवनिकायमाइसंजमे संरक्खेयको ?,गोयमा ! जेणं छकायसंजर्म स्ले सेगं अगंततुक्सपपायगाठ दोग्गइगमणाउ अत्ता संसखे, तम्हा उकापाइसंजममेव ससेय होह। २१ से भय! केवतिए असंजमहागे पाने, गोयमा! अणेगे असंजमदाणे पाते, जाव ण कायासं. जमहाणा, से भय ! कयरे णं से कायासंजमहाणे, गोयमा ! कावासजमहाणे अगेगहा पाला, संजहा-पुढविदगागणिवाऊवणय तह तसाण विविहान । हत्येणवि करितणया | बजेजा जावजीबपि ॥२॥ सीउहलारखते अम्गीलोस अंबिले हे। पुढवादीण परोप्पर खर्यकरे बजासत्येए॥३॥ हाणुग्मदणसोमणहत्थंगुलिनस्विसोयकरणेणं। आबीयते | १९६५ महानिशीपच्छेदसूत्र, मुनि दीपरमागर दीप अनुक्रम [१४०२] ~54~ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [७/चूलिका-१], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [२२] +गाथा:||६४|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं प्रत [२२ + गाथा ||६४|| अणते आऊजीये सय जति ॥४॥संधुकणजलजालमेण उनीयकरणमादीहिं। बीवणकुमणउम्भावणेहि सिहिजीवसंधाय ॥५॥जाइ खयं अमेऽपिय उजीवनिकायमइमए जीये। जलणो सुहमोवि संभाखा दसदिसाणं च ॥६॥वीयणगतालियंटयचामरउक्सवहत्यतालेटिं। चावणडेवगलंघनऊसासाईहिं पाऊ॥ ७॥ अंकुरकुहरकिसलयपपालपुष्कफलक दलाई। हत्वफरिसेण बहवे जति सर्य पणफई जीवे ॥८॥ गमणागमणनिसीयणमुयगुहाणअणुवउत्तयपमनो वियलिति वितिय उपचंदियाण गोयम ! खयं नियमा॥९॥ पाणाइ-4 सावायचिरई सिपफलया गिव्हिऊण ता धीमं। मरणावयमि पले मरेज विरदं न संटेजा ॥ ७॥ अलियवयणस्स विरई साकरी सबमविन भासिना। परदाहरणपिस करेज दिन्नेवि मा रोमं ॥१॥ धरणं दुबरचभत्रयस्स काउं परिग्गहवायं । राईभोयणबिरई पंचिंदियनिग्गई पिहिणा ॥२॥ अन्ने व कोहमाणा रागहोसे य (आ) लोयणं वा । ममकारअहंकारे पय|हियो पवनेनं ॥३॥जह तनसंजमसन्मापानमाईसु सुदभावहिं । उमिया गोयम! विजुलयाचले जीवे ॥४॥ कि बहुणा' गोषमा ! एत्य, राकगं आलोयगं। युद्धविकार्य चिराहेजा, काय गतुं स सुज्विाही ॥५॥ किंबहुणा गोयमा एल्वं. दावणं आलोयणं । बाहिरसाणं तहि जम्मे, जे पिए कत्थ मुग्विाही ॥६॥ किं०। उन्हबर जालाई जाओ. ऊसिओ वा कस्य सुमिही? आकिका बाउकार्य उदीरेजा, कत्थ गतृण सुजिाही? ॥८॥कि०। जोहारियतणं पुण्फ मा, फरिसे कत्यसमुन्सिही ॥९॥किलाजकमई बीयकार्य जो, कत्थ गर्नु स सुजिाही ? ॥८॥ किं । नियालेबी (बितिचड) पंचिदिय परियावे, जो करब स सुज्झिहि ॥१० कि० । उकाए जो न स्क्वेजा, सहमे कत्यस सुझिही? ॥२॥किंबहुना गोयमा ! एत्थं, दाऊणं आलोयर्ण। तसथावर जो न रक्से, कत्त्य गंतुं स सुजिाही?॥३॥ आलोइयनिदियगरहिजोवि कयपायचित्तणीसलो। उत्तमठाणमि ठिओ पुढचारंभ परिहरिजा ॥४॥आलोइ । उत्तमठाणमि ठिओ, जोईए मा फुसावेग्जा ॥५॥ आलोइ० संचिगी। उत्तमठाणमि ठिओ मा वियावेज अत्ताणं ॥६॥ आलोइ सपियो। छिपि न 12 हरिय, असई मणर्ग मा फरिसे ॥ ७॥ जालोनय संविग्गो। उत्तमठाणमि ठिो, जावजीचंपि एतेसि 1 दियतेंदियरोपथिदियाण जीवाण। संपापपरियारणकित्तपणोदयण मा कासी ॥९॥ आलोइ. सविमो। उत्तमठामि ठिलो, सापजमा भगिजासु ॥९०॥ आलोइय संविग्गो। लोयत्येपनि भूई गहिया निहिउक्सिविड दिवा ॥१॥ आल्योइ जीसाहो । इत्थी संलविजा, गोयम! कत्यस सुज्झिही ॥२॥ आलोइया सवियो। चोइसधम्मचगरणे, उ मा परिगहं कुजा ॥३॥ तेसिपि निम्ममत्तो अमुन्धिाओ अगदिडओ दद हविया। अह कुना उममता सुदी गोयमा! नस्थि॥४॥ किंबहुणा गोयमा! एल्यं, दाउणं आलोयर्ण रयणीए आलिए पाणं, कायमेतुं स सुमिही?॥५॥ आलोइयनिदियगरहिओवि करपायच्छित्तनीसो। छाइकमेष रस्से जो, कत्व सुदि उभेज सो ? ॥६॥ अपसत्ये यजे माये, परिणामे य दारणे । पाणाइमायस्स बेरमगे, एस पढमे अइयमे ॥७॥लिकरामायजा भासा, निदरसरकसम्भसा । मुसाचायस वरमगे, एल बीए आइकमे ॥८॥ उमाई अजाइना. अचियसमि उपमहे । अदत्तावामा मेरमणे, एसताए । आफमे ॥९॥ सहा रुया रसा गंधा, कासाणं पवियारणे। मेहुणस्स बेरमणे, एस चउत्थे बाइकमे॥१०॥ इच्छा मुच्छा य गेही य. कसा लोभे य दारुणे। परिगहस्स बेरमणे, पंचम गेसाइकमे ॥१॥ अहमताहार होइना, मूरस्सितमि सकिरे। राईभोयणस्त वेरमणे, एस झडे अइकमे ॥२॥ आलोहबनिदियगरहिओवि कापायचित्तणीसा। जयणं अयाणमाणो, भवसंसार भमे जहा सुसदो ॥१०॥ भययं । को उण सो सुरुढो ? कयरा बा सा जयणा ? जमजाणमाणस्स गं तसा आलोइयनिदियगरहिमओ(यस्सा)वि कयायलिस्सापि संसार णो | विगिद्वियति?, गोयमा ! जयणा णाम अहारसह सोलंगसहस्सा सत्तरसचिहस्सणं संजमस्स चोदसह भयगामाणं तेरसन्न किरियाठाणार्म सवजसम्भतरस्स पंपासपिहस्स 9 तपोऽणुणस्स दुवालसद निस्पतिमार्गदसपिहस्सणं समणधम्मस्स णपण्हें पेप पंसगुत्तीर्ण अण्हत पपपणमाईर्ण सत्ताह चे पाणपिंटेसणार्ण उहं तुजीपनिकायाणं पहन महायाण लिई तु ष गुत्तीर्ण जायणं तितमेच सम्मईसणनाणचरितार्ण भिक्खू कतारम्भिक्लायंकाईमुग सुमहासमपन्नेस अंतीमहलायसेसकंठगमपायपि ण मणसावि उसंचन विराहणं ण करेजा ग कारजा ण समाजाणेजा जाच गं नारभेजान समारंभेजा जाकशीवाएति से गं जयलाए मत्से से गं जयणाय पूर्व से जयगाए पदसे से जयणाए पियाणएनि. गोयमा सुसहस्स उण महती संकहा परमपिम्हयजमणी बा२२॥ चुलिया पढमा एमलनिजरा..१७०७॥ से भयर्थ ! के अटेणं एवं युबह , तेर्ण कालेणं तेणं समएमं सुसङनामधेजे अणगारेह भूय, वेणं च एगेगस्वर्ण पक्सस्तो पभूयवाणियाओ आलोयणाओपिदिन्नाजो सुमहंताई चमतपीसकराई पायच्छिनाईसमगुचिन्नाई तहाविनेगवाए विसोहिपयन समुपलदेति, एनेणं अढणं एवं पुथा से भय केरिसा उणं तस्स सुसहस्सा बताया, मोषमा! अत्तिाहर मारहे वासे अवंती नाम जणवी, तस्य च संयुके नाम खेडगे, नरिम य जम्मदरि निम्मेरे निकिने किविणे पिराणुको अबको निकलुणे नित्तिसे रोहे पंडरोल्पयंडडे पाये अभिग्गाहियमिच्छाविडी अनुबरियनामधेने २११६६ महानिशीथयोदसूत्रं, अKaviF-06 मुनि टीपरनसागर दीप अनुक्रम [१४४३] pvigA00AAT अत्र सप्तमं अध्ययनं/(चूलिका-१) समाप्तं अत्र अष्टमं अध्ययनं/(चूलिका-२)- "स्पट-अनगार कथा" आरब्ध: ~55~ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [१] +गाथा:||-|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं समसमविहवं तस्साचिन मोहारता अन्नाथ विविसित दस परिचिचार्ण गीत सुखसिवे नाम घिजाह असि, तस्स य धूया सुजसिरी, सा य परितुलियसयलतियणनरनारीगणा लावन्नतिदित्तिरूवसोहागाइसएणं अणोचमा बत्तग्गा, तीए अन्नभयंतरंमि इगमो हियएण दुधितिय अहेसि, जहा ण-सोहण हवेजा जइणं इमस्स बालगस्स माया बाक्ने तओ मज्म असबकं भये, एसो य बालगो दुलीविजो भयह वाहे मज्या मुयस्स रायलण्डी परिणमेनति, तकम्मदोसेणं तु जायमेत्ताए चेव पंचत्तमुचगया जगणी, तओ गोयमा ! तेणं सुजातियेणं महया किलसेणं उंदमाराहमाणेणं बहूर्ण अहिणवपसूयजुचतीगं घरापरि बन्न पाऊगं जीवाचिया सा बालिया, अहमया जाचणं बालभाषमुत्तिन्नासा सुनासिरी ताप गं आगयं अमायापुर्त महारोवं दुवालससंवच्डरियं दुक्मिपसंति, जाच ण फेहाडीए जाउमारदे सयलेपिणे जणसमूहे, अहऽन्नया बहुविवसहनेणं विलायमुवगएर्ण तेण चितिष जहा किमेष वावाइऊर्ग समुरिसामि किंवा गं इमीए पोग्गलं विकिणिकर्ण व अन्न किचिवि पणिमगाउ पढिगाहिताण पाणवित्ति करेमि, णो णमन्ने कई जीवसंधारणोचाए संपर्य मे हविजनि, अहना हदी हा हा ण जुत्तमिणति, किंतु जीवमाणि थे। विकिणामित्ति चितिऊग चिकिया सुनासिरी महारिदीजुयस्स पोरसपिजाठाणपारगसणं माहणगोविंदस्स गेहे, तओबहुजनेहि चिडीसदोषहमओ देस परिचिचाणं गओ अन्नदेसंतरे मुजसिवो. तस्थापिणं पयको सो गोयमा! इत्येव चिन्नाणे जाय गं अन्नेसि कन्नगाओ अवहरिताणं अवहरिताणं अन्नत्य विकिणिऊग मेलिय सुजसिषेण पहुं दविणजार्य, एवावसरमि उ समहकते साइरेगे अहसंवच्छरे दुरिभक्तरस जाप ण विचलियमसेसविहवं तस्साचि गं गोविंदमाहणस, तेच चियागिऊण विसायमुपगएणं चिनिय गोयमा! तेणं गोविंदमाहणेणं, जहाणं होही संचारकालं मझ कडेवरस, नाहं विसीयमाणे बंधने खगडमनि बढणं सकृणोमि, ता किं काय संपयं अम्हेहिति चिंतवमानस्सेप आगया गोउलाहिवाणो मजा सदयगविकणणत्यं तस्स गेहे जावणं गोविंदस्स भजाए तंदुतमातगेणं पदिगाहियाउ चउरो पगचिगईमीससइयगकगोलियाओ,तच पहिगाहियमेतमेव परिमुत्तं डिमेहि, भणियं चमहीपरीए-जहा महिदारिगे! पबच्छाहिणं तं अम्हाणं तंदुलमडगं चिरं बहे जेणऽम्हे गोउलंबयामो, तओ समाणत्ता गोयमा! सीए माहणीए सा मुजसिरी जहा गंहला! ते जम्हा जरवाणा णिसापर्य पहिय पहियं नत्थ जैन नंदरामागं तं मग्गाहि लहूं जेणाइमिमीए पयामि, जाव दंदवसिऊग नीहरिया मंदिर सा सुजसिरी नोवलद दुलमार्ग, साहियं च माहणीए, पुणोषि भणिय माहनीए जहा हला! अमुग धाममणुउदुवा अनेसिङगमागेह, पुणोनि पपहा अलिंदने जायण पिच्छे ताहे समुहिया सयमेव सा माहणी 8 जाप णं सीएपि ण दिन पुण, सुनिम्हियमाणसा गिडणममेसिउँ पयता, जावणं पिच्छे गणिगासहायं पदमसुयं पयरिके ओवर्ण समुसिमाणं, तेणापि पडियदढू जणणी आगमा माणी चितिय अहले जहा पलिया अम्हाण ओषणं अपहरितकामा पायमेसा, ता जा रहासनमागठिही ओहमेयं पानासामिति चिसो भणिया दरासमा पेच महासाहेणं सा माहणी जहाणे महिवारिगा! जब तुम इहयं समागच्छिहिसि तओ मा एवं तं बोलिया जहा गंणो परिकहिय, निच्छय अहवं ते वाचाएस्सामि, एवं च अणिडवयर्ण - सोचाणं बजासणिहया इस धसति महिउ निनादिया धरणिपट्टे गोषमा : माहणित्ति. तो गं तीए महीवरीए परिचालिऊन किंचि कालक्रवर्ण कुत्ता सा मुजसिरी जहाज हला। कमगे! अम्हा गं चिरं पड़े ता भणम् सिग्य नियजणणि जहाणं एह लई पयच्छ तुममम्हाणं तंदुलमार्ग अहा गं तंदुलमार्ग विप्पणई तओ से मुम्गमागमेव पयास, ताहे पविट्टा सा सुजसिरी अलिंदने जाच बठूर्ण तमवत्यतरगय माहणी महया हाहारवेणं पाहाविर पचत्ता सा मुनासिरी, चायनिऊणं सह परिव पाइओ सो माहगो महीयरी अ, तो पवणजलेण आमासिऊणं पुहा सा तेहिं जहा महिदारिंगे! किमयं किमयंति?, तीए मणिय-जहा गं मामा अत्ताणगं दरमएणं बीहेणं साह, मा मा विगयजलाए सरियाए उन्भेह, मा मा अरजुएहि पाहि नियंलिए मजा(ज)मोहेगाऽऽणप्पेह, जहा किल एस पुत्ते एसा धूया एस गनुगे एसा मुण्हा एस जामाङगे एसा माया एस जणगे एसो भत्ता एस णं हे मिट्टे पिए कंते गुहीयसपणमितबंधुपरिवम्गे इहई पचासमेवेयं विदित अलियमलिया चेव साधनाला, सकजस्वी बसंभयए लोओ, परमत्यओन केह मुही, जाच गं सकर्ज वार में माया तावणे जणगे ताव गं धूया ताव जामाउगे ताप गंणनुगे नावण पुते ताव गं सुन्हा ताव गं कता ताप गं बड़े मिड़े पिए को सुहीसपणजणमित्त घुपरिवणे, सकजसिदीविरहेण तुण कस्सई काइ माया न कस्सई केड जगगेण कसाई काइ घुया ग कस्सई के जामाउगे ण कस्सई केहपुते ण कस्सई कार मुन्हा न करसई केह भत्ता ण कस्सई केह कंताण कस्सई केड डे मिढे पिए केते मुहीसयणमित्तपंधुपरिवग्गे, जेणं तु पेच्छ पेच्छ मए अगोचाइयसउबलने साइरेगणवमासकुण्डीएनि धारिऊर्ण च अणेगमिट्ठमारउसिणतिक्समुलसलियसणिवहारपयाणसिगाणुभट्टणधूवकरणसेवाहण(घण)चन्नपयाणाईहिं गं एमहंतमगुस्सीकए जहा कि अहं पुत्तरजमि पुन्नपुन्नमणोरहा | सहसहेर्ण पणइयणपुरियासा कालं गमीहामि, ता एरिस एवं वायरति, एयं च णाऊणमा धवाईसुं करेह खगदमवि अचूंपि पतिबंध, जहानं इसे मजक सुए संपले तहा क गेहे गेहे जे ११६७ महानिशीपच्छेदम अन्य मुनि टीपरनसागर दीप अनुक्रम [१४८४] ~56~ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक [-1, ------- मूलं [१] +गाथा:||१|| ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं केर भए जे के नईति जे के भविंसु एए नहा गं एरिसे, सेऽवि बंधुक्रमे केवलं तु सकजलद व पडियामहत्तपरिमाणमेव कचि काल भएजावा, ना भो भो जणा! किंचि कर्ज एने कारिमपंधुसंताणणं अतसंसारपोतुस्सपदायगेति, एगो व वाहनिसाणुसमर्थ सययं सुविसुदासए भयह धर्म, धम्म धणं मिद्वे पिए कते परमस्थसही सयमजणमित्त धुपरिवणे, धम्मे पण विशिकरे पम्मे वर्णपुहिकरे थम्मे यर्ण चलकरे धम्मे पर्ण उच्छाहको धम्मे यणं निम्मलजसकित्तीपसाहगे धम्मे पण माहपजणगे धम्मे यणं सठसोक्सप. परदायगे से सो से आराहणिजे से यणं पोसगिने से यण पालणिजे से यणं करणिजे से यणेचरणिने से यणं अद्विजे से यण उपास्सणिजे से यणे कडणिजे से यण भगः | मिजे से य पन्नपणिने से य गं कारपणिने से यणं धुचे सासये अक्सए अाए सपलसोक्सानिही पम्मे से यणं अलमणिने से य णं अउलबलचीरिएसरियसत्तपरकमसंजए पपरे परे हे पिए को दाए सपल सोपसदारिदसतावेगमयसम्मक्खाणलमजरामरणाइअसेसमयनिन्नासगे अणण्णसरिसे सहाए तेलोवेवसामिसाले, ता अलं सहीरायणमणमित्तधरागधगधन्नसुवगहिरण्यरवणाहनिहीकोससंचयाइ सकचाचविनुलपाडोपचंचलाए सुमिर्णिबजालसरिसाए खणविद्वन गराए अधुचाए असासयाए संसारहिवकारिगाए पिरयापचारउभ्याए सोग्गामग्गविग्यदायगाए अगंतदुक्खषयाचगाए रिबीए, मुहावहाउ बेल्प्राउ भो धम्मस्स साहणी सम्मदसणनाणचरिताराहणी नीकत्ताइसामग्गी अणवस्यमहन्निः साणुसमएहिणं संडाखंडहिं तु परिसद अददपोरनिरासम्भचंडाजरामणिसग्निवायसंचुणिए सपजजरभंडएइव अकिंचिको भाउ दियहादियणं इसे तण किसलयरल. गपरिसंठियजलबिदुमिपाकडे निमिसबभतरेणेच लहुं लइ जीविए, अविदत्तस्स परलोगपत्ययणाणं तु निष्कले चेच मणुयजम्मे, ता भो ण समे तणुपतरेवि सिपि पमाए. जत्रो एवं खलु सकालमेच समसतुमित्तमाबेहिं भवेयध, अप्पमत्तेहिं च पंचमहाए धारेयो, तंजहा-कसिणपाणाइवायचिरनी अणलियभासित्तं दंतसोहणमित्तस्सपि अदिन्नस्स बनर्ण मणोक्यकायजोगेहिं तु असंदियाचिराहियणपगुतीपरिपेदियस्स ण परमपवित्तस्स सबकालमेव दुदखभचेरस धारणं पत्थपत्तसंजमोक्गरणेसपि निम्ममत्तया असणाणात परिहगेच राभोयणचाओ उग्गमउपायोसणासुर्ण सुविसुदपिंडग्गहनं संजोयणाइपंचदोसविरहिएणं परिमिएणं काले तिथे पंचसमितिनिसोहणं तिरात्तीगत्तया रियासमिमा- 14 र भाषणामओ अणसणाइतपोपहाणाहाणं मालाइभिक्षुपडिमाउ विचित्ते दवाईअभिग्गहे अहो(हा)ी भूमीसपणे केसलोए निप्पडिकम्मसरीरया सबकालमेर मुनियोगकरणं सहापिपासाहपरीसहाहियासणं दिवाउसम्गविजओ लबालबाचित्तिया, किंबहुना १. अचंतबहे भो बहियो अबीसामनहिं व सिरिमहापुरिसयूटे अहारससीलंगसहस्समारे तरिया भोपाहाहि महासमुहे अविसाईहिं चणं भो भक्खियों गिरासाए वाल्याकवले परिसकेया चमो मिसियसुतिक्रवदारुणकरवालधाराए पायवा यणं भो सहयायपहजालावलीमा रियो णं मो सहमपणकोत्थलगे गमिया चणे भो गंगापवाहपडिसोएणं तोळेया भो साहसतुलाए मंदरगिरि जेयो य गं भो एमागिएहि वेब धीरसाए सरजए पाउरो बले विध. याभो परोप्परविपरीयभमतअहवकोपरिणाममिम्मि उंची(उपी)उलिया गहेयवाणं भो सबलतियणविजया णिम्मलजसकिनी जयपडागा, ना भी मोजणा एयाओ धम्मालाणाओ मुएका गरिय किचिमति, 'पुति नाम भारा तेविय बुमंति बीसमंतेहिं । सीलभरो अबगुकत्रो जावनी अविस्सामी ॥१४ ता उनिमाऊण पेम्म परसारं पुत्तदविणमाईय। णीसंगा अविसाई पपरह सत्तमं धर्म ॥२॥णो धम्मस्स भरमा उकंवण यंत्रणा यववहारो। णिच्छम्मो तो पम्यो मायादीसापरहिओ उ ॥३॥ भूएमुजंगमत्तं मुनि पंचेंदिपत्तमुकोस। मुवि अमाणुसन मणुपने आरिओ देसो ॥४॥ देसे कुलं पहाणं कुले पहाणे य जाइमुकोसा। तीए रुवसमिदी को यवलं पहाणयरं ॥५॥ होड चले चिय जीर्य जीए य पहाणायं तु विनाण। विधाणे सम्म सम्पत्ते सीलसंपत्ती॥६॥ सीले खाइयभावी खाइयभाये य केवलं नाणं । केलिए पडिपुन्ने पने अपरामरो मोक्लोआज यसमारंमि मुह जाइजरामरणसगहियस्मा जीपस्स अस्थि जम्हा नम्हा मोक्सो उबाएओ ॥८॥ आहिंडिऊण मुहरं अर्णतहत्तोर जोणिलक्लेयं । नस्सारणसामग्गी पत्ता मो मो बह नि ॥ तो एत्य जन्न पत्तं तदन्य मोउनम कुणह दुरियं । विव्हजणगिदियमिणं उजाह संसारअणुसंध ॥१०॥ अहिउ भो धम्ममुई अणेगमवकोडिलक्समुचिबुलाई। जइ गाणुहह सम्म नाम पुणरवि राह होही ॥१॥रदेशिय चमोहिजो गाणुढे अणागर्य पत्त्ये। सो भो अन्नं बोहि लहिही कयरेण मोडेणं? ॥२॥ जार पुषजाईसरणपचएवं सा माहणी एलिय नागर तापर्ण गोषमा : पटियुवमसेसपि धुजगे वहणागरजणो य, एवापसरंमि उ गोयमा ! मणिय सुविदियसोपाइपण नेणं गोविंदमाहणेणं-जहाणं चिदिदि पंथिया एवाचन कास. जती वयं मूढे अहोणं कठ्ठमन्नाणं चिन्नेयमभागधिजेहिं खुदसतेहि अविठ्ठपोरगपरन्टोगपचाएहि अनामिणिपिडदिट्टीहि पक्रसबायमोहर्सक्रियमाणसेहि रामदोसोवड्यबुद्धीहि पर ततधम्म, अहो सजीवणेष परिमुसिए एक्यं कालसमर्य, अहो किमेस गं परमप्पा भारियालेणासिर मम गेहे उत्साह से जो सो मिडिओ भीमसएहि सान्न सोचिएस गरिए इस संसतिमिराबहारित्तेण लोगाचभासे मोक्लमग्गसंदरिसणन्य सयमेव पायडीहए. अहो महाइसयन्यपसाहगाउ मा दयाए पायाश्रो, भो भो जग्णयत्तविण्डयन (२९२) १९५८ महानिशीपच्छेदमूत्रaane मुनि दीपरनसागर दीप अनुक्रम [१४८५] ~57~ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक -], ------- मूलं [१] +गाथा:||१२|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूल *. गाथा ||१२|| Le जणदेवपिस्साभित्तसमियादओ मज्म अंगया ! अम्भुवाणारिहा ससुरासुरम्मावि णं जगस्त एसा तुम्ह जणणित्ति, भो भो पुरंदरपभितीउ संदिया! विद्यारह सोमायभारियाओ(ए) जगत्तयागंदाओ कसिणकिविसणिणसीलाओ वायाओ पसनोऽज तुम्ह गुरु जाराहणेकसीलाणं परमपचलं जजणजायणमयणाणा उकम्माभिसंगणं तुरियं चिणिमिणेह पर्य दियाणि परिचयह कोहाइए पाचे चियाहणं अमेझाइजंबालपंकपडिपुषणामुनीकलेबरपत्रि(वे)समोषणतं, इवेचं अणेगाहिरमाजणणेहि महालिएहिं वागरंतं चोहसविजाठागपारगं भो गोयमा ! गोविंदमाहर्ष सोऊण अर्थतं जम्मजरामरणभीरुणो बहले सप्परित सवृत्तम धम्म विमरिसिउ समारदे, तस्य केइ क्यन्ति जहा एस धम्मो पक्रो, अजे मणति जहा एस धम्मो पवरो, जाव णं सजेहिं पमाणीकया गोयमा ! सा जातीसरा माहिणिति, नाहे तीय संपवसायमहिसोलक्खियमसंदिवं संताइदसविहं समणधम्म दिहतहेऊहिं च परमपमय विणीय तेसि तु. तओ य नेते माहणि सबन्नमिति काऊ मुखयकरकमलंजलिगो सम्म पणमिऊण मोचमा तीए मानीए सदि अदीणमणसे बहये नरनारीगणे चेचार्ग मुहियजणमित्त परिचमागिहपिहनसोक्समप्पकालियं निक्सले सासयसोक्खसहाहिलासिणो सुनिच्छियमाणसे समजतेण सबलगुणोहचारिणो चोदसपुत्रधरस्स परिमसीरस गं गुणघस्थपिरस सयासेलि. एवं चने गोयमा! अञ्चनपोरवीरतवसंजमाणुहाणसज्झायमाणाईसुणं असेसकम्मक्लयं काऊण तीए माहणीए समं विद्यस्यमले सिद्धे मोनिंदमाहणादओ मारणारिगणे सोऽत्री महायसेनिमि।१। भव ! कि.पुण काऊ एरिसा सुबहलोही जाया सा मुगहिवनामधिजा माहणी जाए एयाचइयाणं भवसनाणं अर्गतसंसारपोरदुरवस. ननार्ण सहम्मदेतणाइएहिं तु सासयमुहपयाणपुषगमन्सुद्धरणं कनि?, गोयमा! जं पूर्व साभावभावतरंतरहिं गं गीसले आजम्मालोचणं दाऊणं सुदभाषाए जहोवदई पायचिहतं कर्य, पायग्छिनसमसीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे मुरिदमामहिसी जाया तमणुभावेणं, से भयवं! किसे गं माहीजीचे नम्भवतरमि समनी निगंथी अहेसिजे गं मीसाहमालोइनाणं जहोचाई पायच्छितं कयंति, गोयमा जेन से माहणीजीचे सेणं तजम्मेबहुलद्धिसिद्धिजुए महिढीपत्ते सयलगुणाहारभूए उत्तमसीन्दाहिटियतणू महातपस्सी जुगप्पहाण समणे अणगारे गच्छाहिबई अहेति, णो णं समणी, से भयव! ना कयरेणं कम्मविवागणं तेणं गच्छाहिवाणा होऊणं पुणो इत्थितं समनियन्ति, गोयमा ! माथापचएणं, से भय : कयरे से मायापबए जेमं पथणी(जयसंसारेवि सवलपाचोपएणापि बहुजणनिदिए सुरहिबहुदायसंहचुणामसंकरियसमभावपमाणपागनिष्फवं मोयगमाडगे इन सास भपसे सबलसकेसाणमालए सबालमहासणस परमपपिनुनमस्सगं अहिंसालवणसमणधम्मस्स विग्ये समामालानिश्पदारभूये सवलजयसअकिलीकरकालिकलहये. सापावनिहाणे निम्मलस कुलसा दरिसअकजकजलकहमसीसंपणे तेणं गच्छाहिबरमा इत्पीभावे गिनिएति !, गोयमा ! णो नेणं गच्छाहियदत्तठिएर्ण अणुमति माया I कया, सेणं नया पुहाय चकहरे भवितागं परलोगभीरए णिनिषकामभोगे निणमिव परिचाणं सं वारिस चोइस स्यण नप निहीती चोमट्टीसहस्स नरजुईण पत्तीस साहसी ओमणादिवरनारिंद अन्नई गामकोटीओ जाव णं उपखंडमरहबासस्स में देवेंदोनम महारावलपिंछ तीर्य बहपुन्नचोइए णीसंगे पत्राए अ, थोक्कालेणं सयलगुणोहधारी महातबस्सी मुबहरे | जाए, जोग्गे गाऊण सुगुरुहिं गच्छाहिकई समणुष्णाए, तहिं च गोयमा ! तेणं सुदिमुग्गइरहेग जहोवाई समणधम्म समणुद्वेमाणेणं उगाभिग्गहविहारिताए घोरपरीसहोवसम्गाहियासणेणं रागहोसकसायविषजणेणं आगमाणुसारेणं तु विहीए गणपरिचालणेर्ण आजम्मं समणीकपपरिभोगवजणे उकायसमारंभविवजणेणं इंसिपि विशोरालियमेहुणपरिणाम विष्पमुकेणं इहपरलोगासंसाइणियाणमायाइसधाषिप्यमुकेणं णीसलामोयणनिंदणगरहगेणं जहोपापायच्छित्तकरणेणं समस्यापडिबदनेणं सवपमायालंगणविपमुकेगं अणिदइट। अवसेसीकए अगभवसंचिए कम्मरासी, अण्णाभवे नेणं माया कया वप्पचाएन गोयमा ! एस बिचागो, से भय : कयरा उण अनभने नेणं महागुभागणं माया कया जीए से एरिसो | दारुणो विवागो ?, गोयमा ! तस्स गं महागुभागस्स गच्या हिवाणो जीवो अणूणादिए उसइमे भवम्गहने सामननरिंदस्स ग इत्यनाए घृया अहेसि, अनया परिणीयाणतर मओ भत्ता, नजो नरबहणा मणिया-जहा महा! एते तुभ पंचसाए सगामाण, देसु जहिच्छाए अंधार्ग विगलाणं जयंगमाण जणाहाणं बहुपाहिबेयणापरिगयसरीराणं सबसायपरिभूयाणं दारिददुक्सदोहम्गक कियागं जम्मदारिणं समणाणं माहगाणं रिहालियागं च संबंधिबंधनाणं जं जस्स बई मन वा पार्ण वा अच्छायण वा जावन धमधमक्चहिरणं वा कुणसु यसपलसोक्षदायगं संपुण्ण जीवदयंति, जे भयंतरेसुपिण होसि सबलजणमुहाप्पियगारिया सापरिभूया गंधमालतंबोलसमालहगाइजाहिभियभोगोवभोगवत्रिया हयासा दुजम्मजाया गिदढाणामिया रेटा, नाहे गोषमा ! सा नहात्ति पटिचटिकण पणातलीयर्णसुजलगिद्धोयकवोलदेसा उसस्सुमसुमणुघग्घरसरा मणिउमाउन्ना जहाणं ग बाणिमोऽहं पभूधमालपित्तागं, णिगच्छावह लईकडे रएह महई चियं णिदहेमि अत्ताणगं, न किंचि मए जीवमाणीए पापाए, माझं कहिषि कम्मपरिगइरसेणे महापावित्वीचकलसहायF१९६९ महानिशीपच्छेदसूत्र - मुनि दीपजसानार दीप अनुक्रम [१४९७] रुका ~58~ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक [-], -------- मूलं [२] +गाथा:||१२...|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं abit-4 k गाथा ||१२|| ताए एतस्स तु असरिसनामस्स णिम्मलजलकित्तीमारियभुषणोयरस्स कुलस्स संपणं काह, जेण मलिणीभवेजा सधमविकुल अम्हामति, तओ गोषमा चितिय तेग गरयाणा. जहा गं अहो घमोई जस्स अपुत्तस्साविय एरिसा या अहो विवेगं वालियाए अहो बुदी अहो पना अहो रगं अहो कुसकलंकभीरुयत्तर्ण अहो सणे खणे बंदणीया एसा जीए एमहन्ते गुणे ता जाच गं मकर मेहे परिवसे एसा ताच णं महामहंते मम सेए, जहादिहाए संभरियाए संलावियाए पेच सुमीयए मीए, ता अपुत्तस्स म एसा पेच पुत्लताडत्ति चिविऊणं मणिया गोयमा ! सा तेण नरवडणा- जहा णं न एसो कुलकमी जम्हाणं यच्छे ! जं कट्ठारोहण कीरइत्ति, ता तुर्म सीलचारिनं परिवालेमाणी दाणं देमु जहिष्छाए कुणसुस पोसहोचवासाई विसेसेण तु जीवदय, एवं रज तुजाति, ना गं गोयमा ! जणगेर्ण एवं भणिया ठिया सा समप्पिया य कंचुईणं अंतेउस्स्स पायर्ण, एवं परतण कालसमए तो मं कालगए से नरिवे, अन्नया संजुजिऊर्ण महामईहिं णं मंतीहिं को तीए बालाए रायाभिसे ओ. एवं च गोषमा ! दियहे दियहे देह अत्याण, अन्नया नस्य गं बहुवचमहः तद्विगकप्पडिगचउरवियफ्लगमंतिमहतगादपुरिससपसंकुलमत्याणमंडवमझमि सीहासणोवविद्वाए कम्पपरिणामसेणं सरागाडिलासाए परसूए निज्झाए नीए सत्रुतमरुवजोगलावणसिरीसंपओक्नेए भावियजीवाइपयस्ये एगे कुमारवरे, मुणियं च तेण गोयमा कुमारेणं-जहा हा हा मर्म पेच्छिय गया एसा पराई घोरपयारमगंतस्त्वदायगं पायालं.ता अहमोऽहं जस्स णं एरिस पोग्गलसमुदाए तणू रागर्जतं, किं मए जीविएण?, दे सिग्यं करेमि अहं इमस्त गं पापसरीरस्स संथारं, अभुडेमि गं सुदुर पच्छित, जाप णं काऊण सपलसंगपरिचाय समणु मिसयलपावनिदलण अनगारवर्मा, सिदिलीकरेमि णं अणेगमवंतरविद मुनिमोक्स पावर्षणसंपाए, चिनिजी अपरिचयस्स जीवतोगस जस्स एरिसे अणण्ययसे इंदियगामे अहो अदिहपरलोगपचवायया लोगस्स अहो एकजम्माभिणिचिडचित्तया अहो अविष्णायकवाकजया अहो निम्मेरया अहो निप्परिहासया अहो परिचतलजया हा हा हा न जुत्तमम्हाणं खणमपि विलंबिउ एवं एरिसे सुसियारसजपावागमे देसे. हा हा हा पहारिए! अहन्नेणं कम्मदरासी जमहरिब एकए रायकलवालियाए इमेणे कुट्ठपावसरीररूरपरिदसणेणं णय रागाहिलासे, परिचिबाण इमे चिसए ताजो मेहामि पाजति चिंतिऊणं भणियं गोयमा ! तेणं कुमारघरेणं, जहाणं संतमरिसियं णीलार्च तिमिहतिविहेण तिगरणसुदीए सास अत्याणमंदवरावउलपुरजणस्सेति भणिऊणं विणिगो रापटलाओ. पनी य निययावास, तत्य गहिय पत्थपणे, दोसंडीका बासिय | केणावलीत्तरंगमउर्य सुकुमालवन्य परिहिएणं अबफलगे गहिएणं वाहिणहत्येणं मुयमजणहियए इस सरलवित्तलपसंदे, नओ काऊणं तिहुयणेकगुरुणं अरहताणं भगवंताणं जगप्परा धम्मतिथंकराण जनविहिणाभिसंथवर्ग बंदणं, से गं चलचलगई पत्ते गं गोयमा ! पूरं देसतरं से कुमारे जागणे हिरणकरसी नाम राबहानी, वीए राबहानीए धम्मायरिपाण गुणविसिटाणं पत्ति अग्रेसमाणे बिति पयत्ते से कुमारे जहा णं जाय गंगा के मुग पिसि धम्मायरिए मए समुचलदे ताविहई चेष मएवि चिट्ठियां, सो गयाणि कइसपाणि दियहाणि, भयामिण एस परदेशपिक्सायकित्ती परवरिंद, एवं च मंविऊणं जाव णं दिडो राया, कयं च काय, सम्माणियो य परणाहणं, पडिमिया सेमा, अभया लया. पसरेणं पुट्ठो सो कुमारो गोयमा! तेणं नरखइना-जहाभो मोमहासत्ता ! कस्स नामालेकिएएस तुझं हत्यमि चिरायए मुहारयणो'. को वाले सेवियो एवइयं काल, केवा - बमाणए कए वह सामिणत्ति, कुमारणं भणियं-अहानं जस्स नामालकिए गं इसे मुदाय से गं मए सेविए एवइयं कालं, जेणं मे सेविए एवइयं फालं नस्स नामालंकिए गंE इमे मुहारयणे, तबो नरवाणा भणियं-जहाणं कि तस्स सदकरगति, कुमारणं भणिय-नाहं अजिमिएवं तस्स चक्खुकुसीलाहम्मसान सहकरणं समुचारेमि, नओ प्रख्या भ-2 णियं-जहा णं भो भो महासत्त ! केस एसो चनसुकुसीलो भाणे ? कि वा गं अजिमिएहिं तस्सरकरण नो समुचारियए' कुमारेण नणियं-जहाणे चाकसीलोति सहाए, पातोहितो जड कहा(दादरहवं विद्वपवयं होही वो पुण पीसत्यो साहीहामि,जं पुण तस्स असिमिएहिं सदकरणं एवणं ण समुचारीयाए, जहाणं जा कहा(दाह अजिमिएहि वनस्स | पासफुसीलाहम्मसणामागहर्ष कीरए ताणं णस्थितमि दियहे संपत्ती पाणभोयणस्पत्ति, नाहे गोयमा ! परमविम्हिएन रन्ना कोउहतेग लह हमाराविया रसबई, उपविही भोषणर्मर बेराया सह कुमारणं असेसपरियणेणं च. (आगाविय) आहारसखंडखजयवियप्पं जाणाविहमाहारं. एवावसरमि मणियं नरवडणा-जहाणं भो भो महासत! मणसणीसको तुम संपर्य। तस्सणं नसुकुसीलस्सगंसदकरणं, कुमारर्ण मणियं-जहा नरनाह ! मणिहामिमुनुत्तरकालेणं, पारवहणाभभियं-जहाण मोमहासत्ता दाहिनकरबरिएणं करणं संपर्य व भगसु जे सजा एयाए कोडीए संठियाण केई विग्ये हवेजा नाचमम्हवि सुदिपचए संते पुरपुरस्सने तुजसागतीए अत्ताहियं समणुचिट्ठामो, तो गं गोषमा ! मणिय लेण कुमारेणं-जहा af एवं एवं अमुग सहकरणं तस्स चक्कुलीलाहम्मस्त दुईतर्पत्तलक्मणजनजायजन्मस्ससि, ता गोयमा ! जाच णं चेचवर्य समुहाचे से न कुमारपरे तावर्ग जणोहिपवित्ति११७० महानिशीचच्छेदमूर्व -C मुनिटीपरळसागर दीप अनुक्रम [१४९८] ~59~ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक -, ------- मूलं [२] +गाथा:||१४|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||१४|| एणेच समुदासियं तपखणा परचकर्ण रायहाणी, समुबाइए गं सन्नबाबुबए णिसिपकरवालकुंतविष्फुरतचकाइपहरणाडोमचग्गपाणी हहणणरापभीसणा पर्समरसंघहादिण्णपिट्टी जीतकरे जलवलपरकमेण महाबले परवले जोहे. एयाक्सरम्हि य कुमारसचालय निचडिकर्ण विद्वपचए मरणभयाउलताए अमणियकुलकमपरिसपा विपनासे.रिसिमे. कमासात्ताणं सपरिगरे पणड्ढे से गं नरपरिद, एल्यंतरमि विविध गोयमा! नेण कुमारेणं-जहा गं नो सरिस कुलकमेऽम्हागंज पहिरापिजड, जो गं तु पहरिया मए करसारिणे अ. हिंसालक्सणधर्म बियाणमाणेणं कपपाणाइयायपमसाणेणं च, ता किंकरमिज. सागारे भत्तपाणाईर्ण पचरखाने अहवा गं करेमि', जओ बिडे गं ताव मए दिट्ठीमिनकसीलस्स गाममहगेगापि एमहतसविहाणगे, ता संपर्य सीलसावि एवं परिक्खं करेमिति चितिऊर्ग भणिउमादत्ते गं मोयमा से कुमारे जहा पंजा अहयं वायामिनेणापि कुसीलो तागं मा णीहरजाह अक्सयतण खेमेणं एवाए रायहाणीए, जहाणे मनोवाकायतिएणं सापयारेहि सीलकलिओनामा बहेजा ममोपरि इमे सनिसिए दारणे जीतकर पहर. पणिहाए, गमो२ अरहंताणति मणिकर्ण जायण पवरतोरणदुवारेण चलचवलगाई जाउमारतो, जाप पडिकमे थे भूमिमा वाचन हताविर्य कापडिगवेसेणं गच्ड एस नरवत् । सिकाऊणं सरह हण इन मर मरति भणमाक्सित्तकरचालादिपहरणेहिं पचरवलजोहेहि, जाव समुदाइए अन भीसणे जीयतको परबलजोहे अविसअपवाभी- TM बतायमदीपमाणसेर्ण गोषमा भणिय कुमारणं-जहाणं मो मो इद्रपुरिसा ! ममोपरि ह एरिसेणं घोरतामसभावेण अन्तिए, असईपि सहमसायसंचियपुणपणारे एस अहं. से तुम्ह पडिसन अमुगो गरवती, मा पुणो भणियासु जहाणं निलुको अम्हाणं भएणं, ता पहरेजासु जह अस्थि परिवति, जातिय भणे ताप गंतवणं पेष भिए ते सो गोयमा ! परवलजोहे सीलाहिद्वियत्ताए लियसापि अलंपणिजाए तस्स भारतीए, जाए व निबलदेहे. नो यणं घसनि मुछिऊगं मिचिढ़े गिवहिए परगिवढे से कुमार, एयारसरम्ही उगोयमा ! तेण परिवाहमेणं गुहियमायापिणा पुने धीरे सात्याची समत्वे सबलीयनमंने धीरे भीरु वियक्रमणे मुस्से सूरे कायर बटरे चाणक्के बहुपवंचमारिए संधिविग्गहिए निउने छहारे पुरिसे जहाणं भो भो (गिण्देहरियं रायहाणीए बजिवनीलससिसूरकतादीए पवरमगिरवणरासीए हेमन्तुणतषणीयजपूणयसुवक्षभारतक्खाणं,किंबहुणा?. विसुदबहुजचमोनियविरमसारिलक्सपरिपुषस कोसस्स चाउरंगस्स(य)बलम्स, विसेसओ तस्स सुगहिवनामगहस्स पुरिससहिस्स सीलसुदस्स कुमारपरस्सेनिपानिमाणेह जेणाहं नियुजो भवेयं, लाहे नस्वइगो पणामं काऊण गोयमा ! गए ते निउत्नपुरिसे जायणं नुरिय चलचवालजाणकमपवणवेगेहि गं आकहिऊर्ग जचतुरंगमेहिं निजगिरिकदरदेसपारिकाओ खण पत्ले रायहाणि, रिहो व तेहि नामवाहिणभुयाए पाठवेहिं बयणसिरोव्हे विलुपमाणो कुमारो, तस्स य पुरजो सुक(ब)लाभरणणेवत्या दसदिसासु उजायमाणी जयजयसदमंगलमूहला स्वहरणवानहोभयकरकमलपिसपंजली देवया, च ददन विम्वभूयमगे लिप्पकम्मणिम्मपिए(ठिए), एवापसरहिउ गोयमा! सहरिसरामंचचपलायसराए णमो अरहताति समुचरिऊण मणिरे गयमडियाए परयणदेवयाए से कुमारे-तंजहा 'जो दल मुद्विपहरेहि मंदर घरद करयले यमुहं । सहोदहीणवि जल आयरिसह एकघोडेण ॥१३॥ टाले सग्गाउ हरि कुणा सिवं तिहुयणसपि सणेणं । अक्वडियसीला कुत्तोऽविण सो पहुपेजा ॥४॥ अहवा सोचिय जाजोगणिनए तिहुयणस्सविस बंदो। पुरिसो व महिलिया वा कुमार जो न खंडए सीलं ॥५॥ परमपवितं सप्पुरिससेवियं सयलपावनिम्महण। सबुतमसोक्सनिहिं सत्तरसपिई जयह सील ॥ ६॥ विभागिऊर्ण गोषमा! मत्ति मुका कुमारस्सोपरि कुसुमबुद्धि पवयणदेवयाए, पुणोऽपि भणिउमादत्ता देण्या-जहा 'देवस्स देति दोसे पर्वचिया अत्तमो सकस्मेहिणणेसु ठचिंतापं सुहाई मुदाए जोएंति॥१७॥मायभावपत्ती समदरिसी सबलोयपीसासो । निश्सेनयपरियनं दिशो न करे सं दोए ॥८॥ता पुज्झिाऊण सबुत्तमं जगा सीलगुणमहिवदीयं । तामसभा चिया कुमारवयपंकयं णमह ॥१९॥ सि भणिऊणं असणं गया देवया इति, ने उहापुरिसे लहू साहियं तेहिं नरवहणो, तओ आगओ बहुविकल्पकालोलमालाहिं गं आऊरिजमाणहिययसागरो हरिसविसायक्सेहिं भीउड (ह)या नत्यचकियहियो सणियं गुज्झामुरंगखडकियादारे पंतसागतो महया कोउहलेणं, कुमारदसणुवंटिओ य तमुरेस, विठ्ठो य नेणं सो सुगहिवणामधेजो महायसो महा सतो महाणुनापी कुमारमहरिसी, अपश्चिाइमहोहीपचएणं साहेमाणो संखाइयाइभचाहय एक्खमुह सम्मसाइलंभ संसारसहावं कम्मचहितीविमोक्समहिसालसणमणगारे वय. बंध परादीणं सहगिसमो सोहम्माहिवाहपरिउपरिपंदुरायचत्तो, नाहे य नमविद्वपुरमच्छेग बम पडिबुडो सपरिणाहो पाहओ य गोषमा! सोराया पाचकाहिबईवि, एत्वंतरमि पहयमुस्सरगंभीरगहीरइंदुभिनियोसपुरे समुह चाउशिहदेवनिकाएणं, संजडा'कम्यगंठिमुसभूरण, जय परमेट्टिमहायस। जय जय जयाहि चारिसदसणणाणसमणिय: ॥२०॥ सचिव जणणी जगे एका, पंदणीया सगे २ । जीसे मंदरगिरिगाओ, उपरे पुण्डो तुम महामुणि॥२१॥ ति मणिऊर्ण विमुंचमाणे सुरमिकुसुमवृद्धि भत्तिमरनिम्मरे विख्यकरकमलं. १७१ महानिधियोदसूत्र, जन्म -< अनि दीपरत्नसागर दीप अनुक्रम [१५०० ~60~ Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक [-], ------- मूलं [२] +गाथा:||२१|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं महेलि तमालाराष्ट्र रायकलवालियापारिवसनालासोहि गीलतालोइय ओ में जा समणीजमतो परिक्षामाणं तुम्हं तवृत्तमाथिकोहामारिया तेणं महामुभिमा जहाडासपजहोराडकमा था ||२१|| जलीउनि निदिए ससरीसरे देशसंपे गोयमा! कुमारस्स चलणारपिंदे, पणचियाओ देवसुंदरीओ, पुणो पुणो भिसं पुणिय गर्मसिय चिरं पशवासिऊणं सस्थाणेस गए देवनिवडे नि NRI से भय : कई पुण एरिसे सुलभवोही जाए महायसे सुगदियणामधेने से गं कुमारमहरिसी ?, गोयमा ! सेणं समणभावहिए अनजम्ममि बायादंडे पडले आहेसि संनिमित्त जापजीव मगाए गुरुवएसेणं साधारिए, अचंच-तिन्नि महापाबहाणे संजयान तंजहा-आऊ तेक मेहणे, एते व सोपाएहिं परिवजिए. तेणं तु से एरिसे मुलभवोही जाए.अ. हाम्नया ण गोयमा! बसीसगणपरिगए सेणं कुमारमहरिसी परिवाए सम्मेयसेलसिहरे बेहचापनिमित्तेणं, कालकमेणं तीए चेष पचणीए(गए)जस्य णं से रायकलवालियापरिदेवास. कुसीले, जाणावियं व रायउले, आगजओ य पंदणपत्तियाए सो इत्थीनरिंदो उमाणपरमि, कुमारमहरिसिगो पणामपुर्वच उपचिट्ठो सपरिकरी जहोइए भूमिभागे, मुणिणावि पचंघेणं कया देसणातच सोऊण धम्मकहापसाणे उपहिजो सपरिवग्मो मीसंगचाए, पचाओ गोयमा! सो इत्थीनरिंदो, एवं च अपंतपोरवीरुगककरतवसंजमामुदाणकिरियाभिरयाण ससिपि अपटिकम्मसरीराणं अपतिपदविहारत्ताए अचंतणिपिहाणं संसारिए चकहस्परिवाइइदिवसमुदयसरीरसोक्पेस गोयमा! पबह कोई कालो जार में पत्ते सम्मेयसेलसि. हरम्भासं, तो भणिया गोषमा ! तेण महरिसिंणा रायकुलमालियाणरिदसमणी जहा णं दुकरकारिंगे ! सिग्ध अगुदयमाणसा सबभाषभायंतरेहि सुविसुर पयाहि ण णीसातमालोयणं, आदवेयवा य संपर्य सोहि अन्देहि देहचावकरगेश्वरलक्सेहिणीसवालोइयनिंदियगरहिवजहुचसुदासयजहोवाइकयपच्छिन्नवियसतेहिं च कुससदिहा संव्हणत्ति, नओ गं जहुत्तविहीए सबमालोइयं नीए रायकुलबालियाणदिसमणीए जाच गं संभारिया ते महामुणिणा जहा गं जह में नया रायस्थाणमुबबिहाए गए गारत्वमामि सरावाहिसालासाए संचिक्सिओ अहेसि समालोएहि एकरकारिए! जेणं तुम्हें सबुत्तमविसोही हबइ, वओगं वीए मणमा परिवपिऊण आपबलासयनिवडीनिकेवपावित्थीसभावत्ताएमा । नक्सक्सीसत्ति अमुगरस धूया समणीणमंतो परिवसमाणी भनिहामिनि चितिऊर्ण गोयमा ! भणिय तीए अभागधिनाए-जहा गं भगवं! प में तम एरिसेणं अद्वेणं सरागाए दिडीए निझाइओ जओ णं अयं तं अहिलोजा, किंतु जारिसे ण तुम्मे सबुत्तमरूवतारुण्याजोत्रणलावन्नतिसोग्गकलाकाचविष्णाणणाणाइसयाइगुणोहविच्छइडमंडिए होत्या | विसएवं निरहिलासे सुधिरे ता किमेव तहति किवा को तहत्तित्ति तुझ पमाणपरितोलणत्यं सरागाहिलासं चास पउत्ता, गोणं चामिलसिउकामाए, अहना इणमेख बेपाली इयं भवउ किमिस्थ दोसति, मज्जामवि गुणापहवं भवेजा, किं नित्यं गंतूण मायाकवडेग?, सुवष्णसय केज पपण्डे, ताहे य प अबंतगस्यसंवेगमावन्नेणं विदिहसंसारचलित्वीसभाषरस गति चितिऊर्ण भगिय मुगिधरणं-जहाणं चिदिशिरत्यु पावित्वीचलस्समावस्स जे गंतु पेच्छ २ एहमेत्ताणुकालसमएणं केरिसा नियही पउत्तत्ति, अहो साहित्यीण चालचालचलबचलमिट्टी(न)एगट्ठमाणसा खणमेगमनि जम्मजायार्ण अहो सयलाकजभंडाहलियाण अहो सयलायसकिनीदिकराणं अहो पाचकम्मामिणिविहायसायागं अहो अभीयाणं परलोगगमगंधयारपोरदारुणदुत्वकंदकडाइसामलिकुमीपागाइदुरहियासागं, एवं च बहुं मणसा पस्तिप्पिकण अणुयत्तगाविरहियधम्मिकरसियमुपसंतवयमेणं पसंतमहुसलरेहि र्ण धम्मदेसगापुरगेणं भणिया कुमारण रायकुलबालियानरिंदसमणी गोयमा ! तेणं मुणिवरेणं जहाणं डुकरकारिए ! मा एरिसेणं मायापर्वघेणं अर्थतपोरवीगकहकर नवसंजमसमायमाणाईहि समभिए निरणुबंथि पुग्णपन्भारे गिफले कुगन, किचि एरिसेम माघार्टमेणं अतसंसारदायगेगं पोयणे, नीसंकमालोइत्ताणं णीसतमत्ता कर, अहबा अंधयारणहिमाणहमिय धनि(मि)यसुवण्यामिव एकाए पुया(फुका)एजहा तहा णिरत्यय होही तुजार्य बालुपावणभिक्खाभूमीसेनाबावीसपरीसहोवसम्माहियासणाइए फायकिलेसेसि, तो भणियं तीए भग्गलक्षणाए. जहा भग! कितुम्हेहि सदिउम्मेण उडनिवड मिसेसेणं आलोषणं दाउमाणेहि, पीसक पत्तिया, णो णं मए तुम तकाल अभिलसिउका. माए सरागाहिलासाए पासूए निझाउत्ति, किंतु तुजा परिमाणतोलणवं निज्वाइजोति भणमाणी व निहणं गया, कम्मपरिणाइक्सेणं समजिनाबानिकाइयं उकोसहि स्थी. बेथ कर्म गोयमा ! सा राबकुलबालियान रिदसमणिति, तओ व ससीसगणे गोयमा से मं महच्छेरगभूए जा सयंबुद्धकुमारमहरिसीए विहीए सैलिहिऊग अताण मास पाओवगमण सम्मेयसेलसिहरंमि अंतगओं केवलित्साए सीसगणसमणिए परिनिडेति।३।सा उण रायकुलवालियाणदिसमणी गोयमा ! तेण मायासातभावदोसे उतरमा विकमारी वाहः पत्ताए नउलीकण किंकरीदेवेस, तो चुया समानी पुणो २ उपवनंती बावजनी आहिंडिया माणुसतिरिच्छेयं सयलदोहम्मदुस्सदारिपरिगया सबलीयपरिभ्या सकम्मलमभषमाणी गोयमा जाप कहकहषि कम्माणं खजोषसमेणं बहुमवंतरेसुतं आयरियपयं पाविऊण निरइयारसामनपरिवालणेणं सतत्यामेसं च सापमायामणविष्पमुकेणे त उज. मिऊण निदइटावसेसीकयमचकुरे नहानि गोयमा ! जा सा सरागा चावू णालोदया नया नकम्मदोसेनं माहणियीत्ताए, परिनिटे से रायकुलमालियाणरिदसमणीजीये।४ासे मयम् ! जे केई सामण्णमम्मुडेजा से एकाइ जावणं सत्तट्ठभयंतरेम नियमेण सिज्झिजाता किमेयं अगाहियं लम्समवंतस्परियाणति', गोषमा! जे गं कई निस्वारे (२९३) A२१७२ महानिशीपच्छवमर्च, Maidunic मुनि दीपरासागर दीप अनुक्रम [१५०९] ~61~ Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [५] गाथा ||२२|| दीप अनुक्रम [ture] "महानिशीथ” छेदसूत्र -६ (मूलं) उद्देशक [-1. - अध्ययन [८/चूलिका-२], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.... ...आगमसूत्र ........... मूलं [५] + गाथाः ||२२|| "महानिशीथ" मूलं ~62 ~ [३९], छेदसूत्र [६] सामने निवाला से गं नियमेणं एकाइ जाय णं अट्टमयंतरेस सिझे जे उण सहमे बापरे वा केई मायासाले वा आउकायपरिभोगे वा तेडकायपरिभोगे वा मेणकले वा अपरे या केई आणाभंगे काऊ सामण्णमइयरेजा से गं जं लक्खेण भवम्गणेणं सिज्झे तं महद लाभे, जो में सामनमयरिता बोहिपि लभेला दुक्खेणं, एसा सा गोयमा तेर्ण माहणी जीवेणं माया कया जीए व एरहमेसाएविएरिसे पावे दारुणे विवागिन्ति 1५1 से भयवं किं तीए महीयारीए तेहि से तंदुल पर्याच्छिए कि वा साथि य महयरी तत्येव तेसि(हिं)समं असेसकम्मक्लयं काऊ परिनिबुडा जत्ति, गोयमा तीए महियारीए तरस णं तंदुतमागस्साए तीए माहणीए धूयत्ति काऊ गच्छमाणी अवंतराव हरिया सासुजसिरी, जहा गं मज्झं गोरस परिभोत्तूर्ण कहिं गच्छसि संपयन्ति?, आह वचामो गोडलं, जणंच ज तुम मज्झं विणीया हवेला वाहेऽहं तु अहिच्छाए कालिये बहु अणुदियहं पायसं पच्छामि जाव णं एवं भणिया ताव णं गया सा सुनसरी तीए महयरीए सर्दि तेहिपि परलोमाहाणेवसाय खितमासेहिं न संभरियाता गोविं दमाहाई एवं तु जहा भणियं मयहरीए तहा चैव तस्स पयगुलपायसं पच्छे अहलया कालकमेण गोयमा यो दुबालससंपच्छारिए महारो दारुणे दुखे जाए य णं रिद्धिस्थिमियसमिद्धे सोऽवि जगवाए अहमया पुण वीसं अणग्येयाणं पचरससिसूरकंसाईणं मणिरयणाणं पेत्तृण सदेसममणनिमित्तेनं दीद्वाणपरिखिन्न अंगयी पपद्विवशे णं तत्येव गोउले भविश्यानियोगेन आगए अनुबरियनामधे पानमती सुजसिये, दिहा य तेणं सा कमगा जाव गं परितुलियसयलतियणणणारी तं सुजसिरिं पासिय चलाए इंदियाणं रम्याए किंवा फोनमार्ण अनंतदुक्खदायमाणं सियाणं निणिलियासहियणस्स गोयरगएवं मयरकेणो, मणिया में गोयमा सा सुजसिरी ते महापापकम्मे सुजसियेर्ण जहां णं हे हे लगे जड़ से इमे तुम सन्तिए जमीन समपन्नंति सा तु अयं तं परिणमि, अन्नंच करेमि सच मे मदरिति तुज्झमपि पडावेम पलसयमणगं सुवन्नस्स. तो गच्छ अइरेणेव साहस मायावित्ताणं तत्र गोयमा जान पडतुडा सा मुज्जसिरी तीए महयरीए एयवइपरं पकड लावणं तस्वणमागतूण भणिओ सो महवरीए-जहा भो भो पर्यसेहि गं जंते मज्झ घ्याए सुपए किए, ताहे गोयमा पर्यसिए तेण पवरमणी, तओ मणियं महयरीए जहा तं सुवास दाएहि, किमेएहिं डिमरमणगेहि चिट्टगेहिं ?, ताहे भणियं सुजसियेणं-जहां एहि बलामो नगरे दंसेमि में जहं तुज्यामिमार्ण पंचगाणं महत्य, जो पभाए गं नगरं पर्वसिय समिसूरकेतपरमणीयते नरवइगो, गरवणावि सदाविऊण भणिए पारिक्ली जहा इमाणं परममणी करे तोहिं तु न सकिरे तेर्सि मुडं काढणं, तामणिया नरवणा जहा णं भो भो माणिकखंडिया मत्थि के इत्य जे में एएस मुखं करे तो गिन्ह में इस फोडीओ दक्षिणजावस्त, सुजसवेण भणियं महाराजी पसायं करेति णपरं इमो आसणपश्यसमिहिए जम्हाणं गोडलं तत्थ एवं जोयणं जान गोणी गोधरभूमी से अफरमरं तं विमुंचति तो नरवणा भणियं जड़ा एवं एवं गोयमा समदरिमकरभर गोउ काऊ तेथे अणुचरियनामधे जेण परिणीया सा निययया मुलसिरी सुजसवेनं जाया परोपरं तेसिपी जान नेहापुरागरंजिय माणसे गर्मिति का किषितामपर्ण मिहागए सानो परिनियले हाहाकंद करेमाणी पुडा सुजसवेणं सुजसरी जहा पिए एवं पुर्व मिसायर जुबलद किये या गया सि, तो तीए मणियं जहा गणु मज्जा सामिनी एरिसी महया मक्लन्नपानं पत्तमरणं करियं तव माणसा उत्तमंगेणं चलो पणमयंतीता मए अ एएस परिक्षणं सा संमरियन्ति, ताहे पुणोषि पुट्ठा सा पाया तेथे जहा णं पिए का उ तुझं सामिणी जहेसि ? तो गोमा ती समजुगारविपुलंगगिराए साहियं सर्वपि नियतं तस्सेति, ताहे विन्यार्य तेण महापावकम्मेण जहा गं निच्छर्य एसा सा ममंगया सुलसिरी म अण्णाय महिलाए एरिसा पतीदाण सोहासमुदयसरी भवेजति चिति भणिउमाडतो- संजा 'एरिसकम्मरयाचं जं न पड़े पति जे गुण इमे) चिंते सोचि जहिल्यीउ चिजो मे कत्य सुझर्स ? ॥ २२ ॥ ति भणि चिंति पयतो सो महाचाचपारी जहा गं किं चिंदामि अयं सहत्यहिं लिंग किंवा गगरिया पक्त्विविद चुप नमो जगतपापायसमुद बु? किंवा तूर्ण लोहाराला लोटमिव पणाहि पुणावेभिरमसा? किंवा फालावेऊन मोमज्झीए निक्करपतेहि असाणगं पुणो संभरामि तो कपितय सोलोससजियावारस्स ? किंवा गं सहत्येनं छिंदानि उत्तमं ? किं माणं पविसामि मयरह? किंवा उमयले महोमुह विधायिमत्ता हा पामि जल, किंबहुना, रिहेमि कहिं अत्ताणगंति चितिऊन जाय गं मसाणभूमीए गोयमा चिरया महती थिई, ताहे लइ निजाम साहियं च सलीमस्स-जहा में मए एरिस एरिसं कम्म समायरिति भणिउ आरूदो चियाए, जब मविया नियोगेण तारिसद चुन्नजोगाणुस ते सडेवि दानिका ११७३ महानिशीथच्छेद अ भुति दीपरत्नसागर Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) प्रत सूत्रांक [६] गाथा ||23|| दीप अनुक्रम [१५१७] "महानिशीथ” छेदसूत्र -६ (मूलं) उद्देशक [-1. - अध्ययन [८/चूलिका-२], मूलं [६] + गाथा ||२|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.... ... आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं ........... पूर्वजमावि अगपयारेहिं तहाचि णं ण पर्यालिए सिही, तत्र य णं चिडिकारेणोवहओ सयललोगवयहिं जहा मो मो पिच्छ पिच्छ हुयासणंपिण पहले पावकम्यकारिस्वति भ पिऊन निदासिए से बेऽनि गोउलाओ एवावसरंभि अन्नासन्नसन्निवेसाओ जगए गं मत्तपाणं महाय तेणेव मम्मे उजानामिमुहे मुणीच संघाडगे च दणं अणुमयोगं गए सेबेऽवि पावडे, पत्ते य उज्जाणं जाणं पेच्छति सलगुणोहचारि चडनामसमयिं बहुलीसगणपरिकिन्नं देविंदनादिदिजमाणायारविंदं सुमहचनामधिज्ञ जगागदं नाम अणगारं तं च दण चिंतियं तेहिं जहां णं दे मग्गामि विसोहिषयं एस महायसेत्ति, चिंतिऊणं तओ पणामपुचणं उबविद्वे से जहोइए भूमिभागे पुरओ गणहरस्स, भणिओ प सुजसिबो तेण गगहारिणा-जहानं मी मी देवामुपिया जी समालोएताल करेसु सिग्य असेसपाविकम्मनिवणं पायछि एसा उग आवसत्ता एयाए पायच्छितं गत्व जाणो पसूया, ताहे गोयमा सुमहतपरममहासंवेगगाए से णं सुजसिने, आजम्मओ नीललोयणं पयच्छिऊणं जहोवइ पोरं सुदुकरं महंत पायच्छिन अणुचरितार्थ तत्र अर्थतविद्धपरिणामी सामण्णमन्मुकिगं छबी संवरे तेरस पराईदिए अर्थ तपोरवी करतयसंजम समपरिगं जाणं एगदुतिचपंचम्मासिएहिं लमहि स्वयेऊनं निष्पटिकम्मसरीरत्ताए अपमाययाए सत्यामेसु अणवरथमन्निसाणुसमयं सययं सज्झायाणाई में निहिऊणं सेसम्मम करणे सवगसेटीए अंतगढ़केचली जाए सिद्धे ६ से भय से वारिस महापापकर्म समायरिऊन तहावी कह एरिसे से सुजसने लहुँ वे काले परिनिदेसि ? गोयमा तेषं जारिसभावट्टिएणं आलोयणं पिइन्नं जारिससंवेगगएवं तं वारिस घोरदुर महत पायच्छितं समडियं जारि सुदिवसानं तं नारि अर्थ तपोवीरुमकरतपसं जम किरिया बहाणेणं अखंडिय अथिराहिये मूगुत्तरगुणे परिपालयते निरइयार सामनं निशाहिये जारिणं सामरियमुके चिट्टियरागदोसमोहमिच्छतमयभयगारयेणं मज्जात्यभावेण अदीनमा बालसवाले काउण पाओगममणसणं पवित्र तारिणं एवहबसाए केवल से एगे सिझेजा जहणं कवाई परकयकम्मकर्म भवेजा ताणं ससिंपि भङ्गसत्ताणं असेसम्म खयं काऊसिज्झिना, गवरं परकपकम्यादी कस्स संकजा, जेण समजिय तं देणं समनुभविपति गोयमा जया णं निरुद्ध जोगे हा नया गं असेपि कम्मारास अकालविभागेनेव गिवे, सुसंडासेसासवदारे जीमनिरोणं तु कम्मलए दिण उण एजओनं काले तु कम् काले तु पबंध एवं बंधे खवे एवं गोयम कालतगं ॥ २३ ॥ निरुदेहिं तु जोगेहि ए कम्पं बंधा पोराणं तु पहीएजा गाभावमेव ॥ २४॥ एवं कम्म विदे एवं कालमुद्दिले अणाइकाले जीवे व तहवि कम्मं ण लिइए ॥५॥ खजसमे कम्माण, जया विरई समुच्छलेका खेतं भयं नायं दयं संपप्य जाय तया ॥ ६ ॥ अप्पमादी ववे कम्म, जे जीवे तं कोटिं पड़े जो पमादी पुणो कालकम् णिधिया ॥ ७॥ निकसेज पाईए उ सात विसाए नम्हा का लेनन, भावं संपप गोयमा, महमं अहरा कम् खर्य करे ॥ २८ ॥ से भय सासरी कहिं समुवा, गोषमा खट्टीए गरीए से भयवं केणं अद्वेगं ? गोयमा नीए पडिपुचाणं साइगाणं परं मासा गयाणं इणमो विचिन्तियं जहां से गम्भं पडावेमिसि एवमवसमाणी चैव बाल पसूया, पसूयमेत्ता य तक्त्रणं निणं गया. एवं अगं गोयमा समुनसिरी उड गति से भय से बाल सवर्ण मया सासुजसरी ने जीविये किंवा बत्ति गोयमा जीवि से भय क गोषमा मेलारिहि जराजरजसवालहरुहि स्वादुगंधावितिमा विमाणं दणं कुलालचकस्सोवरि का साणं समुदिसिउमार साय दिट्ठ कुलाले, तापाइ सरणि कुलालो, सालोथो, तओ कारुव्यहियएवं जपुत्तस्स में पुत्ती एस मां होहिति वियपि कुलाले समय से बालगोगोमा सदवाए गए सम्भा बणे परिवालि माणुसीकार से बालगे, कयं च नाम कुलाले लोगाणु वित्तीए सजणगाहिहावेगं जहा सुखी, अक्षया कालक्रमेण गोयमा मुसा जोगदेखणा पि बुद्धे सड़े पत्रइए य जायणं परमसदासंवेगवेरामए अर्थात पोरीमादुर महाकायकेल फरेंद्र संजमजणंण पाणे, अजयादोसे तु सत्य अजम तो तस गुरु भणियं जहा भो भो महासत्त तए अचाणदोसओ संजमजयर्ण अपानमार्ण महंते काय केले समाते, वजह निवालोयण दाऊण पाय काहिि सबमे निष्फल होही, ना जाब गुरूहि चोइए ताव से अगरवालोयणं पयच्छे सेऽवि णं गुरु तस्स नहीं पायच्छिते पयाइ जहा संजयजयर्ण भूवर्ग नेणेच अहचिताप समबरोज्झाणाइविप्यमुळे हसाये निरंतरं परिहरेजा, अनया में गोयमा से पाचमती जे के छमदसमदुबालसदमासमास जावनम्मासलपणाइए जय ना सुमहं कायकेला गए पच्छिले से तहत समगुडे, जे य उण एगतसंजम किरियागं जयमान मनोवहकायजोगे सासव निरोहे सज्झायज्झाणावरसगाइए जसे पाचकम्मरासिनिदहणे पायच्छिले से णं पमाए अनमने जवले असद सिटिले जाव में किल किमित्य दुकांति का न तहा समजुडे, अन्नया णं गोयमा अहाउयं परिवालेऊ से सुस १९७४ महानिछेद अन मुति दीपसागर ~63~ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३९) “महानिशीथ” - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [८/चूलिका-२], -------- उद्देशक -, ------- मूलं [७] +गाथा:||२९|| ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं सरकारका गाथा मरिक सोहम्मे कणे ईदसामाणिए महिडडी देवे समुप्पन्ने, तोपि चविऊर्ण इह वासुदेवो होऊण सत्तमपुदवीए समुप्पन्ने, तो उबहे समाणे महाकाए हत्थी होकण मेहणासत्तमाणसे मरिऊर्ण अगंतवणस्सतीए गयति, एसणं गोयमा! से सुसटे जेणे 'आलोपनिवियगरहिए णं कयपायच्छितेचि भपित्ताणं । जय अयाणमाणे भमिही सहरं तु संसारे ॥२९॥ से भय ! कयरा उण तेणं जयणा व विन्नाया जओ गं तं तारिसं दुसरं कायकेस काऊगंपितहाविणं भमिहिइ सहरंतु संसारे?, गोयमा! जयणा णाम अहारसण्ट सीलंगसहस्साणं संपुन्नाणं असंडियविरहिया जावजीचमहन्निसाणुसमयं धारणं कसिगसंजमकिरिब अणुमति, न च लेण न चिन्नायंति, नेणं तु से जहन्ने ममिहिड मुहरं तु संसारे, से भयवं! के अढणं तेच तेणं च विन्नायति'. गोयमा तेणं जावइए कायकेसे कर ताइयस अहभागेगेवजह से बाहिरवाणगं वियजेस्तोता सिद्धीएमगुपयेतो, परंतु तेण बाहिसाणगे परिभुने, बाहिरवानगपरिमोइस ण गोयमा! बहूएनिकायकेसे गिरत्यगे हवेजा, जओ गं गोयमा ! आऊ तेऊ मेहुणे एए नजोऽपि महापावट्ठाणे अचोहिदायगे एगतेणं विवजियो एगतेणं ग समायरियो सुसंजएहिति, एतेन अटेणं,तं च ते ण विष्णायन्ति, से भया ! केणं अहेर्ण आऊतेऊमेहुत्ति अयोहिदायगे समक्खाए?. गोयमा! सबमवि उकायममारने महापाबहाणे, कितु आउनेटकायसमारंभे गं अगंतसत्तोवधाए, मेहुणासेरणेणं तु संखेनासंसेजसत्तोषपाए पणरागदोममोहाणुगए एगंतअप्पसत्यवसायनमेव, जन्हा एवं तम्हा उगोचमा! एतेसि समारंभासेषणपरिभोगादिसु बहमाणे पाणी पडममहायमेवण धारेजा, तपमा अवसेसमहायजमाणुहागरस अभावमेव, जम्हा एवं तम्हा सबहा चिराहिए सामग्ण, जो एवं ओगं पविनियसम्मम्मपणासित्तेणेव गोयमा ! – किंपि कम्न निविजा जेगं तु नस्यतिरियकुमाणुसेगु अर्णनसुतो पुगो २ धम्मोनि अस्वराई सिमिणेऽविग अलममाणे परिभमेजा, एएणं अडेणं आऊतेऊमेहुणे अबोहिदायगे गोयमा ! समक्खायत्ति, से भयवं! किं उदाहमयसमदुवालसदमासमासजावगंडमासखवणाईणं अचंतघोरवीराकहसुकरे संजमजयणावियले सुमहंतेऽपि उकायकेसे कए गिरत्यगे हवेना?, गोयमा ! णं गिरत्थगे हवेजा,से भय के अद्वे', गोयमा ! जओगं सम्म हिसमोणादोऽपि संजमजयनापियले असामनिजराए सोहम्मकापाविसु वयंति, तमोऽपि मोगलएणं चुए समाणे तिरियादिसु संसारमणुसरेना, नहा य दुग्गंधामिज्झविस्तीणवारपित्तामसिभपडिहत्ये बसाजयुमपूपबुदिडणियिलिपिले गहिरचिखते दुईसणिनीमातिमिसंधयारए गंतुधियनिजगम्भपोसजन्मजरामरणाईअगसारीरमणोसमुत्यसघोरदारुगदुक्खागमेव भायणं भवति, ण उण संजमजवणाए निणा जम्मजरामरणाइएहिं पोरपयंदमहाददासमक्खाणं मिहनगमेगतियमचंतियं भवेजा, एनेणं संजमजयगापियले सुमहतऽवी कायकेसे पकए गोयमा! निस्त्यो भवेजा, से भवयं किंसंजमजवणं समु(मपेहमागे समणुषालेमाणे समणुडेमाणे अहरेणं जम्मजरामरणादीन चिमुचेना, मोयमा! अत्येगे जे ग अहरेणं चिमुचेजा अाधेगे जेणं अाइरेग चिमुचेना.से भव ! केणं अडेणं एवं पुच्चा जहा पे जत्थेगे जे ण णो अरेणं विमुचेजा अत्यमे जे गं अहरेणं विमुजेला?, गोयमा! अस्थंगे जेण किंचि उइंसिममा अत्याणगं अणवलापमाणे सरागसता संजमजयण समगुडे जे एवंचि सेणं चिरेणं जम्मजरामरणाइजणेगसंसारिवदुक्लार्ण चिमुचेजा, अत्यगे जेणं णिम्मूलुदियसासाहे निरारंभपरिगाहे निम्ममे निरहंकारे नवमयरागदोसमोहमियत्तकसायमलकसके सामानभातरेहिं गं सुविसुवासए अदीणमाणसे एगने] निजरापही परमसदासवेगवेगगए चिमुकासेसमयमारवविचित्तागपमायालंधणे जायण निजियघोरपरीसहोवसग्गे बवगयरोन्झाणे असेसम्मक्सयहाए जनसंजमजयगंसमणुपेहिना अनुपालनासमणुपालेनाजाय गं समणद्वेजा जेणं एवंचिहे से आहरेणं जम्मजरामरणाइअगसंसारियायुदुषिमोक्सदुक्खजालसणं पिमुबेजा, एतेग अद्वेणं एवं पुष्पा -जहा गं गोयमा अत्यने नाणी आरेण विमुचेना अत्यगे जे वर्ग अरेणेव विमुचेना, से भय ! जम्मजरामरणाइजणेगसंसारिखदुनखजासनिमुके समाणे जंतु कहि परियोजा गोषमा जत्यनजरानमन बाहिओणोजयसमसाणसंतानुगकलिकाहदारिददाइपरिकसंग इपिओगो.किंबहणा?.एगतेणं अश्वपक्सासयनिस्वारसोपर मोद परिवसेजति बेमि। आमहानिसीहस्स चित्रया लिया.दासमत महानिसीहसुवरसंधाॐनमो चउपसाए तिथंकरा ॐनमो नित्यम्स नमो सुपदेवयाए भगवतीएॐनमो सुयकेचली नमोसासाहणं नमो सासिवाणं नमो भगवओ अरहो सिजाउ मे भगवई महद महानिना बहरए मजअबारए जयवाइरए मएगाइरए वदनम्नअगा। इरएवामगाइरए जपए पहजपए जयअननए अपर अजइए सपअअजन, उपचारो चउत्थमनेणं साहिजा एसा विज्ञा. सागर णात्यजगनजारगमा होड, उपदछ । अअपनअन गणस या अणउनणाए एसासन वारा परिजवेश.णिस्वारगपारगो होड.जिणकापसम(संप)तीए विजाए अभिमंतिऊग(विग्धषिणायगा आराहनि, सूरे संगामे पपिसती अपराजिमी होत. जिणकापसमतीए विजा अनिमंतिकमणी महाका बत्तारि सहस्साई पंचसयाओनय पत्तारित एवं च सिलीगापिय महानिसीहमि पायए ॥३॥ मुनि दीपरतसागर अत्र अष्टम अध्ययन/(चूलिका-२) समाप्त Bामितीय मज्जा ||२९|| दीप अनुक्रम [१५२६] RDNAGAR मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र ३९) “महानिशीथ” परिसमाप्त: ~64M Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः [ 39 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च “महानिशीथ-छेदसूत्र” [मूलं एव] | (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: _ "महानिशीथ” मूलं नामेण परिसमाप्त: Remember it's a Net Publications of jain_e_library's' ~65M