Book Title: Aagam 39 MAHA NISHITH Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(३९)
प्रत सूत्रांक [२]
गाथा
||२७९||
दीप
अनुक्रम [१२१८]
"महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं )
अध्ययन [ ६ ], उद्देशक [-], मूलं [२...] + गाथाः || २७९|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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जोगी समुहला तत्थ किमिएहिं दसवरिसे, खदो मरिण गोयमा ॥ ९॥ उपबन्नो बेसताए, तओषि मरिठण गोयमा एगूर्ण जाव सपवार, आमगन्भेसु पचिओ ॥ २८० ॥ जम्मदरिस्स गेम, माणुसतं समागओ तत्व दोमासजायरस, माया पंचत्तमुवया ॥ १ ॥ ताहे महया किलेसे धनं पाठं घरापरिं जीवावेऊण जगणं, गोउलिम्स समहिओ ॥ २ ॥ तहियं नियजणणिच्छीरं, आवियमाणे निबंधि (छावस्ए ) गोणिओ दुहमाणेण जंबई अंतराइयं ॥ ३ ॥ तेषं सो लक्खजाए, कोडाफोडी भवंतरे जीवो चन्नममाणो (तो तो नियलितो हम्मतो दम्मंतो) बिच्छोतो व हिडिओ ॥ ४॥ उन्न मणजोगीए. डामिनित्तेण गोयमा तत्थ य सागयपालेहिं कीलिउं (या) उड गया ॥५॥ ताओ उच्चट्टिणिह से ल माणुसत्तणं जत्य य सरीरदोसेणं, एमहंतमहिमंडले ॥ ६॥ जामदजामपडियं था, जो लडं वेरलियं जहिये। पंचेव उ घरे गामे. नगरपुरपट्टणेषि ॥ ७॥ तत्थ य गोयम! मणुयत्ते, णारयदुक्लान सरिसाए। अगे रणरणं पोरे दुक्खेऽणुमो ॥८॥ सो लक्खणदेवीजीची, सुरोदसाणदोसओ मरिऊण सत्तमि पुढवि, उन्न रखडोहणे ॥९॥ तत्व य तं तारिस दुक्ख, तित्तीस सागरो मे अणुभवि उन्नो झागोणित्तोग य ॥ २९० ॥ खेत्तखलगाई यमती भंजती य परंति या सा गोणी बहुजणोहेहि, मिलिऊगागाहकवलए पवेसिया ॥१॥ तत्त्व सुती जयाहि नृसिती तब य कागमादीहिं लुप्ती. कोहाविडा मरेउणं ॥ २ ॥ ताहे जिणे रणे. मनदेसे दिडीविसो सप्पी होऊन पंचम, पुढवि पुणरवि गओ ॥ ३॥ एवं सो जाए. जीवो गोपमा चिरं घनघोर दुक्खसंतती चमइसारसागरे ॥ ४ ॥ नारयतिरियकुमगुए, जाहिङित्ता पुणोवि होही सेणियजीवस्स, नित्थे पउमस्त सुजिया ॥ ५ ॥ तत्थ य दोहावाणी सा, गामे नियजणणीओविय गोयम दिट्ठा न फस्सावि, अच्छीय रहदा नहि भये ॥ ६ ॥ नाहे समजणेहि सा उचियणित्तिकारण मतिगख्यविलगा, खरेरूदा ममादि ॥ ७॥ गोयमा ओपक्खपखेहि बाइयलरविरसटिडिमं निदाडिहि ण अन्नत्थ, गामे लहिहिइ पविसिद्धं ॥ ८ ॥ ताहे कंदफलाहारा, रन्नवासे वर्तति या (दहा) मच्छेदरेण विणत्ता पाहीए मज्या देस ॥ ९४ त सब सरीरं से, भरिलंसुदराण । तेहिं तु पितृप्यमाणी सा. दुसहघोरदुहाउरा ॥ ३०० ॥ वियणता पउमतित्वयरं तप्यसे समोस पेच्छिही जाव ता सीए. (अन्नेसिम बहुवाहियणापरिगयसरीराणं तसविहारिभवसत्ताणं नरनारिंगणाणं तित्थयरदंसणा चैव सङ्घदुक्तं विणिीि ॥ १ ॥ ताहे सो जाए, तहियं सुजियत्ति जिओ गोयम घोरं तवं चरिडं दुक्खाण अंतं गच्छिही ॥२॥ एसा सा लक्खणदेवी जा अगीय पदोओ। गोयम! अणुकरसचित्ते, पत्ता दुक्खपरं परं ॥ ३ ॥ जहां गं गोयमा एसा लखनदेविया तहा सकचित्ते गीयत्वे ऽगते पत्ते दुहावनी ॥ ४ ॥ नम्हा एवं वियागिता, सप्रभावेण सङ्ग्रहा गीयत्येहिं भवेय काय तु (सुदिनिम्मलमिलनी सा) निकल मध्यंति बेमि ॥५॥ पणयामरमरूपमन्यु चलणसययनजयगुरु जगनाह! धम्मतित्थपर, भूयभविस्सवियाग ॥ ६ ॥ तवसा निकम्मांस, वंमवइरवियारण उकसाय (दल) निवण, सहजगजीववच्छल ॥ पोरंचवारमिच्छत्तनिमितमतिमिरणासण। लोगालोगपगासगर, मोहवइरिनिभण ॥ ८॥ दुरुज्झिवरागदोसमोमोस सोमसतसोम सिनकर अतुलयबलविरयमाहत्यय तिहुणिक महायस ॥ ९ ॥ निस्वरूप असम, सामुदायविभूसिया ॥३१०॥ भयवं परिवाहीए. सर्व किंथि कीरए अथके इंडिदुदेणं, कर्ज से कब लम्भई ? ॥१॥ सम्म समे मंसि दितिये जम्मे अगए। तलिए सामाइयं जम्मे उत्ये पोसह करे ॥ २ ॥ दुदरं पंचमं उड़े सति एवं सत्तनवइसमे जम्मे उदिमाइ ॥ ३ ॥ विवेकारसमे जम्मे, समणगुणी भवे। एयाए परिवाडीए संजयं किं न अक्खसि १ ॥४॥ जं पुण सोऊन मगलो, बालपणी (उनिय केरिसस्स व सदं उगई, जउइसिर्ड नासे दिसोदिसिं ॥५॥ नमीरिस संजम नाह, इलिया उ मालया सोडपि नेच्छति, ती कहं पुण? ॥६॥ गोयम तित्यंकरे मोनुं, अशो लिओ जगे जड़ अस्थि कोइ तामगड, अहाणं सुकु मालओ ? ॥ ७॥ जाणं मन्वापि देविंदो, जयमंगुडयं कर्म आहार देह भत्तीए, संघ सययं करे ॥ ८॥ देवलोग संते, कम्मा से गं जहिं घरे अभिजाएनि तहिं सययं हिरट्टी परिसई ॥ ९ ॥ गम्भावनाण तसे, ईई रोगा य सण अणुभावेण खयं जंति, जायमित्ताण तणे ॥ ३२० ॥ आगंपियासणा चउरा देवसंघा महीहरे। अभिसे सहिइटीए कार्ड सत्थामे गया ॥ १ ॥ अहो अव केती दित्ती रूपं अयोगमं जिणानं जारि पायगुणं इहं ॥ २ ॥ स देवलोगे सहदेवाण मेलि कोटाकोडिगुणं कार्ड, जवि उण्हालिए ॥ ३ ॥ अह जे अमरपरिगहिया नाणत्तयसमझिया कलाकलावलिया, जणमणानंदकारया ॥ ४ ॥ सयणबंधवपरिवारा, देवदाणवपूया पणइयणपूरियासा, भुत्तमहालया ॥ ५ ॥ भोगिस्तरियं रायसरि गीयमा तं तजिये जा दियहा केई भुजति, ताब ओहीए जाणिउं ॥ ६ ॥ वणभंगुरं अहाँ एवं लच्छी पावविवटणी ताजाताविक अम्हे, चारित नाचिट्ठियो ? ॥ ७॥ जावेरिस मणपरिणामं ताब लोगंतिगा सुरा। मुषितं मर्गति जगली वहिययं नित्यं पत्तिहा ॥ ८ ॥ ताहे बोसनदेहा हिस १९५५ महानिद मुति दीपरत्नसागर
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