Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya
Author(s): Harishankar Sharma
Publisher: Harishankar Sharma

View full book text
Previous | Next

Page 1071
________________ १०२१ - - - - - - - उपहार भाविकालीन हिन्दी जैन साहित्य के परिशीलन से जो तथ्य हमारे सामने प्रमुख म के भाई निम्नलिखिi. जैन कलियों के अध्ययन की अपेक्षा: इस निबन्ध के प्रथम अध्याय में यह प्रकट हुना होगा कि आदिकालीन हिन्दी साहित्य में जैन कृतियों का बाहुल्य होये हुए भी हिन्दी विद्वानों और साहित्य के इतिहासकारों द्वारा उसकी कितनी उपेक्षा हुई है। इस दिशा में जो कुछ कार्य पुबा है वह गुजराती और 3 राजस्थानी विद्वानों द्वारा ही किया गया है। आवश्यकता इस बात की है कि हिन्दी के विद्वान और इतिहासकार माविकालीम हिन्दी जैन साहित्य का परिशीलन करें और आदिकालीन हिन्दी साहित्य विकास में बैन कृतियों का जो योग है, उसका यथेष्ट स नियण करें। प्रस्तुत प्रबन्ध इसी उद्देश्य से समस्त प्राण प्रकाशित और अप्रकाशित सामग्री को लेते हुए लिया गया है। इम और समान की इस नि बरे गम्यायामामा होगा किन धर्म को पर्याप्त राम्या प्राप्त था। साथ ही देश की बत्कालीन सामाजिक राम्नतिक बास्कृतिक और आर्थिक स्थिति बहुल अच्छी नहीं होने पर भी जैन कवि नगर नबर प्रान ग्राम मधूमकर उपदेश को रो और काव्य रचना करते है क्या रावस्थान और गुजराब के डारी रखमा किस प्रकार सुरक्षित रह सकीं। सह विधान मि मिचीवरे अध्याय में यह स्पष्ट हो गया होगा कि कवियों और कर्मन के श विधानों के प्रचार के लिए सरस न्यायों और कामालक कड़ियों का नाणार लिया है इस तरह भाविकालीन हिन्दी मालियन के मूड सिधान्तों का वर्णन करते हुए भी सरस काव्य कोटि

Loading...

Page Navigation
1 ... 1069 1070 1071 1072 1073 1074 1075 1076