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आगम
(३९)
प्रत सूत्रांक
[१८]
गाथा
||१२३||
दीप
अनुक्रम [८२४]
ドンチョディションマンション
“महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं)
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मूलं [१८] + गाथाः || १२३||
अध्ययन [ ५ ], उद्देशक [-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... .... आगमसूत्र [३९], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ" मूलं
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श्रीकुपवा से गोयमा जे केई जायरिएड वा मयहरएइ वा गीयत्ये वा अगीयत्वेह वा आयरियगुणकलिएड या मयहरगुनकलिए वा भविस्सायरिएड वा भविस्समयहरएइ वा लीभेण वा गारवेण वा दोन्हं गाउयसवाणं अन्तरं पाशा से गोयमा इस्कमिय मेरे से णं पवयनकार से त्यिवच्छित्तिकारए से संपत्तिकारए से णं वसणाभिभृए से णं अदिपरयोगपबचाए से णं अणायारपचिने से णं अकलवारी से पाये सेणं पापपाये से णं महापापपात्रे से गोपमा अभिहियचमिच्छादिट्टी १८ से भय के जणं एवं बइ गोयम आयारे मोक्यो जो अणायारे मोक्यमग्गे एएवं ब्रहेण एवं चुम्बई से भयर्थ! कमरे से आधारे करे वा से अणाबारे गोयमा आधारे आणा. अणायारे नंनप्पडिक्क्ले, तत्थ जे नं आणापडिक्क्स्ले से णं एते सम्रपयारेहिं सहा वणिजे जे आणापडियों से एगणं लक्षपयारेहिणं समा आय रणि नागोया जाणिला जाणं एस णं साम चिराजा से सावित्रा १९ से भय कह परिक्खा गोयमाणं जे केइ पुरिसे या इथियाओ का सामनं परिजिकामे कंपेरा वा रहरेज्जा निसीएज्जा उडापकरेज समने वा परगने का आसाएड वा साए वा तदहुतं वा इजा पोहवा गहने दोइजमाणे कोई उपाए वा अहे दोनिमित्ने वा भवेजा से णं गीयत्थे गणी अन्नयरे या महादी महया नेउन्नेषं निरूवेला जस्सगं एयाई परं तजा से णो पावेजा से गुरूपडिणीए भविता से निम्सले भजा सम्वहा से पधारे केवल एग अकरए भवेशा से जे वाले का गुण वा विद्याण या गारपिए भवेज्ञा से णं संजय पडसीले भवेज्जा से बहुचे भजा २० से भयवं कमरे से बहुवे वृच जे ओसन्नविहारीणं ओसमे उज्यविहारीणं उज्जुषधिहारी निम्म निम्मी रंगए चार इव गडे खणेण रामे यख खच दसगीपरावजे खणेणं टप्पपरकचतुरजराजनगर सर्वच भरिए पिस ॥१२॥ तिरियं च जानी वाणरहणमंत केसरी। जहां णं एस गोयमा तहाँ से बहु ॥ १२४ ॥ एवं गोमजे में असई कमाई के चुकखलिएणं पडावेजा से णं दुरदाणवयहिए कला से णं सनिहिए गो धरेशा से आयरे गो आ मनोरणे तो पढिनेहा से नो उहिलेजा से णं तस्स सत्यं नो अणुजाला से णं नस्त सदि गुज्रहस्व मंतिया एवं गोवमा जे केई एदोसविमुके से गोयमा मच्छप जणारियणी पाजा एवं सानो पड़ा एवं गणना एवं एवं विकपियकरचरण एवं छिन्नकन्ननासा. एवं कुवाहीए गरमाणसह यवहिरं एवं अकडकायं एवं बहुपास एवं पणरागदोसमोमिच्छत्तमलखपतियं एवं उस एवं पोराजन एवं जिला देववनीकरण मोडयं चक्र एवं उन (महड) चार एवं कापावे. एवं तु जाप में नामहीणं धामही जाइहीणं कुलहीणं बुद्धिही पन्नाही गामउदययहरं वा गामउमपहर वा अपना निदियामहीजाइयं वा अविन्नाय गोमा दिक्ले गोपाविजा. एएस तु पार्थ अन्नपरपए खज्जा जी सहसा देणपुत्र कोडीन गोयम २१ एवं पाले नहेब (ज) जहा (मणियं) । स्यमन्नकिनेको गोयम मुक्तं ॥ १२५ ॥ गच्छेति गमिस्संति व ससुरापुर जगणमंसिए बीरे भुवणेक्कपाटजसे जमणिगुणहिए] गणिणो ॥ १२६ ॥ से व जेई यसमयमा होत्या विहीएड वा अविएड वाफस रामंडलम्मा उनीसहित सत्यमेवनात परियारस्वामा वा बायाएका कारण वा कहिच ठाणे न्यादिपरिणामे होना अस पोज पा पापमा वा अनुमाने वा से आराहने उचार जणाराहगे ?, गोयमा अणाराह से भय के अगं एवं पुबइ जहां मं गोवमा अगारा, गोपमा इमे दुवासंगे सुपना अपमा नि सम्भूयस्थपसा अाइसि सेणं विददाणं अतुलबलवीरएसरियसनपर कम महापुरिसावार के निदान सोहा इसका सर्वदा जिणचराणं अणासिदार्थ अपना पह्माणसमयसिज्जामामार्ण अन्नेति व आसन्नपुरका अनंताणं सुगहिनामा महायसाणं महासत्ताणं महाणुभागाणं तिला नाणं जगणं जमेवंपूर्ण जगगुरू रिसीणं पत्रस्वरधम्मनित्यंकरा अहंताणं भगवंताणं भूयभविस्साईयणागपरमाणनिखिलसेकसिदिवसभाषा असहाए परे एक से मुमनाए अपनाए बंधनाए ि वपन्न जड़िए जड़िए चैत्र मास जहिए जहए जहिए एक से इमे दुवासंगे गणिपिट, सिपि ददानं गिखिलजगविदियसर सज्जन आगइ (इति) हासबुद्धिजीवाइनले जाए सहायकमणि जगासायनिज्जे नहा चैत्र मे दुवासंगे सुना सजगज्जीपण भूयसत्ताणं एगने दिए मुद्दे स्वमे नीसेसिए आगुगामिए पारगामिए पसत्वे महत्ये महागुणे महाणुभावे महापुराणुचिन्ने परमरिसिदेखिए दुक्लक्सयाए कम्मखयाए मोक्याए संसार नारनवाए निकट उपसंजिना विहरि किमुतमन्न ता. गोयमा जे के अमुचियसमयसग्भावे या विश्यसमयसारे वा अविहीएड वा गच्छाहिवई वा आयरिएड या अंनोविदपरिणामेत्रि होत्या. गच्छायारमंडलमा उनीसही आपारादि जान में अक्षरस्सा आ पसगाइकरणिस्स में पयसारम्स असती मुकेश वा खल या ते इमे दुवाल सुनाने असा पयरेजा, जे इमे दुवासंगपणाणनिषदंतरोग एवं पयअक्वरमपि अग्रहा पयरे से गं उम्मी पर्वसेजा, जे पं उम्ममी पर्यसे से गंजणाराने भवेज्जा ता एएम अद्वेगं एवं सुखद जहा गोयमा एतेषं अणाराहगे २२ से भय अथ कई जणमिणमो परमगुरूणंची अणि परमसरणं फुटं पवई पपई परमा कणिकम्महदुक्खनिवर्ण पचणं अमेज या पकमेज्ज वा पेज वा संदेज्ज वा विराहेज्ज वा आसाइज्ज वा से मणसा वा वचसा का कायसा वा जाय गं बयासी गोयमाणं अगते काले परिवहमाणेणं संपयं दस अच्छे भवितत्य असलेले अभ असंखेज्जे मिच्छादिट्टी असंखेज्जे सासायणे दपलिंगमासीय सच्छंदता मेर्ण सफारिज्जते एन्ए धम्मिगतिका बहुये अदिकला जणं पश्यति (२८६) १९४४ महान असणे
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मुनि दीपसागर
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जाना एवं पंगु जयंगम चरणकर