Book Title: Aagam 39 MAHA NISHITH Moolam ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 8
________________ आगम (३९) “महानिशीथ" - छेदसूत्र-६ (मूल) अध्ययन [१], ............--- उद्देशक [-], ---------- मूलं [७] +गाथा:||१७०|| मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३९], छेदसूत्र - [६] "महानिशीथ" मूलं गाथा ||१७०|| नो नियरिय कहे। राया जीयं निकिंवामि, मह नियरिय कह।१७०॥ पाणेहिपि स्वयं संतो, नियरिय कहेइ नो । सरस्सहरणं च रज च, पाधी परिचएम णं ॥१॥मयाधि जति पायाले. नियरिय कहति नो। जे पावाहम्मबुद्धीया, काउरिसा एमजमिणो। ते गोरति समरिच, नोसप्पुत्सिा महामती ॥२॥ सप्पुरिसा ने ण बुति. जे दाणपईह दुजणे । सप्पुरिसाणं चरित्ने भणिया, जे निस्साडा नवे रचा ॥३॥ आया अगिच्छमाणोऽवी. पावसाहोहिंगोयमा!। णिमिसदाणतगुणिएडि. पूरिजे नियपिया ॥४वाइंच माणसझापपोतवसंजमेण या निईमेण अमाएप, नक्समं जो समुदरे ॥५॥ आलोएनाग पीसतं, निदिउँ गरहिउ दह नह पाई पायलिन, जह सावागमन करे ॥६॥ अनजम्मपत्तागं, खेतीभूयाणवी दई। णिमिसहरणमुत्तेणं, आजम्मेणेय निच्छिओ। सो मुहहो सो य पुरिसो, सो नपस्तीस पंडिओ। संतो वनो निमुने प. सहलं नस्सेर जीवियं ॥८॥ सरो। व सो सलाहो य. दहयो य सणे सणे । जो सुदालोयणं देतो, नियरिय कहे फुटे ॥९॥ अत्यगे गोयमा ! पाणी, जे साई अबरदियं माया रजा मया मोहा, मुसकारा हिपए परे ॥१८०॥ न तस्स गुरुतरं क्सं होणसनस्स संजणे। से चित्ते अनाणदोसाओ, पोखरं दुक्पिनिह किळ १॥ एगधारो दुचारोवा, लोहसलो अणुहिमो। साग स्थाम जमर्ग, अहया मंसीमवेद सो॥२॥ पाचसहो पुणासखे, निक्खधारी सुदाममो। बहुभवतर सवंग, मिंदे, पुलिसो गिरी जहा ॥३॥ जयेगे गोबमा ! पाणी, जे भवसायसाहस्सिए। सज्मायज्माणजोगेण, घोरतवसंतमेण य॥३॥ सालाई उद्धरे ऊर्ग, विरया ना क्सकेसओ। पमाया विउतिउणेहि, परिजनी पुणोविय ॥४॥ जम्मनरेग बएस, तवसा निदफम्मुणो। सद्धरणस्स सामत्वं, मयंती कहविजं पुणो ॥५॥ तं सामगि लमित्ताणं, जे पमायवसं गए। वे मुसिए सबभावणं, कावाणाणं भये भने ॥ ६॥ अस्पेगे मोयमा ! पाणी,जे पमायवतं गए। घर नेपी वर्ष पोरे, साई गोति सबहा ॥ ७॥ गेर्य तत्थ बियाणति, जहा किमम्हेहिं गोबियं ?। जं पंचलोगपालापा, पंचंडियाणं च न गोचिये ॥८॥ पंचमहालोगपाहि. अप्पा पंचेंदिएहि या एकारसेहि एनहि. विट्ठ सरासरे जगे | ॥९॥ता गोयम भाषदोसण, आया चिनाइ पर। जेगं चउगइसंसारे, हिंटर सोस्लेहि चित्रो ॥१९०॥ एवं नाऊग काय, निष्ठियहियवधीस्थिा। महाउनिमसतर्कतणं, भियत्रा मायारक्ससी ॥१॥हवे अजयभावेण, निम्महिऊण अणेगहा। विषयातीजकुसेण पुणो, माणगई वसीको ।।२॥ महवमुसलेग ता चूरे, बीसयरि(स)यं जाव दूरओ। बठूर्ण कोहको(लो)हाही(मपरे निदे संपते ॥३॥कोहो य मागों य अणिमहीया, मायाय लोभो य पबदमाणा। चत्तारिएए कसिणा कसाया, पोयति साने सुदबारे पहुं॥४॥ उपसमेण हणे कोहं. मार्ण मरणया जिणे। मार्च जयभावेणं. लोभ संतुहिओ जिणे ॥५॥ एवं निजियकमाए जे, सनभयहाणविरहिए। अहमयविषमुके या देला सबालोवणं ॥ ६॥ सुपरिफुट जहावतं, सर्व नियदुफियं कहे। गीसके य असंखुढे निम्मीए गुसंनियं ॥ ७॥ भूगोधुनहगे पाले, जह पालये उज्नुए । अपि उप तहा सर्व, आलीया जहहियं ॥८॥ पायाले पविसित्ता, अंतरजलमंतरे वा। फयमह रातोऽधकारे वा, जगणीएवि समं भवे ॥९॥ तं जहवतं कहेंबई, सामपि णिक्खिलं । नियकियसक्रियमादी, आलोयंतेहि गुरुयणे ॥२०॥ गुरुवि तिथयरभणिय, जे पन्छिन नहिं कहे। नीसातीभवति ने काउं, जह परिहस असंजर्म ॥१॥ असंजमं भवई पान, तं पाचममेगहा मुणे। हिंसा असमं चोरिक, मेहुर्ण नह परिग्गरं ॥२॥ सदाईदियफसाए प, मणचइतगुर्द वहा । एने पाचे अउरतो, नीसो गो यणं भवे ॥३॥ हिंसा पुढवादिउम्भेया, जहवा णपदसघोडसहा उ। अहका अगहाणेया, कायदंतरोहिणं ॥४॥ हिओचनेस पमोनूम, समुत्तमपारमस्थिय । तरयम्मस्स समसाई, मुसाचार्य अगहा ॥ ५॥ उम्गमउपायणेसणया, पायालीसाए मह या पंचहि दोसहिं दूलियं, ज मंडीवगरणपाणमाहारं, नपकोडीहि असुर्व, परिभुजत भो तेणी ॥६॥ दिवं कामरईसह, सिविहंतिविहेण अहब उराल। मणसा अनापसंतो, अभयारी भुणेयत्रो आनपर्षभरगुती चिराहए जो य साह समणी वा। दिहिमहवा सरागं, पहुंजमामो अइयरे में लागणा(प)वमाणहरितं, धम्मोषगरणं नहा। सकलायकरमावणं. जा पाणी कसिया भये सावजनदयोस, जा पडाने मुसा मुणे। ससरक्समनि अदिग्ण, गिण्हे ने चोरिकर्य ॥२१०० मेहुणे करकम्मेणं, सदादीण पियारणे। परिग्गरं जहि मुच्छा, लोहो कला ममन ॥१॥ अणूणोयरियमाठ, मुंजे राईभीषणं । सहस्साणि इयरस, कवरसम धस्सिस्स वा ॥२॥ण रागंग पदोसंपा, गच्छेना उसणं मुणी।कसागरस बचउकस्स. मगसि विज्ञापन करे ॥३॥ बुद्धेमणोपकायादंडे गो पं पउंजए। अफासुपाणपरिभोग, बीयकायसंपदणं ॥४॥ अदाना इमे पाचे, Fणो णीसाड़ी भवे। एएसि महंतपाचार्ण, देहत्वं जाप कत्थई ॥५॥ एचपि चिहए मुहम, मीसाठी वाप णो भये। तम्हा आलोयगं बाई, पायच्छिनं करेऊगा एवं निकाहनिरंभ, नीसतं काउंन ॥६॥ जय जत्योकजेजा, देवेसु माणुसेस वा। सत्य सत्युनमा जाई, उत्तमा सिदिसंपया। लभेजा उत्तम कर्य, सोहा जइणं नो सिजिमला तम्मने ॥२१॥ तिमि । महानिसीहसुवरसंधस्स पदम अज्झयर्ग सादरणं नाम १॥ एपस्स य कलिहियदोसो न दायको सुषहरेहि, किंतु जो पेष एयरस पुत्रायस्सिो आसि तत्वेष कपई सिटोगो कत्थई सिल्लोगर्द कत्थई पथक्सरं कत्थई अपसरपंतिया कत्थई पत्तगडिया कत्थई ये तिन्नि पत्तमाणि एपमा बहुमय परिगलियंति 11 निम्ममुवियसांगण, सामायण गोयमामाणे पपिसेतु सम्मेय, पचवं पासिया ॥१॥ जे सरणी जेवि बासन्नी, भनाभा जे जगे। सुहत्यी तिरियमुढाहे. बहमिहाति दसदिसि ॥२॥ असन्नी दुविहे गए. पियलिंदी एनिदिए। पियले किमिभुमच्छादी, पुढवावी एगिनिए॥३॥ पसुपक्लीमिगा सप्णी, नेरया मणुपा नरा । भवामवापि अस्येस, नीरए उभयवजिए४ा पम्मत्ता जति छायाए, वियलिंदी सिसिराय। होही सॉक्स किलम्हाण, ता दुक्ख सस्थती भये। ५। सुकुमाउंग गयता, खणदाई सिसिर खणं । न इर्म अहिबासर्ड, सकुर्ण एचमादियं ॥६॥ मेहुणसंकप्परागाओ, मोहा अण्णाणदोसओ । पुढवादीसु गएगिंदी, ग पाणती दुक्खं मह ॥७॥ परिवत चामतेविकाले बेइरियतणं । कई जीवाण पार्वती, केई पुणोऽगादियाविष।८॥ सीउण्डवावविवाडिया, मियपसुपक्सीसिरीसिया। सुमिणतेचि न लभंते, ते णिमिसिबभतरं यह ॥९॥ सरफरसतिसकरपनाइएहि. कालिजता खणे सणे। नियसते नारया नरए, वेसि सोपसं कुओ मो? ॥१०॥ सुरलोए जमरया सरिता, सोसि तस्थिमं हुई। उवा(हिए वाहणनाए, एगो अग्लो तमारदे ॥१॥ समतुलपाणिपादेणं, हाहा मे अत्तपरिणा। माया| १११८ महानिशीवच्छेदसूत्र -२ मुनि टोपसागर दीप अनुक्रम [१७७] अत्र प्रथम अध्ययन समाप्त अत्र दवितियं अध्ययनं- "कर्मविपाक-व्याकरणं" आरब्ध: ~7~

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