Book Title: Aadhunik Jain Kavi
Author(s): Rama Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 235
________________ जीवन संगीत जगतका जीवन ही संगीत। उन्नति इसकी आरोही है, अवनति इसकी अवरोही है , कष्ट यातना क्लेश क्लान्ति ही है करुणाके गीत । जगतका जीवन ही संगीत । रहता दुखका स्वर वादी है, आशाका स्वर संवादी है, कष्ट कसक ही मीड़ मसक है दो हृदयोंकी प्रीत। ___ जगतका जीवन ही संगीत । खाली कभी भरी हो जाती , भरी कभी खाली बन जाती, कोमल तीव्र, तीव्र कोमल हो, यही प्रेमकी रीत। जगतका जीवन ही संगीत । - २०९ -

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