Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 15
________________ १० २. चितिशक्ति अजडत्वात्मिका चितिशक्तिः । ४७ शक्तियाँ और ४७ नय चितिशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - अजड़त्व अर्थात् जड़रूप नहीं होना, चेतनरूप होना है लक्षण जिसका, उसे चितिशक्ति कहते हैं। जीवत्वशक्ति से सम्पन्न आत्मा में चिति नामक एक ऐसी भी शक्ति है, जिसके कारण यह आत्मा जड़रूप नहीं है या जड़रूप नहीं होता । यही कारण है कि इस चितिशक्ति को अजड़त्वात्मिका कहा है, अजड़रूप कहा है। यह भगवान आत्मा जीवत्वशक्ति के कारण जीव है और चितिशक्ति के कारण अजीव नहीं है, जड़ नहीं है । चितिशक्ति यह बताती है कि तू देहरूप नहीं है और जीवत्वशक्ति यह बताती है कि देह के संयोग से तेरा जीवन नहीं है, तेरा जीवन तो चैतन्यरूप भावप्राणों से है। यह चितिशक्ति अर्थात् चैतन्यरूप रहना आत्मा का लक्षण है और जीवत्वशक्ति इस लक्षण से लक्षित किया जानेवाला, पहिचाना जानेवाला लक्ष्य है । इसप्रकार यहाँ यह कहा गया है कि यह जीव जीवत्वशक्ति से जीवित रहता है और चितिशक्ति से चेतनरूप रहता है, जड़रूप नहीं होता ||२॥ दृशिशक्ति और ज्ञानशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - - अनाकार उपयोगमयी दृशिशक्ति है और साकार उपयोगमयी ज्ञानशक्ति है। जिसमें ज्ञेयरूप आकार अर्थात् विशेष नहीं हैं; ऐसे दर्शनोपयोगमयी सत्तामात्र पदार्थ में उपयुक्त होनेरूप दर्शनक्रियारूप दृशिशक्ति है और जो

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