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श्री राजेन्द्रकुमार, 'कुमरेश'
" एटा जिलामें है विलराम नाम एक ग्राम ताही बसत लाला झुन्नीलाल वानियाँ, ताके सात सुतनमें दूजो सुत कुमरेश
पढ़िवेकी खातिर विदेश चित्त ठानियाँ | थोड़ोसो कियो है याने हिन्दीको अभ्यास कछु
और कछु जाने नाहि जगको रितानियाँ, कविता न जाने, पर कविनकी संगतितें
टूटी-फूटी भाषत है नित्य ही तुकानियाँ ।"
-यह है 'कुमरेश' जीका जीवन परिचय --- उनके अपने शब्दों में । श्रापने आयुर्वेद कॉलेज, कानपुर में श्रायुर्वेदाचार्य तक अध्ययन किया है । सन् १९३२ से लिखना प्रारम्भ किया है और तबसे निरन्तर जैन- श्रजैन और हिन्दीके अन्य पत्रोंमें लिखते चले आ रहे हैं ।
आपने 'अंजना' और 'सम्राट् चन्द्रगुप्त' नामक दो खण्ड-काव्य लिखे हैं जो अभी प्रकाशित हैं । एक और खण्ड-काव्य श्राप लिख रहे हैं ।
आप नये-पुराने सभी ढंगोंकी कविता श्रासानीसे लिख सकते है । यह कुछ छायावादी शैलीको अपनाते हैं, फिर भी इनकी एक अपनी ही शैली है । इनकी बड़ी खूबी यह है कि विषयके अनुसार भाषाका सुगम या गहन प्रयोग करते हैं, जो स्वाभाविक प्रतीत होती है ।
'कुमरेश' जी प्रधानतः साहित्यिक अभिरुचिके आदमी हैं, और इसलिए आशा है आपकी रसधारा बढ़ती ही जायगी। आप कहानियाँ भी अच्छी लिखते हैं, जो पत्रोंमें प्रकाशित होती रहती हैं ।
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