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प्रस्तुत रचना अम्बिकादेवी हमरा प्रकाशित की जा चुकी है। इस रचना की मूल प्रति बीकानेर बड़े भान भंडार में सुरक्षित है।रचना का प्रारम्भिक अंक पंडित मिला है। प्रारम्भ की चार गाथाएं इस ख मा में प्रति का पता न मिलने से उपलध नहीं हो सकी है।मत कति छन्दसे ही प्रारम्भ हुई है।अम्बिका देवी का यह बलहारा लोकमाषा की १४वीं बनाइबी की मुबार काव्यात्मक रचना है। कृति में रविता का नाम कहीं पी स्पष्ट नहीं होगा पर कवि ने एक जगह उदय रिदिध' का नाम लिया है अत: बहुव सम्भव है कि इस क्ष्यारिका के कवि का नाप स्वयं के नाम से ही हो। रचना की प्रति क्यों कि सं . की ही है अत: बहुत सम्भव है कि यह कति ४वीं वादी के उत्तराईध के अन्तिम वाक में हुई होगी।रचना का नामकरण बारा क्यों कियागया है इस सम्बन्ध में कोई विश्लेवन नहीं मिलता तथासाम ही बगावधि किसी प्राचीन मंडार में भी इसकी कोई प्रति उपलब्ध नहीं हुई। सा लहरा की काय परम्परा का हुई इसके लिए निश्चयपूर्वक वा भी नहीं कहा जा सकतारमा के वृत्त को देखते हुए यह एक क्था प्रधान काव्य है जिसमें अम्बिकादेवी के पूर्व भव वर्णन का विश्लेषण कियागया है। साथ ही इसका बोया बंश भी सम्भवतः अम्बिकादेवी
परिचय आदि प्रारम्य पवारों में होगा।
कवि ने पूरी रचना को पदों में लिखा जिसमें प्रारम्भ के पदों अम्बिकादेवी चरित्र की तुलना करना प्रारम्भ करता
बीतहिं आयु सीवा विरामी परी राना
सोहम वैरि यह पापी गीपिति बिम्बल निम्मक्यिा। पूरी रखना अम्बिका पूर्व की कामय मा स्था है जिसका हिसार -अम्बिकान पावलंबी थी और वैदिक धर्मानुयावी के पर स्वारी के नियम वो पुत्र हुए। एक दिन उसके ससुराल
.- हिन्दी अनुशीलन- वर्ष
पर श्री अगरब नाटा का ले।