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४७ शक्तियाँ और ४७ नय यद्यपि आत्मा के मूलस्वभाव को संस्कारित नहीं किया जा सकता है; तथापि पर्यायस्वभाव को संस्कारित कर मुक्ति प्राप्त की जा सकती है' - यह बात स्वभावनय और अस्वभावनय के माध्यम से स्पष्ट हो जाने पर यह प्रश्न उपस्थित होता है कि अस्वभावधर्म के कारण संस्कार को सार्थक करनेवाले इस आत्मा की सिद्धि किसप्रकार होती है ?
- इस प्रश्न का उत्तरही अब कालनय-अकालनय एवं पुरुषकार नय-दैवनय के माध्यम से दिया जा रहा है।
जिसप्रकार अकृत्रिम गर्मी से पकनेवाला डलपक (डाली पर पकनेवाला) आम पकनेरूप कार्य की सिद्धि के लिए काल पर आधारित है; उसीप्रकार यह भगवान आत्मा अपनी मुक्तिरूप सिद्धि के लिए कालनय से काल पर आधारित है तथा जिसप्रकार कृत्रिम गर्मी देकर पाल में पकाये जानेवाला आम अपने पकनेरूप कार्य की सिद्धि के लिए काल पर आधारित नहीं है; उसीप्रकार यह भगवान आत्मा अपनी मुक्तिरूप सिद्धि के लिए अकालनय से काल पर आधारित नहीं है। ___ भगवान आत्मा में अन्य अनन्त धर्मों के समान एक काल नामक धर्म भी है और एक अकाल नामक धर्म भी है। आत्मा के इन काल और अकाल नामक धर्मों को विषय बनानेवाले नय ही क्रमशः कालनय और अकालनय हैं।
प्रश्न - कालनय से तो काल आने पर ही मुक्ति होती है; पर अकालनय से तो समय के पूर्व ही मुक्ति हो जाती है न ? क्या इसका अर्थ यह नहीं हो सकता है कि पुरुषार्थहीनों के कार्य तो काल आने पर ही होते हैं, पर पुरुषार्थी जीव तो अपने पुरुषार्थ द्वारा समय से पहले ही कार्यसिद्धि कर लेते हैं।
उत्तर - नहीं, ऐसा कदापि नहीं होता। कार्य तो सभी स्वकाल में ही होते हैं। अन्य अनन्त धर्मों के समान कालधर्म और अकालधर्म भी सभी आत्माओं में समानरूप से एकसाथ विद्यमान हैं। ऐसा नहीं है कि किसी में कालधर्म हो और किसी में अकालधर्म ।