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रह करके परतन्त्र हमारा
क्या कुछ जीनेमें हैं जीना; वीरोंका वह खून, अरे, क्या
· निकल गया वन पतित पसीना ? कहो आज अस्तित्व हमारा क्योंकर तुला लचरतापर है।
बढ़े जा बढ़े जा, अरे पथिक, मत वोल !
जब तक तेरे विस्तृत पथकी अन्तिम संध्या निकट ना ले। देख, कहीं अब तू मत सोना, व्यर्थ समय यों ही मत खोना ; कभी न भूल प्रमादी होना , निरुत्साहका बोझ न ढोना। • भयको कर भयभीत हृदयसे, निर्भयताको ध्येय बना ले। चाहे लाखों संकट आयें , भीषणताएँ आन सतायें; पर तेरे पगकी सीमाएँ पथसे विचलित हो ना जायें।
अपनी धुनमें गाये जा तू, अपने पथके गीत निराले। अग्र गमन हो प्रतिदिन तेरा , कह दे मैं जगका, जग मेरा; कभी मार्ग में हो न अँधेरा, जब तू जागे तभी सवेरा।
___पराधीनताके मुखमें तू जड़ दे आजादीके ताले । थक मत, आगेको बढ़ता जा ; उन्नतिके गिरिपर चढ़ता जा ; पान्थ, परीक्षामें कढ़ता जा , निजमें निजताको पढ़ता जा।
होकर प्रेम-प्रणयमें पागल पीले भर-भर रसके प्याले ; जब तक तेरे विस्तृत पथकी अन्तिम संध्या निकट न आले।
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