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आगम
(३९)
प्रत
सूत्रांक
[१]
गाथा
||||
दीप
अनुक्रम [६८४]
"महानिशीथ" छेदसूत्र -६ (मूलं)
-
अध्ययन [ ५ ],
उद्देशक [-1.
मूलं [१] + गाथाः || १था
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ........... .... आगमसूत्र - [ ३९ ], छेदसूत्र [६] "महानिशीथ मूलं
या अध्ययनानि, अस्यैव कतिपयैः परिमितैराठापरधानमित्यर्थः यत् स्थानसमवायजीयाभिगमपज्ञापनादिषु न कथंचिदिदमाचस्ये यथा प्रतिसंतापकस्थलमस्ति तद्गुहावासिनस्तु मनुजास्तेषु च परमाधार्मिकाणां पुनः पुनः सप्ताष्टवान् यावदुपपातः तेषां चला परहसंपुटैर्मिलितानां परिपीड्यमानानामपि संवत्सरं यावत्प्राणव्यापत्तिर्न भवतीति वृद्धवादस्तु पुनर्यथा तावदिदमा सूत्र, विकृतिनं सायद मविष्टा प्रभूताथाश्रुत स्कंधे अर्थाः सुप्तवतिशयेन सातिशयानि गणधरोक्तानि वह वचनानि तदेवं स्थिते न किंचिदाशंकनीयं ११ एवं कुसीलसग्गि सोवाएहिं पहिलं उम्मग्गपट्टियं गच्छं जे वासे लिंगजीवगं ॥१॥ से गं निविग्धमफिलि सामन्तं संजम नेजा ने सिया भावे, मोक्खे दूरयरं लिए ॥ २॥ अयेंगे गोयमा पाणी, जे ते उम्मम्मापट्टियं गच्च संवासइत्ताणं, ममती भवपरंपरं ॥ ३॥ जामदजामं दिगप, मासं संपवा सम्ममापट्टिए गच्छे संवसमास गोयमा ॥४॥ लीलायमाणस्स निरुच्छाहस्त धीमनं पक्खोचेक्लीय पन्नेए महाणुभागाण साहु ॥ ५॥ उनमें सचामे पोरवीरतमाइ सक्वासंकभया तस्स वीरियं समुच्छ ॥ ६ ॥ पीरिएणं तु जीवस्स. समुच्छलिएण गोधमा जंमंतरकर पाये, पाणी हियएण निये ॥ ७ ॥ तम्हा निउ निमाले गच्छ सम्पापट्टियं निवसे तत्थ आजम्मं गोयमा संग मुर्गी ॥८॥ से भयर्थ कमरे से गच्यो जेणं यासेज एवं तु गच्छस पुच्छा जाणं ययासी, गोयमा जत्य णं समसत्तुमितले अर्थसुनिम्मसुतकर आसायणाभी सपरोवयारमन्युजए उनका सामु अमादी सविसेसचेतियसमयसम्भावे दाणविमुके सत्य अणिगृहियचलवरियपुरिसकारपरक एवं संजईकपपरिभोगनिए एते धम्मंतराय एतेन (स) लई एतेषं इत्यिकहा मत हालेक द्वारायकहा जणवयकहापरिमट्ठायारका एवं विचितियारसबनीस विचिनमप्यमेाविप्यमुळे एते जहालीए अडारसहं सीलंगसहस्साणं आराइगे सयलमहचिसाणुसमयममिलाए जोवगम्यरूपए बहुगुणकलिए मडिए अलसी नेगमहायसे महासत्ते महाणुभागे नाणदंसणचरणगुणावचे गणी [१] से भययं किमेस बाजा ? गोमा त्ये जे वासेला अत्येगे जे गं पोवासेना से भय के अद्वेणं एवं बुध जहां गोमा जे वाजा अन्ये जेणं नो वाजा, गोषमा अत्येगे जे आगाए लिए अथे जे आणाविरागे जे आणाठिए से सम्बदमनाणचरिताराहये, जे णं सम्मणनाण परिताराह से गंगोमा अर्थतविक सु (यह मोमोजे व उण आणाविराह से पंजाबंधी कोई से णं अतानुबंधी माणे सेणं अतानुबंधी कपये से अाधी लोभे जे अर्णतागुचंधी को हाइकसाथ चडके से णं पणरागदोसमोहम छतपुंजे से णं घणरागदोसमोहमिच्छत्तपुंजे से अगुत्तरपोरसंसारसमुदे जे अणुत्तरघोरसंसारसमुद्दे से पुणो २ मे पुणो २ जरा पुग्यो २ म जे पुणो २ जम्मजरामरण से गं पुणो २ बहुमतरपरावते जे पुणो २ बहुमतपराय से पुणो २ लसीइजोखिमाहिंट जे पुणो २ लसी जोक्सिमा से पुणो २ मुदुस पोरतिमिसंघारे रुहिरचिलिचिले वसपूयवंतपित्तभिचिखतदुग्धा किल्ली जंत्रालय कविसत्यरंटपडिपुत्रे अणिउत्रियणिऽइपोरखंडमहारो दुस्वदारणे गम्भपरंपरापवेसे जे गं पुणो २ दारुणे गन्धपरंपरापसे से दुक्खे से गं कैसे से र्ण रोगार्थ के से सोगसंतापुत्रेय जेणं दुक्ख केसरोगार्थ कसोगसंताप से अणि बुली जेणं अनिवृत्ती से जट्टियमणोरहाणं असंपत्ती जे गं जहट्टियमणोरहाणं असंपत्ती से नं नाव पंचम्पारअंतराय कम्मोदर जत्य पंचम्पयारकम्मोदर एत्य णं सवाणं अम्गणीए पढमे नाच दारिदे जेणं दारिदे सेवा अयसम्मका अतिनिकटकराती मेलामागमे जेथे अपसम्भवाणजकित्सिकलंकरासी गाने से व जे निदणिजे जे जे जे सम्रपरिभूयजीविये जेणं परिभूयजी पिए से णं सम्मदंसणनाणचरितगुणेहिं सुदूरपरेण विप्यमुळे चैत्र मयजम्मे अब्रहा वा समपरिए चेषणं भवेजा, जेणं सम्मदंसणनाणचरिता गुणेहि सुदूरयाणं विप्यमुक्के शेष न भये से णं अनिरुद्धासदार चैत्र, जेणं अनि रुदासपास्ते चैव से बहलाका बलपावकम्मायय से बंधे से णं बंधी से गंगुली से णं चार से पूर्ण सहमकडाणमंगलजाले दुडियोले नगाइए कम्मली से कक्लडपण निगाइयकम्मगंठी से षणं एगिंदियत्ताए बंदिलाए तेईदियताएं चरिदिवचाए पंचिदियत्ताए नास्पतिरिय्कुमाणुसे अणेगविहं सारीरमाणसं दुःखमणुभवमाणे देय, एए अद्वेणं गोयमा एवं युवइ जहा जत्थेगे जे वासेना अत्येंगे जे नो वाजा २ से भययं कि मिल्छ उच्छाइए के गच्छे भवेजा, गोयमा जे गं से आणाचिरागे मन्छे भवेजा से नियमिन्छ उच्छा भला से भय कपरा उण ता जाणा जीए लिए गच्छे आगे भवेजा, गोयमा संखाइएहिं धातरहि गच्छस में जाना पहना जाए लिए गते आगे मजा ३ से भय कि सिखाती मेरा जन्थि के अन्य भाणंतरे जे उस्सयोग या अवाएग वा कहनि पमापदोसेणं असई अफमेल कण या आराहगे भवेजा, गोपमा मिच्छयओ नत्थि से भय के अद्वेणं एवं बुम्बइ जहां णं निच्छपज नन्थि, गोयमा तित्थयरे साथपरे नित्थे पूर्ण चाडबन्ने समणसं स गच्छे पढ़िए, गच्छेत्रिणं सम्महंसणनाणचरिते पड़िए, ते य सम्मदंसणनाणयरिते परमपुजणं गुजरे परमसरण्णा सरणपरे परमसे परे ताईच जन्य गं गच्छेअन्नयरे ठाणे कल्प विराजिति से गच्छे सम्मापणास उम्मदेसए जेणं गच्छे सम्मग्गपणास उम्मदेसर से निच्छवाह एवं गोयमा एवं पुई जहान संखादीधाण गच्छे मेरादाराजे गच्छे एगमन्नयरहाणं अइकमेव आणाचिरागे । ४। से भगवं वइयं का जाप गच्छस्स णं मेरा पन्नविया केवइयं का जाव णं गच्चस मेरा बाइकमेया गीयमा जागणं महायसे महासने महासुभागे दुप्पस अणगारे साथ मेरा पचविया जाप महायसे महासने महाणुभागे दुप्पस अणगारे ताव णं गच्छ मेरा नाइकमेचा १५० से भय कमरे में लिंगेहि कमियमेरे आसावणाबद्दल उम्मम्मपट्टियं गई बियाणेज्ञा १, गोयमा! जे असंठवियं सच्छंदयारिं अमुणियसमयसम्भावं लिंगोजीचं पीठफलगपडिवढं अफासुबाहिरपानपरिभोई अमुणियसत्तमंदीधम्मं साचस्सगकालाकारं वरसगाणिक उपारितावस्पर्श ११३८ महानिछेद अ
मुनि दीपालसागर
अत्र चतुर्थ अध्ययनं समाप्तं
अत्र पंचमं अध्ययनं "नवनीत सारं" आरब्धः
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