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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [६], ------------ उद्देशक [-], ---------- मूलं [२...] +गाथा:||३८१|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
ाथा
||३८१||
(डालीरितो) नहोणासंतो धार्यतो, पलायंतो दिसोदिसि ॥१॥ उच्छतं पच्छात, हीलणं बहुविहं तहि सहतो घाममलईतो, सणनिमिसपि कत्थई ॥२॥ कहकहवि दुपसंतत्तो, गुबहकारोहिं तं जलं अवगाहंतो गओ उवार, पडमिणीसंदसंपर्ण ॥३॥छि महथा किसेणं, लर्बु ता तत्व पेच्छई। गहनासत्तपरियरिथ, कोमचंद खहेऽमले ॥४॥दिपंतकुपलयकन्हार, मुयसयपत्तपणकई कुरुलियत हसकारंडे, पकचाए सुमेह य॥५॥ जमविलु सत्तमपि साहास (अनुज चंदमंडल) तद विम्हिओखर्ग, पिता एवं जहा होही ॥५॥ एवं सम्गं ताई. (यवाणं पमीय) बंधवा पर्यसिमी।बहकालेणं गवेसेड. ते घेतण समागओआपणपारंपवारस्यणीए, भदवकिन्हचा उत्साहिताण पेचड़े जायन रिविं. बमुकाला निहालि ॥८॥ पुण काठमो नुजह उ, तहावित रिदिन पेच्छद । एवं पउगईभवगहणे, हुल माणुसत्त॥९॥ अहिंसालक्खणं धम्म, सहिऊणं जो पमायई । सो पण बहुमबलक्लेस, दुक्खेहि माणुसत्तर्ग, पिन सामाई धम्म, तरिद्धि कच्छमी जहा ॥३९॥दियहाई दो पतिभिव,जदार्ग होइ जंतु लगेगा समायरेण तस्सवि, संकाय वेड पवि. संतो॥१॥जो पुण दीपपासो चुलसीईजोगिलक्खनियमेणं । सरस नवसीलमाय संबलय किं न चिवह? ॥२॥जह २पहरे दियहे मासे संवारे व बोलति । नहर गोयम जाणम् दुम्से आसमयं मरनं ॥३॥ जस्स न नजा काल म य वेला नेय दियहपरिमाणं । नाएवि नास्थि कोदवि जगमि अजरामरो एल्वं ॥ ४ ॥ पानी पमायवसओ जीबी संसारकजमुजुत्तो। दुक्सेहि न निचिन्नो मुस्वेहि न मोयमा! तिप्पे ॥५॥ जीवेग जागि उचिसजियाणि जाईलए देहाणि। बेहिं तओ सयलंपि तिहुयर्ण होज पटिहत्य ॥६॥ नहदंतमुदभमुह-8 खिकेस जीवेण विष्पमुकेसुनि। तेमुवि हरिज कुलसेलमेकगिरिसन्निभे कहे ॥ ७॥ हिमवतमलपमंदरदीचोदहिवरणिसरिसरासीओ। अहिययो आहारो जीवणाहारिओ अर्णतहुतो ॥८॥ गुरुतत्समरकंना अंमुनिचाएण जं जलं गलियं । अगहतलावनईसमुहमाईसु गवि होजा ॥९॥जाबीचं पाठीरं सागरसलिलाउ बहुवर होजा। संसारमि अणते अबलाजोगीएं एकाए ॥४००॥ सत्ताहविपनसुकुहियसानजोगीए मझदेसमि। किमियत्तण केवलएण जाणि मुकागि देहागि ॥१॥ तेसि सत्तमपुढचीए सिबिखेच याच उपकुमर्ड। चोहसरतुं लोग व अर्णतभागेणपि भरेना ॥२॥ पत्तेय कामभोगे कालमर्गतं इहं सउवभोगे। अप्पुन थिय मनइ जीयो तहवि य विसपसोक्सं ॥३॥जह कच्छाको कछु कंडयमाणो । दुहं मुणड सोपव। मोहाउरा मणुस्सा तह कामहं गह चिति ॥४॥ जाति अणुभवति य जम्मजरामरणसंभवे दुस्से। नव चिसएम विरजति (गोयमा!) दुग्गागमणपस्थिए जीवे ॥५॥ सवगहाणं पभयो महामहो सत्रदोसपायी। कामम्गही दुरणा जेणऽभिभूयं जग स (तस्स वसं जे गया पाणी)॥६॥ जाति जहा भोगिदिसंपया सबमेव धम्मकले। तहदि दढमूढाहियए पार्य काऊण दोगई जति॥७॥पचा सणेण जीचो पित्तानलधाउसिमसोभेहिं। उनमहमा विसीयह तरतमजोगो इमो दुलहो ॥८॥ पचिदिवत्तर्ण माणुसत्तणं आयरिए जणे मुकुलं । साहुसमागमसुणणासदहणाऽरोगपाना ॥९॥ सलाहिविसविसूइयपाणियसत्पम्गिसंभमेहि चा देहतरसंकमणं करेह जीचो मुहलेण ॥४१०॥ जापाउ साससं जान
बोधि अस्थि वसाओ। तार कोज अपहियं मा तपिहहा पुणो पन्छा ॥१॥ मुरवणुविनुस्खणदिनसंशाणुरागसिमिणसमं । देह इति त वियना मम्मयमंड य जलमारिय॥२॥ इय जाव म चुकसि एरिसस खणभंगुरस्स देहस्स। उग्गं कई पोरं परम् वयं नरिष परिवाडी ॥३॥ गोयमोनिवाससहरसंपि जई काकणं संजम गषिउलंपि। अंत किलिङ्गभावो नवि सुझाइ कंडरीउन ॥४॥ अप्पेणवि कालेज के जहागहियसीलसामना । साहंति निययकज पॉडरिपमहारिसिव जहा ॥५॥ग असंसारमि मुहं जाइजरामरणदुक्खगहिवस्स। जीवस्स अस्थि जम्हा लम्हा मोसो उपाएओ ॥४१६॥ सापयारेहिं सत्रहा सपभावभावंतरेहिणं गोयमोत्ति बेमि ॥ महानिसीहसुपरसंधस्स उनमनझयणं गीयत्वपचहार नाम समनं ६॥'भय ! ता एवनाएणं, जे भनियं आसि मे तुर्म (जहा)। परिवाडीए (त) किन अकखसि, पायव्दितं तत्व मापी ॥१॥ हा गोषम ! पथिनं, जह तुम नमालयसि। नवरं धम्मपियारो ने, को सुपियारिमओ फुडो ॥२॥ण होइ तस्स पछित, पुणरवि पुच्छेज गोचमा!। संदेह जाप देहत्य, मियानं नाव निष्ठयं ॥३॥ मिच्छनणवि अभिभूए. तिथपरस्म विभासिय। वर्ण लंपिनु विपरीयं, बाएता पविसति ॥४॥ (पोस्तमतिमिरवडलंधयारं पायालं) णवरं सुविचारित कार्ड, नित्यचरा सयमेष या मगनिन जहा चेष, गोयमा! समणुहए ॥५॥ अत्येगे गोयमा ! पाणी, जे पानिय जहा तहा। अविहीए तह चरे धर्म, जह संसारा ग मुचए॥६॥से भव ! कवरेण से विहीसीलोगो, गोयमा ! इमेन से विहीसिलोगो, जहा चिडवर्ण पडिकमणं, जीवाइतत्तसम्भाष । समिइंदियदमगुली, कसायनिग्गहणमुवओगं आनाऊन सो वीसत्यो सामायारि कियाकलापा आलोय नी. सडो आगम्भा परमसंविग्गो ॥ ८॥ जम्मजरमरणभीओ पगइसंसारकम्मदहगहा। पइदियह हियएण एय अणवस्य सायतो॥९॥ जस्मरणमयणपउरे रोगकिलेसाइबहुविहतरंगे। कम्महुकसायामाहमहिरमबजलहिमामि ॥१०॥ भमिहामि भट्टसम्मत्तनाणचारितलबबरपोजो। कालं अणोरपारं अंतं दुक्खाणमलमतो ॥१॥ता करवा सो दियहो जत्याहं सन११५७ महानिशीथयोदसूर्य artict-29
मुनि दीपनार
दीप
अनुक्रम [१३२०
अत्र षष्ठं अध्ययनं समाप्त
अत्र सप्तमं अध्ययन/(चूलिका-१)- "एकांतनिर्जरा" आरब्ध:
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