Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

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Page 38
________________ नियतप्रदेशत्वशक्ति २४. नियतप्रदेशत्वशक्ति । आसंसारसंहरणविस्तरणलक्षितकिंचिदूनचरमशरीरपरिमाणावस्थितलोकाकाशसम्मितात्मावयवत्वलक्षणा नियतप्रदेशत्वशक्तिः। की अचलता आत्मा के स्वभाव में सदा विद्यमान है; क्योंकि उसमें निष्क्रियत्वशक्ति है। निष्क्रियत्वशक्ति का कार्य ही यह है कि वह आत्मा को सदा अचल रखे ॥२३॥ इसप्रकार निष्क्रियत्वशक्ति के उपरान्त अब नियतप्रदेशत्वशक्ति की चर्चा करते हैं - इस चौबीसवीं नियतप्रदेशत्वशक्ति का स्वरूप आत्मख्याति में इसप्रकार व्यक्त किया गया है - अनादिकाल से संसार-अवस्था में संकोच-विस्तार से लक्षित और सिद्ध-अवस्था में चरम शरीर से किंचित् न्यून परिमाण तथा लोकाकाश के प्रदेशों की संख्या के समान असंख्यात प्रदेशवाला आत्मा का अवयव है लक्षण जिसका, वह नियतप्रदेशत्वशक्ति है। तात्पर्य यह है कि असंख्यातप्रदेशी लोकाकाश के जितने प्रदेश हैं; उतने ही असंख्यात प्रदेश इस भगवान आत्मा में हैं। संसार-अवस्था में वे प्रदेश देहप्रमाण रहते हैं। जितनी देह हो, उतने ही आकार में आत्मा के प्रदेश समा जाते हैं। छोटी देह में संकुचित हो जाते हैं और बड़ी देह में फैल जाते हैं; पर रहते हैं देहप्रमाण ही तथा उनकी जो असंख्यात संख्या है, उसमें कोई कमी-वेशी नहीं होती। सिद्ध-अवस्था में देह छूट जाने पर अन्तिम देह के आकार में रहते हैं, पर अन्तिम देह से कुछ न्यून (कम) आकार में रहते हैं। आत्मा में जितने प्रदेश हैं, सदा उतने ही रहते हैं, कम-अधिक नहीं होते; विभिन्न आकारों में रहने पर भी वे सदा नियत ही है, जितने थे, उतने ही रहते हैं। आत्मा के असंख्यप्रदेशों का उक्त कथनानुसार आकार रहना ही नियतप्रदेशत्वशक्ति का कार्य है॥२४॥

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