Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya
Author(s): Harishankar Sharma
Publisher: Harishankar Sharma

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Page 1023
________________ ९७४ को इनतियों ने तालस्तों के रूप में ताल संगीत सुरक्षित रखता है।' इन पुरानी हिन्दी की कृतियों में प्रयुक्त ठाल और मात्रावृत्यों में वाल संगीत सुरक्षित रहा है जिसमें समय तत्व के आधार की पूरी पूरी रखा हुई है। साथ ही उपकरण सम्बन्धी महत्वपूर्ण बातों का सा समय है Time ) के आधार पर बिठाया गया है। वास्तव में इन छंदों को देश की प्रचलित लोक परम्पराओं ने पुष्ट किया है लोक गीतिकार पारयों ने भी गा पा कर इन अयमेव तथा पुरानी हिन्दी के वाल तथा मात्रिक वृत्तों को सुरक्षित रक्ता है। पाट और वालों ने इन दो को गाने तथा मनोविनोद के लिए लिखा था अतः ये समस्त संगीत प्रधान रहे थे। चारणों के पश्चात् अपमंड की इसी कड़ी में जैन साधुओं ने आगे बढ़ाया। जैन साधूसंस्कृत और प्राकृत के ग्रंथों में तो लिडते ही वे साथ में माजिक वृत्त वालय और बाल गीत में भी लिये थे। इसके अतिरिक्त जैन सम ने माना बंध के साथ कई मित्र बंधों का प्रयोग भी किया अनेक द इन्होंने गाने के लिए ही लिये अप का चपई, अहिल्ल तथा परकटिका छेदों को पचदर्थ उड़त किया जा सकता है। प्रो० वेलणकर ने तो कई ऐसे अपयों का उल्लेख मी किया है जिंक प्रयोग नृत्य में किया जाता हो। ऐसे छंदों में बहुत अधिक प्रयुक्त होने वाले या छेद का प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इन नामों में अनेक बंद प्रयुक् हुए है इनमें नये और पुराने मालिक और बार्षिक छेद है तो भी अनेक P It is thus that neither the Prakrit metricians nor the Prakrit bards sould have formulated the theory of the Matra. And yet the matra has clearly a reference to the Tala Bangita 1.e. musie in which time is kept as opposed to the awar sangits of the Vedas where no time is kept. Popular music is the Tala sangite and popular metres are the Tala metres. Journal of the Etverity of Babey page 52 APEHRANSA METRES II - By Prof. H.b. Velankar. देवियो १९३३-३५ पाम १० १२-३४ । - स्व०डी० देवकर, बम्बई यूनिवर्सिटी जर्नल न्

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