Book Title: Aadhunik Jain Kavi
Author(s): Rama Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 224
________________ श्री कुसुमकुमारी, सरसावा नाविकसे देखो नाविक मेरी नैया, धीरे - धीरे खेना; मृदु आशाओंका वोझा है, कहीं भिड़ा मत देना; थरथर यह मन काँप रहा है , कहीं गिरा मत देना; नया धीरे-धीरे खेना। (२) भव-समुद्रकी अगणित वाधा , लहरों का तूफ़ान; यश-अपयशके झंझा झोके , वीच - वीच. चट्टान चट्टानोंसे वचकर चलना, . कहीं न टकरा देना; नया धीरे-वीरे खेना। ( ३ ) हाथ तुम्हारे काँप रहे हैं, इनको जरा थमाओ; छूट पड़े पतवार न देखो, पानी परे हटायो ; मुझे जरा उस पार लगा दो, ___ तव विराम तुम लेना ; नया धीरे-धीरे लेना। - १९८ -

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