Book Title: Aagam 39 MAHA NISHITH Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 19
________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [१], ------------ उद्देशक [-], ---------- मूलं [१७] +गाथा:||८०|| ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं भने उज्यालय देवलोगमणुपता गम्भावरहीए असहमवाय निष्यत्तती जहव मातीमा बाहिनियोस। जथला प्रत महतभत्तीए ॥४॥ अमयाहार भागी लाओ सिद्धत्वच व्यत्य जम जम्हाल मेरनिरिसिहर जसवं निष्यत्तती जाहेब भलीए [१७] काकासम्मकाजाला गाथा इडीपवित्थरे सयलतियचाउलिए। साहीणे जगबंधु मणसावि जे खणं लारे ॥८॥ सिं पस्मीसरिय करसिरीयाणवलपमाणं च। सामत् जसकित्ती सुरलीगनुए जहेह अनयरिए ॥१॥जह काऊमममने उगता देवलोगमणुपते। तित्ववरनामकम्मे जह बर्व एगाइचीसचामेस ॥२॥जह सम्म परी सामधाराहना य अन्नमये। जातिसताओ सिवस्थप. रिणीचोदसमहासुमिमलों ॥३॥जह सुरहिगंधपक्लेव गम्भवसाहीए असहमनहरणं। जह सुरनाहो अगुडपल्यगलियं महंतमत्तीए ॥४॥ अमयाहा भत्तीए देश संधुना जाच य' पथओ। जा जायकम्मविनियोगकारियाओ रिसिकुमारीओ ॥५॥सर्च नियकत्तळ निव्वतंती जब भत्तीए । बीमपुरवरिंदा गस्वपमोएण समरिबीए रोमंचचपलाय।। मस्तिष्मरमायसगता है। मते सकयत्वं जर्म अम्हाण मेसमिरिसिहरे ॥७॥ होही समकालियमसरसमीरखंबहिनियोस। जयसरमहलमंगलकार्यशाही जायसीसहित 100 बहसरहिगंधवासियकंचनमणितुंग(स्वण)कलोहिं । जम्माहिसेयमहिम करेंति (जह) जिगकरो गिरि चालें ॥९॥ जहद वापरणं भय वायस अहरितोचि । जहगमा कुमार (परिणे बोहिति) जहम लोगंतिया देवा ॥९॥जह क्यनिक्समणमहं कति सड़े मुरासुरा मुश्या। जह अहियासे घोर परीसाहे दिवमाणुसतिरिच्छे ॥१॥ अह पणघाइचाउक (कम्म) हा घोरतबझानजोगअन्गीए। लोगालोमपयासं उगाए जहब केवल नाणे ॥२॥ केवलमहिमं पुणरवि-काऊणं जह सुरासुराईया। पुच्छति संसए धम्मणी इतमचरणमाईए॥३॥ जहाको जिगिंदो सुरकयसीहासपोचविहो पात पडचिहरेचनिकायनिम्पियं, जह पवरसमक्सर, तुरियं करति देवा, जं रिवीए जग तुला ॥४॥जस्य समोसरिनो सो भुवणे-- गुरु महायलो जरहा। बहमहपारिहस्यसुपिंधियं हवय तित्यियं नाम ॥५॥जह निहला असेस मिळतं विकर्णपि भााण । परिबोहिङण मग्गे ठवेन जहमणहरा दिवस १६. मिळति महामइगो सुत्तं संपति जहच य जिनिंदो। मासे कसिणं अत्यं अर्गतगमपज्जवेहिं तु जा सिजा जानाहो महिमं निशाणनामियं जहय । सजेवि सुरवरिंदा असमय तह विमोचंति ॥८॥ सोगत्ता पगलंतसुधोयगंडवलसरसापचाई । कलुणं विलासर हा सामि! कया अमाइत्ति ॥९॥ जा रहिगंधगम्भीणमहंतगोसीसषणमा। कठेरि विहिपूर्व सकारं सुरक्रा सवे ॥१०॥ काढणं सोगत्ता सुधे बसदिसिपहे पलोचना । जह खीरसागरे जिणवराणं (अट्ठी) पक्वालिऊणं च ॥१॥ सुरलोए नेऊणं आलिंषेऊण | पपरवगरसेणं। मगरवारियायचसयपत्तसहस्सपचेहि ॥२॥जह अचेऊण सुरा नियनियमवणेसु जहरूष युगति ( सर्व महया चित्वरेण जरहंतचरियाभिहाणे) अंतकटवसाणं त. समझाउ कसिण विनेयं ॥३॥ एत्य पुण जे पायं न मोनुं जद मज सायं। हवा असंबद्धरुयं गंधस्स य मित्यरमणतं ॥४॥ एवंचि अपत्यावे सुमहतं कारणं समुपदई । बाग- रिय ते जाण मनसत्ताऽणुग्गहाए । जहमा जत्तो जत्तो भक्सिजइ मोयगो सुसंकरिओ। तत्तो तत्तोषिजणे अहमुख्यं माणसं पीई ॥ ६॥ एवमिह अपत्याधि मन्तिभरनिष्मराम परिबोस । जमाया गुरुवं जिमगुणगणेवरसक्खित्तचित्ताणं ॥७॥ एवं तुजं पंचमंगलमहामुयक्रसंघस्स क्सा तं महया पर्वघेणं अर्णतगमपनवेहि सुत्तस्स य पिहभूयाहिं निजुत्तीभासचुणीहि जहर वर्णतनागदसणघरेहि तित्पयरेहि कालाणियं तहेच समासो क्लाणिनंत आसि, अहमया कालपरिहाणिदोसेमं ताउ निजुलीभासचुलीओ पोथिबाजो।१६इमओय वर्वतणं कालसमए महिड्डीपते पयाणुसारी बइरसामी नाम दुवालसंगसुयहरे समुप्पणे, वेगेयं पंचर्मगलमहासुयक्खंघस्स उद्धारो मूलमुत्तस्स मज्झे लिहिजो, मूलसुन्तं पुण सुत्तत्ताए गगहरेहिं अत्यत्ताए अरहतेहिं भगवतेहिं धम्मतित्वगरेहि तिलोगमाहिएहिं वीरजिणिदेहि पन्नवियति एस कुइटर्सपयाजो।१७। एत्य य जत्थ पयंपएणाणुलम् सत्तालावर्ग म संपमा वत्य सत्य सुपरहि कुलिहियदोसो न दायत्रोत्ति, किंतु जो सो एयरस अचिंतचिंतामणिकप्पभूयस्त महानिसीहसुयक्संचरस पुशायरिसो आसी ताहिर संडावंडीए उहियाइएडिहिंगहरे पत्तगा परिसडिया तहाचि अर्बतसुमहत्याइसति इम महानिसीहसुवक्त कसिमपनवणस्स परमसारभूयं परं तत्तं महत्वंति कलिऊणं पश्चात्तर्ण बहुमत्रसचोक्यारिकार्ड तहा य आयहिबद्याए आवरियहरिमदेणं जे सत्यायरिसे बिड़ न स समतीए साहिऊर्ग लिहियति, अन्नेहिपि सिबसेणदिनाकर पुरवाइजक्ससेणदेवमुत्तजसकवणवमासमणसीसरनिगुतणेमिचंजिणवासमणिसमगसबसिरिपमुद्देहि जुगप्पहाणसुबहरेहिं बहुमन्नियमिणति। १८ा से भयवं! एवं जहुचविणओबाणेच पंचर्मगलमबासुपसंचमविनिताण पुराणपुषीए पच्छापुचीए अणाणुपुत्रीए सरखंजनमत्तावितुपयक्सरविमुद चिरपरिचियं काऊ महया पर्वधे सत्तत्वं च पिनाय सओ व किमहिनेजा , गोयमा ! ईरियाचहियं, से मयर्थ! केम बढेम एवं सुचा-जहाग पंचमंगलमहामुयसंघमडिजिताणं पुणो ईस्थिावहियं अहीए', गोषमा! जे एस आया से जया गमणागमणापरिणामपरिगए अगजीपानभूयसत्ता अगोषउत्तपमत्ते संपवणजवदावणकिलामण काऊण प्रणालोपत्रपटिकते पेच असेसम्मक्सयडयाए किंचि चितवनसायमाणावएस अमिरमेना नया से एगचित्ता समाही मवेजा गया, जजो गं गमणागमणाइअणेगावाचारपरिणामासत्तचित्तबाए कई पाणी तमेव मातरमच्छ११२९ महानिशीबच्छेदसू Janav -2 अनिदीपातमागर ||८०|| दीप अनुक्रम [५६२] ETTTTor-EA ~18~

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