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उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति
१८. उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति क्रमाक्रमवृत्तवृत्तित्वलक्षणा उत्पादव्ययध्रुवत्वशक्तिः।
अगुरुलघुत्वशक्ति षट्स्थानपतित वृद्धि-हानि रूप से परिणमित स्वरूप प्रतिष्ठत्व का कारणरूप विशेष गुणात्मक है।
न केवल आत्मा में, अपितु प्रत्येक पदार्थ की प्रत्येक पर्याय में षट्गुणी वृद्धि और षट्गुणी हानि निरन्तर हुआ करती है। गजब की बात तो यह है कि यह वृद्धि और हानि एक ही वस्तु में एकसाथ ही होती है।
१. अनंतगुणवृद्धि २. असंख्यगुणवृद्धि ३. संख्यगुणवृद्धि ४. संख्यभागवृद्धि ५. असंख्य-भागवृद्धि और ६. अनंतभागवृद्धि - ये छह प्रकार की वृद्धियाँ हैं। ___ इसीप्रकार १. अनंतगुणहानि २. असंख्यगुणहानि ३. संख्यगुणहानि ४. संख्यभागहानि ५. असंख्यभागहानि और ६. अनंतभागहानि - ये छहप्रकार की हानियाँ हैं।
इसप्रकार छह वृद्धि और छह हानि कुल मिलाकर बारह प्रकार की वृद्धि-हानि निरन्तर प्रत्येक आत्मा में, उनके गुणों और उनकी पर्यायों में होती रहती है; क्योंकि उनमें अगुरु-लघुत्वशक्ति का रूप है, उनमें अगुरुलघुत्वशक्ति व्याप्त है। ___ यह बात केवलज्ञानगम्य है, क्षयोपशमज्ञान में तो मात्र आगम से ही जानी जाती है; अत: इसके बारे में कुछ विशेष कहना संभव नहीं है। बस, इतना समझ लेना कि आत्मा में एक इसप्रकार की भी शक्ति है। ___ इस संदर्भ में विशेष जानने की भावना हो तो गोम्मटसारादि करणानुयोग के ग्रन्थों का स्वाध्याय करना चाहिए। __ इसप्रकार अगुरुलघुत्वशक्ति की चर्चा के उपरान्त अब उत्पाद-व्ययध्रुवत्वशक्ति की चर्चा करते हैंइस अठारहवीं उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्वशक्ति की चर्चा आत्मख्याति में