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ऊजेणी नउ जीपी राजा लेई सर्व राज
इन परि बाप खमा हूँ सारि मन बाछित सवि काज (६-८) कवि ने संयम मंजरी का रूप वर्णन पर्याप्त सरस किया है। कवि की अलंकारिकता
और प्रवाह दुष्टव्य है :
तीषि नयरि सुरसुन्दर राजा वसु घरि कमला राणी arse सुन्दरी तातणी धून रुषिई रंग समाप
सोल क्ला सुन्दरि ससि वयणी चंपकवन्नी बाल काजल सामल लहकइ वेणी चंचल नयम किसाल अधर सुरंग सजस्या परवाली सरल सुकोमल बाह पीण पयोहर अतिहिं पमेहर जाने अमिय पवाह
ऊर युगल किरि कहली शंमा चरण कमल सुकुमाल
मयगल जिम माहंती बाला बोल नयन रवाल (१७-१८) परम्परागत उपमानों की घटा तथा अनुप्रासात्मकता रचना में प्रवाह का मिठास बोल देते है। राजकुमारी का मंत्रि पुत्र पर मुग्ध हो जाना और मंत्री पुत्र का स्वामी की पुत्री पर हुए इस नीच मनोरथ के बचने के लिए अनेक संकल्प विकल्प करना दृष्ठ्य है। कवि विविध दृष्टान्तों और अन्तरन्यासों द्वारा कितना सुन्दर वर्णन करता है:
विक उपरिई नीच मनोरथ काइ
एह नाव जगती नही बाची वरम थाइ
किही सायर कही खिलाफ किया पर किही पास
किडी कायर किही वर छ किटी गम किकी सुरवाल fair पvिe for ने मिरि किही तर किही केकान किडी बाहर ही डार्क किडी व किही जान
किडी क्यूरी किडी रूम, किडी मानव किही देव किडी काबी किडी अमिय रस, किवी राजिम किडी सेव किडा रोरी किडी वर काय कियां दीक किही माण