Book Title: Aadhunik Jain Kavi
Author(s): Rama Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 215
________________ श्री मणिप्रभा देवी, रामपुर श्री मणिप्रभा देवीको ही इस बात का मुख्य श्रेय है कि उन्होंने वर्तमान जनसमाजकी महिलाओंको कविता रचनेके लिए प्रेरणा दी और उनकी कविताओंको 'जैन महिलादर्श' नामक मासिक पत्रमें 'कविता मन्दिर के अन्तर्गत छाप छापकर लेखिकानोंको प्रोत्साहित किया। आप प्रारम्भसे ही कविता-मन्दिरको संचालिका है, जिसे योग्यतासे सम्पादित कर रही हैं। आपने स्वयं भी बहुत सुन्दर कविताएं की हैं जिनमें पोज और माधुर्य दोनों ही गुण पाये जाते हैं। आप सुकवि श्री कल्याणकुमार 'शशि'की धर्मपत्नी है। सोनेका संसार जीवनकी नन्ही नैया डोल रही है जग-जलमें , परिवर्तन हो रहे नये नित जल-थल नौ अंचलमें। निरख-निरखकर नया रूप देखा मैने पल-पलमें, नूतन सागर वना एक इस मेरे अन्तस्तलमें। कम्पन-सा हो रहा प्रकट . है मेरे मन निश्चलमे, लक्ष्य निकट है, लक्ष्य दूर है मेरे कौतूहलमें। .. - १८९ -

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