Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya
Author(s): Harishankar Sharma
Publisher: Harishankar Sharma

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Page 1043
________________ ११४ तथा इसकी मेयवा व ताल ही इसे लोकप्रिय बनाने में सहायक हुई होगी। यह च भी जैन कवियों में अति प्रचलित रहा है। वह रास में मवैया की देशी बाहों में कुछ मात्रामों को घटा बबाकर निभंगी का प्रयोग मिलता है। त्रिमंगी मालिक और बर्षिक दोनों को मिलता है। प्रस्तुत कृति पेथहराम में इसका मात्रिक सही मिलता है। मात्रिक वृत्त या नात्त विभंगी (+ c+ ८) १ मात्रा मिलती है। यह अद्यावधि प्राप्त रानी हिन्दी की कृतियों में केवल बहराम ही मिलता है। कालान्तर में चंदबरदायी ने वीराज राणे में इसका प्रयोग किया था। त्रिभंगी छेद के उदाहरण देखिए। चम्भिव निमा लोबमलिक संवत्पर ममा भवीषण मानवीय परियतित पबीया लालाई धणकमल बलचि लीया रमि राम उर्व नवरस नवरंग मबीबपरे अपि सापानी पी जोशी निरंतर परेहि घरे।' देवालय गाठीव मावि विशातीय दितीय वाली रंमि फिरती इरिस भरे महिनावाला मला ना मोठा डा रवि रमई । (11) One more curious thing about the name Dripadi is that trak very old times. It is applied to matures which admittedly contain more than two 108 in them. Thna VJ8 II 1.) do fines # Dyipadi se a atrophe made with four Vastulon 8 ot413nesomhand+GItnot the Bhadrka type coming at the end of auch one of the four Vastukas. This 18 yar visual, though this in the meaning of the Text even Romaratheethem atater. पही पृ.५६-५० १ चरवाई और उमा काव्य - *. Kaha inी ५.२६ २ प्रा. गुग १० सं० श्री मान पृ. २५ जीशिर १० ३ वही १.२५

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