Book Title: Aadhunik Jain Kavi
Author(s): Rama Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 234
________________ बलिदान 1 जीवनका बलिदान मुझे दो सुखमय जीवन-दान न दो । करें । प्राजन मन बहलानेको हम मृदु वीणा भंकार करें ; इस जीवनका मूल्य मिलेगा, आज मृत्युसे प्यार करें । भून रहा मानवको मानव, पशुताका संहार करें ; शोषण, उत्पीड़नके बदले प्रलयंकर हुंकार 'जीवनका उत्सर्ग करें यह प्रण दो मुझको प्राण न दो । भक्तोंमें हो शक्ति, स्वयं भगवान दौड़कर आते हैं 'भक्त सगुणको निर्गुण श्री' निर्गुणको सगुण बनाते हैं । · यदि भगवान नृशंस क्रूरता घातकता अपनाते हैं ; तो विद्रोही भक्त ग्राज उनका अस्तित्व मिटाते हैं । भक्तोंने भगवान वनाये, भक्त मिले, भगवान न दो । भरा विश्वका भाग्य हमारे मस्तककी इस रोलीमें ; दीवाने - वनकर मिल जायें दीवानोंकी टोलीमें । भीषण नर-संहार मचेगा करुण-कंठकी बोलीमें ; - क्षण-भर में यह जगत जलेगा महानाशकी होलीमें । दो, सुखसे मुझको मर जाने जीनेका अरमान न दो । २०८

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