Book Title: Aadhunik Jain Kavi
Author(s): Rama Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 222
________________ श्री चन्द्रप्रभा देवी, इन्दौर आप विख्यात व्यवसायी रावराजा तर सेठ हुकुमचन्दजीकी पुत्री हैं । आपको कविता प्रेम है और इस ओर उनका व तकका प्रयास सफल भी हुआ है । आशा है आपकी प्रतिभा भविष्यमें अधिकाधिक विकसित होगी। रणभेरी तुम नवजवान हो, ध्यान रहे, नस-नस में साहन नान रहे, निज देश-वर्मकी शान रहे, उन्नतिका श्रेष्ठ वितान रहे, संगठन शंख वज जाने दो, रणभेरी मुझे वजाने दो । वीरो, भारतका मान रहे, भारत वीरोंकी खान रहे, माता-बहनोंकी लाज रहे, सद्गुण पूरित सव साज रहे, पहलेकी स्मृति हो जाने दो, रण-मेरी मुझे बजाने दो । रज्ज्वल भारतकी ज्ञान तुम्हीं, अरमान तुम्हीं, अभिमान तुम्हीं, दुखिया नाताके प्राण तुम्हीं, सर्वस्व तुम्हीं, उत्थान तुम्हीं, यह नाव पुनः विसराने दो, रण-भेरी मुझे बजाने दो ! -- १९६ -·

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