Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya
Author(s): Harishankar Sharma
Publisher: Harishankar Sharma

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Page 1075
________________ १०२५ प्रस्तुत अध्ययन की सीमाओं के अन्तर्गत भी फलतः यह आसानी से देखा जा सकता हैकि आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य का योग हिन्दी साहित्य के इतिहास में असाधारण है। यह और भी पूर्व और व्यवस्थित अध्ययन की अपेक्षा करता है और किसी भी दृष्टि से ऐसा नहीं है कि इसकी उपेक्षा की जा सके। वस्तुतः यह हिन्दी के ज्वलंत भूत का एक अत्यन्त उपयोगी अंश है, जो जैम महात्माओं, श्रेष्ठियों और उदार व्यक्तियों के प्रयास से सुरक्षित रह सका है और यह उस भाशा की एक उज्जवल किरण है जो हिन्दी सेवियों को भादिकालीन हिन्दी साहित्य के जैतिर अंशों की बोज और परिशीलन के लिए साहस प्रदान करती है। (१०) हिन्दी साहित्य को इन कृतियों की देन प्रस्तुत अध्ययन से कम स निदुर्ग पर महुंचते हैं कि आदि कालीम हिन्दी जैन कृतियों में हिन्दी साहित्य के प्रत्येक काल की काव्यधारजनों को प्रभावित किया है। प्रेमाख्यानक काव्य, भक्ति काव्य निर्गुण काव्य तथा साहित्य की विविध काव्य धारानों और काव्य रूपों को इन रचनाओंों ने प्रभावित किया है। साथ ही कला पथ के विविध तत्वों द, अलंकार, प्रकृति किम, रस आदि इष्टियों से पी इन कृतियों की हिन्दी साहित्य को विशेष देन है। वस्तुतः areerata on pfतयों में विशेष काव्य यों में हुआ है वह अपने में पर्याप्त वैविध्य और जीव तत्वों का समावेद लिए हुए है। साथ ही इनरचनाओं में देवी भाषाओं की मिठास पोटी है। निक्कतः क्या काव्य और क्या मढ़य पर्व विविध काव्य आदि सभी में इन कृतियों ने हिन्दी साहित्य का भंडार मरा है। वास्तव में हिन्दी साहित्यको श्रीवृदिध करने में इन रचनाओं का अपना नूठा योग है। इस प्रकार इन रचनाओं को ब्लुशीलन से आविकाल की जैन कृतियों की after का शुमान लगाया जा सकता है। अद्यावधि अजमेर, मामोर, बिल्ली, मेरठ, बहस, सहारनपुर, अम्बाला त्या लवंड मध्यप्रदेश, पर्व भारत के ही नामी प्रदेशों के भंडारों की चम्यक् शोध होने पर हिन्दी जैन रचनाओं की सम्पन्नता में और श्रीवृद्धि हो सकेगी बभी राजस्थान

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