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४७ शक्तियाँ और ४७ नय (७-९) अस्तित्व-अवक्तव्यनय, नास्तित्व-अवक्तव्यनय
और अस्तित्व-नास्तित्व-अवक्तव्य नय अस्तित्वावक्तव्यनयेनायोमयगुणकार्मुकातंरालवर्तिसंहितावस्थलक्ष्योन्मुखायोमयानयोमयगुणकार्मुकान्तरालवर्त्यगुणकार्मुकान्तरालवर्तिसंहितावस्थासंहितावस्थलक्ष्योन्मुखालक्ष्योन्मुखप्राक्तनविशिखवत् स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावैर्युगपत्स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावैश्चास्तित्ववदवक्तव्यम्॥७॥ नामक धर्म का कार्य है और क्रमशः प्रतिपादन संभव होना वक्तव्य नामक धर्म का कार्य है।
यद्यपि ४७ नयों में वक्तव्य नामक कोई नय नहीं है और सप्तभंगी में वक्तव्य नामक कोई भंग भी नहीं है, तथापि सभी ४७ नयों से आत्मा को वाच्य तो बनाया ही जा रहा है, यदि भगवान आत्मा कथंचित् भी वाच्य नहीं होता अर्थात् उसमें वाच्य बनने की शक्ति, स्वभाव, धर्म नहीं होता तो वह प्रमाण-नयों से वाच्य भी कैसे बनाया जा सकता था? अत: उसमें वाच्य नामक धर्म भी है ही।
सप्तभंगी के आरम्भ के तीन भंग वक्तव्य और अन्त के चार भंग अवक्तव्य के हैं। जिसप्रकार सप्तभंगी के अंतिम तीन भंगों को हम इसप्रकार व्यक्त करते हैं कि अस्ति-अवक्तव्य, नास्ति-अवक्तव्य और अस्तिनास्ति -अवक्तव्य; उसीप्रकार आरम्भ के तीन भंगों को इसप्रकार भी व्यक्त कर सकते है कि अस्तिवक्तव्य, नास्तिवक्तव्य, अस्ति-नास्तिवक्तव्य। ___ यदिभगवान आत्मा सर्वथा ही अवक्तव्य होता तोसमस्त जिनवाणी निरर्थक होती; क्योंकि समस्त जिनवाणी एकप्रकार से भगवान आत्मा के प्रतिपादन के लिए ही तो समर्पित है तथा यदि भगवान आत्मा वाणी द्वारा पूरी तरह बताया जा सकता होता तो फिर शास्त्रों को पढ़कर या गुरुमुख से आत्मा का स्वरूप सुनकर सभी आत्मज्ञानी हो गये होते। इसप्रकार हम देखते हैं कि भगवान आत्मा अवक्तव्यनय से कथंचित् अवक्तव्य भी है।।६।।