Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya
Author(s): Harishankar Sharma
Publisher: Harishankar Sharma

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Page 1066
________________ माडली एबीहतपे जाइहि दोहा दुरिय दालिद दुइ सयल दूरे माहेली ए बीड तबइ मंदिर विकसद संपति सय वरसु भरि पूरो।।' उक्त रवनावों में प्रयुक्त मात्रिक और वर्षिक वृत्तों में कुछ प्रमुख ॐदी का विश्लेषण किया गया है। जैन रचनाओं में ही नहीं बत्कालीन आदिकालीन अजैन रचनागों में बीजलदेव रायो, श्रीधर व्यास रचित रवमल छंद, असाइत विरचित ईसाउली, भीम विरवित सवयवत्स बरित था बसत मिलास का (शाब कवि कुड) मनासकृत कान्हड़ के प्रबंध, या बदल पश्वी राज राहो, जैव जैन अजैन अनेक ग्रन्थों में प्रयुक्त बों के साथ तुलना करने पर यह स्पष्ट होता है कि इन संदों में से कुछ मेवदेशी दो को छोड़कर व लगभग सभी छंदों की परंपरा चारकी ली की जैन तथा अन्य क्रीन कृतियों में मिल जाती है। इनमें मावा और बस्तु सबसे प्रमुख बाबा (बायी) और वस्तु की परंपरा प्रा बार का पुरविन कही। कषियों के बों से इन उक्त बजैन कृतियोंकी बुल्ला करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि येकनि गा गा कर विविध रागों नारा विकिन देशी मित्र बंधों का प्रयोग करते थे। देवी बंधी की पुष्टि इन कवियों की प्रमुख विशेषता है। इसके अतिरिक्त भी बरी, चामर आदि अनेक देवी मेध किक मारे। बोच माने पर और कौकि IPS IT नामयावधि उपलब्ध रमानों को प्रमुख बब उनमें का परिचय दिया गया १-बही . (1) The Matra Tratta waleh la next la importance to the Gatha both in point of antiquity and popularity is the Matre which I have fully described at Apaburansa metre I para 28. This notre is of course . petrely prakrit and Apbhransa metre and wae vidently used for struy religions, didactic or lyric poetry Doha is a similarly & purely Apburanaa metre but it i.. tal Vrutta se I have shown above and bes been employed since very old days both for lyric and narrativo poetry. of the remaining Prakrit and Ap. metres whieh I have des eribed in my hartioles, a vast majority are Matra vrattas, while comparatively & tew are Tala Vrattas. (Pाबासी) और बाा चिर प्रचलित होने से इनका विस्तार

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