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निजिन विजय जी ने लिखा है कि- "इस ऐतिहासिक काव्य संचय में कई काव्य साहित्य की दृष्टि से भी उत्तम है और उनको पढ़ने पर कवि की काव्य प्रतिमा
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उनमें स्पष्ट मिलती है। इस संबंध में वि०स० १४९९ की साल में रचित देवरत्न सूरि काम है उसमें देवरत्न के सन्यास के बाद में कवि ने उनके ब्रहमचर्य की दृढ़ता को बड़े ही आलंकारिक सरस वर्णनों से संजोया है ।" "
कवि का मंगलाचरण ही पापा की प्रांजलता का प्रतीक है। शब्द सरस
व पदावली कोमल है:
fagar गगन विपासन दिवयर नयर जीरा उठिवासरे
नामिय निरंजन भव भय भंजन सज्जन रंजन पासरे
कविजन मानस सरवर हंसीय सरिसीय अविचल मत्तिरे ध्यार माविई देवी शारदा शारदा इति बरकंति रे
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बालक जावह के बचपन का वमैन भी अत्यन्त सरस है। ऐसा वर्णन अन्यत्र देखने को
कम ही मिलता है बाल रूप वर्णन बाल सुलभ चेष्टाएं, कोमल व मधुर वाणी आदि कवि के कौशल का प्रतीक है। वैशय में ही बालक के गुणों काललित वर्णन कवि ने उपमाओं और उत्प्रेवाओं में बांध कर किया है:
निर्मल निage कमs विवायर वायरस गंभीर
अनुदिन नव नव भाई मनोरथ रथवर बारधि पर रे
efeat मानस सरवर हंसी
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प्यार मावि देवी वारद शारद उवर कवि है ३
बालक को दीवा दी गई राम्रोत्सव हुए काम माये और बेले गए। श्री
जयानंवरि ने उन्हें दीवित किया। पाटन में इसमाल्हादकारी महोत्सव का आनंद
१- वही पृ० १५४
२- वही ५० १५५
३- नासिक मूर्जर काव्य संचयः पू० १५५१