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आगम
(३९)
प्रत
सूत्रांक
[१]
For+sa
गाथा
||१२||
दीप
अनुक्रम [८५८]
"महानिशीथ” छेदसूत्र -६ (मूलं)
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अध्ययन [ ६ ], उद्देशक [-1 मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...........
· मूलं [१] + गाथाः ||१२||
[६] "महानिशीथ" मूलं
...आगमसूत्र [ ३९ ], छेदसूत्र -
तावि अमहियासेहि, पिसएहिं जान पीडिओ ताप चिंता समुप्यन्ना, जहा कि जीविएण मे ? ॥ २ ॥ कुदेन्दुनिम्मलयरागं, तित्यं पापमती अहं उडाहितोऽह सुज्झिरसं, कत्थ गंतुमणारिओ ? ॥ ३ ॥ जहवा सण चंदी, कुंदरस उण कापहा कलिकलकलकेहि बजिये जिणसासणं ॥ ४ ॥ ता एवं सलदार किलेसक्यंकरं पश्यणं खिसार्वितो,
तृण सुई? ॥ ५ ॥ युग्मकं गिरिं रो, अन्नाणं चुनिमो पुर्व जान विसययतो नाहं किंचित्युदाई करं ॥ ६ ॥ एवं पुगोषि आरो संकुच्छ गिरीय संवरे फिल निरागारं गयणे पुणरवि मानिये ॥ ७॥ अवाले न ते म परिमं तुम्भं इमं तणुं वा बदपुढं भोगलं बेइत्ता संजम कुरु ॥ ८ ॥ एवं तु जाय में पारा चारणसमणेहिं लेहिओ। साहे गंतॄण सो लिंग, गुरुपामुले निवेदितं ॥ ९॥ तं सुत्तस्थं सरेमाणो दूरं संतरं गज तत्वाहारनिमित्तेनं, बेसाए घरमागओ ॥ २० ॥ धम्मलानं जा भाई, अस्वलानं पियग्गओ लेणावि सिद्धिगुणं, एवं भवति नाणियं ॥ १ ॥ अवतेरसकोटीओ दविणजायरस जा तहि हिरणविहिं दावे मंदिरा पडिगच्छ ॥ २॥ उत्तुंगथोरपणवा, गणिया आलिंगिडं दर्द। भन्ने कि जासिमं दविर्ण, अधिहीए दाउ चुड़गा ॥ ३ ॥ णवि मचियत्रयं एवं फलियं पभाणियं जहां जा ते विही इडा तीए द (आ) पच्छ ॥४॥ गहिऊणाभिहता. विती मंदिरं एवं जहा न ताव अहयं भीषणपाणविहिं करे ॥ ५॥ दस दस बोहिए जाब, दिग्रहे २ अणि पन्ना जा न पुन्नेसा, काइयमोक्खं न ता करे ॥ ६॥ अन् मेदायमा जोडियस्सरि जारिसगं तु गुरुलिंगं भवे सीपि नारि ॥ ७॥ अस्तीत्वं निहीफाउं, चिओ खोसिओवि सो तहाऽऽराहिओ गणिमाय, बढो जह पेमासेहिं ॥ ८ ॥ आलावाओ पणओ पगपाउ रती रतीइ पीसंभो पीसंभाओ ही पंचविहं वह पेम्मं ॥ ९॥ एवं सो पेम्मपासेहिं बद्धोऽपि साचगन्तणं जहोवइ करेमाणो, दस अहिए या दि दि ॥ ३० ॥ पडियोहिऊण संविग्गगुरुपामुळे पवेसई संपर्क मोहिओ सोचि (श्री), दुम्मुहेम (ह भणे) जहा तुमं ॥ १॥ धम्मं लोगस्स सास, अनमि मुज्झति पूर्ण विषयं धम्मं जं सर्व माणुचिसि ॥ २ ॥ एवं सो वयणं सोचा, दुम्मुहस सुभासियं चरथरथरस्स कंपतो, निदिउ गरहितं चिरं ॥ ३॥ हा हा हा हा अंक मे मसीले कि कर्य । जेणं तु सुत्तो इप्पसरे, गुडिओऽखुइ किमी जहा ॥ ४॥ पी पी पी पी अहन्ने पेच्छ मेऽणुचिडियं। जबकंचणसमऽत्ताणं, असइसरिसं भए कयं ॥ ५॥ खमंगुरस देहस्स, जाविपत्ती मे भवेता तिरवयरस पामूलं, पायच्छितं चरामि ॥६॥ एसमागच्छती एवं चिताव गोयमा पोरं चरिऊण पायच्छित संवेगाऽम्हे हिं भासिये ॥ ७॥ घोरवीरतवं कार्ड, असु हकम्मं वदेत्तु य। सुकज्झाणं समारुहिउं केवलं पप्प सिज्झिही ॥ ८ ॥ ता गोयमेवणाएणं. बहू उपाए वियारिया लिंग गुरुम्स अप्पेडं, नंदिसेगेण जह कयं ॥ ९ ॥ उस्सयां ता तुम बुज्झ, सिर्वतेयं जट्टियं ततउदयं तरस, महंत आसि गोयमा ॥ ४० ॥ तावि जो विसउइन्ने तवे घोरमहातयं अगुणं तेगमणुचिन्नं नावि बिसए व जिए ॥ १ ॥ ता बिसभक्षणं पडणं, अणसणं तेण इच्छियं एवंपिं चारणसमणेहिं मे वारा जाच सेहिओ ॥ २॥ ताय य गुस्स्स रपहरण, अप्पिय तं देवरंग। एते ते गोयमोबाए सुयनिवदेवियाणए ॥ ३ ॥ जहा जाय गुरुणो न स्यहरणं, पहला वन अलिया तावाकर्ज न कायचं, लिंगमवि जगदेखिये ॥४॥ अन्त्य ण उज्झिय गुरुणो मोनून अंजलि जह सो उपसमि सको गुरुता उपसाई ॥ ५ ॥ अह अन्नी उपसमि सको तोडवी तस्स कहिलई गुरुणायि तयं मन्नस्स, गिरा पेय कबाइवी ॥ ६ ॥ जो भदियो बीयपरमडो, जगद्विवि यागगो एयाई तु पयाई जो, गोयमा णं विडंबए ॥ ७॥ मायापर्व चमेणं, सो ममिही आसटो जहा भययं न वाणिमो कोऽवि मायासीलो हु आसडो ? ॥८॥ किं वा निमित्तम्वचरिओ, सो भमे बहुदुहडिओ परिमस्सऽन्नस्स तिमि, गोवमा कंचनच्छवी ॥ ९॥ जायरिजो जासि भूइक्खो तस्स सीसो स आसटो महाबाई तूर्ण अह मुलत्थं अहिजिया ॥ ५० ॥ ताव को उहलं जायं णो णं विसएहि पीडिओ चिते व जह सिद्धते एरिसो दंसिओ निही ॥१॥ तो तरस पमाणेणं, गुरुयणं रंजितं दर्द तपगुणं कार्ड, पडणाणसणं विसं ॥ २ ॥ करेहामि जहाऽपि देवयाए निवारिओ दीहाऊ णत्थि ते मबू, भोगे भुंज जहिन्छिए ॥ ३॥ लिंग गुरुस्स अप्पे, अन्नं देतंतरं वय भोगलं पापच्छा चोरवीरत] [पर] ॥ ४ ॥ अहवा हा हा अहं मूढो, आयसोण सहिओ समणानं परिसं जुतं, सयमयी मणसि पारिडं ॥ ५ ॥ पच्छा उ मे पछि आलोएना घरे अवर्ण आलो, मायाची भन्निमो पुणो ॥ ६ ॥ तो दसपास आयाम, मासकखमणस्स पारणे। बीसाबंचिलमादीहिं दो दो मासाण पारणा ॥ ७॥ पणुवीसं वासे तत्थ, चंदायनतवेण य उइमदसमाई, अदुवाले यण ॥८॥ मह्पोरेरिखपच्छित्तं सयमेवेत्याचरं गुरुपामूलेऽवि एत्येयं पायच्छितं मे ग अग ॥ ९ ॥ अहवा तित्थपरेणेस, किमहं बाइओ विही ? | जेणेयमहीयमाणोऽहं. पायच्छित्तस्स मेलिओ १ ॥६०॥ अहया सोचिय जाणेज सन्तु पच्छितं अणुचराम्यहं जमित्यं चिविययं तस्स मिच्छामि दुख ।। १ ।। एवं तं कई घोरं पायच्छितं सयंमती काऊपि ससको सो वाणमंतरियं गजो ॥ २ ॥ हिट्टिमोवरिमगेवेयविमाणे तेण गोयमा वर्धतो आलोहना, जतं परिछतं कुडिया ॥ ३ ॥ वाणमंतर १९४१ महानिछेद अन्य मुनि पर
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