Book Title: Aadhunik Jain Kavi
Author(s): Rama Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 205
________________ श्री कमलादेवी जैन, 'राष्ट्रभाषा को विद' थाप प्रगतिशील विचारोंकी शिक्षित महिला हैं। पंडित परमेष्ठीदासजी 'न्यावतीर्य की आप धर्मपत्नी हैं । श्रापने धर्म, न्याय और साहित्यका खूद मनन किया है और कविताक्षेत्रमें विशेष सफलता प्राप्त की है । श्रापकी कितनी ही साहित्यिक रचनाएँ उच्चकोटिकी हैं । कवि सम्मेलनोंमें श्रापको अनेक स्वर्ण और रजत पदक भी मिल चुके हैं । श्राप न केवल अच्छा लिखती ही हैं, बल्कि कविताएँ भी बहुत जल्द बनाती हैं । इनकी रचनाएँ 'सुधा', 'कमला' आदि साहित्यिक पत्रिकानोंमें निकलती रहती है । अभी राष्ट्रीय आन्दोलनमें आप जेल-यात्रा कर चुकी हैं। आपकी कविताएँ अलंकारयुक्त किन्तु सुबोध होती हैं । हम हैं हरी भरी फुलवारी दुनियाके विशाल उपवनमें हृदयोंकी कोमल डालीपर खिले हुए हैं सुमन सुमतिके, जग मोहित है जग लालीपर शोभित विश्ववाटिका न्यारी, हम हैं हरी-भरी फुलवारी ११ मुरभि सर्वं जगके उपवनमें महक रही सुगुणोंकी मधुमय यह सन्देश सुनाती जगको, विचर रही होकरके निर्भय हमसे ही जग शोभा सारी, हम है हरी-भरी फुलवारी २ शायद समझ रही इससे ही, पुरुष जाति हमको अवलाएँ हरी-भरी फुलवारी होकर, कैसे हो सकती सबलाएँ यह सवलोंकी भूल अपारी, हम हैं हरी-भरी फुलवारी ॥३ पत्ते कोमल होनेपर भी जग-भरको छाया देते हैं करते हैं उपकार जगतका, पर न कभी वदला लेते है तब फिर कैसे अवला नारी, हम है हरी-भरी फुलवारी ॥४ - १७९ G

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