Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya
Author(s): Harishankar Sharma
Publisher: Harishankar Sharma

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Page 1059
________________ १०१० खेड १० रासक स्थिति- (३-४, १६-१७, २१-२४, ३२-३३ ) आंदोल- (५-६, १८-१९, २५-२६, ३४-३५ ) काय (७-१४ २०-२१, २७-३०, ३६) पालविक्रीडित (1) $8-1 (TE#- (3-1, 27-13, 37-13, 13-33), árato, urgsfest fau, फागु, तथा अगा छंदों का प्रयोग है। - मैं भी लगभग यहीं छन्द है। इस भाका कवि ने नूतनन्द प्रयुक्त किया है। जिसको कवि ने सवैया की देवी ढाल हवारा पुष्ट किया है। (२५) गोल जैन कृतियों में रंगसागर निकाय में एक महत्वपूर्ण चंद दो प्रयुक्त हुआ है। दो की स्थिति इस कृति में मौलिक है। एक उद्धरण दृष्टव्य है कोइति विरवयणी, मदिरामनवमी माटकि मरठी प, वनिवनि बहरी प पैमाण पतंग का काल मुंग चंपक दीप कूप, वनचर दीव क जाने किरि मधुकर सेमिम तेह सिरि बीपी (रंगसागरनेमिका) (1) TET छंद में कवि ने नया संद माता मयुक्त किया है तथा इसी में सवैया का है विधा निबंध किया है। एक उद्धरण देखिए बावनी वसूली रे उपरि चकमवेरो रे मानिक मोदी की रे मोवन पाटे सुंदर रे उपरिहरनिधापि गाडी पनि आढो रे वा गनिमय बोर्डर मोती धाव रे । इसमें सवैया की ही डाल इस छेद की पहली कड़ी में प्रयुक्त किया है।

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