Book Title: Aagam 39 MAHA NISHITH Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(३९)
“महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [६], -------------- उद्देशक [-], ------- मूलं [२...] +गाथा:||३२९||
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं
त्य, अहोभाहारगत
न सकियो
||३२९||
जानमं। गोयमानणमिय परिचिचा, जईदाणवि डावह ॥९॥नीसंगा उगे कई पोरंपादुकर गये। भुषणस्सवि उकई, समुपायं चरतिते ॥३३०॥ जे पुष खरहरफुहसिरे, एगजम्मसुहेसिणो।तेसि दातलियाणपि, सुलपिनो हियइच्छिय॥१॥ गोयम ! महुपिंदुस्सेच, जावइयं वाचायं सुई। मरणतेची न संपजे, कयर हाउलियतर्ण ? ॥२॥ अहया गोयम! पचवलं. पेन्छय जारिसयं नरा। दलिय सहमति, नियुणिजान कोइवी ॥ ३॥ कई कारति मासखि, हालियगोचालनण। दासतं तह पेसतं, गोड सिषेबहु ॥४॥ ओलग्ग किसिपानिज, पाणचायकिलेसिय। दालिदऽबिहात्तर्ण केई. कर्म काउण घराघरा असा विगोवेर्ड, दिणिढिणितेज हिंडिर्डीनमाम्याडकिलेसेणं, जो समजति परिह(हिर ॥६॥ जरजुन्नफुट्टसयछिद, लद कहकवि ओढणं । जा जना कति करिमो. फहं तातमचि परिह(पहिरणं ॥ आतहाविगोयमा बुझ, फुडचियापरिकुर्ड। एतेसिं चेमजाउ, अणंतर भणियाण कस्सई ॥८॥ लोय याचारं च, चिचा सवाकियं तहा। भोगोवभाग दार्ण च, मोत्तूर्ण कदसमासर्ग॥९॥धावि गुपिड सुदर, सिजिऊण अहमिस । कागणि कागणीकाओ, अई पाय विसोवा | करवा कहिषि कालेज, लक्स कोटिं च मेलितं जा एगिष्ठा मई पुन्ना, बीया णो संपजए॥१॥ एरिसर्थ हातलियतं, समालच गोयमा!। धम्मारंभमि संपडा, कम्मारंभे न संपडे ॥२॥ जेणं जस्स मुहे कपल, गंडी बन्नेहि धनए। भूमीए मह(ठ)पए पार्य, इत्थीलक्खेसु कीडए॥३॥ तस्साधिन भवे इच्छा, अन्नं सोऊण सारिय। समुदहामिले देस, अहसो आणं पहिच्छर ॥४॥ सामओपयाणाई, अहसो सहसा फडजिङ। तस्स साहसतुलणवा, गृहपारिएण वया ॥५॥ एमागी कापडावीओ, दुम्मार गिरी सरी । पित्ता बहकालेणं, दुक्खदुक्लं पत्तो नहिं ॥ ६॥ दुख सुक्खामकटो सो,जा भमडे परारि । जार्यतो भिडमम्माई. नत्य जइ कहविज गजए॥७॥ता जीतो ण केला, अह पुन्नेहि समुदरे । तो परिवत्तिय देई, वारिसो स गिहे विसे ॥८॥को न सि परियगो सन्ने?, ताहे सो असणाइसु । नियरियं पायडेऊन, जुवासजो भवेउण ॥५॥ साबन जाण)यामेणं, संडासंडण जुज्झि। अह नै नरिव निजिणिज. अहवा तेण पराजिए॥३५०॥ बहुपहारगा ताहिरंगो, गयतुरयाउा(C) अहोमहो। णिवा रणभूमीए, गोषमा सो जया नया ॥१॥ तस्स द्वालियन, सुकुमालतं कहि वए?। जो केवल सहत्येणं, अहोभागं च घोविउं ॥२निडतो पाय ठवि, भूमीए न कयाइपि। एरिसोऽवीस दलिओ, एयावत्यमुपागओ॥३॥ जह मन्ने धम्मचिड्ढे ता, परिभणडन सकियो। तो गोयमा! अहन्नाणं, पाचकम्माण पाणिणं ॥४॥ धम्महागंमि मई,न कयादि भविस्सए।
एएसि इमो धम्मो, इजमीण भासए ॥५॥ जहा खंतपियवार्ण, सर्व अम्हाग होहिडता जो जमिन्छेले तस्स, जइ अणुकूलं पवेयए ॥६॥ तावपनियमविहगावि, मोक्र्सइन्छति S पाणियो। एए एने ण संति, एरिस चिय कहेयर । गवरंग मोक्सो एषाण, मुसाचार्य आचई। अचराग दोसं च मोहच, मयदाणपनिणं ॥दानित्यकराणं गो भयंस रणो भवेजा उ गोयमा!। मुसाचार्य ण भासते, गोयमा वित्थंकरे ॥९॥ जेण तु केवलनाणेण, तेसि पचासगं जगं । भूयं भई भपिस च. पुन्नं पार्य नहेब ५ ॥३६०॥ जकिषि निमुनि
लोएम.सासि पापही पाचालं अवि उददमुह, सम्र्ग एजा अहोमुहं ॥१॥णूर्ण तिथपरमहभणियं, पयर्ण होजन अन्नह।। नाणं इसणचारित, सर्व पोर गरम ॥२॥ सोमामग्गो कुडो एस, पार्वती जहाद्वि अन्नहा न विस्थयरा, वाया मणसा व कम्युणा ॥३॥ भगति जति भुणस्स, पलयं हवा नसणे। हि साजगजीवपाणभूयाण केवलं,
अगुकंपाए नित्थयरा, धम्म भासति अपितह ॥४॥ जेणं तु समविणे. दोहम्मदुस्खदारिदरोगसोगगइभय। म भविना उचिइएणं, संतापगे नहा ॥५॥ भवयं ! एरिस का भणिमा, जहर अणुपतय। गवरमेयं तु पुच्छामो, जो जं सके सत करें ? ॥६॥ गोयमा ! पेरिस जल, सणं मनसा विचिति । अह जा एवं भोगाया धारे हजपा SI
पपकरे खंडरग्याए, एको सकेट साइयं। अमो समंसमजाई, अशो रमिकण एस्थिय ॥८॥ असो एयंपि नो सके, अन्नो जोएड परसर्य। अन्नो पापमुहे एमु (अन्नो एपि) भणिऊण ण सकणोई ॥५॥ चोरियं जारिय अन्नो, अन्नो किचिन सपकुषोई। मोनुं मोनुंरूरत्यरिए, सके चिहेतु मंचगे ॥३७॥ मिच्छामि कहमिय हत, एरिस नो भगाम-E
गंगोयमा अनरिजमणसि. नपि तुजा कहेमहं ॥१॥ एत्य जम्मै नरो कोई, कसिणुमा संजमं तसं जाणो सका काउंजे, तहवि सोगापियासिनो ॥२॥ नियमं पक्सिसी दारस, एवालापारणा रपहरणोगिय रसिय, एसियतु परिचारियं ॥३॥ (सकुणोइ) एपि न जावजील, पालेता इमरसती । गोषमा म बीए. सिदि खेलसाओ पर
॥४॥ मंडपियाए भवेयर, एकरकारि भवेतु या गरं एवारिस मचियं, किमडेगोयमा ! पर्य? | पुगोतं एवं पुर्वामी, 'नित्थकर चटन्नाणी, ससुरासुरजगहए। निमित्यसिनिा योऽपि तमि जम्ने न अन्नए, जम्ने । (तहावि) अणिगृहिला बर्स विरिथ, पुरिसवारपरकर्म। उर्ग कई तसं पोरं. एकर अपना अन्नेससिनेस, पगासंसार
सभीएम। (जै जहेब विस्थयरा भणति) तहेब समगुडेया, गोयम ! सर्व जहडियं ॥८॥ जं पुण गोयम ! ते मणियं, परिवाडीए कीख । अबके दिदुदेणं, कर्ज कप सम्मए? ॥९॥ तत्थरि गोयम! विद्वत, महासमुहमि कच्चमो। अन्नेसि मगरमादीणं, संघहा भीउवामओ ॥३८॥ बुडनिड करेमाणो (सबलीसातोम्मली )पेठापेतीए कत्थई । (२८९) ११५६ महानिशीथच्छेदसूत्र, -
मुनि दीपालसागर
दीप
अनुक्रम [१२६८]
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