Book Title: Aagam 39 MAHA NISHITH Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [६], -------------- उद्देशक [-], ---------- मूलं [१...] +गाथा:||११६|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
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मुथैवार्णपि निवित्ति, जो मणसावि पिराहए। सो मओ दुग्गाई गच्छे, मेघमाला जहजिया ॥६॥ मेघमालजिर्य नाहं, जाणिमो भुवणबंधन! | मगसाबि अणुनिवत्ति, जा संडिय दुग्गई गया ॥ ७॥ वासुपूजस्स तित्यमि, भोसा कालगच्छवी । मेघमालजिया जासि, गोयमा ! मणदुबला ॥८॥सा-नियमोगासे पक्सं दाउँ, काउंभिक्रया य निग्गया । जबजो एस्थिगी सारमंदिरोवरि संठिया ॥९॥ आसनमंदिरं अग्नं, लंपित्ता गंतुमिच्छगा। मणसाऽमिनंदेवं जा(ब), ताव पजलिया दुवे ॥१२०॥ नियमभंग तयं सुहम, सीए तस्थण णिदियं । नियमभंगदोसेणं, डज्झित्ता पदमियं गया॥१॥ एवं नाउंसहमषि, नियम मा विराहिह । जेधिल्या अक्खयं सोमवं, अणतं च अगोवमं ॥२॥ नवसं जमे वएसंच, नियमो दंडनायगो । तमेव खंटमाणस्स, न वए णो व संजमे ॥३॥ आजम्मेणं तु जं पावं, वजा माधगो । बयभंग काउमणस्सा, न श्रेषऽवगुणं मुणे ॥४॥ सयसहस्सं सलद्धीए, जो
सामित्तु निक्समे। वर्ष नियमसंईतो, जे सोनं पुजमजिणे गा पबित्ता य निचिना य, गारस्थी संजमे तये। जमणुडिया वयं लार्म, जाप दिक्खा न गिण्डिया ॥६॥ साहुसाहुणीबम्गेणं, पिनायामिह गायमा जेसि मोजूण ऊसासं, नीसासं नाणुजाणियं ॥ ७॥ तमपि जयणाए अणुमाय, विजयगाए ण सहा । अजयणाइ ऊससंतस्स, कओ धम्मो? कओ नयो ? ॥८॥ भय! जावार्य दिई, तावइयं कहष्णुपालिया। जे भने अबीयपरमत्थे, किबाकिचमयाणगे ? ॥९॥ एगनेणं हियं ययणं, गोयम ! विस्संति केवली। णो परमोडीह काति, हत्थे पेतूण अंतुणो ॥१३०॥ नित्यपरभासिए बयण, जे तहत्ति अणुपालिया। सिंदा देवगणा तस्स, पाए पणमंति हरिसिया ॥१॥ जे अपिदयपरमत्थे, किचाकिसमजाणगे। अंधोधीए सि सम, जलबलं गडठिकारं ॥२॥ गीयत्यो य विहारो, बीओ गीयस्थमीसओ।समगुन्नाओ सुसाह, नरिच नइयं विषप्पणं ॥३॥ गीयत्वेजे मुसंवियो, अणालस्सी बढ़गए। अखलिबचारिते सवर्य, रागदोसचिवजए॥४॥ निहुचिबहुमबहाणे, समियकमाये जिइंदिए। बिहरेजा सेसि सर्दिनु ने छाउमस्थेपि केवली ॥५॥ सुहुमस्स पुढवीजीवरस, जत्थे
स्था व विहार, 10 गीयत्वमासा समगुलाब सामना गस्स किलामणा । अप्पारंभ तयं बैंति, गोयमा! सबकेवली ॥६॥ मुहमस्स पुटवीजीवस्स, पावती जस्थ संभव । महारंभ तयं विति, गोयमा! सबकेवली ॥ ७॥ पुढचीकाइयं एकदरमलेतस्स गोषमा!। अस्सायकम्मोह विमोबसे ससहिए ॥८॥एवं च जाऊतेऊलाऊ तह वणरसती । तसकाय मेहणे तह, चिकगं पिणइ पावगं ॥ ९॥ तम्हा मेणसंकर्ष, पुटवादीण पिराहणं । जावजीर्ष दुरंतफलं, तिमिहति विहेण वजए॥१४॥ ता जेऽपिदियपरमाथे, गोयमा ! णो यजे मुगे । तम्हा ते विचनेजा, दोगाईपंथदायगा ॥१॥ गीयत्वस उपपणेणं, किस हलाहल पिये। नित्रिकप्पो पभक्खेजा,तक्सणा जंसमुहये। परमत्वो विसं तोसं(नो न), जमयरसायर्ण चुन। णिविकपणं संसारे, मजओपि सो अमयसमो ॥३॥ अगीयस्यम्स पयगेणं, अमयपि ण पोहए। जेण अपरामरे हविया, जह कीला जो मरिजिया ॥४॥ परमस्यओ ण तं अमर्य. संविस ते हलाहलाण तेग अपरामरो होना, भक्षणा निहणं गए॥५॥ अगीवत्वकुसीलेहि.समें निविहेण वजए। मोक्लमम्मास्सिमे विधे, पहमी तेणगे जहा ॥६॥ पजलियं हयवहं बढ़. णीसंको तन्य पपिसि। अतागंपि डहिजाति, नो कुसीले समातिए ॥ ७॥ पासलक्संचि मूलीए, संभिको अपिछया सुहा अगीयत्येण सम एक सदपि न संवसे ॥८॥ पिणाविनंतमतेहि. घोरविहीविसं अहिं । उसंतपि समातीच, - जागीय कुसीलाहम ॥९॥ विसं खाएन हलाहलात कि मारेइ तक्मण। ण करेऽगीयत्यसंसगि, विढये लक्लंपिजं नहिं ॥१५०॥ सीहं वापं पिसायं था, पोररुवमयंकरं । ओगि-4 लमाणपिसीएजा, ग कुसीलमगीयस्थ सहा ॥१॥ ससजम्मंतर सतुं, अवि मनिता सहोयरं । वपनियम जो चिराहेजा, जगवं पिपसे नये रि॥२॥ व पविट्ठी जलिय यासर्ग, नयापि नियम सुहर्म पिराहियं । बरं हि मच्चू सुचितुवकम्मुणो, न यावि नियम अनुण जीवियं ॥३॥ अगीयस्थत्तदोसेण, गोयमा ! ईसरेण उजं पत्तं वे निसामेत्ता, लहु गीयस्थो मुणी भवे ॥४॥से भयब! णो बियाणेऽई. इसरो कोवि मुणिवरो। किवा अगीयत्वदोसेणं, पर्त नेण? कहेहि गो॥५॥ उनी सिगाए अचाए.एत्व भरइंमि गोयमा ! । पढमे तित्थकरे जइया, विहीपण निबुडे ॥६॥ नइया निधाणमहिमाए, घनरूपे सुरासुरे। निवयंते उप्पयंते व, बछे पचनवासिउ ॥७॥ अहो अच्छेयं अन, मबालोयमी पेनिछमो।ण दजाल सुमिण बामि दिकत्या पुणी ॥८॥एवं पीहापोहाए, जिआई सरिनु सो। मोहं गतृण खणमेक,मारुयाऽऽसासिओ पुणो ॥९॥ परपरपरस्स कंपतो, निवि गरहिउँचिरं । अत्ताणं गोयमा धणिय, सामर्ष गहिउमुजी ॥१६० ॥ अह पंचमुहिय लोष, जापाठवा महायसो। सविणयं देवया तस्स, स्यहरणं नाच ढोयई ॥ १॥ उग्गं कई तवचरणं, तस्स बठूण ईसरो। लोओ पूर्व करेमाणो, जाच उगतृण पुच्छई ॥२॥ केण तं दिक्खिओ? काय?, उप्पयो को कुलो तव ? । मुत्तस्थं कस्स पामूले, साइसवं हो समजिय? ॥३॥ सो पचएगबुद्धो जा. सच तस्स वियागरे । जाई कुलं दिक्ता सुतं, अर्थ ज य समजियं ॥४. सोऊण अहमो सो, इमं चितड गोयमा। अन्लिया अणारिओ एस, लोग इभेण परिमसे ॥ ५॥ ताजारिसमेस मासेड, वारिस सोऽनि जिणवरो।म किंचिस्प पियारेणं, तुहिकई चिरंठिए।६॥ अहवाणहिणहि सो भगवं !, देवदामपणमित्रो। मनोगपिज मका, पि चि. ११५१ महानिशीवादसूत्रं सा -5
मुनि दीपातमागा IAN
सरकारका
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दीप
अनुक्रम [१०५२]
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