Book Title: Aagam 39 MAHA NISHITH Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 24
________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [४], ------------- उद्देशक [-1, --------- मूलं [१] +गाथा:||१||मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं 124402 महानिसहमवसंघम्स नदयमज्मवर्ण ३॥ से णं भय : कई पुण लेण समाणा कुसीलसंसम्गी कायद्या आसी जाए अ एवारिसे अबदारुणे अचसाणे समक्खाए, जेण भवकायद्विईए अगोसारं भवसापरं भमिही से पराए स्वसंतने अलर्भने समष्णुपएसिए अहिंसालसणे संतादिदसबिहे धम्मे बोहिति, गोयमा ! णं इमे जहा-अस्थि डोष भारहे वासे मगहा नाम जपओ, नन्य कुसत्य नाम पुरं. तमि य उवलपुन्नपाये सुमुगियजीपाजीवादिषपत्ये सुमहणाइलणामधेजे हुवे सहोयरे महदीए सहदगे अहेसि. अहऽन्नया अं. नरायबमोदएणं वियलिय बिहन नेसि, म उण सत्तपरकमे, एवं तु अचलियसत्तपरकमाणं तेलि अर्बन परलोगभीरु विरयकूटकपदालियाण पटिवन्नजहोपाहदाणाइपउपखंघउपासमधम्माणं अपिसुणामपटरीण अमावावीणं, किंबहुणा, गोयमा! ते उपासमा णं आवसहा गुणरवणार्ण पवा संतीए निवासे सुषणमेत्तीर्ण, एवं तेसि बचासरवन्न निजगुगरपणाणपि जाहे अग्रहकम्मोएणं ग पहपए संपया नाहे ग पहुपति अवाहिवामयामहिमादओ हदेवयाणं जहिथिए प्रयासकारे साहम्मियसमाणो बंधुणसंपवहारे या।। अहन्नया अपने अतिहिसकारेसु अपरिजमाणेसु पणइयणमणोरहेसु बिहड़तेसुथ सुहित्यणमित्नधक्कानपुनणपगणेमु विसायभुवगएहि गोथमा चितिय तेहिं सहदगेहि, नंजहा- जानिहोना परिसस्स होइ आणापडिण्डो लोगो।गलिउदयं धर्ण विजुलाविदूरंपरिचया ॥१॥ एवंच चितिऊण परोप्पर मणिडमारदे, तत्व पढमो- पुरिसेण माणधणजिएण परिवीणभागनेणं ने देखा गंना जन्य सवासा ग दीसंनि ॥२॥ तहा बीओ 'जस्म धणं तस्स जणो जस्सऽत्यो तस्स बंधवा बहवेधणरहिमो उमणसो होर समो दासपेसेहिं ॥३॥ अह एवमपरोपर जोजेर. संजोनेऊण गोषमा ! कर्य देसपरिचायनिष्ठयं तेहिति जहा पचायो देसंवरंति, नत्याग कयाई पुज्नति चिरचिलिए मनोरहे हवा पाजाए सह संजोगो जद दिनोबा मन्नेजा, जापणं उझिाकर्ण न कमागय कुसन्धलं पडियन्न निदेशगमणे । २। अहऽन्नया अनुप्पाहणं गठमाणेहि विद्या तेहि पंच साहुणो कई समणोचासगति, तो भनियं गाइलेण-जहा भो भो गमती: भरमुह पेट के रिसो साहुसयो', ता एएणं वेव साइसत्येणं गच्छामो, जड पुणोचि चूर्ण मेता, नेग भणिय एवं होउत्ति, नमो संमिलिया जन्य साये, जारणं पयाणमग वहति नाचणं भनिओ सुमती गाइलेणं, जहा महमूह गए हरिसतिलयमरणयच्छविणो सुगहियनामजस्स बाचीसहमतित्वगरस्सणं अरिहनेमिनामस्स पायमूने महनिसम्मेण एमचारिय आसी, जहा जे एवंविहे अणगारको मति ने य कुसीले, जे य कुसीले ने रिडीएवि निरिक्सिडेन काति, ना एते साहुणोतारिसे, मगार्ग न कपए एनेसिस अम्हाण गमणसंसगी, ता वयं एते, अम्हे अप्पसत्येण र पासामो, न कीरह नित्ययस्वयणस्थानिकमो, जो समुरासुरस्यापि जगस्स अलंपणिहा नित्थयरवाणी, अन्नंच जाच एतेहि समं गम्मद साधणं चिहाउसाच दरिलणं, आलाबादी णियमा भति, ता फिमम्हेहि तित्यपरवाणि पित्ताणं गत एवं तमणुमाविऊण ने सुमति हत्ये गहाय निजडिओ नाइलो साहुसत्याजो।३। निविडोवासुविसोहीए फासुगे भूपएसे, नबो मणिय मुमदना,जहा गुरुणो मायापित्तरस जेहभाषा नहेब भहणीण जन्युनर न दिजा हा देव भजामि किंतत्य ? ॥४॥ आएसेऽपि इमाणं पमाणपुर्व तहसि ना(का)य। मंगुलममंगुलं या नत्य विचारी न कायरो ॥५॥गर एव यी मे अज दावा अजमुनरमिमस्सा खरफरसककसाणिनिरसहित ॥६॥ पादचा पर उच्छल जीहा में जेहभाउणो पुरसओ ?। जस्मुढ़ी विपियंसणोह रमिजोऽसहविलिनो ॥ ७॥ अहना कीस ण लगाइ एस सर्व च एव पभणतो?। जंतु कुसीले एते दिडीएवीण दवने ॥८॥साहुणोति, जाच न एक्सायं वायरे नाव इमियागारकुसलेणं मुणि माइलेणं, जहा ण अख्यिकमाइनो एस मणगं सुमती, ता किमहं पहिमणामिति चिति समादत्तो जहा- कजेण विण अकंटे एस पवित्रो हुताय संचिहे। संपत अणुणिजतो ण याणिमो कि च बहु मन्ने ?॥९॥ ताकि जणुणेमिमिण उपाहु पोलउ सणवताल था। जेणुवसमियकसाओ पहिरजातं नहा सर्व ॥१०॥ अहला पत्यापमिणं एयरसपि संसर्य जयहरेमिा एस ण बागा भरो जाप विसेसं गाऽपरिकहियं ॥१॥ति चितऊर्ण मनिउमादत्तो-नो देमि तुम दोसग पावि कालरस देमि दीसमह। हियमुदीएं सहोयरावि मचिया पकुष्पति ॥२॥ जीवाणं चिय एवं दोसं कम्मडजालकसियाण जपउगानिष्किाणं हिजओचएस नबुझति ॥३॥ पणरागदीसकुममोहमिहत्तसवलियमणार्ग। भाइ चिर्स कालउडे हिमोपएसामयणा ॥१॥लि, एकमायग्निऊण तो भणिय सुमाणा, जहा तुम चेष समवादी भनम एवाई. परं गजनमेवं जं साह अपनवार्य मासिना, अन्न कि न पेष्ठसि तुम एएसि महाणुमागाणं चिहिय?, उमदसमदुवालसमाससमणाईहिं आहारगहणं गिम्हामु थापगडा वीरासबउकडयासणनाणामिगहधारणेणं च कहनचोऽणुचर. मेणं चपयुक्त मंससोगियंति, महाउवासगो सि तुमं महामासासमिती पिइया नए जेगेरिसगुणोचउत्तापि महाभागाणं साहम कुसीलत्ति नाम संकप्पियंति, नओ भणिय नाइलेणं-जहा मा पच्छ! तुम एतेगं परिओसमुपयासु, जहा अहयं आसबारेण परामसिओज, अकामनिजराएवि किंचि कम्मरखयं भरा, किं पुगज बालतवेणं !, ता एते पालतम११३४ महानिशीपच्छेदमूर्ष, art-1 मुनि दीपरमागरम ज पसीने अप्पसत्येण पे समं गम्मद साह दीप अनुक्रम [६५४] श अत्र तृतियं अध्ययनं समाप्तं अत्र चतुर्थ अध्ययनं- "कशील-संसर्गी आरब्ध: ~ 23~

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