Book Title: 47 Shaktiya Aur 47 Nay
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Pandit Todarmal Smarak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 78
________________ अस्तित्व-अवक्तव्यनय, नास्तित्व-अवक्तव्यनय और अस्तित्व-नास्तित्व अवक्तव्यनय ७३ नास्तित्वावक्तव्यनयेनानयोमयागुणकार्मुकान्तरालवय॑संहितावस्थालक्ष्योन्मुखखायोमयानयोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्त्यगुणकार्मकान्तरालवर्तिसंहितावस्थासंहितावस्थलक्ष्योन्मुखालक्ष्योन्मुखप्राक्तनविशिखवत् परद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावैश्च नास्तित्ववदवक्तव्यम्॥८॥ ___ अस्तित्वनास्तित्वावक्तव्यनयेनायोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्तिसंहितावस्थलक्ष्योन्मुखानयोमयागुणकार्मुकान्तरालवय॑संहितावस्थालक्ष्योन्मुखायोमयानयोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्त्यगुणकार्मुकान्तरालवर्तिसंहितावस्थासंहितावस्थलक्ष्योन्मुखप्राक्तविशिखवत् स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैः परद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्युगपत्स्वपरद्रव्य क्षेत्रकालभावैश्चास्तित्वनास्तित्ववदवक्तव्यम्॥९॥ इसप्रकार अवक्तव्यनय के प्रतिपादन के उपरान्त अब अस्तिअवक्तव्यनय, नास्ति-अवक्तव्यनय और अस्ति-नास्ति-अवक्तव्यनयों की चर्चा करते हैं - ___लोहमय, डोरी और धनुष के मध्य स्थित, संधानदशा में रहे हुए, लक्ष्योन्मुख एवं लोहमय तथा अलोहमय, डोरी और धनुष के मध्य स्थित तथा डोरी और धनुष के मध्य नहीं स्थित, संधानदशा में रहे हुए तथा संधानदशा में नहीं रहे हुए और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख ऐसे पहले बाण की भाँति आत्मद्रव्य अस्तित्व-अवक्तव्यनय से स्वद्रव्य-क्षेत्र-कालभाव से तथा युगपत् स्वपरद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से अस्तित्ववाला अवक्तव्य है॥७॥ __ अलोहमय, डोरी और धनुष के मध्य नहीं स्थित, संधानदशा में न रहे हुए, अलक्ष्योन्मुख एवं लोहमय तथा अलोहमय, डोरी और धनुष के मध्य में स्थित तथा डोरी और धनुष के मध्य में नहीं स्थित, संधानदशा में रहे हुए तथा संधानदशा में न रहे हुए और लक्ष्योन्मुख तथा अलक्ष्योन्मुख उसी बाण की भाँति आत्मद्रव्य नास्तित्व-अवक्तव्यनय से परद्रव्य-क्षेत्र-कालभाव से तथा युगपत् स्वपरद्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से नास्तित्ववाला अवक्तव्य है॥८॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130